शनिवार, 11 अगस्त 2012

डर्टी पोस्ट पढना जरुरी ----------- ब्लॉग4वार्ता --------- ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार, कल कृष्ण जन्माष्टमी बीत गयी, आज गोगा नवमी है।सभी मित्रों को गोगा नवमी की बधाई। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी संझा वेला में घाट  पर टहलते-टहलते दो अद्भुत व्यक्तित्वों की चर्चा होने  लगी। दोनो ही अपने समय के सुपर हीरों हैं। यकीन नहीं आता कि कोई हजारों बरस भी याद रखा जाता है। जमाने को देखते हुए उनके कार्य महान थे। वे आज भी प्रासंगिक हैं। तभी तो कह रहे हैं चले आओ कन्हैया, देश की नैया बचाना है...... , बात यदा यदा ही धर्मस्य की हो रही है। बहुत ग्लानि हो गयी भारत की। जोगी  हो या भोगी दोनो ही अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं। एक सज्जन यहाँ पर ब्लॉग लेखक महिलाओं एवं पुरुषों की उम्र जानने के लिए उत्सुक हैं। साथ ही उम्र न लिखने वाले कुंठाग्रस्त बता रहे हैं। अब चलते हैं आज की वार्ता में ……… प्रस्तुत है पेसल वार्ता सुबह की चाय   के साथ ……………

नेताओं के घटिया बयान आ रहे हैं और स्वतंत्रता दिवस की 65 वर्ष गांठ आने वाली पर उल्लू इतना टेढा है कि सीधा ही नही होता। फ़साने निकल आते है कई पर फ़सानों का अंत नहीं। कांग्रेस के जाल में फ़ंस कर अन्ना किनारे लग गए, अब बाबा की बारी है। साल भर आराम करने के बाद हुंमायू जैसे सारी ताकत जुटा कर एक बार फ़िर दिल्ली पर हल्ला बोला है। वन देवी और कृष्ण कृपा रही तो सलवार धारण कर भागने की नौबत नहीं आएगी। भले ही तू तू ... मैं मैं  हो जाए। बाबा ने सिपाहियों से निवेदन किया है कि डंडा मत चलाना।

अच्छे दिन…फिर लौटेंगे! आशा है। जब अच्छे दिन नहीं रहे तो बुरे दिन भी न रहेगें। समय का पहिया निरंतर चलता है धूप छांव तो होती रहती है। यही जिन्दगी है।सिर्फ़ भारतवासी ही क्यों, चराचर जगत ही समय के फ़ेर में पड़ा रहता है। कहते हैं न समय बड़ बलवान है। कर्मन्यवाधिकारस्ते कर्म का फ़ल तो मिल कर ही रहता है। दु:ख और सुख दोनो ही भोगा जाता है। भोगना ही समान भाव है। डुग-डुगी बजती है और प्राणी को अपना पात्र निभाने के लिए रंगमंच पर आना ही  पड़ता है। पात्र तो पात्र हैं चाहे वह रावण को या विभीषण का।

व्‍यंग्‍य का शून्‍यकाल  खत्म हुआ प्रश्नकाल शुरु हुआ। रास पंचाध्यायी का रसास्वादन कीजिए।प्रश्न जिनसे पूछा गया जवाब उन्हे  ही देना है। खाने को रोटी नहीं है तो  मोबाइल   चबाईए, कल अनाज न मिले तो रेल की पटरियाँ चबाने लायक दांत तो मजबूत हो  जाएगें। लेकिन ध्यान रहे भूख बड़ी जालिम होती है। अगर ये दांत एक बार मजबूत हो गए तो भूख लगने पर एम्पायर स्टेट बिल्डिंग भी चबा जाएगें।मजबूरी,बेबसी,लाचारी,विवशता जो करा दे वही कम है। पेट की भूख आदमी को गद्दार बना देती है। फ़िर क्यों भूखे से चुहुल कर वफ़ादारी की उम्मीद की जाती है।

भौतिक एवम आध्यात्मिक मूल्यांकन करना हो तो डर्टी पोस्ट पढना जरुरी हो जाता है। तभी  मुल्यांकन के लायक विवेक जागृत होता है। समदृष्टि ही नीर-क्षीर करने की प्रज्ञा रखती है। कीबोर्ड पर थिरकती उंगलियाँ बड़ी तकलीफ़ देती हैं। बरसों में कई की बोर्ड घिस गए पर उंगलियां सलामत रही। माँ. का आशीष बहुत काम आता है वरना की बोर्ड के साथ जिन्दगी भी घिस जाती। उनकी छवि कितनी सुन्दर हैं, आखें ही नहीं हटती।  बस समय का इंतज़ार  करना पड़ता है।  रहीम कवि ने कहा है -रहिमन चुप होय बैठिए देखि दिनन के फ़ेर। नीकें दिन फ़िर आईहैं बनत न लगिहैं देर।
चलते - चलते एक कार्टून ...

वार्ता को देते हैं विराम, मिलते हैं ब्रेक के बाद राम राम

10 टिप्पणियाँ:

ललित जी, ब्लॉग आज अच्छा सजाया है |कई लिंक्स मिली है पढाने के लिटे मेरी रचना शामिल करने के लिए आभाए |
आशा

बहुत अच्‍छी वार्ता ..

कई लिंक नहीं लग पाए हैं ..

सुधार दें तो पढने में सुविधा होगी !!

डर्टी पोस्‍ट पढ़ने की सूचना पढ़ ली, आभार.

लाजवाब पेसल वार्ता के लिए आभार...

बहुत ही रोचक वार्ता रही।

बहुत बढ़िया वार्ता.....

आभार ललित जी.
अनु

बहुत बढ़िया संकलन.....

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