शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

घास की तरह कट रही हैं पहाड़ की औरतें-----ब्लॉग4वार्ता ---ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार, आज पर्युषण पर्व है जाने अनजाने में हुयी गलतियों के लिए क्षमा मांगने का दिन.........अगर अनजाने में मनसा---वाचा---कर्मणा कोई गलती हुयी हो तो उसके लिए मैं क्षमाँ प्रार्थी हूँ.....४ दिनों से ब्लॉगर देशबोर्ड बंद है. मगजमारी भी बहुत की लेकिन वाही  ढाक के के तीन पात नजर आये. मामला कुछ सुधरा नहीं. गूगल के ड्राफ्ट ब्लॉगरड्राफ्ट ब्लोगर की शरण ली जिससे अभी पोस्ट लगाना हो पाया है. गूगल ने सभी ब्लॉगों पर चरणबद्ध रूप से नया देशबोर्ड लगाने का कार्य शुरू कर दिया है. अगर किसी का देश बोर्ड नहीं खुल रहा हो तो वह ड्राफ्ट ब्लॉगर की शरण ले सकता है. अब चलते है आज की ब्लॉग4वार्ता पर .......... 

सबसे पहले चिट्ठा लेते हैं एक आलसी का मणिपुरी मेंघूबी  बहुत दिनों से चाहा, बहुत कुछ लिखना तुम पर लेकिन नहीं लिख पाया। न नमन है और न ग्लानि (पाखंड लगते हैं मुझे), मेरा समर्थन तुम्हें है. फिर चलते हैं सफ़ेद घर पर छुई-मुई सांसदगिरी बजरिये चच्चा जेम्स वॉट  इस घटना से पता चलता है कि बड़े नाजुक हैं हमारे सांसद गण। एकदम गुलाब के पंखुड़ियों की तरह। जिस तरह पाकिजा फिल्म में मीना कुमारी के पांव देखकर राजकुमार ने कहा था - अपने पाँवों को जमीन पर मत उतारना, मैले हो जायेंगे....कुछ उसी तरह हमारे सांसदों के बारे में भी कहा जा सकता है - कि कृपया हवा में ही बने रहें, जमीन पर कदम रखते ही मैले हो जाएंगे...जमीन या सांसद ये आप तय करें।

बारिश से ठीक पहले ऊपर आसमान में घने बादलों भीड़ थी.शाम का वक़्त था पर रौशनी बहुत तेज़ भागती कहीं दूर जा पहुंची थी.ये शाम हर रोज़ जैसी नहीं थी.कुछ कुछ ज़िंदगी की शाम की तरह भारी, अवसाद से भरी हुई. अजीब सी घुटन फेफड़ों को मसल डालने में लगी थी. और गर्मी तो ऐसी कि कछुए की खाल तक से पानी निचोड़ दे.हवा में हल्कापन बिलकुल नहीं था.वो सब कुछ को पृथ्वी के गुरुत्व के हवाले करती जा रही थी. बाकी दिनों में गर्व के साथ आकाश बींधती ऊंची ऊंची इमारतें आज ऐंठ कर दोहरी होना चाहती थी.अपनी पीठ न खुजा पाने की बेबसी से भरा दुर्ग अपने शिल्प की तमाम शास्त्रीयताओं को तोडना चाह रहा था. आगे पढ़ें 
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जाने चले जाते हैं कहाँ. जग में रह जायेंगे प्यारे तेरे बोल.........जी चाहे जब हमको आवाज दो, हम हैं वहीं –हम थे जहाँ.......... मुकेश जी का जन्म दिल्ली में माथुर परिवार में 22 जुलाई 1923 को हुआ था. उनके पिता श्री जोरावर चंद्र माथुर अभियंता थे. दसवीं तक शिक्षा पाने के बाद पी.डब्लु.डी.दिल्ली में असिस्टेंट सर्वेयर की नौकरी करने वाले मुकेश अपने शालेय दिनों में अपने सहपाठियों के बीच सहगल के गीत सुना कर उन्हें अपने स्वरों से सराबोर किया करते थे किंतु विधाता ने तो उन्हें लाखों करोड़ों के दिलों में बसने के लिये अवतरित किया था. जी हाँ ‘अवतरित’ क्योंकि ऐसी शख्सियत अवतार ही होती हैं. सो विधाता ने वैसी ही परिस्थितियाँ निर्मित कर मुकेशजी को दिल्ली से मुम्बई पहुँचा दिया. 

आखिर चमत्‍कार हो ही गया ऊपर की बर्थ पर जो सज्‍जन लेटे थे वे रामपुर में ही कोई अधिकारी थे। उनके आने और जाने वाले फोन से पता लग रहा था। अब जब उन्‍होंने सेवक कह दिया तो अधिकारी महोदय को जवाब देना ही था। वे बोले कि नहीं नहीं सब बेकार की बात है। संसद सर्वोपरी है। अब वे भी नीचे की बर्थ पर आ चुके थे। कुछ देर तक ऐसे ही बातों का सिलसिला चलता रहा। अब जैसा कि कांग्रेस की आदत है कि सर्वप्रथम दूसरे का चरित्रहनन करो वैसे ही स्‍वर में वे अधिकारी बोले कि आप वोट कास्‍ट करते हैं? वे शायद उनका प्रश्‍न समझ नहीं पाए या सुन नहीं पाए। बस अधिकारीजी का बोलना शुरू हो गया कि वोट देते नहीं और रईसों की तरह चाय की टेबल पर चर्चा करते हैं। लेकिन तभी उन सज्‍जन ने उनका भ्रम तोड़ दिया कि वोट तो सभी देते हैं।

महुवा घटवारन से ठीक पहले बचपन से 'बाढ़' शब्द सुनते ही विगलित होने और बाढ़-पीड़ित क्षेत्रों में जाकर काम करने की अदम्य प्रवृति के पीछे - 'सावन-भादों' नामक एक करुण ग्राम्य गीत है, शमा हूँ मै... सिल्क के चंद टुकड़े जोड़ इस चित्र की पार्श्वभूमी बनाई. उस के ऊपर दिया और बाती रंगीन सिल्क तथा कढाई के ज़रिये बना ली. फ्रेम मेरे पास पहले से मौजूद थी. बल्कि...कुछ तकनीकी अज्ञान और कुछ मन की भटकन .... कल की पोस्ट करते वक्त कुछ तकनीकी अज्ञान और कुछ मन की भटकन .... सब मिल कर गडमड हो गया.... अपने एक परिचित मित्र के मित्रों की दास्ताँ ने मन बेचैन कर दिया.....कहीं प्यार की अमर कहानी कहीं प्यार की अमर कहानी मिरे प्यार की लचर कहानी जीने को प्रायोजित बंधन वहां प्रेम है समर कहानी उपजे भाव प्रणय के दिल में कहती है सब नज़र कहानी परम...

अमृता के जन्म दिन पर ....... - आज अमृता का जन्मदिन है ...वह अमृता जिसकी आत्मा का इक-इक अक्षर हीर के ज़िस्म में मुस्कुराता है ...जिसकी इक-इक सतर हीर की तन्हा रातों में संग रही है ... ये नज़.. . पल्टुआ, भैंस और स्टीफन हाकिंग पल्टुआ बतियाता ही रह गया खड़ा नीम की आड़ में गवने से लौटी दुक्खी काका की बेटी फुलमतिया से और भैंस चर गयी लोबिया चन्नर पांड़े के तलहवा खेत में. हमा...पोटेंशियल हरामी मैं किसी को दुआएं-फुआएं नहीं देता, मैं गालियाँ देता हूँ, जो मुझे पैसे नहीं देता.... और उसकी गाड़ी के पीछे पीछे दौड़ता हूँ... और चिल्लाता हूँ ! खेल? ये खेल थो...मैं एक सपना देखता हूँ *(कई दिनों से मन बेहद बेचैन था....जब सारी बेचैनी समेटने की कोशिश की तो यह सब प्रलाप दर्ज हुआ...पहला ही ड्राफ्ट आप सबसे शेयर करने को बेचैन हूँ और आपकी बेबा....

जन्नत लुटाता एक दोजख गायत्री आर्य (जे.एन.यू. में शोधार्थी व स्वतंत्र पत्रकार ) काफी समय पहले आलोचक-लेखक विजयमोहन सिंह का एक रोचक आलेख पढ़ने को मिला था। लेकिन उस लेख में ...हर साल कटती घास की तरह कट रही हैं पहाड़ की औरतें ठियोग , हिमाचल प्रदेश के युवा कवि *मोहन साहिल *को आप ने यहाँ पहले भी पढ़ा है. पहाड़ की औरत पर केन्द्रित कविताओं के इस क्रम मे उन की एक कविता यहाँ लगा रहा हूँ...अन्ना हजारे और पीसी बाबू!! पिछले दिनों अन्ना के आंदोलन के बीच सारा देश अन्नामय हो गया. हम भी अपवाद नहीं थे. समयानुसार टीवी, रामलीला मैदान, मोमबत्ती मार्च और शान्ति मार्च से अपना जु...पाले उस्तादजी नौ बजने वाले थे और मैं बार बार मोबाईल में टाईम देख रहा था। इतना लेट तो कभी नहीं होते, हारकर फ़ोन मिलाया। पूछा कि कहाँ हो तो जवाब मिला कि जनाब आज चार्टर्ड ...

मृत्यु का उत्सव------ न जन्म न मृत्यु बस इतनी सी बात है, किसी की आँख खुल गई किसी को नींद आ गई  बैठे बैठे सोचने लगा कि इन्होने ही मृत्यु के रहस्य को पाया है. जीवन अगर उत्सव है तो मृत्यु भी उत्सव होना चाहिए. जिसकी जितनी साँस थी इस दुनिया में उसने अपनी सांसे पूरी कर ली. फिर किस चीज का शोक मनाना? उसकी जीवन यात्रा का उत्सव मनाना चाहिए. जितनी चाबी भरी राम ने उतना चले खिलौना. सभी का अपना अपना दृष्टिकोण है. कोई डूबते सूरज को देख कर रोता है और कोई हँसता है. रोने वाला सोचता है कि जिंदगी का एक दिन कम हो गया. हंसने वाला सोचता है कि जिन्दगी का एक दिन और अच्छे से जी लिया, ईश्वर तुम्हे धन्यवाद है, तुम्हारा आभार है. यही मृत्यु के शोक पर प्रगट होता है. कुछ लोग सोचते हैं कि कुछ दिन जीवन का उपभोग और कर लेते. जल्दी चले गए दुनिया से. कुछ लोग सोचते हैं कि सांसारिक जीवन का उपभोग अच्छे से कर लिया. अब चला भी जाये तो कोई अफ़सोस नहीं है. साथियों को उत्सव मनाना चाहिए. ...

भ्रष्टाचार और साहित्य *साहित्य में भ्रष्टाचार* यह बात वर्षों से सुनते आए हैं कि साहित्य समाज का दर्पण होता है पर अब जाकर यह समझ पाए कि सचमुच साहित्य समाज का आईना ही तो है। एक...यादों में 'गुदरी माई' कारी कोसी पर बने पुराने लोहे पुल को पारकर दुर्गा पूजा में लगने वाले मेले में दाखिल होने से ठीक पहले एक पुराने बरगद पेड़ पर लाल, उजले, हरे रंग के कई कपड़े ..खांडा विवाह परम्परा (तलवार के साथ विवाह)राजस्थान के राजपूत शासन काल में राजपूत हमेशा युद्धरत रहते थे कभी बाहरी आक्रमण तो कभी अपना अपना राज्य बढ़ाने के लिए राजाओं की आपसी लड़ाईयां|इन लड़ाइयों के च...व्यवस्था के शस्त्रागार का एक नया हथियार- आनंद स्वरूप वर्मा जो लोग यह मानते रहे हैं और लोगों को बताते रहे हैं कि पूंजीवादी और साम्राज्यवादी लूट पर टिकी यह व्यवस्था सड़ गल चुकी है और इसे नष्ट किये बिना आम आदमी की बेह...मैकडानेल माल में मियाँ मुहम्मद आजम से मुलाक़ात आज ईद के त्यौहार का खुशनुमा माहौल चारो ओर था ..खुशियाँ उमड़ी पड़ रही थीं ..बहुत अच्छा लग रहा था..बेटी ने भी इस खुशी को अपने तरीके से सेलिब्रेट करने के लि.....

वार्ता को देते हैं विराम, मिलते हैं ब्रेक के बाद, राम राम  मिक्षामी दुक्कड़म ...........................

9 टिप्पणियाँ:

अच्‍छे लिंक्‍स ..
बढिया वार्ता .. आभार !!

बहुत सुन्दर व रोचक वार्ता।

बढ़िया वार्ता...
सादर बधाई...

काफी लिंक्स मिल गए हैं .बढ़िया वार्ता . आभार.

मेरा तो कितने दिनो तक डेशबोर्ड बंद रहा ...में कई दिनों तक 'अपने' लोगो से वंचित रही ..किसी भी ब्लॉग पर जा नही सकी ..अब कही जाकर ठीक हैं !सुंदर लिंक के लिए धन्यवाद ललित जी !

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