श्रृद्धा जैन |
ब्लागभीगी ग़ज़ल की संचालिका श्रृद्धा जैन मेरे लिये अतिमहत्वपूर्ण इस लिये हैं क्योंकि अगर पूर्णिमा वर्मन, समीरलाल, और श्रृद्धा जैन न मिलते तो शायद न तो मेरा रुझान ब्लागिंग की ओर होता और न ही मैं आप सबसे इतना स्नेह ही पाता. इसे एक व्यक्तिगत मामला कहा जा सकता है किंतु ऐसा नहीं है वे मधुर व्यक्तित्व की धनी एवम रचनात्मकता की मंजूषा हैं.
विदिशा मध्य-प्रदेश में पली बढ़ी श्रृद्धा जैन सिंगापुर से "शायर-फ़ेमिली" वेब साईट की माडरेटर एवम स्वामिनी थीं. अब साईट नहीं है.
मुझे उनकी यह ग़ज़ल बेहद पसंद है
आखिर हमारे चाहने वाले कहाँ गए
रोशन थे आँखों में, वो उजाले कहाँ गए
आखिर, हमारे चाहने वाले कहाँ गए
रिश्तों पे देख, पड़ गया अफवाहों का असर
वाबस्तगी के सारे हवाले कहाँ गए
गम दूसरों के बाँट के, खुशयां बिखेर दें
थे ऐसे कितने लोग निराले, कहाँ गए
आग़ाज़ अजनबी की तरह, हमने फिर किया
काँटे मगर दिलों से निकाले कहाँ गए
मुश्किल सफ़र ने इतना किया हौसला बुलंद
हैरत है मेरे पाँव के छाले कहाँ गए
बस शोर हो रहा था कि मोती तलाशिए
नदिया, समुद्र, झील, खंगाले कहाँ गए
“श्रद्धा” के ख़्वाब रेत के महलों की तरह थे
तूफ़ान में निशाँ भी संभाले कहाँ गए
- अच्छी है यही खुद्दारी क्या/ श्रद्धा जैन
- अज़ीब शख़्स था, आँखों में ख़्वाब छोड़ गया / श्रद्धा जैन
- अपने हर दर्द को अशआर में ढाला मैंने / श्रद्धा जैन
- अफ़साना-ए-उल्फ़त है, इशारों से कहेंगे / श्रद्धा जैन
- आखिर, हमारे चाहने वाले कहाँ गए / श्रद्धा जैन
- आप भी अब मिरे गम बढ़ा दीजिए / श्रद्धा जैन
- ऐसा नहीं कि हमको मोहब्बत नहीं मिली / श्रद्धा जैन
- कहाँ मुमकिन है फिर से दिल लगाना / श्रद्धा जैन
- काँटे आए कभी गुलाब आए / श्रद्धा जैन
- काश बदली से कभी धूप निकलती रहती / श्रद्धा जैन
- कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले / श्रद्धा जैन
- कीड़ा मीठे में पड़ते देखा है / श्रद्धा जैन
- कुर्बतें या कि फासला होगा / श्रद्धा जैन
- कोई पत्थर तो नहीं हूँ कि ख़ुदा हो जाऊँ / श्रद्धा जैन
- क्यूँ चुप-चुप सा खड़ा है दर्द / श्रद्धा जैन
- ख़ुश्बू भरे बदन वो, गुलाबों के खो गए / श्रद्धा जैन
- ज़िंदगी कुछ नहीं बस एक मुसीबत होगी / श्रद्धा जैन
- जिस्म सन्दल, मिज़ाज फूलों का / श्रद्धा जैन
- टूटे हुए दिल की है, बस इतनी सी कहानी / श्रद्धा जैन
- तिश्नगी थोड़ी बढ़ाकर देखना / श्रद्धा जैन
- तेरे बगैर लगता है, अच्छा मुझे जहाँ नहीं / श्रद्धा जैन
- तेरे हाथों से छूटी जो, मैं मिट्टी से हमवार हुई / श्रद्धा जैन
- दिल में जब प्यार का नशा छाया / श्रद्धा जैन
- नज़र में ख़्वाब नए रात भर सजाते हुए / श्रद्धा जैन
- पलट के देखेगा माज़ी तू जब उठा के चराग़ / श्रद्धा जैन
- प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन / श्रद्धा जैन
- फिर किसी से दिल लगाया जाएगा / श्रद्धा जैन
- फूल, ख़ुशबू, चाँद, जुगनू और सितारे आ गए / श्रद्धा जैन
- बना लें दोस्त हम सबको, ये रिश्ते रास आएँ क्यूँ / श्रद्धा जैन
- मुश्किलें आएँगी जब, ये फैसला हो जाएगा / श्रद्धा जैन
- मुस्कराना मुझे भी आता है / श्रद्धा जैन
- मेरी पहचान रहेगी मेरे अफसानों में / श्रद्धा जैन
- मेरे दामन में काँटे हैं, मेरी आँखों में पानी हैं / श्रद्धा जैन
- मैं ख़ुशबू हूँ , बिखरना चाहती हूँ / श्रद्धा जैन
- यादों की जागीर बना कर रहते हैं / श्रद्धा जैन
- यूँ प्यार को आज़माना नहीं था / श्रद्धा जैन
- ये दिल की पीर थी, पिघली, नज़र नहीं आती / श्रद्धा जैन
- ये सीढ़ियाँ ही ढलान की हैं / श्रद्धा जैन
- रब हो साजिश में शामिल तो क्या कीजिए / श्रद्धा जैन
- रात जागे हो कि रोए हो, रहे हो बेकल / श्रद्धा जैन
- लुटा कर जान दिलदारी नहीं की / श्रद्धा जैन
- वक़्त करता कुछ दगा या तुम मुझे छलते कभी / श्रद्धा जैन
- वो मुसाफ़िर किधर गया होगा / श्रद्धा जैन
- वो सारे ज़ख़्म पुराने, बदन में लौट आए / श्रद्धा जैन
- वो ही तूफानों से बचते हैं, निकल जाते हैं / श्रद्धा जैन
- सबको न गले तुम यूँ लगाया करो 'श्रद्धा' / श्रद्धा जैन
- हँस के जीवन काटने का मशवरा देते रहे / श्रद्धा जैन
- हमको भी समझ फूल या पत्थर नहीं आते / श्रद्धा जैन
- हमने छुपा के रक्खी थी सबसे जिगर की बात / श्रद्धा जैन
- हो एक ऐसा शख्स जो, मोहब्बत-ओ-वफ़ा करे / श्रद्धा जैन
गीत-कविता
- इक लड़की पागल दीवानी, गुमसुम चुप-चुप सी रहती थी / श्रद्धा जैन
- कितना आसान लगता था / श्रद्धा जैन
- चलो कुछ बात करते हैं / श्रद्धा जैन
- मुझ सा ही दीवाना लगता है आईना / श्रद्धा जैन
- मूक हमारे हो संवाद / श्रद्धा जैन
- वो लड़की / श्रद्धा जैन
- वो लौट न पाएँगे मालूम न था हमको / श्रद्धा जैन
- वो सुख तो कभी था ही नहीं / श्रद्धा जैन
- शूल से शब्द / श्रद्धा जैन
- साजन तुम्हारी याद / श्रद्धा जैन
- है याद तुम्हारा कानों में, हौले से कुछ कह जाना / श्रद्धा जैन
और चलते चलते एक नज़र इधर
9 टिप्पणियाँ:
यह समग्र चर्चा बहुत उपयोगी रही!
वाह, सिरपुर के शंख-आभूषण की यहां भी धूम.
काफी हद तक श्रद्धा जैन जी की वजह से ही मैं भी अपने लेखन को आप सब तक पहुंचा पाया हूँ...मेरे लेखन के शुरुआती दिनों में उन्होंने मुझे 'शायर फैमिली' का सदस्य बनाया और उन्हीं के निरंतर उत्साहवर्धन से मैं आज इस मुकाम तक पहुँच पाया हूँ...
श्रध्दा जी के गजलों से बहुत प्रभावित हूँ । उनकी ये गज़ल भी बहुत शानदार, जानदार लगी ।
शकुन्तला प्रेस कार्यालय के बाहर लगा एक फ्लेक्स बोर्ड देखे.......http://shakuntalapress.blogspot.com/2011/03/blog-post_14.html क्यों मैं "सिरफिरा" था, "सिरफिरा" हूँ और "सिरफिरा" रहूँगा! देखे.......... http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/03/blog-post_14.html
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thanks for sharing
बहुत अच्छी प्रस्तुति !! धन्यवाद
श्रधा जी लाजवाब हैं...हर रचना विलक्षण है जितनी बार पढो नयी लगती है...उन्हें बधाई
नीरज
shraddha ji ki gazal bahut achchhi lagi .har sher behtareen.....lajawab.
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