शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

मिलना तो बस एक बहाना है...ब्लाग 4 वार्ता.......संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार, पिछले एक माह से ब्लॉग4वार्ता पर मैने देखा है कि प्रतिदिन का ट्रैफ़िक 800 से 1200 हिट्स के बीच से चलता है।  लेकिन कमेंट बहुत कम आती है, जिनके लिंक लगाए जाते हैं वे भी कमेंट करने नहीं पहुचते। अपना लिंक देखकर चले जाते हैं। वार्ता के माडरेटर कहते है कि कमेंट की आवश्यकता नहीं, पर नए वार्ताकार के लिए तो कमेंट प्राणवायु का कार्य करते हैं। मेरी वार्ता पर कमेंट करने वालों के ही लिंक लगा करेगें। चाहे पाँच लिंक ही क्यों न लगे। अब चलते हैं आज वार्ता प्रस्तुत हैं कुछ मेरी पसंद के लिंक……………।

तुमसे मिलना तो बस एक बहाना है......
तुमसे मिलना तो बस एक बहाना है दिल के जख्मों को तुम्हें दिखाना है। कुछ इस कदर बिखरा है वजूद मेरा न कहीं ठौर और न कहीं ठिकाना है। ज़ज़्ब-ए-दुआ-ओ-ख़ैर कब की मर चुकी खंजर की नोक पे खड़ा ...
मेरा नाम
कभी कभी अन्दर से निकल कर जब मैं बाहर आ जाता हूँ तो स्वयं को पहचान ही नहीं पाता हूँ खो जाती है मेरी पहचान वो जो कभी तुमने कभी औरों ने दी मैं तो बस इसके उसके मुह को ताकता हूँ और गुजारिश ...
तुम श्याम देख लेना
*अँधेरे से जब मैं गुजरूँ तुम श्याम देख लेना ढूँढे से भी मैं पाऊँ जब कोई किरण कहीं ना तुम लाज मेरी रखना तपतीं हैं मेरी राहें साया न सिर पे पाऊँ जब घाम से मैं गुजरूँ तुम लाज मेरी रखना विरहन सी मैं...
कैना यानी कन्या। ध्यातव्य है कि छत्तीसगढ़ी कथा गीतों में स्त्री की उपस्थिति भरपूर है। स्त्री पात्रों को केंद्र में रखकर गाई जाने वाली गाथाओं में स्त्री की वेदना और पारिवारिक जीवन में उसकी दोयम दर्जे की ...
देह माटी की,* ** *दिल कांच का,* ** *दिमाग आक्षीर * ** *रबड़ का गुब्बारा,* ** *बनाने वाले ,* ** *कोई एक तो चीज * ** *फौलाद की बनाई होती ! * ** *xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx* ** *नयनों में मस्ती,* ** *नजरों..
आज कहानी सबको, अपने पल-पल की बतलाता हूं, कैसे मैं ज़िंदा रहता हूं, कैसे सब सह पाता हूं, रोज़ रात भर लेटा रहता हूं मैं, आंखें बंद किए, सुबह-सुबह सब जगते है, मैं बिस्तर से उठ जाता हूं.. फिर होके तैयार, नौकरी...
अभी बर्फ़ की बारिश का आनंद लेते हुए क्लास से लौटे... और खिड़की से उसी बारिश को निहारते हुए अपने घर की सैर पर निकल गया मन... फिर लौटा तो सोचा कि स्टाकहोम से ही बातें कर लें... कहीं वह उपेक्षित न महसूस करने ...
अनुराग अनंत के ब्लॉग पर उनकी रचना पढ़ कर जो मन में भाव उठे ..उनको आपके साथ बाँट रही हूँ ... बापू , बहुत पीड़ा होती है तुम्हारी मुस्कुराती तस्वीर चंद हरे पत्तों पर देख ...
यदि *मानव,* प्रकृति की संरचनात्मक-कृति का सबसे उत्कृष्ट, समृद्ध व आधुनिकतम रूप है तो *नारी* प्रकृति की सृजनात्मक-शक्ति का सर्वश्रेष्ठ व उच्चतम रूप है। इस संसार रूपी ईश्वरीय उद्यान ...
भीतर जल ताजा है माना कि जिंदगी संघर्ष है कई खतरनाक मोड़ अचानक आते हैं कभी इसको तो कभी उसको हम मनाते हैं भीतर कहीं गहराई में जिंदगी बहती है दू.....र टिमटिमाती गाँव की रोशनी की तरह.... ऊपर-ऊपर सब सूखा है, धु...
वो एक बेचैन सी सुबह थी, आस पास लोगों की भीड़... कई सारे अपने से चेहरे, जैसे सभी से एक न एक बार मिल चुका हूँ कहीं, बस अपने आप को नहीं देख पा रहा था मैं, फिर देखा तो कोई लेटा हुआ था सफ़ेद कपड़ों म...
*सूरज न मुख करियो मेरी ओर* * बसंती हो जाऊँगी...* * रंग बसंत ,राग बसंत ,रुत बसंत * * बसंत ही में ढल जाऊँगी * * फिर ओढ़ बसंती चुनरी * * मन ही मन इठलाऊँगी* * मुख पे बसंती झलक * * मन में फूल बसंत खिलाऊँगी * * ब...
मौत से ये दिल रज़ा है, और क़ातिल लापता है। वो समंदर ,मैं किनारा, उम्र भर का फ़ासला है। मैं चरागों का मुहाफ़िज़, वो हवाओं की ख़ुदा है। सब्र की जंज़ीरें मुझको, खुद हवस में मुब्तिला है। सांसें कब की थम चुकी हैं, ज़...
* **हमारा संगम *-* " 
३ समझ न पाता मानव क्यों जो बात बहुत पुरानी है दिमाग के बिना चले भी जिंदगी पर दिल के बिना बेमानी है आज नही है कल नही था पर एक दिन ऐसा आयेगा साथ में चलनेवाला साथी पल-पल में पछतायेगा बहुत मिलेंगे...
अश्रुपूरित नयनों से वह देखती अनवरत दूर उस पहाड़ी को जो ख्वाव गाह रही उसकी आज है वीरान कोहरे की चादर में लिपटी किसी उदास विरहनी सी वहाँ खेलता बचपन स्वप्नों में डूबा यौवन सजता रू...
अगर आपके पास बीएसएनल का ब्राडबैंड है तो आपके लिए एक खुशखबरी है 1 फरवरी से बीएसएनल ने हर प्लान की स्पीड दुगनी कर दी है जिनकी 256 केबी की स्पीड थी अब वो बढ़ कर 512 केबी हो गयी है और इसके लिए आपको कोई अलग स... 
तेरी... मेरी... हम सबकी तकदीर!
एक पुरानी गली है यादों की... जहां बचपन खुलकर गाता था दो बूंदें जमकर पिघली थीं हर रंग बड़ा सुहाता था फिर समय ने करवट ली... और गली वह पीछे छूट गयी पिरोई थी एक माला हमने वह मोती-मोती टूट गयी हर क्षण बदलते हैं...
* " ०३ फरवरी १९८८ "* * * * *गाय का नवजात बछड़ा जन्म के साथ ही ...
  
अब लेते हैं आपसे विदा मिलते हैं, अगली वार्ता में, नमस्कार... 
 

8 टिप्पणियाँ:

संध्या जी मैं तो आपकी नियमित पाठक हूँ आशा है आप मुझसे तो खफा नहीं होंगी |आजभी कई अच्छी लिंक्स हैं |आपका चुनाव करने का तरीका मुझे बहुत अच्छा लगता है |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा

बढ़िया रही वार्ता , सुंदर लिनक्स

लो जी, हम तो नियमित कमेंट करते हैं। हमारी पोस्ट का लिंक न भूल जाना। उम्दा वार्ता के लिए साधूवाद।

जी हाँ आप सभी की प्रतिक्रियाएं नयी ऊर्जा भर देती हैं... आभार आपका

सुविश्लेषित वार्ता, सार्थक लिंक चुनाव!! आभार

इतनी नाराज़गी सही नही………आप अपना कर्म करती रहिये देखियेगा एक दिन अपनी पहचान बना लेंगी तो ये शिकायत भी जाती रहेगी………रोचक वार्ता।

बहुत से पठनीय सूत्र मिले ... आभार .

बहुत ही अच्छी रचना, काफी सारे लिंक्स भी देखने -पढ़ने को मिले।
शुक्रिया आपका

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