रविवार, 11 दिसंबर 2011

एक ब्लॉगर की अंतिम पोस्ट -- ब्लॉग4वार्ता -- ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार मित्रों, एक ब्लॉगर कमेंट न आने को लेकर चिंतित हैं, उन्होने अंतिम पोस्ट लगा दी है। कमेंट का मामला भी बड़ा संजीदा है, मिले तो इतने मिलते हैं कि रख पाना मुस्किल हो जाता है, दुसरी तरफ़ न मिले तो भी रह पाना मुस्किल हो जाता है। नए ब्लॉगर के लिए तो कमेंट संजीवनी से कम नहीं है। कुछ पुराने ब्लॉगर हैं जो कमेंट से अघा चुके हैं। किसी की 4 लाईन पर 100 कमेंट आते हैं किसी के 1500 शब्दों की पोस्ट पर 5 कमेंट दिखाई देते हैं। सब ब्लॉग जगत की माया है। लेन देन लगा है, इसे टिप्पणी व्यापार-व्यवहार कहा जा सकता  है, जब तक दोगे नहीं तो पाओगे कहाँ से? अभी-अभी एक ब्लॉगर दस हजारी हुए हैं, यह एक की बजाए दो कमेंट चेपते हैं। इसलिए टिप्पणी के अभिलाषी मित्रों  को टिप्पणी बांटनी भी चाहिए। अब चलते हैं आज  की ब्लॉग नगरिया की सैर पर......................।

है नाम जिंदगी इसका बोझ क्यूँ समझा है इसे है नाम जिंदगी इसका सोचो समझो विचार करो फिर जीने की कोशिश करो | यत्न व्यर्थ नहीं जाएगा जिंदगी फूल सी होगी जब समय साथ देगा जीना कठिन नहीं होगा | माना कांटे भी होंगे साथ कई पुष्पों के दे ... उपेक्षित प्रेम *मेरे मन की चौखट पे* *वो दस्तक देती रही* *मेरी त्रुटियों पे* *नतमस्तक होती रही * *अविचल बैठी रही * *बनकर एक धीर* *वो चुपचाप बहाती रही* *अपने नेत्रों से नीर !* * * ** * * *धैर्य को समेटे * *आँखों में अविरत * ...

तुम्हारे जन्मदिन पर...आज मेरे छोटे भाई का जन्मदिन है... सोचा था उसकी ही लिखी कोई कविता पोस्ट करेंगे इस विशेष दिन पर... लेकिन संपर्क ही नहीं हो पाया... फ़ोन लगा भी तो बात नहीं हो पायी... स्काइप पर बात करने का अवसर ही न मिल पाया.... खुद ही प्रेम , खुद ही प्रेमी और खुद ही प्रेमास्पद जब सर्वस्व समर्पण कर दिया फिर कोई चाह नही होती सिर्फ़ उसकी रज़ा मे ही अपनी रज़ा होतीहै और वो ही तो सच्ची मोहब्बत होती है ……… देखें कौन किससे कितनी मोहब्बत करता है? चलो आज ये भी आजमा लें ए खुदा तू है ख...

श्रद्धा *जाकी रही भावना जैसी , * *प्रभु मूरत देखी तिन तैसी....* *तुलसी दास की यह लाइनें, हम सबको इस विषय की गूढता समझाने के लिए काफी हैं ! सामजिक परिवेश में , इस का नमूना, लगभग हर रोज दिखाई देता है ! पूरी श्रद्धा... माटी की याद ..... विदेश में प्रवास कर रहीं अपनी एक फेसबुक और ब्लॉगर मित्र से चैट पर बात करने के बाद लिखी गयी यह पंक्तियाँ उनको और सभी प्रवासी भारतियों को समर्पित कर रहा हूँ---

अँधेरी रात का साया वो गुनगुनाती गज़ल , वो मदहोश रातें | तेरे - मेरे मिलन की , वो दिलकश बातें | न तुमने कहा और , न कुछ हम कह सके | ख़ामोशी में गुजरी , तमाम रगिन सदाएं | सोचा था रात का , हर एक लम्हा चुरालूं | उसको पिरो... हिन्‍दी चिट्ठाकार डॉ. संध्‍या गुप्‍ता का जीवन की दोपहरी में यूं चले जाना समाचार जो दुखी कर जाते हैं जीवन को असमय जंगल कर जाते हैं नहीं चलता है किसी का भी बस जब अच्‍छे लोग बीच से उठकर चले जाते हैं। डॉ. संध्‍या गुप्‍ता का जाना

बन गयी दवाओं की गुलाम जिन्दगी टैबलेट के हुक्म पर चलती है जिन्दगी बन गयी दवाओं की गुलाम जिन्दगी . सिर में दर्द है तो बाम लगा लो नयनों में हो पीड़ा ये ड्रॉप टपका लो गोली के इशारो पर अब नाचे जिन्दगी बन गयी ............ पानी ...एक उत्सव ये भी .. जन्म का ज्यों होता है उत्सव मृत्यु का भी तो होना चाहिए मृत्यु को भी एक उत्सव की तरह ही मनाना चाहिए आगत का करते हैं स्वागत उल्लास से तो विगत की भी करो विदाई हास से जा रहा पथिक एक नयी राह..

तू तू ..मैं मैं ...(३) मेरा उठना मेरा बैठना मेरा बोलना मेरी मौन मेरा हंसना मेरा रोना सब तेरी ही तो अभिव्यक्ति है मेरा सारा जीवन तेरा ही एक गीत है माधव ! इसे मैं जितना शांत और शांत होकर सुनता हूँ तू... सारा जग अपना लगता है सारा जग अपना लगता है लगन लगा दे सबको अपनीप्रियतम निज रंग में बोड़ दे, भीतर जो भी टूट गया था निज प्रेम से उसे जोड़ दे ! जो कलुष कटुता भर ली थीतेरे नाम की धारा धो दे, जो अभाव भी भीतर काटेअनुपम धन भर उसको खो दे...

चुम्बन .. एक शर्म थी ! ठीक किया जो तुमने - मुझे कल पकड़ कर चूम लिया जी मेरा भी चाह रहा था कई दिनों से कि तुम्हें चूम लूं !! वैदिक संस्कृति और माँसाहारआदिकाल से भारतीय आर्य संस्कृति का विश्व में जो महत्वपूर्ण स्थान रहा है, उसे न तो किसी के चाहे झुठलाया ही जा सकता है और न ही मिटाया. ये वो एकमात्र संस्कृति रही है, जिसे उसके त्याग, शील, दया, अहिँसा और ज्ञान...

अल्हड़ बादल.कभी कविता मिल जाती थी विद्यार्थियों के अल्हड चेहरे पर कोतुहल भरे भाव दिखते थे नन्ही सी सुन्दर आँखों में अब ना चेहरे पर पहचान है ना ही आँखों में हैं भाव सिर्फ बढ़ते ही जा रहे हैं ऊंचाई में, आयु में सिर्फ शर...अयोध्या में कीमियागर सभी साथी लखनऊ घूमने का मन बनाए बैठे थे। नामदेव जी और हमने तय किया कि अयोध्या चलते हैं। वहीं डेरा डालते हैं, 4/40 पर एक लोकल ट्रेन लखनऊ से फ़ैजाबाद क...





















वार्ता को देते हैं विराम, मिलते हैं ब्रेक के बाद  -- राम राम

11 टिप्पणियाँ:

ब्लॉग वार्ता ४ बहुआयामी होता है इसी कारण रोज सुबह स्वतः उन्गालिय्याँ वही पहुँच कर रुक जाती हैं |अच्छी लिंक्स |
मेरी रचना के लिए आभार |
आशा

बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ के साथ सुन्दर वार्ता और उतने ही खूबसूरत लिंक्स... हमारी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया...

भाई साहब, हम तो ब्लागिंग करने
आये थे व्यापार नहीं..पर जब यहाँ भी
व्यापारियों की बिजनेस पालिसी चलने
लगी तो फिर हम क्या करते ..क्योंकि
हमें बिजनेस तो आता नहीं ...

एक और अच्छी प्रस्तुति ||
आभार ||

ब्लॉग वार्ता सार्थक लगी ... संध्या गुप्ता जी के बारे में आपकी वार्ता से ही पता चला ... उनको विनम्र श्रद्धांजलि

सुन्दर व सार्थक वार्ता।

रोचक वार्ता ने टिप्पणियों के व्यवहार को भी दर्शाया ...
संध्या गुप्ता जी को विनम्र श्रद्धांजलि !

वार्ता के साथ कार्टून भी जबर्दस्त्त है.

अच्छी लिंक्स
आभार

खूबसूरत अंदाज़ के साथ प्रस्तुति, कार्टून जबर्दस्त्त है.

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