गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

कुछ भी शाश्वत नहीं... ब्लाग 4 वार्ता.......संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार, ललित जी से मिली जानकारी के अनुसार ७ फरवरी से छत्तीसगढ़ के राजिम में कुंभ का शुभारंभ हुआ. साधू संतों के डेरे लगे हुए हैं, कुंभ शिवरात्रि तक चलेगा. इस अवसर पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रवचनों का आयोजन भी किया जा रहा है, इस कुंभ में हिस्सा लेकर पुण्य लाभ भी लिया जा सकता है, जिसका न्योता हमें छत्तीसगढ़ संस्कृति मंत्रालय की ओर से ललितजी के Face Book Status  से पहले ही मिल चुका है, लेकिन हम वहां न पहुंचकर भी इस कुंभ मेले का आनंद ललित जी के उनकी Face Book  wall पर लगाये गए जीवंत चित्रों के माध्यम से ले सकते हैं,  जी हाँ इस कुंभ में सुर जगत की कुछ महान हस्तियों ने भी हिस्सा लिया, जिनमे से एक भजन सम्राट अनूप जलोटा जी हैं, जिनसे ललित जी की भेंट और विचार विमर्श भी हुआ . लीजिये प्रस्तुत हैं  मेरी पसंद के कुछ लिंक……

ललित शर्मा जी एवं अनुप जलोटा जी
                    
 posted by noreply@blogger.com (गिरीश"मुकुल") at  मिसफिट Misfit
 काश !! ऐ सारे सपने सच हो जाए... 
*कभी कभी दिल चाहता है कुछ ऐसा हो जाए * * * *परीक्षा पेपर तो हो पर रिजल्ट ना आए* * क्लास हो पर टीचर ना आए * * बस में बैठे पर कॉलेज ना जाए * * पिकनिक तो जाए * * और वापस ना आए * * हफ्ते में तीन दिन हो और * * फि...
नन्हीं चिरैया चोंच में तिनका दबाए डोलती है इधर से उधर उधर से इधर वृक्ष की फुनगियों पर . एक ही दिन में नहीं सीख लिया था चिरैया ने गाना-झूमना उसने सीखा था पहले उड़ना ...
कुछ भी शाश्वत नहीं है... दोस्ती नहीं तो दुश्मनी भी नहीं प्यार नहीं तो तकरार भी नहीं ख़ुशी नहीं तो आंसू भी नहीं जीवन का पल नहीं तो मौत की उलझन भी नहीं कुछ भी शाश्वत नहीं है... जब कुछ हमेशा के लिए है ही ...
तेरे होने पर सूरज गुलाम था मेरा रास्ते मेरा कहा मानते थे चाँद बिछा रहता था राहों में और मैं दुबक जाती थी बहारों के आँचल में कभी धूप में भीग जाती थी कभी बूँदें सुखा भी देती थीं, बसंत मोहताज नहीं था कैलेण्... 

संत प्रज्ञानंद जी एवं संत कवि पवन दीवान जी
 कन्यादान या अभिशाप
* * दान करने के नाम पर रहन रखने की ये अजब रस्म देखी बेटी ना हुई कोई जमीन हुई जिस पर जो चाहे जैसे चाहे हल चलाये या मकान बनाए या कूड़े का ढेर लगाये मगर वो सिर्फ बेटी होने की कीमत चुकाए उफ़ भी ना कर सके दहल... 
I HAVE RECEIVED THIS E.MAIL .YOU MUST VISIT NEELAM SHUKLA JI BLOG AND READ THIS - कहां प्लेस की जा रही हैं लड़कियांपिछले आठ वर्षो के दौरान मानव तस्कर छत्तीसगढ़ के जनजातीय इलाके सरगुजा, रायगढ़ और जशपुर से ... 
सब अजनबी रास्ते, सब अनजाने लोग. अपने ही शहर में चलते फिरते होता है महसूस कि किसी सफ़र पर निकल आया हूँ. तुम नहीं रहती मेरे शहर में, मैंने तुम्हें देखा भी नहीं... मगर फिर भी तुम्हारे सफ़र पर जाते ही मैं अच...
अशोक बजाज जी संतों का स्वागत करते हुए
हाइकु 
(१) वक़्त बदला मौके के अनुसार रिश्ते बदले. (२) माँ की ममता छलकती आँखों से डूबा है मन. (३) सपने आते यादों को जगा जाते क्यों चले जाते? (४) दर्द दिल में बरसती है आँख पता नहीं क्यूँ? (५) श...
हकीकत में सुकूने जिंदगी कैसी है होती ... भूखे बच्चे को एक निवाला खिलाकर देखो | न हो अगर दिल को फिर भी कोई अहसास ... टपकते उन आंसूंओं को थोडा महसूस करके देखो | तन - मन में जो बस रहा है एक मीठा सा सुकून ..... 
गरीबी के अंतिम दुर्भाग्य से पूरी तरह कुचला हुआ न जाने किस सपनीली उम्मीद पर हताशा के आखिरी छोर पर भी मजबूती से टिका हुआ लिपटे कफ़न में भी जिन्दा गरीब... चुटकी भर नमक से भी सस्ती अपनी जान को चुटकी में दबाये ग...
ब्लॉगर अशोक बजाज, राहुल सिंह, जीके अवधिया
जब अचानकमार बदमाशों ने अँधेरे जंगल में हमारा पीछा किया
नई नई आई कायनेटिक होंडा पर सवार हो जनवरी 1989 के आखिरी दिनों में श्रीमती जी और ढाई वर्षीया बिटिया के साथ चाचा जी के परिवार के साथ दो दिन बिता कर और रीवा क... 
*उर्दू साहित्य में ''हज़ल' की परम्परा है. हास्यप्रधान ग़ज़ल को हज़ल कहते है. हिन्दी में हास्य रचना के लिए शायद ऐसा कोई विशेषण नहीं है,. अगर होगा भी तो मेरी...  
*कल उत्तर प्रदेश मे चुनावी घमासान की शुरुआत है... फेसबुक पर अनगढ़ चिन्तन करते करते कुछ अनगढ़ विचार पंक्तियों मे उतर आए.... पोस्ट के कमेन्ट के रूप मे भाई सल... 
ब्लॉगर राहुल सिंह, जीके अवधिया एवं ललित शर्मा
सुना है आज गुलाब दिवस है क्या गुलाब दिवस होने से सब गुलाबी हो जाता है क्या सच मे मोहब्बत के रंग पर फिर सुरूर चढने लगता है किसी को गुलाब कहना बेहद आसान ह...
वोट लूटने की खातिर , खिलवाड़ करते नेता। अब मुलायम महोदय का चुनावी स्टंट आया है की मुझे जिताओ , मैं सेंट्रेल की तरह स्टेट यूनीवरसिटी में भी प्रोफेसर्स की रिट... 
*सहरा में वसंत आया वरण का,* ** ** *शुरू हो गया खेल पहले चरण का, * ** *खुद ही अपना परचम लहराकर, * ** *प्रतिद्वंदी को झूठा-मक्कार बताकर, * ** *निज आसन पाने ह...  
* * * * *लोग न जाने क्यूँ * *इतने रिश्ते लगाते हैं सबसे...* *फिर शुरू हो जाता है* *उन्हीं का हर रिश्ते के साथ * *काउंट-डाउन....* *कोई न कोई जोड़-घटाव* *औ...  

अब लेते हैं आपसे विदा मिलते हैं, अगली वार्ता में, नमस्कार... 



8 टिप्पणियाँ:

चित्रों ने वार्ता को जीवंत रूप दे दिया .....आपके प्रयास को सलाम ...!

ब्लॉग वार्ता४ अच्छी लगी |चित्र और लिंक्स भी |
आशा

वाह, राजिम कुंभ मय वार्ता के लिए आभार

महत्‍वपूर्ण लिंकों से सजी ..
राजिम कुंभ के चित्रों के साथ सुंदर लगी वार्ता ..
आभार !!

खूबसूरत लिंक्स सहेजे हैं………बहुत ही रोचक वार्ता।

bahut khub warta ...rang bhi naya dhang bhi naya.........badhai ho.......

राजिम कुंभ का पुण्‍य लाभ.

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