ललित शर्मा का नमस्कार, मिलते हैं सक्रीय ब्लॉगर से, उनका नाम है अख़्तर खान 'अकेला'। यह अकेला ब्लॉगर ही दिन भर में इतनी पोस्टें विभिन्न ब्लॉगों पर लिख देता है कि मेरा डेशबोर्ड इनकी पोस्टों से ही भरा रहता है। किसको पढें और किसको न पढे, कहाँ टिपियाएं और कहाँ न टिपियाएं। बड़ी मुस्किल में डाले रहते हैं। ब्लॉग जगत के सबसे सक्रीय ब्लॉगर पत्रकार-वकील हैं। 2244 पोस्ट तो अभी तक इनके ब्लॉग अख़्तर खान 'अकेला' पर हैं, 10-20 पोस्ट तो वार्ता प्रकाशित होते तक और लिख डालेगें। इनका ब्लॉग सम सामयिक समाचारों का संग्रह बनता जा रहा है। कुछ वर्षों के पश्चात संदर्भ के लिए इनके ब्लॉग का उपयोग विद्यार्थी और शोधार्थी कर सकेगें। तब तक 10,0000 पोस्ट हो चुकी होगीं। इनकी ताजा तरीन पोस्ट है शेम शेम शेम शेम शेम शेम , अब चलते हैं आज की ब्लॉग4वार्ता पर .....एक 500वीं पोस्ट पढिए।
शिखा जी ने एक गीत लिखा है आओ सुनाऊँ ब्लॉग जगत की तुम्हें कहानी
आओ सुनाऊँ ब्लॉग जगत की तुम्हें कहानी
यहाँ करता हर कोई अपनी-अपनी मनमानी
कोई बन के बैठा है ,कोई तन के ऐंठा है
किसी ने अपने गुट से ना निकलने की है ठानी
आओ सुनाऊँ
कोई कविता लिखे ,कोई कहानी कहे
कोई यादें लिखे कोई जुबानी कहे
कोई तो बस गरियाने को ही राजी
आओ सुनाऊँ .....
टिप्पणी नहीं चाहिए जो नित कहता जाए
उतनी ही उसकी नजर बाक्स पे गड़ती जाए
कोई बंद करके उसे बन जाये महा ज्ञानी
आओ सुनाऊँ,..
कस्टमर केयर गर्ल से बातचीत!कर रहे हैं शाहनवाज भाई--अक्सर ही लोगों के पास किसी न किसी कंपनी से फ़ोन आता रहता है और दूसरी और से मधुर आवाज़ में कस्टमर केयर गर्ल ऐसे अंदाज़ में बात करती हैं कि नापसंद चीज़ भी खरीद ली जाती है....देखिये कैसे एक मशहूर हिंदी ब्लोगर इंग्लिश के फेर में परेशान हो रहा है..... या फिर कर रहा है!!!! आवाज़ सुनकर पहचानिए कि आपको यह किसकी आवाज़ लग रही है???पैरों की सेहत—मछली ने संवार दी, कुत्ते ने बिगाड़ दी ?कुछ साल पहले से यह तो सुनने में आने लगा था कि पैरों की देखरेख भी अब ब्यूटी पार्लर में होती है जहां पर इस के लिये दो-तीन सौ रूपये लगते हैं ...लेकिन इस तरह के क्रेज़ के बारे में शायद ही आप ने सुना हो कि पैरों ...
गिरिजेश राव द्वारा खस्ता शेर-खुदा खैर पर सुनिए नुक्कड़ कविता
कुत्ते जी, कुत्ते जी!
बोटी कि डंडा?
बोटी ... भौं भौं।
लेग पीस, ब्रेस्ट पीस
मीट ही मीट
बहुत कचीट।
नोच लिया
चबा लिया
निगल लिया ..
तुम्हरे खातिर।
लो अब
कटरकट्ट हड्डी
बोटी ... भौं भौं।
कुत्ते जी, कुत्ते जी!
बोटी कि डंडा?
डंडा ... भौं भौं।
डॉ मोनिका शर्मा जी कह रही हैं ठगों.....जालसाजों का शिकार बनती महिलाएं.ना हथियार की आवश्यकता हैं और न ही जोर जबरदस्ती की........... जालसाजों का खेल कुछ ऐसा होता है कि जिसमें लोगों को ठग जाने के बाद अहसास होता है कि उन्हें छला गया है। ठग विद्या में पारंगत ये जालसाज आए दिन नई तरकीबें खोजते हैं और कभी भी किसी भी इंसान को अपना शिकार बना लेते हैं। अफसोस की बात है कि ठगी की अधिकतर घटनाओं का शिकार महिलाएं बनती हैं। ये ऐसे असामाजिक तत्व हैं जो अपने जाल में घर बैठी महिलाओं तक को फांस लेते हैं। कई बार तो ऐसी अनहोनी के वक्त पूरा परिवार ही नहीं आस-पङौस की सखी सहेलियां भी उनके साथ ही होती हैं.
सीप का सपना पर पढिए है इसी पीले की आभाकई रंग आये बिखेर गए अपनी आभा हवा के संग कई बार संसार हुआ इनसे सराबोर कभी उनके रंग रंगा नहीं मगर ये एक रंग सब रंगों में रखता अपनी अलग छाप अपनी आभा से पहचाना जाता सब रंगों को अपने रंग में रंगता ह...यायावर पर पढिए सिर्फ पलाश बाकी खलासलम्बे अरसे बाद गाँव जाना हुआ और वहाँ पंहुच कर बसंत का जो नजारा देखा तो होश उड़ गए| निस्तब्ध वातावरण में प्रकृति एक नए चोले में सज रही है और *बसंत *ने कानन में डेरा डाल रखा है| आगबबूला हुए सुर्ख पल...
*साहित्य प्रेमी संघ* पर पढिए तुम हो अब भी - मौन मेरा स्नेह अब भी, जो दिया,तुमसे लिया मै। प्यार मेरा चुप है अब भी, क्यों किया,जो है किया मै। भूल से हुई इक खता, मैने रुलाया खुब तुमको, खुद भी रोया, कह ना...वक़्त न बर्बाद कीजिये - ज़िन्दगी न हो बेवफा ज़मीर को बुलंद कीजिये खुद को परखिये हरदम तोहमत न लगाया कीजिये सादगी ज़रूरी है लेकिन खुदा को न बदनाम कीजिये ज़ज्बात का न मज... अपनी तारीफ सुनना सभी को अच्छा लगता है. - [image: fox] लोगों से अपनी सच्ची तारीफ सुनना अच्छे लोगों को नायकत्व की तरफ बढ़ने की प्रेरणा देती है और बुरे लोगों को उनकी झूटी तारीफ उन्हें और अधिक बुराई...
शमशेर रोमांस से आरंभ हो कर जनता के दुख-दर्द और उससे मुक्ति के साथ प्रतिबद्धता की ओर बढ़े - पि*छले माह 12-13 फरवरी को कवि शमशेर बहादुर सिंह की शताब्दी वर्ष पर राजस्थान साहित्य अकादमी और 'विकल्प जन सांस्कृतिक मंच द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी 'क... आप सादर आमन्त्रित है - मेहनत जब रंग लाती है तब अपने पर एक अज़ीब सा गर्व महसूस होता है . जबकि मै तो निमित्त मात्र हूं और दुनिया के इस रंग मंच पर अपनी भूमिका निभा रहा हूँ . उपाधिया... कुटिल कणिक दिग्विजय सिंह - महाभारत कालीन हस्तिनापुर में महाराज धृतराष्ट्र का एक सचिव था, जिसका नाम था कणिक। उसकी विशेषता यह थी कि वह कुटिल नीतियों का जानकार था और धृतराष्ट्र को पांचो...
उफ़ ! बेशर्मी देखो, सरपंच दांत निपोर रहा है !! - हम तो तुम्हें, बचपन से, बड़ा मासूम समझते रहे अरे, तुम तो आशिक़ी में हम से भी आगे निकले ! ... क्या कहें, खुबसूरती की मल्लिका पे दिल आया है रोका भी नह... प्रज्ञाअवतरण और चुटैयानंदन - अरबी नाम से ही लगता है कि अरब जगत का प्रोडक्ट होगा। इसकी सब्जी बड़ी स्वादिष्ट बनती है। स्थानीय भाषा में इसे कोचई कहते हैं। जैसे जिमिकंद को काटने से हाथों से...ताऊ दुखिया सब संसार, जेडा सुखी वो........." ओये... छ्ड्ड यार. - प्रिय भक्तगणों, आपका कल्याण हो. बहुत समय बाद आपसे साक्षात बात करने का अवसर प्राप्त हुआ है. जो कुछ हो रहा है वो नही होना चाहिये. पर जो कुछ होता है वो भी अका...
कच्ची उम्र सुनहरे सपनेसुन्दर गुमसुम गुडिया सी छवि उसकी आकर्षित करती कोई कमी उसमें ना देखी आत्म विश्वास से भरी रहती | सोचती है समझती है पर सच सुनना नहीं चाहती मन में छुपे कई राजों को किसी से बांटना नहीं चाहती | कच्ची उम्र सुनहरे स...पिता : दो उदास कविताएँयह बरगद अब बूढ़ा हो गया है झर रही है इसकी पत्तियाँ उखड़ती जा रही है जड़ें पहले जैसी सघन छाँव भी नहीं मिलती इसके नीचे मगर बरगद फिर भी बरगद है छाँव के जितने भी टुकडे मिलते हैं* * वे अनेक ताड़ वृक्षों से ... संसदीय लोकतंत्र के अंतर्विरोधबालिग मताधिकार पर आधारित भारत का संसदीय लोकतंत्र पांच दशकों के बाद भी अपने अंतर्विरोधों से, अपनी विकृतियों से मुक्त नहीं हो पा रहा है. संसदीय संस्थाओं में अपराधियों और काला बाजारियों की बड़ी जमात हमारी न...
चलते चलते एक व्यंग्य चित्र
मिलते हैं ब्रेक के बाद, अगली वार्ता पर....................
कच्ची उम्र सुनहरे सपनेसुन्दर गुमसुम गुडिया सी छवि उसकी आकर्षित करती कोई कमी उसमें ना देखी आत्म विश्वास से भरी रहती | सोचती है समझती है पर सच सुनना नहीं चाहती मन में छुपे कई राजों को किसी से बांटना नहीं चाहती | कच्ची उम्र सुनहरे स...पिता : दो उदास कविताएँयह बरगद अब बूढ़ा हो गया है झर रही है इसकी पत्तियाँ उखड़ती जा रही है जड़ें पहले जैसी सघन छाँव भी नहीं मिलती इसके नीचे मगर बरगद फिर भी बरगद है छाँव के जितने भी टुकडे मिलते हैं* * वे अनेक ताड़ वृक्षों से ... संसदीय लोकतंत्र के अंतर्विरोधबालिग मताधिकार पर आधारित भारत का संसदीय लोकतंत्र पांच दशकों के बाद भी अपने अंतर्विरोधों से, अपनी विकृतियों से मुक्त नहीं हो पा रहा है. संसदीय संस्थाओं में अपराधियों और काला बाजारियों की बड़ी जमात हमारी न...
चलते चलते एक व्यंग्य चित्र
मिलते हैं ब्रेक के बाद, अगली वार्ता पर....................
17 टिप्पणियाँ:
बहुत अच्छी वार्ता ....अच्छे लिनक्स लिए..... मुझे शामिल करने का आभार
सब कमाल है भाई ..ललित जी को बधाई
shukriya shukriyaa bhaijaan khte hen ke bhaai lalit ji ka to bs andaaaze byan hi kuchh or he shukriya. akhtar khan akela kota rajsthan
बेहतरीन चर्चा
बहुत अच्छी वार्ता ....अच्छे लिनक्स लिए..
अच्छी चर्चा !
बहुत अच्छी वार्ता ..
ब्लॉग जगत की बानगी चंद लफ़्ज़ों में..?..उड़नतश्तरी पर सैर.... दिलचस्प!
बहुत अच्छी वार्ता
पठनीय लिंक्स से परिपूर्ण उत्तम चर्चा.
बेहद उम्दा लिंक्स से सजी है आज की वार्ता ... आभार ललित दादा !
पठनीय लिंक्स से परिपूर्ण
अच्छी लिंक्स से भरपूर वार्ता |बधाई एक वर्ष पूर्ण करने के लिए |ब्लॉग की सालगिरह मुबारक हो इसी तरह साल दर साल यह ब्लॉग तरक्की करे | मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार |
आशा
bahu sundar varta....meri post ko lene ke liye aabhar..
बहुत अच्छी वार्ता !!
बहुत बढ़िया वार्ता
great links...
dhanyawaad mere cartoon ko shamil karne ke liye
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