गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

आज ख्वाब लिख रही हूँ मैं.. ------- संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार, प्रस्तुत हैं मेरी पसंद के कुछ ब्लॉग लिंक --- मकान बन रहा है एक मकान मेरे घर के सामने ईंट ईंट जोड़कर दो नहीं तीन मंज़िला सुंदर सा मकान जिसके तीखे नयन नक्श पर फिदा हो जाए देखते ही कोई भी मगर मौका नहीं किसी को कि भीतर झांक भी ले सूरज की किरणें हों या चाँद की ... Roshi: जिन्दगी का फलसफा जिन्दगी का फलसफा: सब कहते हैं की बीति बातें बिसार दो ,और आगे की सुध लो पर भूलना क्या होता है इतना आसा ? जिनको था दिल और दिमाग ने इतना चाहा एक ही झटके में ... स्वय-पाल क़ानून चाहिए मै कौन हूँ ? मुझे नहीं मालूम मगर मै वो बिलकुल नहीं हूँ जो दिखता हूँ, बिना पर्ची मोटे डिस्काउंट पर फुटपाथी दूकान से दवाए खरीदता हूँ और पूछता हूँ नकली तो नहीं है, दरवाजे पर मदर डेरी से आधे दामों पर ...
 
चल कही और चले गमों से पार चले ए हवा चल कही और चले उल्झी सांसो की गुंथियों की जाल से पार चले ए हवा चल कही और चले बंजर भुमि की कोख में लगी आग से कही पार चले ए हवा चल कही और चले निकल चली है कई रस्मो-रवायते ऐ... मासूमियत कुछ लोग कह कए थे कि यही मिलेंगे फिर कबसे खड़े इंतजार में वो कब दिखेंगे फिर न कोई उम्मीद होगी तो क्या करेंगे लोग काज़िब वादों के भरोसे कब तक रहेंगे फिर मेरी एक तमन्ना थी उसका चेहरा देख लेते गोया मगर लगता... विरह - गीत हमारे - तुम्हारे विरह ने पिया दर्द के गीत को जनम दे दिया अनदेखे से परदेश में , हो तुम न जाने किस वेश में , हो तुम तेरी स्मृतियों में ही , मैं घूमूँ नाम तेरा ही , ले लेकर झूमूँ जोगन को मैंने भी..

 कमबख्त यादें ... कई बार चाहा तेरी यादें निकाल बाहर करूं पर पता नहीं कौन सा रोशनदान खुला रह जाता है सुबह की धूप के साथ झाँकने लगती हो तुम कमरे के अंदर हवा के ठन्डे झोंके के साथ सिरहन की तरह दौड़ने लगती हो पूरे जिस्म म... KAVITAYEN तूफ़ान हर ख्वाइश पूरी हो जिसकी ऐसा कोई इंसान नहीं, हर कदम पे हार जाये कुछ भी हो वह तूफ़ान नहीं ! जीतना है अगर तो हारने पर हिम्मत न टूटे, जीवन में किसी मुकाम पर हौसला न छूटे ! वक़्त भले ही कम हो पर जाना है ह... गृहस्थी : कुछ क्षणिकाएं * * १, आटा थोडा गीला फिर भी गीली तुम्हारी हंसी २. मैं तुम बच्चे , गीले बिस्तर की गंध कितनी सुगंध ३. न कभी गुलाब न कोई गीत फिर भी जीवन में कितना संगीत ४. सूखी रोटी नून और तेरा साथ , आह ! कित... 

किसी लकीर को छोटा कैसे बनाओगे?किसी लकीर को छोटा कैसे बनाओगे? बचपन में शिक्षक ने एक लकीर को श्यामपट पर बनाया था फिर उसे अनुभव, ज्ञान, उपलब्धियों और शिक्षा का प्रतीक बताकर एक सवाल उठाया था प्यारे बच्चों कैसे तुम इस लकीर को छोटा बनाओग... नकली पेन ड्राइव ने बनाया ‘उल्लू’आजकल बिलकुल समय नहीं मिल पा रहा अपनी ही वेबसाईट पर लिखने का! कारण एक ही है 2011 के लिए किए गए अपने ही वादे को पूरा करने की जद्दोजहद। अभी कार्य चल रहा जनमदिन वाले ब्लॉग को तुम मर्द भी ना कभी नहीं जीतने दोगे मुझे मैंने देखा हे तुमको मेरे सीने पे उभरे माँस को तकते हुए * *तब जब मै घूँघट मे थी , और आँचल लिपटा था दामन पे * * * *घूँघट हटा मैने दुपट्टा ले लिया , * *ये सोचकर की मेरी तैरती आँखे देख * *शायद तुम ताकना बंद. 

पार्ट-फाइनलयह कहानी आर्य-स्मृति साहित्य-समारोह( किताबघर दिल्ली )2011 के लिये चयनित कहानियों के संकलन--रामलुभाया हाजिर है-- में संग्रहीत है । इस बार पुरस्कार योग्य कोई रचना न होने के कारण केवल प्रोत्साहन स्वरूप ही कहा...धन-बल को मिलने वाला मान है भ्रष्टाचार की जड़ . ऐसे देश में भ्रष्टाचार कैसे खत्म हो सकता है , जहाँ किसी व्यक्ति का मान उसकी बेटी की शादी में खर्च किये गए धन से निर्धारित होता है | जहाँ समाज की नज़र में किसी एक मनुष्य की मनुष्यता बौनी हो जाती है दूसरे..आम के आम , गुठलियों के दाम , छिलके , डंठल और पत्तियों के भी दाम आज से दो सप्ताह के लिए अर्जित अवकाश शुरू हो गया है । इसलिए दो सप्ताह के लिए डॉक्टरी बंद । अब डॉक्टरी के सिवाय सारे काम किये जायेंगे । हालाँकि डॉक्टर डॉक्टरी छोड़ना भी चाहे तो लोग छोड़ने नहीं देते । किसी भी ...

डाइबिटिक रेटिनोपैथी हल्के में लेना पड़ेगा भारीहम में से सब को अपना अपना परिवार बेहद प्रिय होता है ... और होना भी चाहिए ... अगर परिवार के एक भी सदस्य पर कोई विपत्ति आ जाये तो पूरा परिवार परेशान हो जाता है ... ख़ास कर अगर परिवार का सब से ज़िम्मेदार बन्दे...छुईमुईबाग बहार सी सुन्दर कृति , अभिराम छवि उसकी | निर्विकार निगाहें जिसकी , अदा मोहती उसकी || जब दृष्टि पड़ जाती उस पर , छुई मुई सी दिखती | छिपी सुंदरता सादगी में, आकृष्ट सदा करती || संजीदगी उसकी मन हरती, खोई उस मे...आज ख्वाब लिख रही हूँ मैं..तन्हा बैठी आज कुछ लिखने जा रही हूँ... * *खुली आखों से कुछ सपने बुनने जा रही हूँ.....* *सालो पहले कुछ सवाल किये थे खुद से,* *उन सवालो के जवाब लिख रही हूँ मैं....* *आज ख्वाब लिख रही ..

.अहसासशहरे अलफाज का सौदागर, अहसासों के गुलशन में, ले कर झोली भर गीत मधुर, बैठा है लब खामोश लिए । कुछ भीगे से, कुछ खिलते से, कुछ मुरझाते, कुछ सपनीले, कुछ उलझे से, कुछ सुलझे से, कुछ ख्वाब हसीं आगोश लिए । कुछ यार म...हिन्दी : हम सबकी गौरव भाषा राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है। राष्ट्र के गौरव का यह तकाजा है कि उसकी अपनी एक राष्ट्रभाषा हो। कोई भी देश अपनी राष्ट्रीय भावनाओं को अपनी भाषा में ही अच्छी तरह व्यक्त कर सकता है। ...देर आए दुरुस्त आएबेख्याली में ही गुज़ार दी सारी उम्र इसी इंतज़ार में कि कभी तो कोई रखे कुछ ख्याल और जब आज कोई अपना रखता है ज़रूरत से ज्यादा ख़याल तो अनिच्छा की रेखाएं खिंच जाती हैं चेहरे पर, वाणी में भ...अनवरत रामलीला बिड़ला मंदिर की घंटियों की आवाज से नींद खुली, मंदिर की घंटियों की आवाज से नींद का टूटना, अच्छा लग रहा था। कमरे की पिछली खिड़की से रोशनी आ रही थी। मच्छर न होने के कारण रात को चैन की नींद आयी। रात चैन की नींद...


मिलते हैं अगली वार्ता में
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बुधवार, 14 दिसंबर 2011

लुगू बुरु घांटा बाड़ी धोरोम गाढ-- ब्लॉग4वार्ता --- ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार, आज संसद पर हमले की दसवीं बरसी है, 13 दिसम्बर की इस घटना को मैंने भी देखा है, तब की दिल्ली भी देखी और अब की दिल्ली भी देखी। दिल्ली वालों से मिल लिए तो अब रायपुर वालों से भी मिल लीजिए, इन्होने भी 13 दिसम्बर की घटना दे्खी है। एक नए ब्लॉगर भी मिलें, उम्दा गजल कार हैं, सरस गजले हैं। जरा इनकी मासूमियत दे्ख आईए। फ़िर न कहना बताया नहीं। एक सन्यासिन की व्यथा-कथा भी ब्लॉग पर चल रही है। अलबेला खत्री ने आपको 3000 रूपये भी भेजे हैं, बधाई हो। इनका उपयोग करो और मोटापे से मुक्ति पाओ। एक कविता यहाँ भी पढी जा सकती है। लुगू बुरु घांटा बाड़ी धोरोम गाढ भी पढिए।

प्रदूषण हमारो देश मेंवायु प्रदूषण* शहरीकरण और औद्योगिकीकरण से भारत की वायु गुणता में अत्यधिक कमी आयी है। विश्वभर में 30 लाख मौतें, घर और बाहर के वायु प्रदूषण से प्रतिवर्ष होती हैं, इनमें से सबसे ज्यादा भारत में होती हैं। विश...मधुमासशीत ऋतू,शीतल पवन मधुमास में भीगा तन मन परस्पर उपजा घना विश्वास,तृप्त आत्मा और प्रमुदित हर्षित जीवन गए थे दोनों हनीमून परविवाह के बाद नवयुगल पर बदल ही गयी थी काया कुछ ही दिन में पाकर नव स्पंदन प्यार का रंग भ...

पचह्त्तरवें के दो समारोह हनुमंत मनगटे पचहत्तर के हुए। संभवतः १९७८ में छिंदवाड़ा में "समान्तर सम्मेलन' हुआ था, जिसमें वृहत-कथा त्रयी के एक प्रमुख स्तम्भ कमलेश्वर की उपस्थिति उल्लेखनीय थी क्योंकि 'समान्तर आन्दोलन' के प्रवर्तक भी कम...मिला सबसे पुराना बिस्तरपुरातत्ववेताओं ने दावा किया है कि उन्होंने बिस्तर के सबसे पुराने साक्ष्य खोज निकाले हैं। जिसमें गुफा मानव मच्छरों को भगाने वाले पौधों का उपयोग करते थे। उनका अनुमान है कि इस बिस्तर पर गुफा मानव करीब 77,0...

जनसेवा और सुरक्षामेवा, ये दोनों साथ नहीं चलतेअन्ना पर हमले की आशंका व्यक्त की जा रही है, उनकी और उनकी टीम की सुरक्षा को लेकर किये गये इंतजाम को लेकर भी चर्चा की जा रही है और इस पर तमाम सारे विचार-विमर्शों का दौर चल पड़ा है। इसी घटना के साथ ही एक और ...तू कितनी अच्छी हैमाँ की सीख ---* *आज कल माँ का साथ नसीब हो रहा है, अपने अनुभव से कुछ बाते बताती हैं वे --* १ ---*खुद कभी ऐसा कोई काम न करें जिससे किसी का भी दिल आहत हो ,या उसे अपनी बात बुरी लगे।* २ बुरा जो देखन मैं चल...

पत्थर दिल इंसान... झील के किनारे टहलते टहलते...तुम उठाकर थाम लेती हाथ में एक पत्थर और कुछ अलग से अंदाज में फेंकती झील के ठहरे पानी में... पत्थर झील के पानी की सतह टकराता और डूबने की बजाये फिर उछलता... कभी तीन तो कभी चार...पतझर की साँझ और मटियाले ओवरकोट वाला आदमीतोक्यो का योयोगी पार्क आज शाम , मैं और.... कैमरा वही पुराना टी 005 तोशिबा जो यहाँ मोबाइल कनेक्शन के साथ मुफ़्त मिलता है । ये एक तन्हा आदमी का आत्मविज्ञापन है जिसे डर है कि उसके दोस्त उसे कहीं भूल ना जाएँ ।..
ऐसी अपनी इच्छा हैं. अपने उर के स्पंदन को, बस जीवन मैंने मान लिया| अपने उर के क्रंदन को गीतों का मैंने नाम दिया| रुके साँस के साथ कलम भी ऐसी अपनी इच्छा हैं | पटाक्षेप ही जीवन नाटय का, देगा हमको इसका उत्तर| चली है उसकी अपनी ...वह सब जो कहना बाकी रह गया, अच्चनजया चेची' मेरी सहेली 'राजी' की कजिन हैं. हम सब भी उन्हें चेची ही कहते हैं...(मलयालम में दीदी को चेची कहा जाता हैं.) .वे 'जया चेची' से ही इतनी प्रचलित हो गयी हैं कि अब उनका नाम 'जया मेनन' की जगह 'ज...

तरंगिकाचन्द्रबदना हंसी साज बन जाती है बन के लय मेरी गीतों में छलका करो - मेरी अभिव्यक्तियाँ पथ -प्रखर होती हैं , रात -रानी सी , यादों में महका करो - हाथ सानिध्य में , गीत कंगन कहे , बस के मानस मे...जब मौन प्रखर हो.जीवन की रेला-पेली है. कुछ चलती है, कुछ ठहरी है. जब मौन प्रखर हो व्यक्त हुआ कहा वक्त ने हो गई देरी है. अब भावों में उन्माद नहीं क्यों शब्दों में परवाज़ नहीं साँसे कुछ अपनी हैं बोझिल या चिंता कोई आ घेरी है ...

चलते चलते एक व्यंग्य चित्र



वार्ता को देते हैं विराम ,राम राम

मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

है नाम जिंदगी इसका ..........ब्लॉग4वार्ता........संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार, प्रस्तुत हैं कुछ लिंक आज की ब्लॉग4वार्ता में ....है नाम जिंदगी इसका बोझ क्यूँ समझा है इसे है नाम जिंदगी इसका सोचो समझो विचार करो फिर जीने की कोशिश करो | यत्न व्यर्थ नहीं जाएगा जिंदगी फूल सी होगी जब समय साथ देगा जीना कठिन नहीं होगा | माना कांटे भी होंगे साथ कई पुष्पों के दे ... उपेक्षित प्रेम *मेरे मन की चौखट पे* *वो दस्तक देती रही* *मेरी त्रुटियों पे* *नतमस्तक होती रही * *अविचल बैठी रही * *बनकर एक धीर* *वो चुपचाप बहाती रही* *अपने नेत्रों से नीर !* * * ** * * *धैर्य को समेटे * *आँखों में अविरत * ...

तुम्हारे जन्मदिन पर...आज मेरे छोटे भाई का जन्मदिन है... सोचा था उसकी ही लिखी कोई कविता पोस्ट करेंगे इस विशेष दिन पर... लेकिन संपर्क ही नहीं हो पाया... फ़ोन लगा भी तो बात नहीं हो पायी... स्काइप पर बात करने का अवसर ही न मिल पाया.... खुद ही प्रेम , खुद ही प्रेमी और खुद ही प्रेमास्पद जब सर्वस्व समर्पण कर दिया फिर कोई चाह नही होती सिर्फ़ उसकी रज़ा मे ही अपनी रज़ा होतीहै और वो ही तो सच्ची मोहब्बत होती है ……… देखें कौन किससे कितनी मोहब्बत करता है? चलो आज ये भी आजमा लें ए खुदा तू है ख...

श्रद्धा *जाकी रही भावना जैसी , * *प्रभु मूरत देखी तिन तैसी....* *तुलसी दास की यह लाइनें, हम सबको इस विषय की गूढता समझाने के लिए काफी हैं ! सामजिक परिवेश में , इस का नमूना, लगभग हर रोज दिखाई देता है ! पूरी श्रद्धा... माटी की याद ..... विदेश में प्रवास कर रहीं अपनी एक फेसबुक और ब्लॉगर मित्र से चैट पर बात करने के बाद लिखी गयी यह पंक्तियाँ उनको और सभी प्रवासी भारतियों को समर्पित कर रहा हूँ---

अँधेरी रात का साया वो गुनगुनाती गज़ल , वो मदहोश रातें | तेरे - मेरे मिलन की , वो दिलकश बातें | न तुमने कहा और , न कुछ हम कह सके | ख़ामोशी में गुजरी , तमाम रगिन सदाएं | सोचा था रात का , हर एक लम्हा चुरालूं | उसको पिरो... हिन्‍दी चिट्ठाकार डॉ. संध्‍या गुप्‍ता का जीवन की दोपहरी में यूं चले जाना समाचार जो दुखी कर जाते हैं जीवन को असमय जंगल कर जाते हैं नहीं चलता है किसी का भी बस जब अच्‍छे लोग बीच से उठकर चले जाते हैं। डॉ. संध्‍या गुप्‍ता का जाना  

बन गयी दवाओं की गुलाम जिन्दगी टैबलेट के हुक्म पर चलती है जिन्दगी बन गयी दवाओं की गुलाम जिन्दगी . सिर में दर्द है तो बाम लगा लो नयनों में हो पीड़ा ये ड्रॉप टपका लो गोली के इशारो पर अब नाचे जिन्दगी बन गयी ............ पानी ...एक उत्सव ये भी .. जन्म का ज्यों होता है उत्सव मृत्यु का भी तो होना चाहिए मृत्यु को भी एक उत्सव की तरह ही मनाना चाहिए आगत का करते हैं स्वागत उल्लास से तो विगत की भी करो विदाई हास से जा रहा पथिक एक नयी राह... 

तू तू ..मैं मैं ...(३) मेरा उठना मेरा बैठना मेरा बोलना मेरी मौन मेरा हंसना मेरा रोना सब तेरी ही तो अभिव्यक्ति है मेरा सारा जीवन तेरा ही एक गीत है माधव ! इसे मैं जितना शांत और शांत होकर सुनता हूँ तू... सारा जग अपना लगता है सारा जग अपना लगता है लगन लगा दे सबको अपनीप्रियतम निज रंग में बोड़ दे, भीतर जो भी टूट गया था निज प्रेम से उसे जोड़ दे ! जो कलुष कटुता भर ली थीतेरे नाम की धारा धो दे, जो अभाव भी भीतर काटेअनुपम धन भर उसको खो दे...

जनता सबक सिखायेगी..जनता सबक सिखायेगी... राजनीति की मंडी में, प्रजातंत्र नीलाम हो गया गुंडागर्दी चोरी चकारी,शहर ग्राम में आम हो गया, गया भाड में देश, इन नेताओं की मक्कारी से इनसे नफरत हो गई देश को, इनके भ्रष्टाचारी से, जहर इ... ऐसी अपनी इच्छा हैं......... अपने उर के स्पंदन को, बस जीवन मैंने मान लिया| अपने उर के क्रंदन को गीतों का मैंने नाम दिया| रुके साँस के साथ कलम भी ऐसी अपनी इच्छा हैं | पटाक्षेप ही जीवन नाटय का, देगा हमको इसका उत्तर| चली है उसकी अपनी ...  

कल्याण में जुटे साहित्य और ब्लॉगिंग के स्तंभ : अनिता कुमार की विस्तृत रपट आँखों देखी : मुम्बई से अनिता कुमारके एम अग्रवाल कला, वाणिज्य एवम विज्ञान महाविधालय, कल्याण(प) के हिंदी विभाग ने विश्वविधालय अनुदान के सहयोग से 9-10 दिसबर 2011 को द्वि दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया,जिसकी म... Launching Lounge bar Sura Vie Back from a business trip to US and UK in connection with my TV channel. Will settle down today, and tomorrow am shooting with the Master Chef team. Later in the week, will be travelling to Delhi for two...  


आज धीरू सिंह की वैवाहिक वर्षगांठ है  आज, 12 दिसम्बर को दरबार व मेरी बरेली, मेरी शान वाले धीरू सिंह की वैवाहिक वर्षगांठ है। बधाई एवं शुभकामनाएँ स्वप्न और जागरण स्वप्न और जागरण तुमने अपने स्वप्न से मुझे आवाज दी है तुम बेचैन हो... शायद भयानक स्वप्न देख रहे हो कोई पर मैं जाग रही हूँ और नहीं जानती कि स्वप्न में कैसे प्रवेश किया जाता हैतुम्हारी नींद गहरी है और तुम जागन... बदला - बदला सा इंसान
आँगन की खोज थी मकान मिल गया | नया शहर तो बिन आँगन के बन गया | देखो घर कितनी जल्दी है सिमट गया | रिश्तों की गर्माहट को भी न सह सका | झरोखों से अब कोई यहाँ झांकता नहीं | झत जैसी चीज़ का तो नामोनिशां नहीं ...

यूँ तो हालात ने  *यूँ तो हालात ने हमसे दिल्लगी की है जीने का शउर सिखाना था , कुछ इस अन्दाज़ में गुफ्तगू की है कोई एक तो होता हमारा गम -गुसार हाय नायाब सी शै की जुस्तज़ू की है अपने जख्मों की परवाह किसे उसकी आँख में आँस... खुदा मिलता है ....!!!  चाह लो तो खुदा मिलता है , आकाश मुट्ठी में होता है, फिर चाह में कंजूसी कैसी ! - रश्मि प्रभा पिशाच मोचन इमरती लिट्टी-चोखा और गुगल सर्च ईंजन  प्रारंभ से पढें हमें जो ऑटो वाला मिला था वह बहुत अच्छा आदमी था, उसने हमें भरत कुंड पहुंचाया, मैने उसे सबके लिए चाय बनवाने कहा और हम मंदिर दर्शन के लिए चल पड़े। मंदिर में पहुचने पर एक जगह लिखा था "भरत गुफ़ा...

मिलते हैं अगली वार्ता में, सुप्रभात

सोमवार, 12 दिसंबर 2011

दुखवा कासे कहूँ -------- ब्लॉग4वार्ता ---- ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार, चलते हैं आज की फ़टाफ़ट वार्ता  पर, लाएं हैं आपके लिए कुछ उम्दा  लिंक, खुशदीप सहगल  इंडीब्लॉगर्स मीट, में हो आए हैं, जानिए उनका अनुभव, अनूठा सौंदर्य बांह फैलाए दूर तलक बर्फ से ढकीं हिमगिर चोटियाँ लगती दमकने कंचन सी पा आदित्य की रश्मियाँ | दुर्गम मार्ग कच्चा पक्का चल पाना तक सुगम नहीं लगा ऊपर हाथ बढाते ही होगा अर्श मुठ्ठी में | जगह जगह जल रिसाव ऊपर से नी...  पिशाच मोचन इमरती लिट्टी-चोखा

आंसू चुनते किसी मोड़ पर मिलो कभी हमको! भूलना हो अगर अपना दर्द तो अपनाओ औरों के गम को! राह में तुम भी हो राह में हम भी हैं आंसू चुनते किसी मोड़ पर मिलो कभी हमको!! रौशनी को ढूंढना चाहते हो तो समझो घेरे हुए तम को! आत्मा के प्रकाश से उज्जवल होगा परि... इंतज़ार मुझे इंतज़ार है उसका जिससे भर जायेंगे मेरी बेटी के जीवन में इन्द्रधनुषी रंग अपनी नन्ही-नन्ही गोल गोल आँखों से दिखायेगा धरती-आसमान संपूर्ण ब्राम्हाण्ड परियों का देश नन्हे हाथों से जकड लेगी बालों की... 

सिब्‍बल बनाम रमन....!!!!! कपिल सिब्‍बल। पेशे से वकील। कांग्रेस के बडे नेता और मौजूदा मनमोहन सरकार में मानव संसाधन मंत्री। डा रमन सिंह। पेशे से चिकित्‍सक। भाजपा के बडे नेता और वर्तमान में छत्‍तीसगढ में मुख्‍यमंत्री। एक ओर जहां कपि... बांग्लादेश : शतरंज का खेल शतरंज की बिसात पर कैसे देश व जनता का भाग्य तय होता है, इसे सत्यजीत रे ने अपनी फिल्म शतरंज के खिलाड़ी में सुन्दर ढंग से चित्रित किया है। कुछ ऐसी ही बिसात हकीकत में कूचबिहार के राजा और रंगपुर के नवाब के ब... 

अरे! मारिए दू चार गदा इनको सुबह का नाश्ता प्रारंभ से पढें रात खूब सोना बनाया, मन-तन की थकान दूर हो गयी थी। चिड़ियों की चहचहाट सुनाई दे रही थी, बाहर बरामदे में गौरैया फ़ुदक रही थी। बरामदे में ही कुर्सी डालकर बैठा, चाय वाला भी आ गया। म... मैं भी हिंदुस्तान हूँ अगर हर हिन्दुस्तानी को कम-से-कम एक साल के लिए हिंदुस्तान से दूर रहने का मौका मिले, ख़ासकर वो जो अक्सर अपने देश  की  आलोचना किया करते हैं, तो शायद उन्हें अपने देश और इस देश में जन्म लेने की सही कीमत पत... 

नज़र के सामने जो कुछ है अब सिमट जाये ग़मों की धुंध जो छाई हुई है छंट जाये. कुछ ऐसे ख्वाब दिखाओ कि रात कट जाये. नज़र के सामने जो कुछ भी है सिमट जाये. गर आसमान न टूटे, ज़मीं ही फट जाये. मेरे वजूद का बखिया जरा संभल के उधेड़ हवा का क्या है... ये फूल........ सुबह सुबह देखो तो इन फूलों की पंखुड़ियों पर पानी की चंद नन्ही नहीं बुँदे पड़ी होती हैं । तो क्या ये फूल भी किसी की याद में सारी रात रोती है। 
क्षणिकायें और मुक्तक 1) चुरा के रख ली है आवाज़ तेरी अंतस में, सताने लगती है जब भी तनहाई, मूँद आँखों को सुन लेता हूँ। (2) सीढ़ी तो बनाई थी तुम तक पहुँचने को, पर बदनसीबी, नींद टूट गयी तुम तक पहुँचने से पहल...उपेक्षित प्रेम *मेरे मन की चौखट पे* *वो दस्तक देती रही* *मेरी त्रुटियों पे* *नतमस्तक होती रही * *अविचल बैठी रही * *बनकर एक धीर* *वो चुपचाप बहाती रही* *अपने नेत्रों से नीर !* * * ** * * *धैर्य को समेटे * *आँखों में अविरत * ...

मंजुला दी – ‘ एक संघर्ष गाथाकभी कभी यादों के झरोखों से बचपन के गलियारों में झांकती हूँ तो छुटपन की नजरों में एक धुंधला सा चेहरा नजर आता है .... एक लड़की का ... सांवली रंगत , तीखे नाक नक्श , सादगी से लबरेज , जिसकी दुनिया किताब...गाविलगढ़ का किलाधूप की नदी में / गोता लगाता / गुम जाता / किसी पुराने समय में / फिर निकल आता / सर झटकते हुए / जल तल से / पुराना किला / हाथ में लिये हुए / कहानी की किताब / अपने दिनों की / अभी परकोटे पर बैठ कर / बदन सुखाता / ...


कहाँ से लायें मर्यादा का थप्पड़बढ़ती महंगाई के खिलाफ अब जनता को ही कुछ करना होगा। लेकिन केंद्रीय मंत्री शरद पवार को एक थप्पड़ मारना लोकतंत्र की मर्यादा के खिलाफ है। सरकार महंगाई कम करने के लिए कई आश्वासन दे चुकी है मगर वह बढ़ती ही जा रह....दुखवा कासे कहूँ ???वह उचकती जा रही थी अपने पंजों पर . लहंगा चोली पर फटी चुनरी बमुश्किल सर ढँक पा रही थी हाथ भी तो जल रहे होंगे . माँ की छाया में छोटे छोटे डग भरती , सूख गए होंठों पर जीभ फेरत...

योग-सम्मोहन एकत्वसम्मोहन- शक्तिशाली, मोहक और भेदक संकेत है। सम्मोहन- दृढ़ता, अधिकार और विश्वास से की गई प्रार्थना है। सम्मोहन- आश्चर्यजनक, जादुई क्षमता वाला मंत्र है और सम्मोहन- दृढ़ संकल्प और आज्ञा के साथ दिया हुआ आशीर्व... सेक्‍स को दबाए नहीं, उसे समझें भीमताल के ओशो कैम्प में जाने के बाद हम तीनों में अन्तर सोहिल ने अपनी पहचान दिखा कर वहाँ के अभिलेख में अपना नाम-पता प्रविष्ट कराया। उनके द्धारा वहाँ की तय फ़ीस जमा की जो कि 4500 रु तीन दिनों के लिये थी। दो...

वार्ता को देते हैं विराम, मिलते हैं एक ब्रेक के बाद, राम राम

रविवार, 11 दिसंबर 2011

एक ब्लॉगर की अंतिम पोस्ट -- ब्लॉग4वार्ता -- ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार मित्रों, एक ब्लॉगर कमेंट न आने को लेकर चिंतित हैं, उन्होने अंतिम पोस्ट लगा दी है। कमेंट का मामला भी बड़ा संजीदा है, मिले तो इतने मिलते हैं कि रख पाना मुस्किल हो जाता है, दुसरी तरफ़ न मिले तो भी रह पाना मुस्किल हो जाता है। नए ब्लॉगर के लिए तो कमेंट संजीवनी से कम नहीं है। कुछ पुराने ब्लॉगर हैं जो कमेंट से अघा चुके हैं। किसी की 4 लाईन पर 100 कमेंट आते हैं किसी के 1500 शब्दों की पोस्ट पर 5 कमेंट दिखाई देते हैं। सब ब्लॉग जगत की माया है। लेन देन लगा है, इसे टिप्पणी व्यापार-व्यवहार कहा जा सकता  है, जब तक दोगे नहीं तो पाओगे कहाँ से? अभी-अभी एक ब्लॉगर दस हजारी हुए हैं, यह एक की बजाए दो कमेंट चेपते हैं। इसलिए टिप्पणी के अभिलाषी मित्रों  को टिप्पणी बांटनी भी चाहिए। अब चलते हैं आज  की ब्लॉग नगरिया की सैर पर......................।

है नाम जिंदगी इसका बोझ क्यूँ समझा है इसे है नाम जिंदगी इसका सोचो समझो विचार करो फिर जीने की कोशिश करो | यत्न व्यर्थ नहीं जाएगा जिंदगी फूल सी होगी जब समय साथ देगा जीना कठिन नहीं होगा | माना कांटे भी होंगे साथ कई पुष्पों के दे ... उपेक्षित प्रेम *मेरे मन की चौखट पे* *वो दस्तक देती रही* *मेरी त्रुटियों पे* *नतमस्तक होती रही * *अविचल बैठी रही * *बनकर एक धीर* *वो चुपचाप बहाती रही* *अपने नेत्रों से नीर !* * * ** * * *धैर्य को समेटे * *आँखों में अविरत * ...

तुम्हारे जन्मदिन पर...आज मेरे छोटे भाई का जन्मदिन है... सोचा था उसकी ही लिखी कोई कविता पोस्ट करेंगे इस विशेष दिन पर... लेकिन संपर्क ही नहीं हो पाया... फ़ोन लगा भी तो बात नहीं हो पायी... स्काइप पर बात करने का अवसर ही न मिल पाया.... खुद ही प्रेम , खुद ही प्रेमी और खुद ही प्रेमास्पद जब सर्वस्व समर्पण कर दिया फिर कोई चाह नही होती सिर्फ़ उसकी रज़ा मे ही अपनी रज़ा होतीहै और वो ही तो सच्ची मोहब्बत होती है ……… देखें कौन किससे कितनी मोहब्बत करता है? चलो आज ये भी आजमा लें ए खुदा तू है ख...

श्रद्धा *जाकी रही भावना जैसी , * *प्रभु मूरत देखी तिन तैसी....* *तुलसी दास की यह लाइनें, हम सबको इस विषय की गूढता समझाने के लिए काफी हैं ! सामजिक परिवेश में , इस का नमूना, लगभग हर रोज दिखाई देता है ! पूरी श्रद्धा... माटी की याद ..... विदेश में प्रवास कर रहीं अपनी एक फेसबुक और ब्लॉगर मित्र से चैट पर बात करने के बाद लिखी गयी यह पंक्तियाँ उनको और सभी प्रवासी भारतियों को समर्पित कर रहा हूँ---

अँधेरी रात का साया वो गुनगुनाती गज़ल , वो मदहोश रातें | तेरे - मेरे मिलन की , वो दिलकश बातें | न तुमने कहा और , न कुछ हम कह सके | ख़ामोशी में गुजरी , तमाम रगिन सदाएं | सोचा था रात का , हर एक लम्हा चुरालूं | उसको पिरो... हिन्‍दी चिट्ठाकार डॉ. संध्‍या गुप्‍ता का जीवन की दोपहरी में यूं चले जाना समाचार जो दुखी कर जाते हैं जीवन को असमय जंगल कर जाते हैं नहीं चलता है किसी का भी बस जब अच्‍छे लोग बीच से उठकर चले जाते हैं। डॉ. संध्‍या गुप्‍ता का जाना

बन गयी दवाओं की गुलाम जिन्दगी टैबलेट के हुक्म पर चलती है जिन्दगी बन गयी दवाओं की गुलाम जिन्दगी . सिर में दर्द है तो बाम लगा लो नयनों में हो पीड़ा ये ड्रॉप टपका लो गोली के इशारो पर अब नाचे जिन्दगी बन गयी ............ पानी ...एक उत्सव ये भी .. जन्म का ज्यों होता है उत्सव मृत्यु का भी तो होना चाहिए मृत्यु को भी एक उत्सव की तरह ही मनाना चाहिए आगत का करते हैं स्वागत उल्लास से तो विगत की भी करो विदाई हास से जा रहा पथिक एक नयी राह..

तू तू ..मैं मैं ...(३) मेरा उठना मेरा बैठना मेरा बोलना मेरी मौन मेरा हंसना मेरा रोना सब तेरी ही तो अभिव्यक्ति है मेरा सारा जीवन तेरा ही एक गीत है माधव ! इसे मैं जितना शांत और शांत होकर सुनता हूँ तू... सारा जग अपना लगता है सारा जग अपना लगता है लगन लगा दे सबको अपनीप्रियतम निज रंग में बोड़ दे, भीतर जो भी टूट गया था निज प्रेम से उसे जोड़ दे ! जो कलुष कटुता भर ली थीतेरे नाम की धारा धो दे, जो अभाव भी भीतर काटेअनुपम धन भर उसको खो दे...

चुम्बन .. एक शर्म थी ! ठीक किया जो तुमने - मुझे कल पकड़ कर चूम लिया जी मेरा भी चाह रहा था कई दिनों से कि तुम्हें चूम लूं !! वैदिक संस्कृति और माँसाहारआदिकाल से भारतीय आर्य संस्कृति का विश्व में जो महत्वपूर्ण स्थान रहा है, उसे न तो किसी के चाहे झुठलाया ही जा सकता है और न ही मिटाया. ये वो एकमात्र संस्कृति रही है, जिसे उसके त्याग, शील, दया, अहिँसा और ज्ञान...

अल्हड़ बादल.कभी कविता मिल जाती थी विद्यार्थियों के अल्हड चेहरे पर कोतुहल भरे भाव दिखते थे नन्ही सी सुन्दर आँखों में अब ना चेहरे पर पहचान है ना ही आँखों में हैं भाव सिर्फ बढ़ते ही जा रहे हैं ऊंचाई में, आयु में सिर्फ शर...अयोध्या में कीमियागर सभी साथी लखनऊ घूमने का मन बनाए बैठे थे। नामदेव जी और हमने तय किया कि अयोध्या चलते हैं। वहीं डेरा डालते हैं, 4/40 पर एक लोकल ट्रेन लखनऊ से फ़ैजाबाद क...





















वार्ता को देते हैं विराम, मिलते हैं ब्रेक के बाद  -- राम राम

शनिवार, 10 दिसंबर 2011

राष्ट्रीय सेमिनार लाइव. --- ब्लॉग4 वार्ता

सीकर में लाडो का पांचवां सप्ताह जयपुर.* राजस्थानी फिल्म लाडो मरुधरा की शान अपने नाम के अनुरूप ही प्रदर्शन कर रही है। सीकर के सम्राट सिनेमा में लाडो 9 दिसंबर से पांचवें सप्ताह में प्रवेश कर गई। निर्देशक शिरीष कुमार ने बताया कि फिल्म दर...शादी एक निजी मामला हैचिनुआ अचीबी अफ्रीका के जीवित महा कथापुरुष हैं और कहा जाता है कि अफ्रीका को जानना है तो इतिहास की किताबों की बजाय चिनुआ अचीबी का कथा साहित्य पढना चाहिए.उन्हें नोबेल छोड़ दें तो दुनिया के लगभग सभी बड़े ..

."यूँ दबे पाँव"कब तक चलूं, यूँ दबे पाँव, कि आवाज़ न हो, तुम्हारी पलकों की आहट, पाने को बेचैन, अपनी आवाज़ गुम कर, *बस रहता हूँ गुम, * *सन्नाटे के शोर में,* साँसे भी मेरी चलती हैं अब, दबे पाँव कि, कहीं तुम्हारी पलकें, उठे...मैंने चाहा भी तो यही था ... कापी पेस्ट फ़्रोम नुक्कड़ : आल द बेस्ट  कब बच्चे हो जाते हैं बड़े और करने लगते हैं फैसले स्वयंपता भी न चलता है रह जाते हैं स्तब्ध हम .......... कभी उचित कभी अनुचित उठा जाते हैं वो कदमपर हम फोरन भूल जाते हैं अपना गमयह ही तो होता है दिल और खून का ...   फिर यह क्यों ना बदला .*हम बदले , तुम बदले * *जग बदला , सब बदला * *फिर यह क्यों ना बदला * *अब भी यही कहानी है| * * भैया का तो नया है नेकर * * बहन की फ्राक पुरानी हैं| * * * (चित्र गूगल के सौन्जय से )

कि खूने दिल में डुबो ली है ऊंगलियाँ मैंने-ब्रज की दुनिया     मित्रों,हमारे देश में लोकतंत्र की ट्रेन एक अजीब मोड़ पर आकर फँस गयी है.हमारी जनमोहिनी-मनमोहिनी केंद्र सरकार चाहती है कि ट्रेन उसकी मर्जी से उसके द्वारा बनाई हुई पटरी पर दौड़े.लेकिन अगर ट्रेन उस पटरी पर ... पानी की कमाई पानी में बहुत समय पहले की बात है, एक जंगल के किनारे कुछ ग्वाले रहते थे| वे अपने गाय भैसों का दूध बेचने के लिए शहर में जाया करते थे| उन ग्वालों में एक ग्वाला बहुत लालची था| वह रोज दूध बे... प्रेम सरोवर * ** ** ** **मैं फूल टाँक रहाहूँ तुम्हारे जूड़े़ में*** * ** **तुम्हारी आँख मुसर्रत सेझुकती जाती है*** * ** **न जाने आज मैं क्या बातकहने वाला हूँ*** * ** ...

क्यूंकि रद्दी जलाने के लिए ही होती है.  लिखना कभी भी मेरी प्राथमिकता नहीं रही है, मैं तो ढेर सारे लोगों से मिलना चाहता हूँ, उनसे बातें करना चाहता हूँ...उनके साथ नयी नयी जगहों पर जाना चाहता हूँ.. लेकिन जब कोई आस-पास नहीं होता तो बेबसी... इंसान सौदे बाज़ी से बाज़ आता नहीं.  कितने सौदेबाज़ हो गए हैं हम भगवान से भी सौदे बाज़ी करते हैं हम. भगवन ये कर दो, तो मैं ऐसा करूँ.. वो कर दो...तो गरीबों का लंगर करूँ. एडवांस में कभी चढ़ावा चढाते नहीं कभी अ... 

राष्ट्रीय सेमिनार लाइव... डेटलाइन- कल्याण (मुम्बई) भाग-II   भोजनावकाश के बाद प्रथम चर्चा सत्र प्रारम्भ हो चुका है। मंच पर विशिष्ट जन आसन जमा चुके हैं। इस सत्र में चर्चा का विषय है- *हिंदी ब्लॉगिंग : सामान्य परिचय पूरी जानकारी के लिए और टिप्‍पणी देने के लिए यहां पर... चमत्कार भूगोल की बात होती तो जरुर होता कोई न कोई नक्शा नहीं तो अवश्य ही होता कोई भी सूक्ष्म सुराग तहों के पार का ... कार्य - कारण के प्रतिपादित सिद्धांतों के बीच अकारण घटित अनपेक्षित तथ्यों का कोई न कोई मिलान बि...

गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

चांदसी दवाखाना -हर बीमारी का शर्तिया इलाज ------ ब्लॉग4वार्ता -- ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार, ब्लॉग4वार्ता पर रुकावट चल रही थी, पीसी की गड़बड़ी के कारण्। चाह कर भी वार्ता नहीं लिख पा रहा था।आईए चलते हैं वार्ता के अगले दौर में .........। श्रेष्ठ ...कोई कहे, न कहे कोई मानें या न मानें कोई समझे या न समझे पर अब ये तो तय-सा है कि - बिना साहित्यिक पटका-पटकी के यह तय करना मुश्किल है कि - कौन श्रेष्ठ है ? कौन किससे श्रेष्ठ है ?? दिल में तड़पता है अँधेरे का अन्दाज़ मुक्तिबोध की कविता 'अंधेरे में '  में ने  कितने - कितने समय से कितना - कितना कोलाहल मचा रक्खा है।  हिन्दी कविइता पढ़ने - लिखने वालों की जमात में  यह  अपनी उपस्थिति निरन्तर बनाए हुए है। उप्फ ..अंधेरा है कि  क...

 माँ का आशीर्वादकब बच्चे हो जाते हैं बड़े और करने लगते हैं फैसले स्वयंपता भी न चलता है रह जाते हैं स्तब्ध हम .......... कभी उचित कभी अनुचित उठा जाते हैं वो कदमपर हम फोरन भूल जाते हैं अपना गमयह ही तो होता है दिल और खून का ...अंडे का क्रूर फंडासब जानते हैं कि मांसाहार का व्यवसाय क्रूरता और हिंसा पर टिका है। लेकिन जब बात अण्डों की होती है तो कई बार वह क्रूरता और व्यवसायिक हिंसा पर्दे की ओट में छिप जाती है और कुछ लोग अंडे को शाकाहारी बताने के प्रच...कांग्रेस में सत्ता के तीन केंद्र गौड़,जांदू और कांडायोति कांडा अग्रवाल के यूआईटी अध्यक्ष बनने का मतलब केवल इतना ही नहीं है की पहली बार अग्रवाल समाज को किसी पार्टी ने महत्व दिया है। इसके अलावा भी बहुत कुछ है। जो हाल फिलहाल बेशक किसी को दिखाई न...

हर बीमारी का शर्तिया इलाज --डॉ पाबला जी भिलाई वाले.ब्लोगिंग में अपनी एक आदत है --जो पोस्ट पसंद आए , मैं उस पर दोबारा ज़रूर जाता हूँ . कल *वीरुभाई जी *की एक पोस्ट पढ़ी -- नाश्ते के लिए अब वक्त कहाँ ?पढ़कर ऐसा लगा जैसे हमारी ही हालत बयाँ कर दी . दूसरों के व...प्रतिबन्ध का विरोध और विरोध का औचित्यअभी कपिल सिब्बल ने सोशल नेटवर्किंग साइट पर प्रतिबंध लगाने जैसी बात कही कि देश के उस वर्ग में भूचाल सा आ गया जो इंटरनेट पर बैठा-बैठा अपनी भड़ास निकालता है। इसी के साथ उस वर्ग में भी उठापटक जैसी स्थिति हो ग...आज राजेन्द्र स्वर्णकार की वैवाहिक वर्षगाँठ हैआज, 8 दिसम्बर को शस्वरं वाले राजेन्द्र स्वर्णकार की वैवाहिक वर्षगाँठ है स्वर्णकार दम्पत्ति को बधाई व शुभकामनाएं
लोक मंगल के लिए जीने वाले संत महात्मा होते हैंदुनिया में लाखों करोड़ों व्यक्तियों में ही कुछ ही महामानव जन्म लेते हैं जो लोक मंगल के लिए अपना जीवन जीते हैं और मानवता की सेवा करने के लिए अपना सारा जीवन अर्पित कर देते हैं और बदले में उन्हें कुछ भी चाह न...लाली उसकी सहेलियां और डर्टी पिक्‍चरहाल से निकल कर जब बाहर आया तो मुझे जाने क्‍यों मगर लाली बहुत याद आई ..या शायद केवल लाली ही नही कई और भी चेहरे जिनके जीवन स्‍तर को लेकर कोई बहुत लिखी जाने वाली बात नही है, मगर अगर कुछ इन सबमें सारी असम...ज़िंदगी से क्यों हार रहे हैं लोग मंगलवार और बुधवार को देश के दो शहरों में ऐसी घटनाएं हुईं, जो बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती हैं कि हमारे बड़े शहरों में लोगों पर तनाव किस कद्र हावी होता जा रहा है...चुनौतियों से जूझने की जगह किस तरह लोग ज...

तुम्हें मुझसे मोहब्बत हैउल्फत ना सही नफरत ही सही इसको भी मोहब्बत कहते हैं तमन्ना बन कर ना बसे तो क्या हम दिल में कांटे से चुभते रेहते तो हैं ग़म नहीं इस बात का की चेहरे का नूर ना बन सके पर जो उनके चेहरे को चूम गई वो गुस्से की लाल...बोलते शब्‍द 71 बोलते शब्‍द 71 आज के शब्‍द जोड़े हैं 'मंद बुद्धि‍' व 'अक्‍ल मंद' और 'मत करो‍‍' व 'न करें' आलेख - डॉ.रमेश चंद्र महरोत्रा स्‍वर - संज्ञा टंडन 1...चुहल ही चुहल में... अलसुबह घने कोहरे में सड़क की दूसरी पटरी से आती सिर्फ सलवार-सूट में घूम रही कोमलांगना को देख मेरे सर पर बंधा मफलर गले में साँप की तरह लहराने लगा ! वह ठंड को अंगूठा दिखा रही थी और मैं आँखें फाड़ उँगलियाँ चबा...
अयोध्या में कीमियागरहमारे सभी साथी लखनऊ घूमने का मन बनाए बैठे थे। नामदेव जी और हमने तय किया कि अयोध्या चलते हैं। वहीं डेरा डालते हैं, 4/40 पर एक लोकल ट्रेन लखनऊ से फ़ैजाबाद क...कम से कम इच्छाएं देती हैं बहुत ज़्यादा संतोष..दिल्ली का एक मोहल्ला... जहां लोग दिन-रात कारोबार में उलझे रहते, 9 को 99 बनाने की धुन में खोए रहते, वहां कोई था, जो अलग सपने बुन रहा था। सोते-जागते एक ही ख़्वाब उसे दिखाई देता, वो था फ़िल्म बनाना। ...........मुझे तुम्हारे तग़ाफ़ुल से क्यूं शिकायत हो... इन दिनों नाराज हूँ. किससे, पता नहीं. क्यों, पता नहीं. नाराजगी के मौसम में अक्सर साहिर को याद करती हूँ. शायद मैं उनसे भी नाराज ही हूँ और वो दुनिया से नाराज रहे. साहिर मेरे महबूब शायर हैं. अमृता आपा की ज...

वार्ता को देते हैं विराम, मिलते हैं ब्रेक के बाद राम राम



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