
संध्या शर्मा का नमस्कार...लम्हा - लम्हा जिंदगी कुछ यूँ सिमट गई ,
जो मज़ा था इंतजार में अब सज़ा बन गई |
दर्द और ख़ुशी के बीच दूरियां जो बड गई ,
दिलो के दरमियाँ मोहोब्बत कम हो गई |
चिठ्ठी - तार बीते जमाने की बात हो गई ,
आधुनिक दौड़ में वो बंद किताब हो गई |
कुछ सवाल हदों की सीमाएं पार कर गई ,
वक़्त के साथ अपने कई निशां छोड़ गई |
खफा नहीं , जिंदगी हमपे मेहरबान हो गई ,
भडास निकली तो बात आई - गई हो गई | पल - पल बदलता वक़्त ... लीजिये प्रस्तुत...