रविवार, 12 मई 2013

माँ.. प्यारी माँ... : ब्लॉग 4 वार्ता... संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार..... 
तुम्हारे बिना सिर्फ अन्धकार दिखता है
और उसे, सिर्फ तुम्हारा दमकता चेहरा
ही हटा सकता है
न करना मेरे जीवन में
कभी ऐसा अंधकार
न जाना कभी छोड़कर मुझे मेरी माँ।
माना कि सबको जाना है एक दिन
सब जीते भी हैं सभी के बिन
पर नहीं जीना मुझे एक पल भी
तेरे साए के बिना
न जाना कभी छोड़कर मुझे मेरी माँ।
तुम हो सब अच्छा है
सुन्दर है इस जहाँ में
हर जंग लड़ लेती हूँ ये सोचकर
हारूँ या जीतूँ , तुम हो !
तुम रहना क्योंकि मुझे है,नहीं टूटना
न जाना कभी छोड़कर मुझे मेरी माँ 
लीजिये प्रस्तुत है, आज की वार्ता ........


माँ - बावरी हुई है मातु प्रेम प्रेम बोलि रही तीन लोक डोलि डोलि खुद को थकायो है गायो नाचि नाचि कै हिये की पीर बार बार प्रेम पंथ मुझ से कपूत को दिखायो है भसम रमाये..

“बचपने से भरा बचपन”. बचपन के उनपलो को हमकभी शायद दोहरातो नही सकतेलेकिन उन बितायेपलो को कभीभूलना मुमकिन नहीहै/ ऐसे हीपलो को समेटनेपेश है मेरीकुछ पंक्तियाँ: वह तस्वीर आज इतनासता रहीं है, बचपन के पलोकी जो यादआ रहींहै, बहन के साथखेलना मस्ती भरीहोली, और माँ कीयाद मुझको रुलारही है/ वह तस्वीर आज इतनासता रही है, बचपन के पलोकी जो यादआ रहीं है/ मंजिलो कि खातिरदूर लगता थाजाना, लेकिन अब तोयह मंजिले भीतड़पा रहीं है, दिल के दरवाजेअब जिस मोडपर खुलते, वह गलिया मेरे माँ-पा केचरणो मे समारहीं है/....

मात्र दिवस विशेष - माँ तुझे सलाम...!

.उसको नहीं देखा हमने कभी पर इसकी जरुरत क्या होगी ? ऐ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की मूरत क्या होगी ? माँ ही मन्दिर, माँ ही मूरत, माँ पूजा की थाली, बिन माँ के जीवन ऐसा, जैसे बगिया बिन माली । माँ ने कभी हमें खुली छत के नीचे नहीं सुलाया और कुछ नहीं मिला तो छाँह के लिये अपनी ममता का आँचल ही हम पर ओढा दिया । माँ ब्रह्मा है, माँ विष्णु है और महादेव भी माँ ही है । ब्रह्मा जन्म देते हैं, विष्णु पालन करते हैं और महादेव उद्धार करते हैं । जो तीनों देवों का कार्य अकेली पूरा करती है, धरती पर वही माँ कहलाती है । दुनिया में माँ की कीमत क्या होती है ये उससे बेहतर कौन बता सकता..

मेरी माँ , प्यारी माँ , मम्मा ..

माँ की ममता को कौन नहीं जानता और कोई परिभाषित भी नहीं कर पाया है। सभी को माँ प्यारी लगती है और हर माँ को अपना बच्चा प्रिय होता है। मेरी माँ भी हम चारों बहनों को एक सामान प्यार करती है। कोई भी यह नहीं कहती कि माँ को कौनसी बहन ज्यादा प्यारी लगती है, ऐसा लगता है जैसे उसे ही ज्यादा प्यार करती है। लेकिन मुझे लगता है मैंने मेरी माँ को बहुत सताया है क्यूंकि मैं बचपन में बहुत अधिक शरारती थी। मेरा जन्म हुआ तो मैं सामान्य बच्चों की तरह नहीं थी। मेरा एक पैर घुटने से भीतर की और मुड़ा हुआ था।नानी परेशान थी पर माँ ...! 

अम्मा कभी नहीं हुई बीमार---------

 अम्मा -------------- सुबह सुबह फटा-फट नहाकर अधकुचियाई साड़ी लपेटकर तुलसी चौरे पर सूरज को प्रतिदिन बुलाती आकांक्षाओं का दीपक जलाती फिर भरतीं चौड़ी,छोटी सी मांग गोल बड़ी आंखें दर्पण को देखकर अपने से ही बात करतीं सिंदूर की बिंदी माथे पर लगाते-लगाते सोते हुये पापा को जगाती सिर पर पल्ला रखते हुऐ कमरे से बाहर निकलते ही चूल्हे-चौके में खप जातीं------

माँ

अक्सर चाहता हूँ मैं माँ! फिर से करूँ तुमसे बातें तमाम.. बेहिचक नादानी भरी, मन की जजबातें जैसे करता था बचपन मे..अठखेली क्यों रोक लेता है मेरा मन , क्यों रुठ जाते हैं बोल, कपकंपा जातें हैं होंठ, मन करता है बार-बार सवाल, आखिर क्यों...? वजह... मेरा बढ़ाता कद है या झूठे अभिमान की चादर, या फिर... तुम्हारे पुराने ख्यालात...!! उलझ जाता हूँ मैं , करूं क्या उपाय, पूछता हूँ खुद से रोज-ब-रोज...!! शायद मैं ! अब बड़ा हो गया हूँ.. उम्र से, कद से, या फिर अहम से या फिर... संकोच के बादल से घिर गए है मन मे...!! यही सच है...हाँ, यही सच है शब्द ऐसे ही गूंजते हैं मन मे.. हाँ ,यही सच हैं..?

  मेरी माँ

जैसे सत्य है रवि, रवि की दीप्त किरणें भी जैसे सत्य है बादलों की श्यामली माया सत्य है उसकी बरखा भी सत्य है व्यवधान अंतर जैसे सत्य तम भी उजाला भी वैसे ही सत्य माँ और उसकी ममता भी अटल सत्य है तेरा और मेरे साथ तुम मेरी सखी-सहेली भी और खुद में पूर्ण और सम्पूर्ण भी मेरी माँ...............|| बहुत खुशनसीब हूँ की शादी की २५ वीं सालगिरह पर माँ हमारे साथ थी अपने आशीर्वाद के साथ मैं और मेरे बच्चे ......(मैं भी अब माँ की भूमिका में .....कल, आज और कल )

 माँ... 

हम नाराज होते वो मुस्कुराती थी
वही डॉक्टर के आगे गिड़गिड़ाती
तीन साल असहनीय पीड़ा झेलती
जीती रही हमारी खातिर
जब कभी दर्द से थक हार जाती .....

विराम सृजन का

शनेशने बढ़ते जीवन में कई बिम्ब उभरे बिखरे बीती घटनाएं ,नवीन भाव लुका छिपी खेलते मन में बहुत छूटा कुछ ही रहा जिज्ञासा को विराम न मिला अनवरत पढ़ना लिखना चल रहा था चलता रहा कुछ से प्रशंसा मिली कई निशब्द ही रहे अनजाने में मन उचटा व्यवधान भी आता रहा मानसिक थकान भी जब तब सताती जाने कितना कुछ है विचारों के समुन्दर में कैसे उसे समेटूं पन्नों पर सजाऊँ बड़ा विचित्र यह विधान विधि का असीमित घटना क्रम नित्य नए प्रयोग यहाँ वहां बिखरे बिखरे सहेजना उनको लगता असंभव सा तभी दिया विराम लेखन को  

माँ ..........

माँ शब्द में --- मात्र एक वर्ण और एक मात्रा जिससे शुरू होती है सबकी जीवन यात्रा माँ ब्रह्मा की तरह सृष्टि रचती है धरा की तरह हर बोझ सहती है धरणि बन हर पुष्प पल्लवित करती है सरस्वति बन संस्कार गढ़ती है भले ही खुद हो अनपढ़ पर ज़िंदगी की किताब को खुद रचती है माँ हर बच्चे के लिए लक्ष्मी रूपा है खुद अभाव सहती है लेकिन बच्चे के लिए सर्वस्व देवा है , माँ बस जानती है देना उसे मान अपमान से कुछ नहीं लेना माँ के उपकारों का न आदि है न अंत जो माँ को पूजे वही है सच्चा संत ।  

लाल स्कार्फ वाली लड़की

वो देखता रहता उस पनीली आँखों वाली लडकी को,रेत के घरौंदे बनाते और बिगाड़ते.....उसे मोहब्बत हो चली थी थी इस अनजान,अजीब सी लडकी से...जो अक्सर लाल स्कार्फ बांधे रहती.....कभी कभी काला भी... बरसों से समंदर किनारे रहते रहते इस मछुआरे को पहले कभी न इश्क हुआ था न कभी ऐसी कोई लडकी दिखी थी.जाने कहाँ से आयी थी वो लडकी इस वीरान से टापू में....देखने में भली लगती थी मगर कुछ विक्षिप्त सी,खुद से बेपरवाह सी...(जाने लहरें उसे बहा कर लाई हैं या किसी मछली के पेट से निकली राजकुमारी है वो...मछुआरा अपनी सोच के साथ बहा चला जाता था..)  

 कार्टून :- घंटी तो कृष्ण ने भी कंस की बजा दी थी

  

 

दीजिये इज़ाजत नमस्कार .....

12 टिप्पणियाँ:

मर्मस्पशी रचना , सुंदर लिनक्स ....आभार

माँ तुझे शत शत प्रणाम |उम्दा लिंक्स

नमन है माँ को समर्पित इस चर्चा को ...
लाजवाब रचना है आपकी भी ...

माँ के प्रति भावों से भरी वार्ता..

संध्याजी,
मातृ दिवस को समर्पित आपकी इस विशेष पोस्ट में नजरिया ब्लाग की माँ तुझे सलाम को भी स्थान देने हेतु आपको धन्यवाद....

बहुत प्यारी वार्ता.......
सभी रचनाएं सुन्दर!!!!
हमारी रचना को शामिल करने का शुक्रिया.

सस्नेह
अनु

नमन है माँ को समर्पित इस चर्चा को,आपका सादर आभार.

यूं तो हर बार कुछ न कुछ नया -सा लगता है होता भी है लेकिन इस वार्ता पर खासकर ...मां पर एक एक मोती और उनसे पिरोई पिरोयी ये माला किसे नहीं भायेगी आभार आपका ..

यूं तो हर बार कुछ न कुछ नया -सा लगता है होता भी है लेकिन इस वार्ता पर खासकर ...मां पर एक एक मोती और उनसे पिरोई पिरोयी ये माला किसे नहीं भायेगी आभार आपका ..
http://manoharchamolimanu.blogspot.in/

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी में किसी भी तरह का लिंक न लगाएं।
लिंक लगाने पर आपकी टिप्पणी हटा दी जाएगी।

Twitter Delicious Facebook Digg Stumbleupon Favorites More