गुरुवार, 22 सितंबर 2011

शर्म तुमको मगर नहीं आती --- ब्लॉग़4वार्ता ---- ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार,  योजना आयोग का कहना है कि 20 रुपए रोज कमाने वाला गरीब नहीं है, उसे 20 रुपए में 2400 कैलोरी का भोजन मिल जाता है, यह आंकड़ा 2004 का है, अब मंहगाई बढने के साथ इसे 32 रुपए करने का विचार किया जा रहा है, इससे गरीबी रेखा में आने वालों की संख्या घटेगी। पता नहीं योजना आयोग के कर्ता-धर्ता कौन सा अर्थ शास्त्र सीख कर आए हैं? गरीबी खत्म करने का सबसे अच्छा उपाय गरीबों को खत्म करना  है। आंकड़े बाजी के खेल में कुछ धरा नहीं है, असल में गरीबों का कोई माँ-बाप नहीं है। सरकारी सुविधाओं का लाभ दबंग एवं नेताओं के चमचे ही उठाते हैं. गरीब जहाँ खड़ा है वहीं खड़ा रह जाता है कोई पूछ परख करने वाला नहीं है। जबकि आज महीने में 10,000 रुपए कमाने वाले को भी जीवन चलाना मुश्किल हो गया। आज जरुरत है 10000 रुपए प्रति माह कमाने वालों को गरीबी रेखा में रखने की और उन्हे शासकीय योजनाओं का लाभ दिलाने की।गालिब ने कहा है - कोई उम्मीद बर नहीं आती, कोई सूरत नज़र नहीं आती। काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब',शर्म तुमको मगर नहीं आती.. अब चलते हैं आज जी ब्लॉग4वार्ता पर........

सबसे पहले चलते हैं ग्राम चौपाल पर, इनका कहना है कि खुश हो जाईए कि आप अमीर हैं, प यदि भारत के किसी शहर में रहते हैं और आपका प्रतिदिन का खर्चा 32 रु. या उससे अधिक है तो आप अमीर हैं . यदि आप भारत के किसी गाँव में रहते हैं  और आपका प्रतिदिन का खर्चा 26 रु. या उससे अधिक है तो आप गरीब कदापि नहीं हैं  .जी हाँ योजना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफ़नामा दाखिल कर कहा है कि शहरी क्षेत्रों में 965 रुपए प्रति माह और ग्रामीण क्षेत्रों में 781 रुपए प्रति माह कमाने वाले व्यक्ति को हरगिज  ग़रीब नहीं कहा जा सकता. इस स्थिति में आप  सरकार की उन कल्याणकारी योजनाओं और सुविधाओं के पात्र नहीं है जो गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों के लिए बनाई गई है।

कलम पर एक पुस्तक समीक्षा पढिए.‘सपनों के ठूँठ पर कोंपल’ एक ऐसे व्यक्ति- सतीश की कहानी है जिसने अपने कालेज के समय से ही  गरीबों की सेवा में अपना मन लगा दिया था।  कालेज की एक लड़की से उसका प्रेम चल रहा था पर समाज और जाति की ऊँच-नीच की दीवार ने इस प्रेम को असफल कर दिया।  पिता चाहते थे कि वह उनके तेल का धंधा सम्भालें, पर सतीश के मन में व्यापार  तो गरीबों का शोषण था। पिता का मानना था कि दुनिया और समाज को बदलने के नाम पर आजकल ढोंग रचा जा रहा है।  वे पूछते हैं-‘गांधी कौन-सी कंपनी की कार में बैठ कर क्रांति करने निकला था!  भगत सिंह किस कंपनी का पानी पीता था और किस संस्था से फ़ंड लेकर इन्किलाब का नारा बुलंद कर रहा था!  इन्हें कुछ बदलना-वदलना नहीं है, ये तुम जैसे लोगों की भीड़ के कान्धों पर चढ़ अपनी भूख मिटाते हैं।’ 


क्या हुआ तेरा वादा ? समय अधिक रहता था, पुस्तके पढ़ने और समाप्त करने का समय मिल जाता था। मुझे अभी भी याद है कि कई पुस्तकें मैने एक बार में ही बैठ कर समाप्त की हैं। जिस लेखक की कोई पुस्तक अच्छी लगती थी, उसकी सारी पुस्तकें पढ़ डालने का उपक्रम अपने निष्कर्ष तक चलता रहता था। कभी भी किसी विषय पर रोचक शैली में लिखा कुछ भी अच्छा लगने लगता है, सब क्षेत्रों में कुछ न कुछ आता है पर किसी क्षेत्र विशेष में शोधार्थ समय बहाने की उत्सुकता संवरण करता रहता हूँ। किसी पुस्तक को मेरे द्वारा पुनः पढ़वा पाने का श्रेय बस कुछ गिने चुने लेखकों को ही जाता है।


प्याज से आएगें खून के आंसु देश के हर घर की रसोई में सलाद और सब्जियों के लिए ज़रूरी आयटम है प्याज ,लेकिन क्या अब वह भी हमें रुलाएगा खून के आंसू? आज के अखबारों की सुर्खियाँ देख कर तो दिल में यही सवाल कौंध रहा है.नई  दिल्ली से खबर  छपी है कि भारत से विदेशों के लिए प्याज भेजने पर इसी महीने की आठ तारीख को अ जो पाबंदी लगी हुई थी ,उसे सिर्फ बारह दिनों के भीतर यानी  कल  से हटा लिया गया है .यानी अब प्याज निर्यात किया जा सकेगा. क्या इससे हमारे देश में प्याज की मांग के मुकाबले आपूर्ति कम नहीं होगी और क्या इसके फलस्वरूप देश के खुले बाज़ारों में इसकी कीमत और भी ज्यादा नहीं बढ़ जाएगी ? 

पंकज झा लिख रहे हैं, अपनी चवन्नी खुद तलाशो लिंगाराम  प्रिय लिंगाराम, जब पहली बार पता चला कि दांतेवाडा के धुर नक्सल क्षेत्र, वहां के पहुचविहीन इलाके से किसी युवक ने मास कम्युनिकेशन में उच्च शिक्षा प्राप्त की है तो वास्तव में खुशी का पारावार नहीं रहा. आज ऐसे प्रोफेसनल डिग्री लेकर पढ़े-लिखे किसी आदिवासी युवक के लिए अवसरों का अंबार है. आपके पास यह मौका था कि आप न लेवल अपनी बल्कि अपने पूरे सामाज के हित के लिए एक आदर्श हो सकते थे. लेकिन अफ़सोस आतंकियों की नज़र आप पर पड़ गयी और वे कुछ हद तक आपको बरगलाने में सफल भी रहे.

गरीबी तो कम नही कर पा रहे हैं,गरीबों की संख्या कम करने चले हैं,ज़रा जीकर दिखाये 32 और 26 रूपये रोज़ में शहर या गांव में? - योजना आयोग की विद्वान और मूर्धन्य टीम का कहना है कि शहर में रहने वाला वो शख्स जो 32 रूपये रोज़ और गांव मे रहने वाला वो शख्स जो छब्बीस रूपये रोज़ खर्च करता है वो गरीब नही हो सकता।मेरा सवाल तो ये है क्या इतने कम रूपये में कोई जी भी सकता है?गरीबों की संख्या कम बताने वाले आंकडो के इन जादुगरो को कम से कम एक साल तक़ उतने ही रूपये मे जीकर अपनी बात को सच साबित करने का मौका दिया जाना चाहिये।ये गरीबी की बजाये गरीब कम करने का खेल-तमाशा अब बंद होना चाहिये। खुबसूरत बीबी हो तो विदेश में रहना खतरनाक लॉन टेनिस के एक अंतरराष्ट्रीय कोच अख्तर अली से मिलने का मौका मिला। उनसे काफी बातें हुई। वे कई देशों में घुमें हैं। उनकी उम्र इस समय 72 वर्ष है। उन्होंने एक...

अपने अपने आसमान, पढिए ज्ञानवाणी पर  एक कामी कोढ़ी पति अपनी पत्नी से अपने विषयों की पूर्ति न कर पाने के लिए धिक्कारते हुए उसे खुद को वेश्या के पास ले जाने के लिए कह रहा था , और वह पत्नी पति की आज्ञा का पालन करते हुए उसे पीठ पर लाद कर चल पड़ी.

हाँ , यही कथा थी , मगर तुमने कब सुन ली , तुम तो देर से आई थी ...
बस सुन ली , एक बात बताओ , यदि तुम्हारा पति ऐसी कोई इच्छा प्रकट करे ..

क्या ...सिर फोड़ दूँगी उसका ..सुहासिनी का तीव्र स्वर बात की गंभीरता को समझते हुए धीमा हो गया , नहीं , सच में ...मैं उसे रोकूंगी नहीं , मगर मुझे दुःख होगा , यह पाप है , व्यभिचार है !
सुशीला के पति के लिए यह आचरण पाप या व्यभिचार नहीं था ...फिर ...उसने क्यों नहीं रोका ,अब वह स्त्री जोर से हँस पड़ी . जो कथा सुन रही थी , उसमे विश्वास नहीं है तुम्हे ??

इस बार सुहासिनी अचकचा गयी , क्या जवाब दे ...


पढिए शिखा वार्श्नेय की कविता - 

रात के साये में कुछ पल

मन के किसी कोने में झिलमिलाते हैं
सुबह होते ही वे पल ,
कहीं खो से जाते हैं 
कभी लिहाफ के अन्दर ,
कभी बाजू के तकिये पर
कभी चादर की सिलवट पर 
वो पल सिकुड़े मिलते हैं.
भर अंजुली में उनको ,
रख देती हूँ सिरहाने की दराजों में 
कल जो न समेट पाई तो ,
निकाल इन्हें ही तक लूंगी 
बड़ी आशाओं से जब उनको 
जाती हूँ निकालने 
उस बंद दराज में मेरे सब पल 
मुरझाये मिलते हैं


देसिल बयना – 98 : अरहर की टाट अलीगढ़ का ताला -देसिल बयना – 98 : अरहर की टाट अलीगढ़ का ताला n करण समस्तीपुरी रेवाखंड में सालो भर हरियरी रहता था। फ़गुआ, चैती, कजरी, झूला, बिरहा, चौमासा नहीं कुछ तो बा...ताज महल उस दिन एक गाइड ने कहानी कही अपने अंदाज में वह आगे बढता जाता था कई कहानी ताज की सुनाता था | उसी से सुनी थी यह भी कहानी विश्वास तो तब भी न हुआ था इतना नृशंस श...सआदत हसन की नजर में मंटो मंटो के विषय में अब तक बहुत लिखा और कहा जा चुका है। उसके पक्ष में कम और विपक्ष में ज्यादा। ये विवरण अगर दृष्टिगत रखे जाएं तो कोई बुद्धिमान व्यक्ति मंटो के..तीन क्षणिकाएं ... विभीषण ! -बहुत दिन बाद फिर से कुछ क्षणिकाएं लिख रहा हूँ | माफ कीजियेगा पर मुझे कई बार ये समझ में नहीं आता है कि कई लोग रोज इतने सारे लेख, कविता, संस्मरण इत्यादि कैसेबेटियों पर यह कैसा अत्याचार ....... बेटियों पर हो रहा, यह कैसा अत्याचार है | एक आँख रो रही है, और एक शर्मसार है | सृष्टि की रचना तो, देवों का उपकार है| फिर क्यों उस मानव का, यह दानव सा ...

खुदा साथ चलने लगा -अपने चारों तरफ जाने अनजाने अनगिनत पगडंडियाँ बना मैं प्रश्नों की भूलभुलैया से गुजरती रही ... खून रिसने का खौफ नहीं हुआ ना ही थकी चक्कर लगाते लगाते चेहरे की ...एक नदी के दो थे किनारे कैसे भला हम मिलते -अंग्रेजी ब्लोगिंग का संसार भले ही एक आभासी दुनिया हो, किन्तु हिन्दी ब्लोगिंग एक-दूसरे के बीच नजदीकी बनाने का एक माध्यम बन गया है। ब्लोगिंग के माध्यम से हम ...यू कांट इग्नोर नरेंद्र मोदी...खुशदीप नरेंद्र मोदी...लव हिम ओर हेट हिम, बट यू कांट इग्नोर हिम...ये ही मोदी की राजनीति का मंत्र है...अगर कोई मोदी से हेट करता है तो वो उसे भी गुजरात में अपने लि...इंगलुक शिनवात्रा और महिला तस्करी की चुनौती *- डॉ. शरद सिंह** * अपने परिवार की नौवीं संतान इंगलुक शिनवात्रा उच्च शिक्षा प्राप्त महिला हैं। इंगलुक ने देश के उत्तरी शहर चियांग माइ से स्नातक की डिग्री ...बेतरतीब विचार... आप व्यापारी है या फिर कंपनी में पी आर ओ, हमेशा चेहरा पोलिश और इस्टाइलीश रखना पड़ेगा, नहीं तो ग्राहकों पर आपकी बातों कर प्रभाव नहीं पड़ेगा. ग्राहक आपकी बीमा.....

मिलते हैं ब्रेक के बाद--- राम राम............ 

13 टिप्पणियाँ:

अच्छी लिंक्स से सजी वार्ता |बहुत अच्छी लगी
बधाई |ग्राम चौपाल पर उठा मुद्दा बहुत पसंद आया |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा

लिंक्स के साथ चुनी हुई पंक्तियाँ श्रमसाध्य कार्य है ...
आभार!

वार्ता अच्छी लगी
बधाई ||

बहुत मेहनत से आप हर बार अपनी पोस्ट सजाते हैं ... लिंक के लिए आभार !

सही कहा है आप सभी ने बहुत मेहनत और लगन से से आप अपनी हर पोस्ट सजाते हैं ... लिंक के साथ सुन्दर चुनी हुई पंक्तियाँ और भी सुन्दर लग रही हैं... आभार

योजना आयोग का कहना है कि 20 रुपए रोज कमाने वाला गरीब नहीं है, उसे 20 रुपए में 2400 कैलोरी का भोजन मिल जाता है, यह आंकड़ा 2004 का है, अब मंहगाई बढने के साथ इसे 32 रुपए करने का विचार किया जा रहा है.


वाकई योजना आयोग को शर्म नहीं आती.विधायकों और सांसदों को भी इतना ही वेतन क्यों नहीं देते?

बहुत अच्छे लिंक्स संजोए हैं आपने.

मेरे लेख ‘इंगलुक शिनवात्रा और महिला तस्करी की चुनौती ’को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार.

सुन्दर वार्ता के लिए बधाई . ग्राम चौपाल का लिंक देने के लिए आभार .

अच्छी चर्चा,
आकर्षक अंदाज में

काफी मेहनत से की गई है आज की वार्ता...आभार.

वास्तव में शानदार एवं श्रमसाध्य संकलन. जगह पाने पर कृतग्य भी महसूस कर रहा हूं.
पंकज झा.

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