बुधवार, 15 मई 2013

मदारी कुछ भी नहीं बिना जम्हूरे के...ब्लॉग 4 वार्ता... संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार....हमें भी स्वयं के अवदान को कम अंकित कर दूसरों से तुलना नहीं करनी चाहिए, प्रायः हम अपने गुणों को कम और दूसरों के गुणों को अधिक आंकते हैं, यदि औरों में भी विशेष गुणवत्ता है तो हमारे अन्दर भी कई गुण मौजूद हैं।अपना अपना महत्त्व  ... लीजिये प्रस्तुत है, आज की वार्ता ........
लो मै आ गया... - विभिन्न भाव भंगिमाओं में आपका अपना गौरव शर्मा "भारतीय" प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय डॉ रमन सिंह के साथ आपका अपना गौरव शर्मा "भारतीय" ...प्रि‍यतम का गुंजलक.... - बरसती चांदनी की पंखुरि‍यों में प्रि‍यतम का गुंजलक मोगरे की खुश्‍बू से मन का उपवन महका जाता है । सांसों की गरमाई से सि‍क्‍त रखो मेरी सांसे गेसुओं से उलझकर..ग़ज़ल - * * *जालिम लगी दुनिया हमें हर शक्श बेगाना लगा * *हर पल हमें धोखे मिले अपने ही ऐतबार से* * * *नफरत से की गयी चोट से हर जखम...

 नशे के कारोबार मे राज्य की भूमिका - ड्रग्स का उपयोग लगभग उतना ही पुराना है जितनी पुरानी मानव सभ्यता। लेकिन अधिक नशे की लत और खतरनाक सिंथेटिक दवाएं पश्चिमी देशों के द्वारा शुरू किए गए थे,. किस पिंज़रे में फ़स गया - एक बार तेरे शहर में आकर जो बस गया, ता-उम्र फड़फडाता, किस पिंज़रे में फ़स गया. नज़रें नहीं मिलाता, कोई यहाँ किसी से, एक अज़नबी हूँ भीड़ में, यह दर्द...अहसासों के पंख...एक ब्लॉग नया सा ... - एक परिचय शरद कुमार जी और उनके ब्लॉग से -- कुछ शेर बेटी के नाम एक मासूम सा ख्वाब और माँ ये रचनाएं हैं शरद कुमार जी के ब्लॉग *अहसासों के पंख* से .. 

 संदीप रावत की कविताएं - मेरे प्रिय छात्र अनिल कार्की की वजह से मेरा ध्‍यान फेसबुक पर संदीप रावत की कविताओं की ओर गया। मैं उनके पिछले कुछ स्‍टेटस को बहुत ध्‍यान से देख रहा था, ...मैं और शब्द - सृष्टि के अनछुए पहलू उनमें झांकने की जानने की ललक बारम्बार आकृष्ट करती नजदीकिया उससे बढ़तीं वहीं का हो रह जाता आँचल में उसके छिपा रहना चाहता भोर का ..चल दिल से उम्मीदों के मुसाफ़िर - मुसलसल बेकली दिल को रही है मगर जीने की सूरत तो रही है मैं क्यूँ फिरता हूँ तन्हा मारा-मारा ये बस्ती चैन से क्यों सो रही है चल दिल से उम्मीदों के मुसाफ़िर ये न... 

वर्षा - वर्षा   अमृत छलका दानी नभ से सिहरा रोम-रोम धरती का जागे वृक्ष, दूब अंकुराई शीतलता आंचल में भर पवन लहराई. भीगा तन पाखी का उड़ा फड़फड़ा डैन... मदारी ..... - * ** **मदारी कुछ भी नहीं...* *बिना जम्हूरे के...!* *ये अलग बात है...* *दिखाई यही देता है कि...* *सारा खेल मदारी के हाथ है......!* *लेकिन जब ज्यादा होशिय....तल्ख स्मृतियाँ ( हाइकु ) - कड़वी यादें चीर देती हैं सीना मैं लहूलुहान । ************ पीड़ित यादें झटक ही तो दीं थीं पीले पत्ते सी । ***************...

कोई भी छोटा बड़ा नही है सभी समान हैं !! - एक गाँव में एक पण्डित जी अपनी पंडिताईन के साथ रहते थे ! पण्डित जी गाँव में पूजा और अन्य धार्मिक कार्य करवाते थे ! उन पण्डित जी के मन में जातिवाद और उंच ..विचलित मन ! - *हर घर से होकर गुजरती नियति की गली है, * *न हीं मुकद्दर के आगे,वहाँ किसी की चली है, * *नीरस लम्हों के सफ़र में,किंतु सकूं के दो पल, * *जो हंसकर गुजार दे ... ताऊ का खूंटा "रेडियो प्लेबैक इंडिया" पर.....! - ताऊ के खूंटे से एक खूंटा जो 2 जनवरी 2009 को ताऊ के सैम और बीनू फ़िरंगी की पोस्ट के अंत में "* इब खूंटे पै पढो"** * के अंतर्गत * *प्रकाशित हुआ था उसे आज ..

 इंटरनेट युग में विज्ञापन का कारोबार - समाज के साथ ही हर दौर में विज्ञापनों का रुझान भी बदल जाता है। लेकिन अब जो बदलाव आ रहा है, वह समाज की वजह से कम और तकनीक की वजह से ज्यादा है। ...शब्दों का साथ खोजते विचार - कह पाना जितना सरल है भावों और विचारों को शब्दों के रूप ने लिख पाना उतना ही कठिन । जाने कितनी ही बार यह आभास हुआ है कि विचारों का आवागमन जारी रहता है पर ... “गुलाब भरा आँगन” - “गुलाब भरा आँगन” सहजता सिमटता हवा का झोंका सहज होनें का करता था भरपूर प्रयास. बांवरा सा हवा का वह झोंका गुलाबों भरे आँगन से चुरा लेता था बहुत सी गंध और उसे...

 मेरा आईना - मुझको मेरा आईना दिखाकर तुमने अच्छा काम किया भूल गई थी जिसको मैं उसको फिर पहचान लिया ....वह तस्वीर......बहुत वक़्त से देखता रहता था मैं दीवार पर टंगी उस तस्वीर को न जाने कब से टंगी थी घर के कोने के उस अंधेरे कमरे में गर्द की एक मोटी परत रुई धुनी रज़ाई की तरह लिपटी हुई थी उस तस्वीर से पर आज .....बादल तेरे आ जाने से ...* *** बादल तेरे आ जाने से जाने क्यूँ मन भर आता है, मुझको जैसे कोई अपना, कुछ कहने को मिल जाता है ! पहरों कमरे की खिड़की से तुझको ही देखा करती हूँ , तेरे रंग से तेरे दुःख का अनुमान लगाया करती हूँ ! यूँ उमड़ घुमड़ तेरा छाना तेरी पीड़ा दरशाता है , बादल तेरे आ जाने से ...थकता नहीं है आदमी - भीड़ ही भीड़ है चारों तरफ है आदमी। चलता ही जा रहा है बस थकता नहीं है आदमी। वाहनों की दौड़-भाग से नहीं इसे परहेज न है इसे प्रतिद्वंदिता न द्वेष .....

 

दीजिये इज़ाजत नमस्कार .....

11 टिप्पणियाँ:

sunder.....!
please add my blog on your list
www.vmwteam.blogspot.in

बहुत सुंदर वार्ता सजाई है संध्या जी ! मेरी रचना को भी इसमें शामिल किया आपकी आभारी हूँ ! हृदय से आपका धन्यवाद !

आज मैं लेट होगी इस मंच पर आने के लिए क्षमा चाहूंगी संध्या जी |बढ़िया वार्ता है |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा

वाह ! बहुत खूब। कितना कुछ संजो कर लाया गया है यहां आपको बधाई।

बहुत सुंदर वाह ! बहुत खूब। कितना कुछ संजो कर लाया गया है यहां आपको बधाई। ...http://manoharchamolimanu.blogspot.in/

आंखिर बकरे की माँ कब तक खैर मनाती ..
बहुत सुन्दर रोचक वार्ता प्रस्तुति ...आभार

बहुत सुंदर .
ललित बाबू दिल्ली फ़ुर्र.....

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