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शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2012

कपड़ों और सूरत से नहीं होती इंसान की पहचान: ब्लाग 4 वार्ता..ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार,...दो राज्यों में चुनाव की घोषणा हो गयी.... वोट से अपने लिए सरकार चुनने का समय आ गया. इन ५ बरसों में इतने घोटाले हुए जितने ६० बरसों में नहीं हुए. महंगाई अपनी चरम सीमा पर है. गैस सिलेंडर की मनमाने काला बाजारी हो रही है. जहाँ आम आदमी को महीने में एक सिलेंडर नहीं मिल पता वहीँ इन नेताओं को महीने में ५०-६० सिलेंडर दिए जा रहे हैं.  "पुरानी बीबी मजा नहीं देती है" कह कर आधी आबादी का अपमान करने वाली पार्टी और उनके नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाना निहायत ही जरुरी है. .....प्रस्तुत है आज की वार्ता ....

कपड़ों और सूरत से नहीं होती इंसान की पहचान - श्रीगंगानगर-एक परिचित विप्रवर को घर छोड़ गया। विप्रवर भी क्या! आज के सुदामा से कुछ बीस लगे। बुजुर्ग पतले दुबले । दांत थे भी और नहीं भी। हल्की सफ़ेद दाड़ी। ...हम सयाने हो गए ! - बचपन में आँगन से लेकर दुआर तक दौड़ते थे साथ-साथ बड़ी बहन के, दहलीज़ से डेहरी तक हमारे छोटे-छोटे पाँव लांघते थे बेखटके करते थे अठखेलियाँ खेलते थे लुका-छिप..आइये कुरीतियो और प्रदूषणकारी व्यवस्था का बहिष्कार करे - अभी गणेशोत्सव बीता है आगे नवरात्रे आने वाले है यह त्योहार जीवन मे रंग भरते है प्रेम का, उल्लास का, भेदभाव से ऊपर उठने का मौका देते है प्रकृति को नजदीक से ज..

एक झलक - चौराहे पर एक व्यक्ति जार -बेजार रो .ज़िन्दगी कुछ यूँ ही बसर होती है....... - *अपने कुछ बिखरे एहसासों को जोड़ कर ...सिलसिलेवार संजोया हैं मैंने.....मेरे दिल की खुली किताब के कुछ भीगे पन्ने समझ लीजिए.....* तुम से शुरू और तुम पे ही आकर... हाय काजल लगी मदहोश तुम्हारी आखें.. - बला का हुस्न गज़ब का शबाब नींद में है है जिस्म जैसे गुलिस्ताँ गुलाब नींद में है उसे ज़रा सा भी पढ़ लो तो शायरी आ जाए अभी ग़ज़ल की मुकम्मल किताब नींद में है ..

मैंने भी खैनी खाना शुरू किया. - *कई दिन से कोई भी पोस्ट या टीप लिखते हुए आलस सा आता है... पता नहीं क्यों. अत: कुछ लिखने की कवायद के नाम से बक बक शुरू कर रहा हूँ, मित्रजन संभाल लेंगे :)* ... अरविन्द कौन? - व्यंग्य स्वामी रामदेव कौन? प्रसिद्द योगगुरु और सामाजिक कार्यकर्ता.. अन्ना है कौन? स्वामी रामदेव के द्वारा देहली लाये गए महारास्ट्र के सामाजिक कार्यकर्ता,, ... .वह उसकी ही अमानत है - "मेरी आँखों में अक्श था उसका, आंसू तो थे नहीं गिरते तो गिरते कैसे ? गिरा तहजीब से, बिखरा तरतीब से, --- मैंने उठाया फिर नहीं अब जमीन पर जो नमीं सी चस्पा है व..

हवा का झोंका है या तुम्हारे बदन की खुसबू ! ये पत्तियों की है सरसराहट के तुमने चुपके से कुछ कहा है ! - ..दिया गुलाब का फूल - दिया गुलाब का फूल किया इज़हार प्यार का डायरी में रखा बहुत दिन तक सहेजा एक दिन डायरी हाथ लगी नजर उस पर पड़ी फूल तो सूख गया पर सुगंध अपनी छोड़ गया अहसा...यादों की रौशनी की उजास - मौजूदगी से गहरा , मौजूदगी का अहसास है दूर जाकर, पता चले, कोई कितने पास है . सामने जो लफ्ज़ रह जाते थे, अनसुने अब अनकही बातों को भी सुनने की प्यास है... 

ओ मेरे, मुसव्विर .... - *ओ मेरे,* *मुसव्विर !* *बनाना एक आशियाना ,* *मजबूत बुनियाद से ,* *जिसमें दरवाजे,सीढियाँ हो ,* *खिड़कियाँ हो ,* *सामने खुला क्षितिज ,* *लहराते उपवन , आती भीन..एक गीत -अपना दुःख कब कहती गंगा - हर की पैड़ी हरिद्वार -चित्र गूगल से साभार भूगोल की किताबों में भले ही गंगा को नदी लिखा गया हो |दुनिया की किंवदन्तियों में भले ही इसे नदी कहा गया हो | लेकि.. .......... 

लेते है ब्रेक राम-राम ....

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