बुधवार, 12 सितंबर 2012

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मुनासिब सवाल का जबाब... ब्लॉग4वार्ता....संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार... क्या कार्टून बनाना देशद्रोह है? कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी की गिरफ्तारी पर देशभर में छिड़ी बहस में अलीगढ़ के बुद्धिजीवी, साहित्यकार भी कूद पड़े हैं. बुद्धिजीवियों में वैचारिक सहमति बड़ी मुश्किल से बनती है लेकिन इस बात पर सब एकराय हैं कि कार्टून बनाने पर किसी को देशद्रोही ठहरा देना लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है. कुल मिलाकर यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है, जिसका विरोध किया जाना चाहिए. साहित्यकार प्रेम कुमार का कहना है कि राष्ट्रीय प्रतीकों का सबको सम्मान करना चाहिए.  इसे लेकर कोई विवाद खड़ा करना लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है. कार्टूनिस्ट की गिरफ्तारी को सही ठहराना मुश्किल है. एएमयू के प्रो. पीके सक्सेना का कहना है कि कार्टूनिस्ट की गिरफ्तारी का फैसला संविधान से कम, राजनीति से ज्यादा प्रेरित है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर सरकार का रवैया इतना कठोर होना किसी भी लोकतंत्र में अच्छा नहीं माना जाएगा. आइये अब चलते हैं आज की वार्ता पर .....

हे किशन ( आत्मसाक्षात्कार ) हे किशन , यातना से क्या घबराना दुःखों से क्या भागना आओ साहित्य रचे शब्दों को अमर कर दे आओ विषपान करें और नीलकंठ बन जाएँ ! आओ उस राह चलें जो मुक्ति मार्ग हो इस मुक्ति की राह पर अपने को कुर्बान कर दें एक नया ...क़रार .क़रार पा न सके हम तो दो घड़ी के लिए तमाम उम्र तरसते रहे ख़ुशी के लिए, सज़ा का एक फ़क़त मैं हूँ मुस्ताहिक लोगों कि मैंने हाथ बढ़ाया था दोस्ती के लिए, उसे नज़र न कोई और आया दुनिया में  रह गया था मेरा ... हो कौन ? हो कौन ?कहाँ से आए ? मकसद क्या यहाँ आने का ? इधर उधर की ताका झांकी निरुद्देश्य नहीं लगती चिलमन की ओट से जो चाँद देखा क्या उसे खोज रहे हो ? उससे मिलने की चाह में या ऐसे ही धूम रहे हो | ...

हमने रिश्ता बहाल रखा था एक सांचे में ढाल रखा था. हमने सबको संभाल रखा था. एक सिक्का उछाल रखा था. और अपना सवाल रखा था. सबको हैरत में डाल रखा था. उसने ऐसा कमाल रखा था. कुछ बलाओं को टाल रखा था. कुछ बलाओं को पाल रखा था. हर किसी पर... मुनासिब सवाल का जबाब सवाल जब किसी से भी पूछा जाये जरुरी नहीं हमें उसका उत्तर भी मिल जाये , और जिस सवाल का उत्तर आपको मिल जाये फिर तो आपकी सारी जिज्ञासा ही शांत हो जाये . जिज्ञासा का शांत होना कहीं न कहीं हमारे जीवन में...इस नुकसान की भरपाई कहां से होगी?  कोल ब्लाक आबंटन में देश का करोड़ों का नुकसान हुआ यह विपक्ष का आरोप है और इस पर सरकार का जवाब है कि अभी सिर्फ आबंटन ही हुए हैं, कहीं से किसी प्रकार की खुदाई नहीं हुई है तो अभी से नुकसान की बात सही नहीं। ...

सागर की सच्चाई बागों की शोभा फूलों से ही नहीं .... तितलियों से भी होती है माँ -बाप को कन्धा बेटे हीं नहीं बेटियाँ भी देती है ...... खुद के दम पर आगे बढ़कर सजाती है घर-द्वार मत मारो उसे .....गर्भ में ....लेने दो आकार....आओ चलें...सड़कें मुझे बहुत पसंद हैं. मेरा दिल अक्सर सड़कों पर आ जाता है. साफ़ सुथरी दूर तक फैली सड़कें. आमंत्रण देती हुई कि आओ...चलें...सड़क या रास्ता? कुछ भी कहिये. हालाँकि मुझे पगडंडियाँ भी पसंद हैं... ये .शरीफों कि बस्तियां हैं.. ये .शरीफों कि बस्तियां हैं जरा झगडे निपटा दीजिये! जो ..शराफत के भ्रम में हैं उनको आइना दिखा दीजिये! बेटियां हो रही हैं जवान जरा नजरे झुका लीजिये ! लोग गमो...

आ गए घर जलानेवाले , हाथों में मरहम लिए - थम गया दंगा, कत्ल हुआ आवाम का , आ गए घर जलानेवाले , हाथों में मरहम लिए | तारीकी के अंजुमन में, साज़िश की गुफ़्तगू ..ज़िक्र - *अपनी एक पुरानी डायरी मिल गयी मुझे आज ....** बदरंग से पन्नों पर दिखाई पड़ा अपना ही माज़ी..खोजने लगी तुम्हें वहाँ..* *याद आया कि जिस सफ़हे पर ज़िक्र होता तुम्... ...प्रेम को मेरे विवादित मत बनाओ - प्रेम को मेरे विवादित मत बनाओ जो नहीं प्रारब्ध मे उसका रुदन अब क्या करूँ? काव्य भीगा है मेरा मर्म से सौख्य से मंडित उसे कैसे करूँ? दम कहाँ भर पाई.....   

असीम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता - मुंबई पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गए कार्टूनिस्ट असीम को लेकर एक भूचाल सा आया हुआ है और सभी इस बात पर बहस करने में लगे हुए हैं ...'देशद्रोही' का पहना रहे हैं ताज, एक 'देशभक्त' को !  *शर्म, हया सब तजके चली गई,पद के आसक्त को, * *नोचता नित बैठकर,हाय,असमर्थ,अशक्त को ! * * * *मूल्यहीन, बेकदर होकर रह गई अनमोल आबरू, * *दौलत का है ये कैसा नशा, वैराग्यनिष्ट विरक्त को !* * * *लग गई किसकी नज..क्या "नेशनल टायलेट" है संसद ? - अभिव्यक्ति की आजा़दी का मतलब क्या है ? आजा़दी का मतलब क्या ये होना चाहिए कि आप कुछ भी बोलें और लिखें, कोई रोकने वाला नहीं होगा। या फिर अभिव्यक्ति की आजादी... 

रूहें जब मिल जाती हैं..... - *बागों में फूलों के रंग जब खिल खिल जाते हैं... तितलियाँ गुनगुनाती हैं मचल मचल जाती हैं.. रात जितनी गहरी होती है चाँद उतना ही जगमगाता है चांदनी मुस्कुर... तुम ऐसे-कैसे?? - ** *जो एक नाम दिल में गूँजता है* ** *रहता है ख्यालों में जो सुबह-शाम* *** उसे पुकारें कैसे??? ** जेहन का वो ख्याल हकीकत में उतारें तो उतारें कैसे?? ** जिसने..मन तो मेरा भी करता है झूमूँ , नाचूँ, गाऊँ मैं !! - मन तो मेरा भी करता है झूमूँ , नाचूँ, गाऊँ मैं आजादी की स्वर्ण-जयंती वाले गीत सुनाऊँ मैं लेकिन सरगम वाला वातावरण कहाँ से लाऊँ मैं मेघ-मल्हारों वाला अन्तयकरण... . 


  

चलते -चलते मेरी पसंद का एक गीत- आएगी जरूर चिट्ठी मेरे नाम की सब देखना.........

अब इजाज़त दीजिये अगली वार्ता में फिर मुलाक़ात होगी तब तक के लिए नमस्कार......

6 टिप्पणियाँ:

हम स्वतंत्र .हमारा सोच स्वतंत्र ,फिर भी स्वतंत्रता नहीं अभिव्यक्ति की ,मन के भाव प्रगट करने की ,यह है विसंगति कैसी मालूम नहीं |
अच्छी रही आज की वार्ता |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार

बढिया वार्ता संध्या जी। आभार्…… सुप्रभात

बढ़िया वार्ता संध्या जी मेरे लिंक को शामिल करने के लिए आभार

बढ़िया वार्ता संध्या जी....
हमारी रचना का "ज़िक्र" करने का शुक्रिया.....

सस्नेह
अनु

अच्‍छे लिंक्‍स के साथ बेहतरीन वार्ता
आभार

अत्यन्त रोचक सूत्रों से सजी वार्ता।

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