छुटकी ने के क्या गज़ब लिखा है
हादसा आज अचानक वही फिर याद आया
कितनी मुश्किल से जिसे दिल से भुलाया हमने( फ़िरदौस की डायरी से )
वीर-बहूटी पर भी "मन-मंथन"भी मथ देने वाली बात थी.सोचा कि क्यों न मन मथ दूं अपना और सभी ब्लागर्स का.
आज़ जब चिट्ठा जगत के आंकड़े देखे तो पता चला कि :- सेहत मंदी के बारे में 250 पोस्ट आईं,हैं. घरबार-श्रेणी से 51, जबकि समाचार श्रेणी वाले 309,चिट्ठे थे. विज्ञान पर केन्द्रित 54 आलेख,धंधा 56 खरीदी को लेके 10 पोस्ट थीं और संदर्भ श्रेणी में 104 को रखा गया है. यानी कुल 16235 चिट्ठों में से लिखने वालों की संख्या मात्र 834 ब्लॉग सक्रीय हैं जो पजीयत का 5.137 यानि 5.14 ही है. और हम हैं कि नीचे दर्शाई स्थित को लेकर खुशी का अनुभव करते हैं.कि आज मुझे अधिक टिप्पणी मिली या अधिक पसंद किया वाहवाही मिली. चिट्ठों के पठन में भी कोई प्रभाव शीलता नहीं है. जिसे ज्यादा पढ़ा गया वो आंकड़ा आप खुद ही देखिये. हो सकता है एग्रीगेटर तक पठन का अपडेट विलम्ब से पहुंचा हो तो आप मानिए सर्वाधिक आंकड़ा अधिकतम 250 से अधिक न होगा. यहाँ कोई धनात्मक सन्देश नहीं दे रहा एग्रीगेटर बल्कि एक आइना दिखा रहा है कि हम हिन्दी के ब्लॉगर किस बात में आगे हैं और वो सब जानते हैं ? हालिया दिनों में जो सठिया उभर रहीं हैं उससे मुक्त होकर "मुदिता-भरी-ब्लागिंग" का होना समाज उपयोगी विषय पर आलेखन का किया जाना बहुत ज़रूरी है. कुछेक चिट्ठे हैं जो इस गरिमा को बरकरार रखते हैं उनका ज़िक्र करने में भी आज भयभीत हूं कि कोई आरोप न लगा दे कि अंधा रेवड़ी बाँट रहा है.
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टिपियाये प्रभू आज़
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जस पाए प्रभू आज
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पठियाये प्रभू आज़
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आज मन बहुत उदास है शायद इससे ज़्यादा न मथ पाउंगा ?
सादर-प्रणाम :-गिरीश बिल्लोरे मुकुल
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