संध्या शर्मा का नमस्कार, प्रस्तुत हैं मेरी पसंद के कुछ लिंक ब्लॉग4वार्ता पर…………
रोज डे पर अपने मित्रों को !...
रोज डे पर अपने मित्रों को !...
हम खुद गुलाब है किसी को क्या गुलाब दें इतने हैं लाज़बाब, कि अब क्या जबाब दें मुझको हर एक रस्म निभाने का शौक था कैसे हुए खराब, कि अब क्या जबाब दें अहसास की बातों को अहसास ही रहने दें मत पूछिए जनाब,...
सुनहरे कागज मै लिपटा हुआ सुबह एक ख़त मिला मुझको बीते हुए लम्हों के करीब बहुत करीब ले गया वह मुझको ख़त मै लिखा था- "तुम यादों का सफ़ीना साहिल पर छोड़ आये मेरी सूनी रातों मे एक चाँद छोड़ आये इन आँखों मे...
तुम जब भी बात करते हो मुझसे एक खनक सी होती है.. एक खुशी सी होती है ... आवाज़ में तुम्हारी , उन पलों में... मुझसे बात करने की बस,मेरे साथ होने की आज,वो नहीं थी... कई बार पूछा तुमसे कि,आखिर बात क्या है?...
आप कल्पना कीजिये कि वह वक्त कैंसा रहा होगा जब कोई अंग्रेज किसी गरीब और मजबूर भारतीय के घर के किसी सदस्य को नीलामी में खरीदकर, गुलाम बनाकर अपने किसी औपनिवेश पर जानवरों की तरह काम करवाने के लिए अपने साथ लेकर...
मेरे दिल में तुम्हारे लिये प्यार था तुमने उसे व्यापार समझा मैंने तुम्हारी प्रशंसा की तुमने उपहास समझा सोचा था-खुशियों को साझा करने से अपनेपन का एहसास बढ जायेगा गम साझा करेंगे तो ये आधा हो जायेगा पर पता नही...
मृत्यु कितनी दुखदाई अहसास उसका इससे भी गहरा उर में छिपे ग़मों को बाहर आने नहीं देता | पहचान हुई जब से साथ नहीं छोड़ा साथ चला साये सा लगने लगी रिक्तता गम के बिना | है दुनिया बाजार ग़मो ...
आया वसंत झूम के धूप ने पिया जब फूलों का अर्क भर गयी ऊर्जा उसके तन-बदन में....कल तक नजर आती थी जो कृश और कुम्हलाई आज कैसी खिल गयी है...वसंत के आने की खबर उसको भी मिल गयी है ! धरा ने ली अंगड़ाई भर दिया वनस्प...
हमें कोई हक नहीं है उंगली उठाने का,उन मजबूरियों को ढोते शरीर मात्र पर ;जो ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट रचना के जीवन की रक्षा में हर पल एक आग में जल रहीं हैं|देह-व्यापार से घृणा करें,उन दलालों से घृणा करें,उन कार...
कभी कभी पंख लगा के उड़ता समय आभास नहीं होने देता किसी विशेष दिन का खास कर जब दिन ऐसे बीत रहे हों की इससे अच्छे दिन हो ही नहीं सकते ऐसे में अचानक ही जादुई कायनात अपने इन्द्रधनुष में छेद कर किसी विशेष ...
उसका यूँ मुझको तड़पाना क्या क्या रंग दिखायेगा दिल पर जादू सा कर जाना क्या क्या रंग दिखायेगा इन आँखों में तू ही तू है, कैसे और ख़्वाब पालूं ऐसी आँखों को छलकाना क्या क्या रंग दिखायेगा तुझको खुदा बनाकर...
*आशा ऐसी वस्तु है, मिलती सबके पास, पास न हो कुछ भी मगर, हरदम रहती आस। आलस के सौ वर्ष भी, जीवन में हैं व्यर्थ, एक वर्ष उद्यम भरा, महती इसका अर्थ। सुनी कभी तो जायगी, दुखियारे की टेर, ईश्वर के घर देर है, नह...
मन की उड़ान धरती में दफ़्न जब किसी प्राचीन नगर, मंदिर देवालय या अन्य संरचना के बाहर आने की सूचना मिलती है तो रोमांचित हो उठता हूँ। निर्माण करने वाले शिल्पकारों की कारीगरी देखने की इच्छा जागृत होकर व्याकुल क...
मिलते हैं अगली वार्ता में, तब तक इधर भी हो आएं