संध्या शर्मा का नमस्कार....आज का दिन हमारे लिए बहुत खास है. गुस्ताखियों को कहो ज़रा मेरे शहर के कोने मे ठहर जायें
रात को घूंघट तो उठाने दो ज़रा
कहीं सुबह की नज़ाकत ना रुसवा हो जाये
एक पर्दानशीं का वादा है
चन्दा भी आज आधा है
लबों पर जो ठिठकी है
वो कमसिनी ज्यादा है
ऐसे मे क्यों ना गुस्ताखी हो जाये
जो सिमटी है शब तेरे आगोश मे
उसे जिलावतन किया जाये
एक तस्वीर जो उभरी थी ख्यालों मे
क्यों ना उसे तस्दीक किया जाये
यूँ ही बातों के पैमानों मे
एक जाम छलकाया...