शनिवार, 6 अक्तूबर 2012

उधार की ज़िंदगी ... फिर एक चौराहा ...ब्लॉग 4 वार्ता --- संगीता स्वरूप

आज की वार्ता में  संगीता स्वरूप का नमस्कार ...साल 2012 के नोबल शांति पुरस्कार के लिए कांग्रेस एवं संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की अध्यक्ष सोनिया गांधी के नाम की सिफारिश की गई है। इंटरनेशनल अवेकनिंग सेंटर ने सोनिया गांधी का नाम लगातार नौंवी बार नोबल शांति पुरस्कार से संबंधित समिति की स्वीकृत सूची में शामिल करने के लिए भेजा है। संगठन ने अपने सिफारिशी पत्र सोनिया गांधी विश्व शांति की पुजारी और एक महान सामाजिक कार्यकर्ता बताते हुए उन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का अनुरोध किया है। चलिये अब चलते हैं आज के लिंक्स पर ---

मुझे तलाश है उस भोर  की ,जो नव दिव्य चेतना भर दे |
निज लक्ष्य से ना हटें कभी
अटूट निश्चय पे डटें सभी
ना सत्य वचन से फिरें कभी
ना निज मूल्यों से गिरें कभी
जो गर्दन नीची कर दे

मुझे याद है प्रिय ! याद है .Я помню, любимая, помню

from स्पंदन SPANDAN by shikha varshney

कुछ दिन पहले अनिल जनविजय जी की फेस बुक दिवार पर एसेनिन सर्गेई की यह कविता  .Я помню, любимая, помню (रूसी भाषा में ) देखि. उन्हें पहले थोडा बहुत पढ़ा तो था परन्तु समय के साथ रूसी भी कुछ पीछे छूट गई. यह कविता देख फिर एक बार रूसी भाषा से अपने टूटे तारों को जोड़ने का मन हुआ.

lipa

आज लिपा* पर खिले फूल
मुझे अहसास कराते हैं
कैसे तेरे घुंघराले वालों पर
मैंने फूल बिखराए थे.

पतिता

from अन्तर्गगन by धीरेन्द्र अस्थाना

जिस्म  को बेच कर,
वह पालती उदर;
पतिता कहाती वह,
पर क्या वह पतिता ही है?

उधार की जिन्दगी... A Borrowd Life

from palash "पलाश" by "पलाश"

रेल की पटरी पर ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार से दौड रही थी, और घोष उस पटरी पर अपनी जिन्दगी की रफ्तार को खत्म करने के लिये उस पर अपनी पूरी रफ्तार से दौड रहा था, कि विघुत गति से एक हाथ अचानक आया और वो पटरी से अलग आ गया।
घोष- आपने मुझे क्यों बचाया, मै जीना नही चाहता, मुझे मरना है, आप मुझे छोड दीजिये..

और अब कैद में है

from हमसफ़र शब्द by संध्या आर्य

वर्षों तक एक ही शब्द के जिस्म में पनाह ले रखी थी
और बाहर महंगाई काट रही थी अक्षरों को
पन्नों पर स्याही बिखरने लगा था और हम थे कि
शुतुर्मुग की तरह

मैं ही नहीं तो कुछ नहीं !

from मेरी भावनायें... by रश्मि प्रभा...

मैं'   अहम् नहीं
आरंभ है
मैं से ही तुम और हम की उत्पत्ति है
मैं ही नहीं तो कुछ नहीं !
प्रेम,परिवर्तन,ईर्ष्या,हिंसा....
सबके पीछे मैं

मेरे ही सुर होंगे

अब न चुराऊँगी मैं, प्रियतम !
यह लो अपनी मुरली, प्रियतम !
रोज-रोज ना मिल पाऊँगी
जमुना तट ना आ पाऊँगी।

ठहरा हुआ शबाब जरा देखता तो चल

from My Unveil Emotions by Dr.Ashutosh Mishra "Ashu"

ठहरा हुआ शबाब जरा देखता तो चल 
    दीवाने इक गुलाब जरा देखता तो चल

रेबीज - एक मारक रोग

from जाले by noreply@blogger.com (पुरुषोत्तम पाण्डेय)

दिनेशसिंह बिष्ट, उम्र ३६ वर्ष, पेशे से अध्यापक, निवासी – ग्राम दौलतपुर जिला नैनीताल. तीन स्कूल जाने वाले बच्चे व शुभांगी पत्नी, सब कुशल मंगल था. वह गर्मियों की छुट्टियों में अपने ससुराल कोटाबाग मिलने गया तो वापसी में एक प्यारा सा देसी कुत्ते का पिल्ला भी साथ ले आया. पिल्ला आ जाने से बच्चे बहुत खुश हुए. उसके साथ खेलते थे, गोद में उठाते थे, उसे छेड़ते भी रहते थे.छेड़छाड़ से वह थोड़ा कटखना भी हो गया था. तीनों बच्चों के पैरों में उसने अपने पैने दांत चुभो दिये थे पर बच्चे तो बच्चे होते हैं, कहाँ परवाह करते हैं?

मोटल पंडवानी ----Motel Pandwani----- ललित शर्मा

from ललितडॉटकॉम by ब्लॉ.ललित शर्मा
पंडवानी मोटल का खूबसूरत दृश्य
छत्तीसगढ़ अंचल पर्यटन की दृष्टि से सम्पन्न राज्य है। यहाँ हरी-भरी पर्वत श्रृंखलाएं, लहराती बलखाती नदियाँ, गरजते जल प्रपात, पुरासम्पदाएं, प्राचीन एतिहासिक स्थल, अभ्यारण्य, गुफ़ाएं-कंदराएं, प्रागैतिहासिक काल के भित्ती चित्रों के साथ और भी बहुत कुछ है देखने को, जो पर्यटकों का मन मोह लेता है

वो इक मजदूर था...

from दिल की कलम से... by दिलीप

वो इक मजदूर था...
रात भर उसके सिर पर...
नज़मों का बोझ रखता रहा...
चाँद, तारे, सागर, अंबर...
मय, साक़ी, पैमानों के झुंड...
कितना कुछ वो एक नट की तरह....

फिर एक चौराहा - डॉ नूतन गैरोला

from अमृतरस by डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति

इम्तिहान, इम्तिहान, इम्तिहान,.. न जाने जिंदगी कितने इम्तिहान लेगी, हर बार एक नया चौराहा, हर बार खो जाने का भय , मंजिल किस डगर होगी कुछ भी तो उसे खबर नहीं ,……. ……..मंथन मंथन मंथन जाने कितना ही आत्ममंथन, हर बार पहुंची उसी जगह ज्यूँ शून्य की परिधि पर चलती हुई …………..चढ़ते, चढ़ते, चढ़ते,

तीन दिए, तेरह गिने, लिखे तिरासी नाम - डा. विष्णु विराट

from ठाले बैठे by NAVIN C. CHATURVEDI

पानी में पानी नहीं , नहीं अन्न में अन्न
मन्न मन्न जोरौ तऊ, देह न लागौ कन्न १
मोहि न भावै लीक कछु, मोहि नहीं आधार
मैं मेरी मंजिल भयौ, मैं मेरौ निरधार २

हम सयाने हो गए !

from बैसवारी baiswari by संतोष त्रिवेदी

बचपन में
आँगन से लेकर दुआर तक
दौड़ते थे साथ-साथ बड़ी बहन के,
दहलीज़ से डेहरी तक
हमारे छोटे-छोटे पाँव
लांघते थे बेखटके

ज़िन्दगी कुछ यूँ ही बसर होती है.......


तुम से शुरू और तुम पे ही आकर रुकी है मेरी हर नज़्म......तुमसे जुदा कोई बात नज़्म सी लगती नहीं ,
क्या करूँ !!
मेरे हाथों में तुम्हारा हाथ..
याने
-अवसर,संभावना,खुशी....
तुम्हारे काँधे पर टिका मेरा सर

मिली है सबको ऐसी छूट

from किताबें बोलती हैं by नादिर खान

मिली है सबको ऐसी छूट
मै भी लूटूँ तू भी लूट
चमचों को तू रख ले पास
कौन करे फिर तुझसे पूछ

एक बांध सब्र का ...

from sada-srijan by सदा

दर्द की भाषा कभी पढ़ी तो नहीं मैने
बस सही है हर बार
एक नये रंग में
उसी से यह जाना है
ये दर्द जब भी होता है

सफ़ारी की बातें और अरबी रातें ---भाग 1

from अंतर्मंथन by डॉ टी एस दराल

दुबई टूर  के अंतिम चरण में आता है डेजर्ट सफ़ारी . शहर से क़रीब 60-70 किलोमीटर दूर बने हैं -सेंड ड्यून्स यानि रेत के टीले। इन टीलों पर फर्राटे से दौड़ती गाड़ी में बैठकर  अनोखा रोमांच महसूस होता है। 

खामखाँ खुद को मिटाए कोई

from आनंद by Anand Dwivedi

बेवजह अब  न  रुलाये  कोई
गर कभी अपना बनाये कोई
दिले-नादाँ को संगदिल करलूं
कैसे, मुझको  भी बताये  कोई

तस्वीर

from कुछ मेरी कलम से kuch meri kalam se ** by रंजना [रंजू 
भाटिया]

हर सुन्दर तस्वीर
जो समेटे हुए हो
अपने में
कई रंग ...
कई एहसास
और एक
"मोनालिजा सी मुस्कान "

वार्तालाप तुमसे या खुद से नही पता…………मगर

from ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र by वन्दना

वार्तालाप तुमसे या खुद से नही पता…………मगर
आह ! और वक्त भी अपने होने पर रश्क करने लगेगा उस पल ………जानती हो ना मै असहजता मे सहज होता हूँ और तुम्हारे लि्ये लफ़्ज़ों की गिरह खोल देता हूँ बि्ल्कुल तु्म्हारी लहराती बलखाती चोटी की तरह ………

टूटे तारे

from Sudhinama by Sadhana Vaid

कूड़े के ढेर के पास
दो नन्हे हाथ
कचरे से कुछ बीनते हैं !
सहसा एक कर्कश
कड़क आवाज़
उन्हें कँपा देती है !

मेहँदी का पेड़

from जिंदगी की राहें by Mukesh Kumar Sinha

पता है ?
तुमने जो लगाया था
मेहँदी का पेड़,
उसके पत्ते आज भी
लाल कर देते हैं हथेली
.

नाहक़ ही प्यार आया

from ग़ाफ़िल की अमानत by चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’

तुम्हारी एक मीठी बोल पर बेजा क़रार आया।
भली नफ़्रत ही थी तुझपर मुझे नाहक़ ही प्यार आया।।

वो सुबह ...!!!

from अनुभूति / Anubhuti... by Sriprakash Dimri
मुझे अब भी  याद है
बचपन की  वो सुबह ...
जब  ऑफिस जाने से पहले...
पिता के साथ ...
हरी दूब में....

रोज़ सुबह-शाम ..........

from जो मेरा मन कहे by यशवन्त माथुर (Yashwant Mathur)

रोज़ सुबह-शाम
हर गली -हर मोहल्ले में
मची होती है
एक तेज़ हलचल
नलों में पानी आने की

आज के लिए बस इतना ही ..... मिलते हैं एक ब्रेक के बाद ...

26 टिप्पणियाँ:

बहुत बढ़िया वार्ता ...

बड़े सुन्दर सूत्र दिये हैं संगीता जी ! आपको यहाँ पाकर बड़ी सुखानुभूति हो रही है ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिये हृदय से धन्यवाद एवं आभार !

शुभप्रभात |बहुत बेहतरीन वार्ता सभी उत्कृष्ट लिंक्स के साथ मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए हार्दिक आभार

अच्छी वार्ता के लिए आभार !

sangeeta ji, thanks for making my post as a title of today's post, sach bahut achchha lga dekh kar, aaaj k waarta k abhi 2-3 links hi dekhe, sabhi achchhe lage, abhi aur bhi dekhungi...

उत्‍कृष्‍ट लिंक्‍स के चयन के साथ वार्ता को नया रंग देता आपका श्रम
सादर आभार

बहुत ही बढिया लिंक्स सजाये हैं ज्यादातर देख लिये हैं।

सुन्दर चर्चा ..लिंक्स के साथ उनकी थोड़ी जानकारी सहायक होती है.अच्छे लिंक्स मिले.

बहुत बढ़िया वार्ता ....
सुन्दर लिंक्स...
हमारी रचना को शामिल करने का शुक्रिया संगीता दी.

सादर
अनु

पोस्ट शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आंटी!


सादर

बहुत सुंदर वार्ता दीदी ... शामिल करने के लिये आभार !

आदरण्ीय संगीता जी व ललित जी
नमस्कार
यह ब्लाग मानसिक विमंदित बच्चों व उनके अभिभावकों के प्रति सामान्यजन की जागरुगता के लिए संचालित किया जा रहा है। अब तो इसमें सभी प्रकार के नि:शक्तजन की बात शामिल होती है। कृपया इसे देंखें और अपने लोकप्रिय एग्रीकेटर ब्लॉगोदय और ब्लाग 4 वार्ता में शामिल कर मेरा सहयोग करें। URL Http://shubhda.shakti.blogspot.com
शुभेच्छु
शुभदा

पहली बार इस लिंक पर आना hua aur बहुत achchhe लिंक पढने को मिले
हिंदी साहित्य के kchhetr में आपका प्रयास सराहनीय है
मुझे स्थान देने के लिए आभार

सुंदर लिंक्स, काफी देखें काफी देखूंगी ।

बहुत अच्‍छी वार्ता ..
अच्‍छे अच्‍छे लिंक्‍स मिले ..

संगीता जी
प्रणाम !
ब्लॉग वार्ता में मेरी रचना को शामिल करें हेतु साभार!

बहुत सुन्दर वार्ता ,,, और अपने को भी उस चर्चा में सम्मिल्लित देख बहुत ख़ुशी हुई ...सदर धन्यवाद संगीता जी,,,

जानदार लेख जिसमें जान फूकते हैं आपके दिये हुए लिंक्स

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