सोमवार, 14 मार्च 2011

चर्चा-चर्चा में एकल रचनाकार चर्चा : श्रृद्धा जैन

श्रृद्धा जैन 
ब्लागभीगी ग़ज़ल की संचालिका श्रृद्धा जैन  मेरे लिये अतिमहत्वपूर्ण इस लिये हैं क्योंकि अगर पूर्णिमा वर्मन, समीरलाल, और श्रृद्धा जैन न मिलते  तो शायद न तो मेरा रुझान ब्लागिंग की ओर होता और न ही मैं आप सबसे इतना स्नेह ही पाता. इसे एक व्यक्तिगत मामला कहा जा सकता है किंतु ऐसा नहीं है वे मधुर व्यक्तित्व की धनी एवम रचनात्मकता की मंजूषा हैं. 
 विदिशा मध्य-प्रदेश में पली बढ़ी श्रृद्धा जैन सिंगापुर से "शायर-फ़ेमिली" वेब साईट की माडरेटर एवम स्वामिनी थीं. अब साईट नहीं है. 
मुझे उनकी यह ग़ज़ल बेहद पसंद है 

आखिर हमारे चाहने वाले कहाँ गए

रोशन थे आँखों में, वो उजाले कहाँ गए
आखिर, हमारे चाहने वाले कहाँ गए

रिश्तों पे देख, पड़ गया अफवाहों का असर
वाबस्तगी के सारे हवाले कहाँ गए


गम दूसरों के बाँट के, खुशयां बिखेर दें
थे ऐसे कितने लोग निराले, कहाँ गए


आग़ाज़ अजनबी की तरह, हमने फिर किया
काँटे मगर दिलों से निकाले कहाँ गए


मुश्किल सफ़र ने इतना किया हौसला बुलंद
हैरत है मेरे पाँव के छाले कहाँ गए 


बस शोर हो रहा था कि मोती तलाशिए
नदिया, समुद्र, झील, खंगाले कहाँ गए


“श्रद्धा” के ख़्वाब रेत के महलों की तरह थे
तूफ़ान में निशाँ भी संभाले कहाँ गए



गीत-कविता
और चलते चलते एक नज़र इधर 

9 टिप्पणियाँ:

वाह, सिरपुर के शंख-आभूषण की यहां भी धूम.

काफी हद तक श्रद्धा जैन जी की वजह से ही मैं भी अपने लेखन को आप सब तक पहुंचा पाया हूँ...मेरे लेखन के शुरुआती दिनों में उन्होंने मुझे 'शायर फैमिली' का सदस्य बनाया और उन्हीं के निरंतर उत्साहवर्धन से मैं आज इस मुकाम तक पहुँच पाया हूँ...

श्रध्दा जी के गजलों से बहुत प्रभावित हूँ । उनकी ये गज़ल भी बहुत शानदार, जानदार लगी ।

शकुन्तला प्रेस कार्यालय के बाहर लगा एक फ्लेक्स बोर्ड देखे.......http://shakuntalapress.blogspot.com/2011/03/blog-post_14.html क्यों मैं "सिरफिरा" था, "सिरफिरा" हूँ और "सिरफिरा" रहूँगा! देखे.......... http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/03/blog-post_14.html

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बहुत अच्छी प्रस्तुति !! धन्यवाद

श्रधा जी लाजवाब हैं...हर रचना विलक्षण है जितनी बार पढो नयी लगती है...उन्हें बधाई

नीरज

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