गुरुवार, 13 सितंबर 2012

800 वी ब्लॉग4वार्ता….......संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार..., वार्ता का सफ़र निरंतर चल रहा है, आज वार्ता की 800 वी पोस्ट है अर्थात वार्ता 800 दिन लगातार प्रकाशित हुई। किसी सामुहिक चर्चा-ब्लॉग को अनवरत चलाने के लिए एक टीम की आवश्यकता होती है। चर्चा ब्लॉग में पाठकों के लिए उम्दा एवं पठनीय चिट्ठों के लिंक लगाए जाते हैं। वार्ता का पूरा प्रयास रहता है अच्छी पोस्ट तक पाठकों की आमद हो। यह प्रयास पाठकों के स्नेह के साथ आगे भी जारी रहेगा। इस लम्बे सफ़र में वार्ता में सहयोगी सभी भगिनियों एवं बधुंओं तथा पाठकों का हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं। आशा है कि आगे आप सभी का सहयोग मिलता रहेगा। अब चलते हैं आज की पेसल वार्ता पर ……   
काश!.....भिनसारे भिनसारे ही कोयलिया की कूक सुनाई देने लगी सोचने लगा, अभी कौन से आम बौराए हैं जो कोयलिया कूक रही है विहंग को कौन बांध पाया है? वे कोई मानव नहीं? किसी प्रांत के एपीएल, बीपीएल कार्डधारी लाभार्थी नागरिक ... सूखी रेत के निशान उठ कर चल दिए मुझे छोड़ कर यूँ बिना अलविदा कहे दूर तक दिखता रहा तुम्हारा धुंधलाता अक्स सोचती रही क्या होंगे उन आँखों में आंसूं या एक खुश्क ख़ामोशी जैसे कुछ हुआ ही ना हो. बिखरी पड़ी यादों को अकेले ...शब्द रह गए अनकहे ....!!  हर व्यक्ति एक मूर्तिकार है ....स्वयम को तराशता हुआ ...!! बीतता ही जा रहा है ये जीवन ....साल दर साल ...उम्र का एक बड़ा हिस्सा बीत जाने पर भी ...आज सोचती हूँ .... क्या जीवन हमें वो सब कुछ दे देता है जो हम ... 

एक अजूबा है यह दुनिया .एक अजूबा है यह दुनिया फूलों के हार भी मिलते हैं यहाँ बैठाया जाता है ऊँचे सिंहासनों पर फ़ैल जाता है भीतर कुछ... और एक मुस्कान भर जाती है पोर–पोर में अभी चेहरे से उसकी चमक गयी भी नहीं होती ..सिर्फ एक आह . वो भाग गई , वो भाग गई हम न कहते थे वो भाग जायेगी | इस शोकाकुल शब्द ने जगा दिया हमें कितने दुःख कि बात थी पर उस शोर में दर्द नहीं ..... एक खुशी थी , एक मज़ा था किसी के दर्द में खुश होने की खुशी पता चला...हूँ मैं चुप तू भी बोलना छोड़ दे  नम नैनो में गम, घोलना छोड़ दे, हूँ मैं चुप तू भी, बोलना छोड़ दे, है वादा तुम्हे मैं, भुला दूँ अभी, तू यादों में गर, डोलना छोड़ दे, कुछ पल के लिए, सूख जाये नमी, तू अश्कों का नल, खोलना छोड़ दे, जिद ना कर कहना... 

चाय का दूसरा कप... *पिछली पोस्ट* को पढने के बाद पता नहीं आपको इस किताब ने कितना आकर्षित किया होगा लेकिन मुझे इस किताब को पढ़ते पढ़ते कई बार ये ख्याल आया कि कैसा लगेगा अगर कोई ऐसा जिसके साथ आप हर रोज अपने कई सारे लम्हें जीते..आज के हालात ... छोटी बहर की गज़लों के दौर में प्रस्तुत है एक और गज़ल, आशा है पसंद आयगी ... आवाम हाहाकार है सब ओर भ्रष्टाचार है प्रतिपक्ष है ऐंठा हुवा सकते में ये सरकार है सेवक हैं जनता के मगर राजाओं सा ...सवालों की उलझनें .......  हर कदम पर ज़िन्दगी मुझसे और मैं भी ज़िन्दगी से सवाल पूछ्तें हैं इन सवालों के जवाब तलाशती राहें भी कहीं अटक सा जाती हैं नित नये सवालों की उलझनें सुलझाती और भी उलझती सी मन के द्वार तक दस्तक नहीं दे पातीं एक ... 

छुप - छुप कर......* ** ** ** ** ** ** ** ** ** ** * * * * ** ** ** ** ** ** ** ** ** ** ** ************** * * ** ** **छुप - छुप कर कभी देख लेना* *इरादा बयां कर रहा है * * **हवाओं का रुख ... शुक्रिया....प्यार एक तेरे आ जाने से कितना कुछ आया है मेरे जीवन में . ढेर से डर हैं ... तुझसे मिल नहीं पाने के . रोज़ एक नयी आशंका बिछड जाने की . बातें .. कही -अनकही सरकारी दफ्तर की पेंडिंग फाइलों सी.... खत्म ही नहीं हो..प्यार है तुमसे---- दिल की धड़कन संभाले बैठे है इंतज़ार में उनके कभी मिलोगे तो बताएंगे कितनी चाहत है तुमसे प्यास नज़रों की संभाले बैठे हैं इन्कार पे उनके कभी मिलोगे तो बताएंगे पतझड़ में बहार है तुमसे ज़िन्दगी उनपर लुट... 

एक बात कहूं गर करो यकीं - (पुरानी डायरी के पन्नो से ......) एक बात कहूं गर करो यकीं ऐसा पहले कुछ हुआ नहीं जैसा पल पल अब होता है जैसा हर पल अब होता है मैं जगते जगते सोती हूँ और...  नोंक-झोंक.... हाथी और ऊंट में.... - हाथी हाथी बोला ऊंट से तुम क्या लगते हो ठूंठ से कमर में कूबड़ कैसा है गला गली के जैसा है दुबली पतली काया है कब से कुछ नहीं खाया है हर कोने से सूखे हो लगता ... ध्यान से देखो, थोड़ा और ध्यान से - दर्पण देखता गया, पंथ खुलता गया। चेहरे पर दिखता, त्वचा का ढीला पड़ता कसाव, जो यह बताने लगा है कि समय भागा जा रहा है। शरीर की घड़ी गोल गोल न घूमकर सिकुड़ सि...  

झांको उसमें अक्स तुम्हारा भी उभरेगा - "कविता पारिभाष है या आभाष ?---मुझे क्या मालुम मैंने जो लिखा उसमें शब्द की तुकबंदीयाँ तो थीं नहीं लय थी प्रलय की और उसमें विचारों का बसेरा था सांझ थी साझा...यही है आगे बढ़ने का फंडा - यांगिस्तानियों के लिए 2000 का दशक कई मायने में महत्वपूर्ण रहा , यूँ कहें कि हम ऐसी कई चीजों का हिस्सा बने जो कल तक हमारे लिए अनमोल थीं और आज इतिहास हैं पर... भडास निर्लज्जता बेशरमी की हकीकत: यह पोस्ट नही जूता है: साभार नुक्कड् - *डिस्क्लैमर: मेरे मन मे किसी के लिये कोई द्वेष भाव नही है. अगर कोई यह समझ रहा है तो मात्र सन्योग है.* *अब आईये दूसरे आलोचक ब्लोगर की सच्चाई से अवगत होते है... 
   
अगली वार्ता तक के लिए नमस्कार......

13 टिप्पणियाँ:

बेहतरीन लिंक्‍स बढिया वार्ता ...आभार संध्या जी
8०० वी वार्ता के बहुत बहुत बधाई

कार्टून देख कर मैं भी, आपकी ही पोस्‍ट से यही पेस्‍ट कर हूं
...
*डिस्क्लैमर: मेरे मन मे किसी के लिये कोई द्वेष भाव नही है. अगर कोई यह समझ रहा है तो मात्र सन्योग है.*

बधाईयाँ बधाईयाँ बधाईयाँ 800 वीं वार्ता के लिए शुभकामनाएं। समवेत प्रयास से हम सब वार्ता को इस सोपान तक पहुंचा पाए…… उम्मीद है जल्द ही 1000 वीं पोस्ट के जादुई आंकड़े तक पहुंचेगें।

बड़े ही रोचक सूत्र, ८००वीं पोस्ट के लिये बधाई..

सबों को बहुत बहुत बधाई ..
पंद्रह दिनों से अपने शहर से बाहर दिल्‍ली में होने की वजह से ब्‍लॉग जगत से दूरी बनी हई है ..
एक सप्‍ताह में लौटकर अपनी जिम्‍मेदारी संभालने की कोशिश करूंगी !!

कहाँ कोई पहचानता है . उसके लिए जुगाड़ का जुगाड़ होना बहुत जरूरी है | हमारा तो यही अनुभव है , क्योंकि पत्नी तो हम ब्लॉगर ही ढूंढ कर लाये थे |

utkrisht sootra ...
abhar Sandhya ji ...meri rachna ko aashray diya ...

वाह ... बेहतरीन लिंक्‍स

पूरी टीम को बधाई ………रोचक वार्ता

जबरदस्त लिंक ... ८०० पोस्टों की बधाई ...

शुक्रिया मुझे भी शामिल करने के लिए ...

बधाई बधाई संध्या जी....
आप सभी को बधाई....

वार्ता चलती रहे यूँ ही......

सस्नेह
अनु

संध्या जी ८०० वीं पोस्ट के लिए बधाई मेरी रचना को स्थान दिया शुक्रिया

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