
संध्या शर्मा का नमस्कार... रात की झील पर.....तैरती उदास किश्ती
हर सुबह
आ लगती है किनारे
मगर न जाने क्यों
ये जिया बहुत
होता है उदास .....
ऐ मेरे मौला
कहां ले जाउं
अब अपने
इश्क के सफ़ीने को
तेरी ही उठाई
आंधियां हैं
है तेरे दिए पतवार....
कहती हूं तुझसे अब
सुन ले हाल
जिंदगी की झील पर
उग आए हैं कमल बेशुमार
उठा एक भंवर
मुझको तो डूबा दे
या मेरे मौला
अब पार तू लगा दे....लीजिये प्रस्तुत है, आज की वार्ता ...........
एक ऐतिहासिक दिन ...
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