ललित शर्मा का नमस्कार, आज का दिन भाग दौड़ में बीता। कल से राजिम कुंभ प्रारंभ होने वाला है। भारत में बाकी जगह तो कुंभ अपने 4 वर्ष के निर्धारित समय पर लगते हैं। हमारे छत्तीसगढ प्रतिवर्ष कुंभ लगता है। अब 4 वर्षों तक कुंभ स्नान करने की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं। संतों के डेरे भी तैयार हैं। प्रवचन के साथ मनोरंजन का इंतजाम भी है। कुंभ स्नान के लिए सिकासेर बांध से पैरी नदी में पानी छोड़ दिया गया है। कल से ही श्रद्धालु राजिम पहुंचने लग जाएगें। आप भी पहुंचे और कुंभ स्नान का पुण्य लाभ लें। अब चलते हैं आज की वार्ता पर, पढिए कुछ उम्दा लिंक……
सुनीता शर्मा जी ने विवाहेत्तर संबंधो पर एक विचारोत्तेजक लेख लिखा है, उसे यहां पढ सकते हैं।…शिखा-स्मृति “स्मृतियों में रूस”* भले ही शिखा वार्ष्णेय की स्मृतियों का दस्तावेज़ हो, लेकिन पिछली पीढ़ी के हर भारतीय की स्मृतियों में बसता है. पूर्व विदेश मंत्री श्री वी. के. कृष्णमेनन जब रूस गए थे तो वहाँ से इंदिरा ...माँ ने बच्ची को लावारिस छोड़ीदिल्ली में फिर एक माँ ने बच्ची को लावारिस छोड़ी ...नवजात बच्ची को छोडकर बच्ची कि माँ अस्पताल से फरार ..अस्पताल में दिया गया महीला का पता मिला गलत ....बच्ची ठीक हालत में नरेला के सत्यवादी हरिश्चंदर...
सारी रात...सारी रात ... तेरे आने का इंतज़ार . मन पे कुहासे की परत चढ़ने लगी है रात भी गहरी और काली होने लगी है ठहरी हुई ओस की बूँदें बहने लगी हैं निराशा से भारी इस रात में क्या करूँ? तुझे याद करूँ? मिलन के सपने बुनू...बीते वो पल-ताँकाबीते वो पल*** *उड़ते छीटों-जैसे*** *भिगोते रहे*** *कभी ये तन्हा मन*** *कभी मेरा दामन*** *2.* नम थी आँखें दर्द भीगता गया आँसू में डूब नाजुक दिल टूटा बिन आहट किए *डॉ. हरदीप संधु* अस्मितामुझसे मायने हर रिश्ते के , और मैं किसी की कुछ भी नहीं ....... प्रार्थनाएं, वंदन करती रही , मान्यतायें रिवाजों की मैं निभाती रही, बाबुल का अभिमान बन कर्म की बेदी सजाती रही .. डोर से रक्षा की आस में नमन सदा क..
रोटी कपड़ा ,मकान *उसकी छैनियों में इतना पैनापन है , तोड़ कर शिला ,तराश देता पत्थर , सृजित हो जाती हैं ,गगन चुम्बी अट्टालिकाएं आकार लेती हैं, लालित्य कला की सजीव सी लगती मूर्तियाँ खजुराहो की , दीवारें भी दूरियों के न...ब्लाग पर फिर से वापस ..सप्ताह के अंतिम दिन अपनी उत्तमार्ध शोभा के साथ बाजार जाना पड़ा। वहाँ के काम निपटाते निपटाते ध्यान आया कि अदालत में कुछ काम हैं जो आज ही करने थे। मैं शोभा को घर छोड़ अदालत पहुँचा। काम मामूली थे आधे घंट...नव गीतिकाकिसी घायल परिंदे को नजर अंदाज मत करना * *किसी की जिन्दगी से इस तरह खिलवाड़ मत करना |* *कहीं कोई तुम्हें गम जिन्दगी का खुद सुनाये तो * *जरा दिल से उसे सुनना ,कभी इंकार मत करना |* *तुम्हें चा...
नैनो से बरसात क्यों(आज की रचना उस प्रिय व्यक्ति के लिए है जिन्होंने मुझे इस काबिल बनाया कि आज मैं अपने भावों को लिख पाऊं) "नैनो से बरसात क्यों" कह सकूं मैं आज फिर भी न कहूँ वह बात क्यों छलक रहा जब आज खुशियाँ नैनो से बरसात...शिल्पाचार्य भगवान विश्वकर्मा का जन्मदिनप्राचीन भारतीय विज्ञान का कोई सानी नहीं है। जब हम इस विषय पर सोचते हैं तो गौरवान्वित हो उठते है। आज जिसे हम इन्ड्रस्ट्री कहते हैं इसे वैदिक काल में शिल्प शास्त्र या कलाज्ञान कहा जाता था। इसके जानने वाले व...तिरसठ की चाह में छतीस सालछत्तीस साल किया समायोजन बीत ही गए | सोचती हूँ मैं छत्तीस का आंकड़ा फिराए पीठ |
रीत जीवन की हँसते हँसते जब आँख भर आई ... धुंधली सी पड़ने लगी ... बासंती अमराई ...! धुंधलका सा छाने लगा ... गया ही कहाँ है बसंत ... के पतझड़ फिर आने लगा .. मन मौन फिर छाने लगा ...! किसलय अनुभूति क्षण की .... ये भी क... पूर्वज-वंशज शिखर वार्ता !कुछ दिनों पहले गाँव गया था . मित्रों और रिश्तेदारों के घर भी जाना हुआ . घरों के पीछे बाड़ियों में जहां कुछ साल पहले साग-सब्जियों की लहलहाती हरियाली का सम्मोहन हुआ करता था..दोहे : अवसर का उपयोगआशा ऐसी वस्तु है, मिलती सबके पास, पास न हो कुछ भी मगर, हरदम रहती आस। आलस के सौ वर्ष भी, जीवन में हैं व्यर्थ, एक वर्ष उद्यम भरा,
ऊपर हँसते भीतर गम था ऊपर हँसते भीतर गम था जाने कैसी तंद्रा थी वह कितनी गहरी निद्रा थी वह, घोर तमस था मन पर छाया ढके हुए थी सब कुछ माया ! एक विचारों का जंगल था भीतर मचा महा दंगल था, खुद ही खुद को काट रहे थे कैसा फिर ? कहाँ मंग...बजरंग बाणभूत- प्रेत, पिशाच, वेताल, जिन्न और ग्रहों की उल्टी चाल आदि तभी तक नहीं हैं जब तक उनसे पाला न पड़े । ईश्वर न करे कभी पड़े लेकिन कभी पड़ ही जाए तो इसका प्रेम पूर्वक पाठ एवम् श्रवण रक्षा कारी बताया गया है और ...मुझे यश लेना नहीं आता : धर्मेंद्रधर्मेंद्र से मिलना हिंदी सिनेमा के उस दौर में पहुंच जाने जैसा होता है, जब सुपरस्टार वाकई सुपरस्टार हुआ करते थे।
उपलब्धि का आधार…अब तो यह निश्चित हो गया कि उपलब्धि को हासिल करने के लिए साधन से महत्वपूर्ण है साध्य . साधक का लक्ष्य क्या है ? जिसे वह हासिल करना चाह रहा है . उसके पीछे उसका मंतव्य क्या है ? उसकी भ...हसीन कवि की कविताएँ ...वह बहुत अच्छी कविताएँ लिख रही है पर थोड़ी-सी शंका है ! क्या ? वह खुद लिख रही है या कोई और उसके नाम से लिख रहा है ! क्यों, क्योंकि - अक्सर सुनते रहे हैं कि - कई लोग फास्ट पब्लिसिटी के लिए नाम बद...इतिहास भी रच सकती हूँ मैं..रंग तितलियों में भर सकती हूँ मैं...... * *फूलो से खुशबू भी चुरा सकती हूँ मैं......* *यूँ ही कुछ लिखते-लिखते *
जानिए कार्टुनिस्ट सुरेश शर्मा जी की सेहत का राज
वार्ता को देते हैं विराम, मिलते हैं ब्रेक के बाद, राम राम
7 टिप्पणियाँ:
ब्रेक के बाद सुखवाओगे
फिर प्रेम से प्रेस करवाओगे
न जाने कितनी बार
कितनी ब्रेक लगाओगे
अच्छी वार्ता .. यहीं से पढने की शुरूआत करते हैं !!
अच्छे ज्ञानवर्धक लिंक्स .सुंदर सार-संकलन .आभार.
bahut hi achhi warta,,,, agli warta ka intjar .....
bahut hi achhi warta,...dhanyawad.. agli warta ka intjar hai hme...
बहुत अच्छा लिंक संकलन... अच्छी वार्ता और सुरेशजी का लाजवाब कार्टून...आभार
"हर संडे......"
गजब है फिर सोमवार को वार्तालाप भी करना होता है :-)
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