शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

घंटा…मेरे बाबा जी का उठा पप्पू - पटक पप्पू - डाट काम---सूर्यकांत गुप्ता

रात को आंधी तुफ़ान के कारण विद्युत व्यवस्था भंग होने से वार्ता समय पर नहीं हो सकी। समय कम है मुझे भी आफ़िस जाना है, अब कुछ लिंक मैं सूर्यकांत गुप्ता आपको दे रहा हुँ, जो मैने पढे हैं। चलते हैं फ़टाफ़ट सेवा में, प्रारंभ करते हैं राजीव तनेजा जी के व्यंग्य से.............


***राजीव तनेजा*** “ठक्क……ठक्क- ठक्क”…. “ओ….कुण्डी ना खड़का …सोणया सिद्धा अन्दर आ"… “ठक्क……ठक्क- ठक्क”…. “अरे!…कौन है भाई?….ज़रा रुको तो सही…अभी खोलता हूँ…..पहले ज़रा नाड़ा तो ठीक से बा...महंगाई का ग्राफ भी अब नीचे आ गया !महलों में झूठ के वर्क से कुछ और सजावट आ गई , लवों पर कुछ और कुटिल शब्दों की बनावट आ गई ! सरकार की महंगाई का ग्राफ भी अब नीचे आ गया, क्योंकि मानवीय मूल्यों में कुछ और गिरावट आ गई !! बच्चो ने भूख से समझौता क...
 ब्लॉग 4 वार्ता प्रिय मित्रों, बुढऊ ब्लागर्स एशोसियेशन की मेंबरशिप के लिये बहुत सारे आवेदन आये हुये पडे थे. सब काम नियम पूर्वक हो इसलिये हमने आज का दिन बुढऊ ब्लागर्स एशोसियेशन का मेन्युअल पढकर सब कार्य निपटाने के लिये तय...ताऊ डाट इन पर--ताऊ प्रकाशन का सद साहित्य पढिये : सफ़ल ब्लागर बनिये!आदरणीय ब्लागर गणों, आप सभी को रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" की आदाब अर्ज..नमस्कार. आज कल ताऊ ब्लागजगत में कम दिखाई दे रहे हैं क्योंकि *ताऊ प्रकाशन सद साहित्य* के प्रकाशन में अनेकों पुस्तकों की छपाई का काम च ल र...
साहित्य के ध्रुव  उड़न तश्तरी .... पर एक गांव में सरपंच जी ने बैठक बुलवाकर घोषणा की कि अब अगले माह तक हमारे गांव में बिजली आ जायेगी. पूरे गांव में खुशी की लहर दौड़ पड़ी. उत्सव का सा माहौल हो गया. हर गांव वासी प्रसन्न होकर नाच रहा था. देखने ...मैच नहीं खिलाड़ी  होते हैं फिक्स पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर विजय भारद्वाज से बातचीत * *भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व सितारे विजय भारद्वाज का कहना है कि मैच तो किसी कीमत पर फिक्स नहीं हो सकते हैं। लेकिन यह बात जरूर है कि खिलाड़ी फिक...
नापसंद करो,कुंठा निकालो-आह्वान है जयचंद की औलादों का.......!नापसंदी लालों के कारनामे ब्लागवाणी पर चल रहे हैं, कायरों की तरह नापसंद के चटके लगा रहे हैं। पीठ पीछे छुप कर वार करते हैं जयचंद की औलाद। पिछले कई महीनों से तमाशा जारी है, हमारा नापसंदी लालों को खुला आमंत्रण...दो ग़ज़लें / इतना अधिक ज़हर मत घोलो,, पाँच सितारा होटल में.... अपना देश जब आजाद हुआ तो एक उम्मीद जगी थी, कि अब नया भारत बनेगा. हम स्वतन्त्र हो कर अपना विकास कर सकेंगे. हमारा 'शासन' होगा. 'लोक' का ही 'तंत्र' होगा. हमारे जनप्रतिनिधि ईमानदारी से काम करेंगे और देश कहाँ स...
छत्तीसगढ़ी व्याकरण के 125 बछर संजीव तिवारी .. Sanjeeva Tiwari  गुरतुर गोठ पर........जे मन आज घलोक छत्तीसगढ़ी ल संवैधानिक रूप ले भाखा के दरजा पाए के रद्दा म खंचका-डिपरा बनावत रहिथें, उंकर जानकारी खातिर ये बताना जरूरी होगे हवय के ए बछर ह छत्तीसगढ़ी व्याकरण बने के 125 वां बछर आय। आज ले ठउका ...उठा पप्पू - पटक पप्पू - डाट काम !!! लफ़डा - झपडा तिकडम - बिकडम आडा - तिरछा रेलम - पेल लंबू - मोटू हंसी - ठिठोली अप्पू - गप्पू धक्का - मुक्की गिल्ली - डंडा ढोल - नगाडे अटका - पटकी सरपट - रेल सटका - सटकी नंग्गे - लुच्चे इक्की - दुक्की गुल्ला -...
अधूरी कविता- शोभना 'शुभि' आज बैठे बैठे ऐसे ही कुछ पंक्तियाँ लिख दी आगे कुछ सुझा नहीं, बस ये चार पंक्ति लिख पाई *कभी खुद से मुलाकात करनी हो तो तन्हाई में डूब कर देखो * *कभी खुद को सुकून देना हो तो खुद की परछाई से लड़कर देखो* *कभी ख... व्‍यवसायी के इलाज के लिए रखे गए 65 लाख रूपए बचे ही थे .. उसका उपयोग क्‍यूं नहीं हुआ ?? चार वर्ष पूर्व एक व्‍यवसायी को कैंसर हो गया , उन्‍होने व्‍यवसाय में से एक करोड रूपए निकालकर अलग रखे। इस एक करोड रूपयों को निकाल देने से उनके व्‍यवसाय में रत्‍तीभर का भी फर्क न पडनेवाला था , इसलिए पूरी निश्...
खुशदीप सहगल  देशनामा  पर *कुछ लोग कामयाब होने के बस ख्वाब बुनते हैं...* * * *कुछ नींद से जागते हैं और दिन रात एक कर देते हैं...* * * *फिर एक दिन कामयाबी खुद उनके कदम चूमती है...* ** *स्लॉग ओवर * देवदास...पिताजी ने कहा, हवेली छ...आज लविज़ा का जनमदिन है आज, 30 अप्रैल को दो वर्ष की हो गई नन्ही लविज़ा का जनमदिन है। बधाई व शुभकामनाएँ वैसे आज एक ब्लॉगर दम्पत्ति की वैवाहिक वर्षगांठ भी है! देखिएगा शाम 4:30 की पोस्ट *आने वाले **जनमदिन आदि की जानकारी, अपने 
ताऊ रामपुरिया  ताऊजी डॉट कॉम पर प्रिय ब्लागर मित्रगणों, आज वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में भाग लेने के लिये आखिरी दिन है. इस प्रतियोगिता में आप सभी का अपार स्नेह और सहयोग मिला बहुत आभार आपका. जिन मित्रों की प्रविष्टियां प्राप्त हुई हैं...आज का धृतराष्ट्र, जो खुद ही बैल को उकसा रहा है। एक आदमी नदी के किनारे बहुत उदास सा बैठा था। उससे कुछ दूरी पर एक संत भी बैठे थे, अपने प्रभू के ध्यान में। अचानक उनका ध्यान इस दुखी आदमी की ओर गया। संत उठ कर इसके पास आए और पूछा कि तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं लग
निगाहों में तेरी सूरत ..!! आज भी तेरी प्यारी सूरत निगाहों में बसी है ,लगाई थी जो प्यार की मेहंदी , हाथों में रची है ! सुर्ख होठों पर सजी मोहक सी मुस्कान तेरी ,लगे ऐसे गुलाबों में लड़ी, मोती की फंसी है ! जो भी देखे तेरी उडती ,जुल्फों का नजारा , लगे बदली बादलों की, लहरों में फंसी है
और वे सत्संग में चली गयी ---- लघुकथा वे बेचैनी से कमरे में टहल रहीं थी. अभी तक फोन क्यों नहीं आया? पता नहीं प्रबन्ध हुआ कि नहीं. "बेटा तीन साल से फेल हो रहा है. चिंता हो किसी को तब न. अबकी तो कुछ भी करके पास करवाना ही होगा." ट्रिंग -- ट्रिंग "हलो, क्या हुआ?" 
 अखबार में खबर है, कोटा के जानकीदेवी बजाज कन्या महाविद्यालय को एक वाटर कूलर भेंट किया गया। पढ़ते ही वाटर कूलर के पानी का स्वाद स्मरण हो आता है। पानी का सारा स्वाद गायब है। लगता है फ्रिज से बोतल निकाल कर दफत्तर की मेज पर रख दी गई है। बहुत ठंडी है
आज की चुटकी--चुटीली सी
IRFAN ITNI SI BAAT पर............................. नमस्कार --- मिलते है अगली वार्ता पर

गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

ताऊ की नजर से : बुढऊ समीरलाल "समीर"

प्रिय मित्रों,
बुढऊ ब्लागर्स एशोसियेशन की मेंबरशिप के लिये बहुत सारे आवेदन आये हुये पडे थे. सब काम नियम पूर्वक हो इसलिये हमने आज का दिन बुढऊ ब्लागर्स एशोसियेशन का मेन्युअल पढकर सब कार्य निपटाने के लिये तय किया हुआ था. और हम ताऊ प्रकाशन की बहुत ही महत्वपूर्ण पुस्तकों को देखने में अति व्यस्त थे.



पर रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" आ धमका और बोला कि आज तो ललित शर्मा जी वाली वार्ता4यू के लिये "ताऊ की नजर से" स्तंभ का है. और आप जानते हैं कि "प्यारे" भले ही गधा हो पर कामकाज बिल्कुल नियम से और सलीके से करता है. तो आईये आज आपको इस स्तंभ में मिलवाते हैं बुढऊ समीरलाल "समीर" से.



बुढऊ समीरलाल "समीर" नाम सुन कर आप चौंक गये होंगे और सोच रहे होंगे कि इस रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" ने ताऊ को कहीं भांग वांग ना खिला दी हो? तो भाई ऐसी कोई बात नही है. हमारी तरह हमारा रामप्यारे भी सब नशों से मुक्त है. वो अलग बात है कि हुक्का जरुर पी लिया करते हैं. और इसको हम बुरा नही मानते. हमारे यहां किसी को हुक्का पिलाना उसको इज्जत बख्सने जैसा काम माना जाता है.

चंद फ़ुरसत के लम्हें...


बात हो रही थी शीर्षक कि "ताऊ की नजर में : बुढऊ समीरलाल जी" की. आपने धर्मगुरू गुरजिएफ़ के बारे मे अवश्य सुना होगा. कहते हैं कि गुरजिएफ़ बुढ्ढा ही पैदा हुआ था. ये गुरजिएफ़ वही हैं जिसका शिष्य महान गणितज्ञ पी.डी.आस्पेंसकी था, गुरजिएफ़ की सारी देशनाएं इन्हीं के मार्फ़त दुनियां तक पहुंची जैसे स्वामी रामकृष्ण परमहंस की विवेकानंद जी के मार्फ़त.

अब शारीरिक रुप से ना तो कोई बुढ्ढा पैदा हो सकता है और ना ये संभव ही है. हां ये हो सकता है कि किसी किसी मनुष्य में जन्म से ही वो प्रज्ञा हो जो वो बूढा होने तक की उम्र में प्राप्त कर पाता. और ऐसा ही गुरजिएफ़ के साथ हुआ होगा. इसीलिये लोग कहते थे कि गुरजिएफ़ बुढ्ढा ही पैदा हुआ. और पैदायशी बुढ्ढे का मतलब भी यही होता है.

अपनी किताबों की दुनिया में


और अगर मैं समीरलाल जी के लिये भी कहूं कि ये भी पैदायशी बुढऊ ही हैं तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी. आज हिंदी ब्लाग जगत में कोई भी ऐसा दूसरा ब्लागर नही है जो समझदारी की इतनी खूबसूरत मिसाल पेश करता हो.

जब कोई इतनी ऊंचाई छूता है तो स्वाभाविक रूप से कुछ विघ्नसंतोषी सक्रियता दिखाते हैं. और इसमे कुछ बुरा भी नही है क्योंकि ये भी एक साधारण सा मनोविज्ञान है कि " तेरी कमीज मेरी कमीज से उजली क्युं?" और इन सब बातों से परे रहकर समीर जी ने जो मिसाल पेश की है वो उन्हें पैदायशी बुढ्ढा साबित करती है.

मित्रों, अगर मैं कहूं कि मैं खुद एकाधिक बार अपने ताली मित्रों के दुर्व्यवहार से दुखी होकर यहां से किनारा करने का पक्का मन बना चुका था उस समय समीर जी ने पता नही किस जादू की छडी से मुझे रोका, मैं खुद नही जानता.

जब भी कोई मनुष्य इस ऊंचाई पर पहुंचता है तो जरूर उसमे कुछ विषेष बात होती है इसे आप दैवीय कृपा कहें या चाहे जो भी कहलें. आज हिंदी ब्लाग जगत के पास एक सर्वमान्य और सहजता से भरे व्यक्तित्व का होना सौभाग्य ही कहा जायेगा.

कहां खो गये जनाब?



आज समीर जी के कद के सामने सभी के कद बौने दिखाई देते हैं और ये किसी दूसरे की लकीर को छोटी करके नही बल्कि खुद की लकीर को दूसरों की लकीर से बहुत बडी करके प्राप्त किया गया इनाम है. आज जब टिप्पणियों का चहुं और अकाल पडा हुआ है उस समय समीर जी की पोस्ट पर १०० टिप्पणीयां पार होना मामूली बात है. और पिछली पोस्ट पर तो टिप्पणी संख्या 170 पार हो रही है. बहुत से लोग यह कह सकते हैं कि टिप्पणियाँ ही उच्च लेखन के पैमाने नहीं है, किन्तु काठ की हांडी बार बार तो नहीं चढ़ा करती. कुछ तो उनके लेखन में बात होगी, जो सहज ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है.

लाल दंपति शुकून के क्षणों में


आज टिप्पणी देने, टिप्पणी प्राप्त करने, नियमित पोस्ट लिखने और सभी को साथ लेकर चलने मे यानि किसी भी दिशा मे समीर जी हम सबसे बहुत आगे निकल गये हैं. कुछ लोगों को इससे जलन होती है और कुछ लोगों को प्रसन्नता. स्वभाव अपना अपना.

मेरा हमदम: मेरा लेपटॉप


तो आईये अब मैं आपको समीर जी की कुछ उन पोस्टों के बारे मे बताता हूं जो मेरी पसंद की हैं. ये कहना बडा ही आसान है पर शुद्ध सोने में से भी शुद्ध सोना क्या छाटेंगे? फ़िर भी ये धृष्टता कर ही लेता हूं आशा है आप पाठक गण क्षमा करेंगे. क्योंकि समीरजी की हर पोस्ट इतनी सटीक और जबरदस्त होती हैं कि उन पर आई हुई टिप्पणीयां हमेशा पिछला रिकार्ड तोडने को बेताब दिखाई देती हैं. अभी उन की पिछले सप्ताह की पोस्ट मजहबी विवाद, साम्प्रदायिकता और ब्लॉग जगत!! ने टिप्पणियों का पिछला सर्वकालिक रिकार्ड तोड दिया है. यह पोस्ट लिखे जाते समय तक वहां 166 टिप्पणीयां मौजूद थी और अब शायद आंकडा और भी पार होगया होगा.

मानवीय संवेदनाओं को उकेरती यह पोस्ट हैलो , हैलो, मैं सुंदर चिडिया हूँ. रविवार, दिसंबर 31, 2006 की है. इसे पढकर आप एक अलग ही संसार में पहुंच जायेंगे. जहां रिश्ते नाते क्या होते हैं? या क्या हो सकते हैं पर विचार करते करते एक अलग ही दुनियां में स्वत: पहूंच सकते हैं. .

रात में हमेशा झूले पर चढ़ कर सोती थी. बाकि सारे दिन झूला देखती भी नहीं थी. जब भी घर में किसी को देखती, अपनी खुद की धुन का गाना, चीं चीं आवाज में सुनाती. सोचती थी हमारा दिल बहला रही है, वैसे सच में, बहलाती तो थी. खाने में थोड़ा पिकी थी. हम कोई सा भी लेटेस खा लें, उन्हें फ्रेश रोमन लेटेस (सबसे महंगा) ही खाना है. साधारण वाला लगाकर तो देखो, वो देखे भी न उसकी तरफ. रईसों के बच्चों वाले सारे चोचले पाल लिये थे. हर महिने नया खिलौना, खाने में हाई स्टेन्डर्ड और लड़की थी तो स्वभाविक है, शीशा दिख तो जाये, घंटों खुद को निहारती थी. एक बार शीशा देखे, फिर हमें कि देखो, कितनी सुंदर दिख रही हूँ. सच में बहुत सुंदर थी, दिखने में भी और दिल से भी.


रामप्यारे उरफ़ "प्यारे" : अरे वाह वाह ताऊ, समीर लाल जी बहुत ही भावुक कर देते हैं. पर मैने तो सुना था कि वो पुराने दिनों मे भी कभी कभी स्वामी समीरलाल "समीर" के नाम से लिख लिया करते थे?

ताऊ : अबे "प्यारे"...तू बीच मे बोले बिना नही रह सकता क्या? चुपचाप सुन....मेरा ध्यान मत बंटाया कर...स्वामी समीरलाल "समीर" ने मंगलवार, दिसंबर 26, 2006 को चिट्ठाकारों के लिये गीता सार का उपदेश दिया था जो भी प्राप्त कर और अपने ज्ञान चक्षु खोल ले. इस उपदेश को आत्मसात कर के जो भी ब्लागर सुबह शाम पाठ करेगा उसको इस ब्लागजगत का कोई भी मोह माया कभी व्याप्त नही होगा और इस दुनियां के रहने तक आनंद पूर्वक बिना किसी टंकी या बांस पर चढे ब्लागिंग का अखंड सुख भोगता रहेगा.

एक पोस्ट पर ढ़ेरों टिप्पणियां मिल जाती है,
पल भर में तुम अपने को महान साहित्यकार समझने लगते हो.
दूसरी ही पोस्ट की सूनी मांग देख आंख भर आती है और तुम सड़क छाप लेखक बन जाते हो.

टिप्पणियों और तारीफों का ख्याल दिल से निकाल दो,
बस अच्छा लिखते जाओ... फिर देखो-
तुम चिट्ठाजगत के हो और यह चिट्ठाजगत तुम्हारा है.

न यह टिप्पणियां तुम्हारे लिये हैं और न ही तुम इसके काबिल हो
(वरना तो किसी किताब में छपते)
यह मिल गईं तो बहुत अच्छा और न मिलीं तो भी अच्छा है.


रामप्यारे उरफ़ "प्यारे" : ताऊ यह पोस्ट पढकर तो मुझे ऐसा लगता है जैसे कि मैं साक्षात ब्रह्मलोक मे पहुंच गया हूं...आनंद आगया ताऊ...

ताऊ : अबे "प्यारे" ...तू ब्रह्मलोक से जल्दी नीचे आ वर्ना कान के नीचे दो बजाऊंगा तेरे...चुपचाप जाके हुक्का भरकर ल्या..ताजी तंबाकू का....जब तक मैं तुझे कबीर दास का चिट्ठाकाल पढवाता हूं. इस मे तुझको यह मालूम पडेगा कि चिठ्ठाकाल की शुरुआता कब हुई और कबीर दास जी ने उनके दोहे ब्लागरों के लिये ही रचे थे. उनमें से भी परम मोक्ष दायक सात दोहों का मर्म समझा रहे हैं समीरला जी. अत: "प्यारे" तू ध्यान पूर्वक इन दोहों का श्रवण और मनन कर, जिससे तेरे समस्त ताप शाप शांत हो जायेंगे.

आग जो लगी समुंद्र में, धुआं न परगट होए
सो जाने जो जरमुआ जाकी लागे होए.

भावार्थ: जब किसी चिट्ठाकार का कम्प्यूटर या इंटरनेट कनेक्शन खराब हो जाता है तो उसके दिल में चिट्ठाजगत से दूर होने पर ऐसी विरह की आग लगती है कि धुँआ भी नहीं उठता. इस बात का दर्द सिर्फ़ वही जान सकता है जो इस तकलीफ से गुजर रहा हो. बाकी लोगों को तो समझ भी नहीं आता कि वो कितना परेशान होगा अपनी छ्पास पीड़ा की कब्जियत को लेकर.


रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" : वाह...वाह...ताऊ आज पहली बार कबीरदास जी के दोहों का मर्म समझ आया. अब तक तो मैने व्यर्थ जन्म गंवायां...अब ये बिल्कुल ताजी तंबाकू का हुक्का खींचों ताऊ और पोस्ट सुनाओ...

ताऊ : अरे वाह "प्यारे" ये तो बडी सुथरी और खालिश तंबाकू डाली तैने आज हुक्के में..मजा आगया...इब देख तू ये नया राशा हद करती हैं ये लड़कियाँ भी..

रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" : ताऊ ये ज्ञान ध्यान और सत्संग की बातें करते करते इन लडकियों को कहां से बीच में ले आये?

ताऊ : अरे बावलीबूच...इस पोस्ट में आपबीती तो बुढऊ की ही है पर दूसरों को ज्ञान देने के बहाने बता रहे हैं कि "हे गुरुवर, सुकन्या के पीछे चलते वक्त दो जूते की सुरक्षित दूरी का ज्ञान तो आपने दे दिया किन्तु उनके बाजू में चलने/बैठने के विषय में भी हमारा कुछ ज्ञानवर्धन करें."

रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" : तो ताऊ समीर जी इस काम की भी सलाह देते हैं क्या? मैने तो सुना था वो CA का काम धंधा करते हैं.

ताऊ : अबे "प्यारे" तू निरा गधे का गधा रहेगा...ताऊ के साथ रह कर भी...अरे इस काम में खुद की दबी छुपी इच्छायें भी पूरी हो जाती हैं और पार्ट टाईम कमाई भी हो जाती है...समझा कर...

अरे, मैं क्यूँ कुछ कहूँगा किसी अजनबी औरत से-अच्छा खासा शादीशुदा दो जवान बेटों का बाप-ऐसा सालिड एक्सक्यूज होते हुए भी. बस, समझो. किसी तरह बच निकले.वो तो लफड़ा मचा नहीं वरना तो सुरक्षाकवच ऐसे ऐसे थे कि जबाब न देते बनता उनसे. मैं तो तैयार ही था कहने को कि हम भारतीय है.

हमारी संस्कृति में विवाहित महिलाये ऐसी नहीं होती कि पूछती फिरें –आपने कुछ कहा? अरे, हमारे यहाँ तो सही में भी अपरिचित महिला से कुछ पूछ लो तो कट के सर झुका के लज्जावश निकल लेती है. लज्जा को नारी के गहने का दर्जा दिया गया है. उस संस्कृति से आते हैं हम. तुम क्या जानो.


और "प्यारे" सुन, आज के जमाने मे बेटा होना भी बहुत बडा गुनाह है...

रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" : अरे ताऊ ये क्या कह रहे हो? लोग तो आज भी बेटियों को मारने जैसी कमीनी हरकते करते हैं और आप कहते हो कि बेटा होना गुनाह है?

ताऊ : अरे रामप्यारे ..बावलीबूच...तन्नै कितनी बार समझाया कि बिना पूरी बात समझे बीच में टांग ना अडाया पर लगता है तू टांग अडाने की अदा सीख आया दिखता है...अबे ये मैं नही समीर जी कह रहे हैं कि अगले जनम मोहे बेटवा न कीजो.. बल्कि ऐश्वर्या राय बना देना....ले खुद ही बांच ले...

अब के कर दिये हो, चलो कोई बात नहीं. अगली बार ऐसा मत करना माई बाप. भारी नौटंकी है बेटा होना भी. यह बात तो वो ही जान सकता है जो बेटा होता है. देखो तो क्या मजे हैं बेटियों के. १८ साल की हो गई मगर अम्मा बैठा कर खोपड़ी में तेल घिस रहीं हैं, बाल काढ़ रही हैं, चुटिया बनाई जा रही है और हमारे बाल रंगरुट की तरह इत्ते छोटे कटवा दिये गये कि न कँघी फसे और न अगले चार महिने कटवाना पड़े. घर में कुछ टूटे फूटे, कोई बदमाशी हो बस हमारे मथ्थे कि इसी ने की होगी. फिर क्या, पटक पटक कर पीटे जायें. पूछ भी नहीं सकते कि हम ही काहे पिटें हर बार? सिर्फ यही दोष है न कि बेटवा हैं, बिटिया नहीं.

बेटा होने का खमिजियाना बहुत भुगता-कोई इज्जत से बात ही नहीं करता. जा, जरा बाजार से धनिया ले आ. फलाने को बता आ. स्टेशन चला जा, चाचा आ रहे हैं, ले आ. ये सामान भारी है, तू उठा ले. हद है यार!!


रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" : ताऊ बात में दम तो है.

ताऊ : रामप्यारे ...बात मे दम हैतो जरा यहां भी नजर डाल ले...जूता विमर्श के बहाने : पुरुष चिन्तन ये भी तेरे काम की चीज है...

मैं आज तक नहीं समझ पाया कि इनको क्या पहले खरीदना चाहिये-पार्टी ड्रेस फिर मैचिंग चप्पल और फिर पर्स या चप्पल, फिर मैचिंग ड्रेस फिर पर्स या या...लेकिन आजतक एक चप्पल को दो ड्रेस के साथ मैच होते नहीं देखा और नही पर्स को.

गनीमत है कि फैशन अभी वो नहीं आया है जब पार्टी के लिए मैचिंग वाला हसबैण्ड अलग से हो.

तब तो हम घर में बरतन मांजते ही नजर आते.

घर वाला एक आरामदायक हसबैण्ड और पार्टी वाले मैचिंग के बीस.

गम भरे प्यालों में,
दिखती है उसी की बन्दगी,

मौत ऐसी मिल सके
जैसी कि उसकी जिन्दगी.


"प्यारे" : ताऊ मन्नै तो डर लागण लाग्ग्या सै....मैं नहीं पडता इन कामों में...मन्नै सुण राख्या सै कि समीर जी को सिगरेट खींचनेण का घणा शौक था और उस शौक तैं एक नई विधा की कविता पैदा हूई "विल्स कार्ड"...मेरे को वो सुणावो...

ताऊ : अरे हां "प्यारे" ये तूने अच्छी याद दिलायी...तो भाई रुक जाना मौत है- विल्स कार्ड ८ पढले तू...घणी सुथरी पोस्ट सै यो...

बरसात

उस रोज

मैं घर आया

बरसात में भीग

भाई ने डॉटा

’क्यूँ छतरी लेकर नहीं जाते?’

बहन ने फटकारा

’क्यूँ कुछ देर कहीं रुक नहीं जाते’

पिता जी गुस्साये

’बीमार पड़कर ही समझोगे’

माँ मेरे बाल सुखाते हुए

धीरे से बोली

’धत्त!! ये मुई बरसात’


"प्यारे" : वाह वाह ताऊ...मजा आगया ...जरा और बांचो ये विल्स कार्ड वाली पोस्टें..

ताऊ : अबे ओ बवालीबूच "प्यारे"...तू मन्नै के बेवकूफ़ समझ राख्या सै?

रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" : ना ताऊ, बेबकूफ़ को और क्या बेवकूफ़ समझना?

ताऊ : हां तब तो ठीक सै...पर इब सारी दोपहरी हो गई...ये पोस्ट बांचते बांचते...काम धंधा भी करणा सै या नही?
जा...पहले तो ज्ञानू धोबी के जलेबी घाट से कपडे ढो के ले आ...फ़िर रामदयाल कुम्हार की मिट्टी ढो के ला...और फ़िर खेत से अपनी भैंस का चारा ढो ला...खा खा के इत्ता बडा ऊंट सरीखा होगया...जा फ़टाफ़ट काम कर के आजा..और हां सुण...जरा एक चिलम भी भरकर पकडाता जाईये..

रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" : ताऊ, इत्ती गर्मी में इतना काम करके...मैं कैसे करुंगा? बीमार पड जाऊंगा...कुछ तो रहम करो...

ताऊ : अबे बीमार पड जायेगा तो अपणा डाक्टर झटका बेकार बैठ्या सै...उसतैं इंजेक्शन लगवा देंगे...इब चुपचाप काम पे निकल ले...तावला सा...

रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" : अरे ताऊ, मन्नै एक बार टैलीफ़ोन पै सीधी भिडंत तो कर लेने दे समीर लाल जी से...

ताऊ : चल तू भी क्या याद रखेगा...आज तू ही करले सिधी भिडंत टैलीफ़ून पै...लगा टैलीफ़ोन और फ़टाफ़त बात करके काम पै निकल ले.

रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" : हैल्लू..हैल्लू...समीर जी नमस्ते....मैं रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" बोल रिया सूं...मन्नै आप टैलीफ़ून पै ही एक कविता सुना दो जी ...

समीरलाल जी : अरे "प्यारे" जी नमस्ते....आप तो नीचे वाला विडियो देखकर सुनिये कविता....और बताईये कैसी लगी?



रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" : ओ जी समीर जी, मजा आगया जी कविता सुनके तो...अब ब्लागर्स के कोई संदेश देना चाहो तो दे दो जी?

समीरजी : "प्यारे" जी बस वही संदेश देना चाहुंगा कि :-

प्रिय ब्लॉगर साथियों:

हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!

लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.

अनेक शुभकामनाएँ
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हां तो भई ब्लागर मित्रों...समीर जी की हर पोस्ट...अपने आप में नायाब है...मैने तो मोतियों के ढेर से कुछ मोती ही आपके सामने पेश किये हैं. आशा है ताऊ और उसके गधे रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" का यह प्रयास आपको पसंद आया होगा. इब अगले सप्ताह फ़िर मिलते हैं.

बुधवार, 28 अप्रैल 2010

प्रणय के क्षण, कोई दीवाना कहता है-ब्लाग 4 वार्ता- राजकुमार ग्वालानी

ब्लाग 4 वार्ता  का आगाज करने से पहले सभी ब्लागर मित्रों को राजकुमार ग्वालानी का नमस्कार
आएं मिलकर बांटते चले सबको प्यार
आज मन ठीक नहीं है इसलिए सीधे चलते हैं चर्चा की तरफ....
दिये प्रणय के जो क्षण तुमने, जीवन के आधार बन गए , घृणा, उपेक्षा, पीड़ा, दंशन परित्यक्ता को प्यार बन गये ! सुख सज्जा के स्वप्न ह्रदय ने मिलन रात्रि में खूब सँवारे , हुई विरह की भोर, नयन के मोती ही गलहार बन ...
अविनाश वाचस्पति द्वारा - 27 मिनट पहले पर पोस्ट किया गया
कोई दीवाना कहता है से प्रख्‍यात डॉक्‍टर कवि कुमार विश्वास अब कल से अपने काव्य पाठ से विदेशी धरती को अपनी कविता डॉक्‍टरी के स्‍वर पाठ से आलोकित करेंगे । कुमार 29 अप्रैल से 30 मई तक यूएसए तथा कनाडा के दौरे ...
डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर कह रहे हैं-मदद की पुकार ब्लोगर्स की तरफ से...यदि इच्छा हो जाए तो...
  अविनाश वाचस्पति जी की तरफ से प्राप्त मेल से इस सूचना को आप सभी की जानकारी के लिए.... यदि इच्छा हो जाए तो..... यह सूचना नुक्‍कड़ पर Build a better future के रजनीश ने और पिछले दिनों मीडिया मंत्र पर श्री पुष..

रात ११ बजे उसकी flight पहुंची..मैं एयर पोर्ट पर हाज़िर थी...international arrival पर नज़रें टिकाये हुए...दरवाज़ा जैसे ही खुलता मन में आस दौड़ जाती ये वही होगा....ख़ैर, आखिर वो आ ही गया....मेरा बेटा मृगांक, 
( फिलीस्तीनी चित्रकार मोहम्मद सावू का गाजा दमन के खिलाफ बनाया चित्र)  गाजा की इस्राइल द्वारा नाकेबंदी जारी है। हजारों लोग खुले आकाश के नीचे कड़कड़ाती ठंड में ठिठुर रहे हैं , इन लोगों के...
बात होती है प्रवृति की और ये मेरी प्रवृत्ति भी दोस्तों से लेकर मामूली जान-पहचान वाले को पता है कि मैंने अपने नाम को हमेशा सार्थक किया।अभी यंहा तो अभी वंहा अपना फ़ेवरेट स्टाईल रहा है और शायद इसिलिये लोग मेरे...
*एक बटा दो, दो बटे चार,* *छोटी छोटी बातों में बंट गया संसार...* नहीं नहीं, मैं बीमारी का झटका सह कर इतना भी मक्खन नहीं हुआ कि बाबाओं की तरह आपको उपदेश देने लगूं...इस काम के लिए तो पहले से ही बहुत सारे महानु...
बिगुल  में राजकुमार सोनी बता रहे हैं- पाकेटमार-पार्ट-2
साथियों छोटे से ब्रेक के बहाने चला तो गया था लेकिन इस बीच कई साथियों का मजा इस बात के लिए किरकिरा हो गया कि मैं उन्हें जेब काटने... मेरा मतलब जेब कटने से बचने का तरीका नहीं बता पाया। *खैर मैं फिर से चाल...
दर्द-ए-दिल दिल तक ही रखूँ, यह ज़रूरी तो नहीं, सरेआम रों दूँ, पर ऐसी भी मेरी मजबूरी तो नहीं ज़माने का दस्तूर निभाना, है हिदायत वाइज़ की फिर मिलेगी जन्नत पर यह उम्मीद पूरी तो नहीं डरता हूँ बेअदबी की तोह...
ख़ामख़्वाह  में किशोर अजवानी बता रहे हैं- हिंदुस्तान आईपीएल नहीं
काला पैसा, रिश्वत, बेनामी मालिक, डील पर डील, मंत्री की पावर का इस्तेमाल। आईपीएल ने फिर दिखा दिया कि इस देश का सिस्टम कितना सड़ चुका है। लेकिन यारो, उस सुरेश रैना को भी तो देखो जिसने एक कश्मीरी ग़ाज़ियाबादी...
नहीं रहते कभी तन्हा नए रिश्ते बनाते हैं. कोई हमको भुला देता किसी को हम भुलाते हैं अनोखी ज़िन्दगी है ये यहाँ पल-पल नए चेहरे कोई तस्वीर मिट जाती किसी को हम मिटाते हैं वो जिनका नाम लेके हम चले...
सफेदा लगाकर बदल डाला रायगढ़। दिवंगत व्यक्ति के नाम पर तहसीलदार न्यायालय से जारी काम रोको आदेश पर सफेदा लगाकर मृतक के पुत्र के नाम पर आदेश तामिल करा लेने का अजीबो-गरीब मामला सामने आया है। जबकि आदेश तामिल...
नया ज्ञानोदय में प्रकाशित जया जादवानी की कहानी ‘मितान’ पर मेरी असहमति  साहित्य में क्षेत्रीय भाषा के शब्दों का प्रयोग बहुधा होते आया है और इसी के कारण क्षेत्रीय भाषा के शब्दों को गाहे बगाहे हिन्दी नें अपन...
(अभिषेक ,एक कस्बे में शची जैसी आवाज़ सुन पुरानी यादों में खो जाता है.शची नयी नयी कॉलेज में आई थी.शुर में शचे ने उपेक्षा की पर फिर वे करीब आ गए.** पर उनका प्यार अभी परवान चढ़ा भी नहीं था कि एक दिन बताया ...

‘कुछ तो होता होगा जो दिखता नहीं, मगर लौकी के बतिया को रोज़ कुछ बड़ा करता चलता है, नहीं?’ मौसा दन्‍न देना बोलते, बबुनी के बालों में हल्‍के हाथ फिराते हुए, फिर एकदम हंसने लगते. बबुनी चौंककर उनका चेहरा देख..
अलग सा में गगन जी बता रहे हैं- हंसने की कीमत नहीं देनी पड़ती,
कभी-कभी कुछ याद आ जाता है तो बांटने की इच्छा हो जाती है......................... संता सिंह का बेटा बंटी बहुत देर से नाई की दुकान में बैठा था। जब काफी समय हो गया तो नाई ने पुछा, क्यूं बेटा बहुत देर से 
एक कविता पढ़ी थी। स्‍कूल के दिनों में। राष्‍ट्रकवि स्‍व. मैथिली शरण गुप्‍त की। अहा ग्राम्‍य जीवन भी क्‍या है ? क्‍यों न इसे सबका मन चाहे..... तब यह काफी भाता था। तब यह कहा जाता था, भारत देश है कृषि...
अंधड़ !  में पी.सी.गोदियाल बता रहे हैं- राजनीति का गड़बड़ झाला !
विपक्ष के कटौती प्रस्तावों के मामले में मायावती ने केंद्र सरकार को अपना समर्थन देकर कह लो या फिर यों कह लो कि केंद्र द्वारा मायावती का समर्थन लेकर, मौजूदा सरकार ने यह जतला दिया है कि वह कितनी वेवश और लाचा...
हिन्दी ब्लोगिंग के लिये बने संकलकों के हॉटलिस्ट के तीन मुख्य आधार, व्ह्यूज़, पसंद और टिप्पणियों की संख्या हैं। इन्हीं तीनों के बढ़ने से कोई पोस्ट हॉटलिस्ट में ऊपर चढ़ते जाता है। इसका सीधा-सीधा मतलब यह है कि ...
अब आपसे लेते हैं हम विदा
 लेकिन दिलों से नहीं होंगे जुदा 

मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

आज सिर्फ़ अक्षय कात्यानी की मदद हेतु आपस मे चर्चा

http://4.bp.blogspot.com/_p4fwR-VKt70/S9XfoBgwnZI/AAAAAAAACKk/7QM0fMf-rUg/s1600/azad3.jpgमित्रो एक युवा जो जीवन जीने के लिये संघर्ष कर रहा है जी हां मैं अक्षय कात्यानी जिसके इलाज़ हेतु मात्र दो लाख रुपयों की ज़रूरत है विस्तृत जानकारी इन लिंक्स पर प्राप्त की जाए और अविनाश जी की तरह हम मदद कर सकतें है
अविनाश वाचस्पति - कुछ दिनों से देख पढ़ रहा हूं। पर आज इस पोस्‍ट में खाता संख्‍या संबंधी निम्‍न जानकारी मिल गई है।
Name- Sudhir Kumar Katyayani,
Account No.- 09322011002264,
Bank Name- Oriental Bank of Commerce,
Branch- Arera Colony Branch, Bhopal (M.P.)
कल मतलब मंगलवार को ही मैं इसमें एक हजार रुपये जमा कर रहा हूं। एक शुरूआत है। आप भी अगर आर्थिक रूप से सक्षम हैं तो ऐसा ही नेक कदम उठाएं। मैं अतुल पाठक से तो परिचित नहीं हूं परन्‍तु मदद करने के लिए परिचितता आवश्‍यक नहीं है। मुझे यह भी नहीं लगता कि कोई सरकारी मदद मिल सकती है, मिल सकेगी। पर उसकी उम्‍मीद क्‍यों करें हम, हम तो बस शुरू हो जाएं अभी।

जो भी सक्षम हैं और मदद करने का जज्‍बा रखते हैं। हम अपनी बेमर्जी से अपनी जेब तो कटवा सकते हैं। अपना वर्षों से संचित माल-असबाब तो लुटवा सकते हैं। पर ऐसे मौकों पर चुप्‍पी क्‍यों साध लेते हैं ? वैसे निश्चित रूप से मदद पहुंचना आरंभ हो चुकी होगी।

तो हाथ मत बांधिए
कतार बांधिए
और बांधिए बंधन ऐसा
जिस पर मानवता
कर सके गर्व
ऐसा निभायें धर्म
सबसे बड़ा मानवधर्म
इसे अनदेखा मत कीजिए
अपने मन से पूछिए
वो आपकी नेक विचारों की
अवश्‍य तस्‍दीक करेगा।

यह मत सोचिए कि मेरे एक हजार रुपये से क्‍या होगा ? एक हजार भी नहीं चाहिए सिर्फ एक हजार रुपये देने वाले 200 इंसान चाहिएं। नुक्‍कड़ पर अवश्‍य ही 50 इंसान तो मिल सकेंगे। चाहते तो सब होंगे मदद करना। पर 50 ने भी कर दी तो हो गई है शुरूआत। न भी हो, पर मैं क्‍यों रूकूं, मैं तो अपना कर्म करता चलूं। मालूम नहीं दिन कितने हैं, पर दिनों की प्रतीक्षा क्‍यों करें, आज ही इस नेक काम को क्‍यों नहीं करें

लिंक्स

सोमवार, 26 अप्रैल 2010

कनिष्‍क कश्‍यप जी ने ब्‍लॉग प्रहरी को बंद कर दिया है ... ब्‍लॉग 4 वार्ता ... संगीता पुरी


रविवार तीन बजे तक आए पोस्‍टों को लेते हुए मैं संगीता पुरी यह वार्ता कर रही हूं ..  क्‍यूंकि उससके बाद मैं इंटरनेट से दूर किसी और शहर में एक खास कार्यक्रम में सम्मिलित होने चली गयी हूं  .. 26 और 27 अप्रैल को झारखंड बंद होने की वजह से मैं लौट भी नहीं सकती .. आपकी टिप्‍पणियों पर भी दो दिनों बाद ही निगाह जाएगी ..  

आज राजकुमार ग्‍वालानी जी के बस्‍तर यात्रा की 12वीं कडी में दी गयी जानकारी के साथ इस ब्‍लॉग फॉर वार्ता की शुरूआत करते है ..... 

बस्तर यात्रा में जब हम लोग कांकेर के पास स्थित दुधवा बांध से लौट रहे थे तो रास्ते में एक गांव में एक स्थान पर भारी भीड़ देखकर हमने कार रोकी। कार रोककर जब हम लोग वहां गए जहां पर भीड़ लगी थी तो देखा कि वहां एक आदमी भगवान बनाने का काम कर रहा है। हमने उनसे पूछा कि इनको कैसे बनाते हैं तो उन्होंने बताया कि अगर आपके पास कोई भी पुराना बर्तन है तो हम उसे भगवान का रूप दे सकते हैं। हमने उनको बताया कि हम तो रायपुर के हैं हमारे पास ऐसा कोई बर्तन नहीं है, आपने ये जो भगवान सजा रखे हैं, उनमें से कुछ हमें भी पैसे लेकर दे दें, तो उन्होंने इंकार कर दिया और कहा कि आप हमें रायपुर का पता दे दें हम वहां पर जाते रहते हैं आपके घर पर ही आकर भगवान बना देंगे। हमने उन्हें पता तो दे दिया है, अब देखते हैं कि वो कलाकार सज्जन कब आते हैं हमारे घर भगवान बनाने के लिए।


एक नाटक में फांसी के बाद क्‍या होता है ..  जानने के लिए ललित शर्मा जी की इस पोस्‍ट पर नजर डालिए ....
एक अवास्तविक घटना "फ़ांसी के बाद" दरअसल अवास्तविक घटना इसलिए है कि एक तो ऐसा घटित होना वाकई संभव नही है, दूसरे इसलिए भी एक घटना का अवास्त रुप निर्दोष आदमी की जिन्दगी को मौत का जामा पहना देता है। ईश्वर प्रसाद को फ़ांसी की सजा हो जाती है। उस पर आरोप है कि उसने अपनी पत्नी का गला दबा कर हत्या की है। लेकिन निर्धारित समय तक फ़ांसी के फ़ंदे में लटकाने के बाद भी ईश्वर प्रसाद जिंदा बच जाता है। अब यहां एक अनोखी समस्या आ जाती है कि वह जिंदा तो हो जाता है पर उसकी याददास्त चली जाती है। तब दोबारा फ़ांसी पर चढाना भी एक समस्या है क्योंकि कानून के तहत जिस व्यक्ति को फ़ांसी दी जाती है, उसे उसके अपराध के बारे में उसके होशहवास में बताना आवश्यक है कि उसे किस कारण से सजा दी जा रही है, अब इसके बाद जेल में प्रारंभ होती है ईश्वर प्रसाद की याददास्त को वापस लाने की कवायद।


आज एम वर्मा जी एक सुंदर भोजपुरी गीत लेकर आए हैं .....

हिलत नाहीं पेड़वा क डाल बा
गरमी से त जियरा बेहाल बा
कईसे खेतवा से बोझा ढोवाई
कईसे बतावा अब दऊरी दवाई
सूखाय गयल देखा इ ताल बा
हिलत नाहीं पेड़वा क डाल बा
गरमी से त जियरा बेहाल बा
.
महाशक्ति जी की एक आवश्‍यक सूचना पढें ....
आप सबसे निवेदन है कि मेरे ब्‍लाग मे स्थि‍त किसी भी कमेन्‍ट के लिंक को कदापि न खोले यह वायरस हो सकता है और यह आपके कम्‍यूटर को हानि पहुँचा सकता है।


प्रेम नफरत के रूप में सुनील दीपक जी की बढिया प्रस्‍तुति ....
वियतनामः बड़े देश की छाया में रहने वाले छोटे देश, अपने पड़ोसी से डरते हैं, उससे नफ़रत करते हैं और शायद प्रेम भी, लेकिन इस प्रेम को स्वीकार करना उनके लिए आसान नहीं. इतिहास बताता है कि वियतनाम कई बार चीन का हिस्सा बना, पिछले दशकों में भी इन दोनो देशों में युद्ध हो चुके हैं. पहले वियतनाम में चीनी लिपी का प्रयोग होता था पर चीन के प्रभाव से बचने के लिए उन्होंने रोमन लिपि को चुना. फ़िर भी चीनी लिपि आज भी मंदिरो में उनकी प्रार्थनाओं की भाषा है. चूँकि आज वियतनाम में चीनी लिपि लिखना कोई नहीं जानता, इन प्रार्थनाओं को लिखवाने के लिए बुद्ध मंदिरों में विषेश लोग रखे जाते हैं.


आप कौन है .. वो किसी से पूछने की क्‍या जरूरत ......
क्या आप जानना चाहते हैं कि आप कौन हैं? तो किसी से पूछिये मत। कार्य करना शुरू कर दें। आपका कार्य आपको परिभाषित एवं चित्रित कर देगा। - थॉमस जेफर्सन

Do you want to know who you are? Don't ask. Act! Action will delineate and define you. - Thomas Jefferson

मैं यह नहीं कहूँगा कि मैं 1000 बार असफल हुआ, मैं यह कहूँगा कि ऐसे  1000 रास्ते हैं जो आपको असफलता तक पहुँचाते हैं। - थॉमस एडिसन

I will not say I failed 1000 times, I will say that I discovered threre are 1000 ways that can cause failure. - Thomas Edision



डॉ अमर कुमार जी का चिंतन .. अर्श से फर्श तक ......
कुल ज़मा यह कि केतु रुष्ट हो गया, और केतन देसाई दो करोड़ रुपये गिनने से पहले ही पकड़ लिये गये ।  यह हैं, एम.सी.आई. स्वामी, यानि कि हम डाक्टरों, सकल  भारतदेश के डाक्टरों और डाक्टरी के मदरसों के भाग्यविधाता ! अभी हाल ही में तो यह भारतीय डाक्टरों की हस्तरेखा में एक नयी लकीर खींच कर मीडिया में चहक रहे थे कि कोई डाक्टर उपहार लेगा या किसी फ़ार्मा वाले से उपकृत होगा तो उसकी खबर पक्की कर दी जायेगी और उसे इस लाइन से तिड़ी भी किया जा सकेगा  । 
लो कर लो बात, डाक्टरों  को  आदमी  मारने  और  जिलाने  का  लाइसेन्स  जारी  करने  वाली  एम.सी.आई  की  हैसियत हम ऎलोपैथ डाक्टरों के लिये ब्रह्मा से कोई कम थोड़े ही न है ?



विभारानी के शब्‍दों में .. अब बेटियां बोझ नहीं हैं 
छछम्मक्छल्लो को अभी तक याद है, वह उनकी दूसरी बेटी थी, जिसके जनम के समय वह वहां थी. पहली संतान भी बेटी थी. अभी भी कई घरों में दो बेटियां स्वीकार कर ली जाती थीं. वहां भी स्वीकार ली गईं कि साल भर बाद फिर से उनके मां बनने की खबर आई. समझ में आ गया कि इस तीसरी संतान का मकसद क्या है? मगर ऊपरवाले के मकसद को भला कौन पहचान पाया है? पता नहीं क्यों, ऐसेमाता-पिता के प्रति छम्मकछल्लो एक कटुता से भर जाती है और कह बैठती है कि तीसरी संतान भी बेटी ही हो! आखिर ऐसा क्या है जो बेटियां नहीं कर सकतीं. 


कमलेश वर्मा जी ने आज सौंवी रचना पोस्‍ट की है .. उन्‍हें बहुत बधाई 
कैसे हसीं पल देखो ,मिले मेरी जिन्दगी को
उसकी वरगाह में ,हाथ जुड़े बन्दगी को । 
यह वह मुकाम है जो कुछ को नसीब है
बरसों गुजर गये ,उसकी रजा -मन्दगी को । 
बरकत वहीं पर बरसे ,जहाँ मिल के दो दिल हरसे
अब भी पाक -साफ कर लो ,दिल की गंदगी को। 
कुदरत का इक करिश्मा है ,जो मिले हैं हम सब
फुर्सत कहाँ यहाँ जो ,रोज मिले हम जिंदगी को । 
करते हैं ''कमलेश'' सब इक दूजे की वाह-वाह !


डॉ सुभाष रॉय की सुंदर रचना का आनेद लें .... 
यह हाथ किसका है
बार-बार मेरी जेब में उतरता हुआ
बेख़ौफ़,  बेलौस
मुट्ठियाँ बंधते-बंधते
खुली रह जाती हैं
दाँत भिंचना चाहते हैं
पर अपनी ही  जीभ
बीच में फँस जाती है



नदीम जी की रचना...कुछ ख्‍वाब कभी सच नहीं हुआ करते 
मैं आज फिर,
रोज़ की तरह सो कर उठा,
तुम्हें ढूंढा कुछ देर,
बिस्तर पर हाथ मारते हुए,
फिर याद आया,
"कुछ ख़्वाब कभी सच नहीं हुआ करते।'



बालक मुल्‍लीनंद ने क्रिकेट पर निबंध लिखा है  ....
बालक गुल्लीनंद सबसे होशियार और अपडेटेड बालकों में से एक था , सो सबसे पहले उसीने इसकी शुरूआत की । उसने शीर्षक को भलीभांति समझते हुए लिखा । क्रिकेट और ललित का साथ पिछले कुछ समय में बहुत ही प्रगाढ हो गया है । वैसे तो ललित का संबंध शुरूआत में कला के साथ हुआ करता था , जैसे ललित कला , मगर कालांतर में जब क्रिकेट में ही कलाकारी की तमाम गुण व्याप्त हो गए और इसीलिए विभिन्न कलाकार भी इससे जुड गए तो ऐसे में ललित भी क्रिकेट के काफ़ी नजदीक हो गए । इनके आने से क्रिकेट का मतलब ही बदल गया पूरी तरह से । जिस क्रिकेट में सिर्फ़ फ़िक्सिंग नामक व्यापार वाणिज्य का स्कोप दिखाई देता था उस क्रिकेट में सट्टेबाजी का बढता हुआ शेयर बाजार टाईप का उगते हुए सूरज समान संभावनाओं से भरा हुआ क्षेत्र खोल दिया । 


कनिष्‍क कश्‍यप जी ने ब्‍लॉग प्रहरी को बंद कर दिया है .. कहते हैं , मुझे क्‍या पडी है अपना समय और ऊर्जा बर्वाद करने की ...


जैसा मैंने  सोचा था कि  सबसे  ज्यादा  अंक अर्जित  करने वाले  ब्लॉगर  को पुरस्कृत   किया जायेगा  . यह इनाम  अगर  500 रुपये  का हो तो ना  देने में अच्छा लगेगा  ना  लेने  में . रही बात पैसे के अलावा जो कुछ दिया जा सकता है , वह आसानी से " एक डोट कॉम साईट ". चूँकि यह मेरे लिए आसान काम था. यहीं सब सोचकर एक पहल कि थी.  

ऐसे में मुझे  क्या  पड़ी  है , मैं अपनी उर्जा  और समय  सामूहिक  कार्य  में लगाऊं . मेरा  लेखन  से वास्ता  टूट  गया  था  . वापस   यहीं   करेंगे   . "हर रोज कीर्तन" !



तनु शर्मा जी को पढिए ... तुमसे कोई शिकायत नहीं ....
तुमसे कोई शिकायत भी तो नहीं...क्यूंकि ....तुम जानते हो ...जन्म जन्मान्तर से सहेजे महुए की मादकता ....किसी बरसाती नदी की बासी पड़ी मछली का स्वाद ...और मेरी देह से उठने वाली हर गंध .....जब तुम्हारी गंध से मिल जाती है....तब शायद बौर आ जाता है..हाँ कुछ अजीब होता है ना ....बिलकुल वैसा जब आँगन में अमराई पर बौर आता है....तुम्हारे लिए गमकने का मन जोर मारता है...बिना किन्ही सवालों के झंझावत के.....मेरी हाथ की पकाई मछली का झोल ..."आमी माछेर झोल" का स्वाद ..हाँ , जब तुम्हारी आँखों से उसका स्वाद सामने आता है..


और प्रकाश बादल जी की सुंदर गजल कहती है ....
इसी तरह से ये काँटा निकाल देते हैं
हम अपने दर्द को ग़ज़लों में ढाल देते हैं 


हमारी नींदों में अक्सर जो डालती हैं ख़लल
वो ऐसी बातों को दिल से निकाल देते हैं 


हमारे कल की ख़ुदा जाने शक़्ल क्या होगी
हर एक बात को हम कल पे टाल देते हैं 



युगल जी सिखला रहे हैं पोस्टिंग के एक दो नहीं 76 तरीके .....
तो साहब पेशे खिदमत हैं




ब्लॉग पोस्टिंग के 76 तरीके (तरीके तो १०१ थे पर मुझे बस ये ही पसंद आये)
1 किसी मुद्दे के पक्ष – विपक्ष का परीक्षण करने वाली एक पोस्ट लिखें.
2 कुछ सिखाने की पोस्ट लिखें 
3 महत्वपूर्ण लोगों के साथ साक्षात्कार पोस्ट करो
4 पहेली या प्रतियोगिता की पोस्ट आरंभ करें
5 एक मामले का अध्ययन करने वाली पोस्ट लिखें
6 एक लंबी टिप्पणी लिखें.
7 किताबों के शीर्षक से विषय चुने
8 amazon.com पर किसी मुद्दे का अनुसन्धान करें
9 अपने पाठकों की टिप्पणियों के उत्तर देती एक अलग पोस्ट लिखे
10 किसी विषय पर कोई व्यापक सूचि बनाये


अंतर सोहिल जी के चिट्ठे पर कुछ चुटकुले पढिए ....


फत्तू एक दिन देर से घर पहुंचा तो उसके पिता रलदू ने पूछा - कहां था?
फत्तू - दोस्त के घर पर
रलदू ने उसके दस दोस्तों को फोन कर-करके पूछा। पांच ने कहा "हां, मेरे साथ था"। यही होते हैं सच्चे दोस्त।
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फत्तू चौधरी फोन पे बात कर रहा था।
सत्तू  - किससे बात कर रहे हो।
फत्तू - बीवी से
सत्तू - इतने प्यार से
फत्तू - तुम्हारी है
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आप सब जानते हैं कि -
आज
 सी.एम.क्विज़ के पहले राउंड की यह आखिरी क्विज है!
सी.एम.क्विज़ का दूसरा राउंड 
15 अगस्त 2010 से आरम्भ होगा !

इस बार सिर्फ मनोरंजन के उद्देश्य से 
'सी एम क्विज़- 35' में हमने नीचे बॉक्स में जाने-पहचाने 14 चेहरे दिए हैं, जो दो ग्रुप में हैं - A और B ! आप या तो एक ही ग्रुप के सारे चेहरों को पहचानिए या फिर दोनों ग्रुप को मिलाकर 12 चेहरों को पहचानिए ! बहुत ही आसान है ... बस ध्यान से देखिये और जवाब देते चले जाईये !
danger world

laughter world


फिर मिलेंगे अगले सप्‍ताह आप सबों को मेरा राम राम !!

शनिवार, 24 अप्रैल 2010

ब्लागिंग-इतिहास की पाड्कास्ट पहली चिट्ठा चर्चा

हिन्दी ब्लागिंग के इतिहास की पहली पाड्कास्ट चिट्ठाचर्चा में आपका स्वागत है


चर्चाकार : अनिता कुमार मुम्बई के साथ गिरीष बिल्लोरे जबलपुर  से

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

ताऊ की नजर से : श्री पी. एन. सुब्रमनियन

प्रिय ब्लागर मित्रों, मेरी पिछले सप्ताह की पोस्ट मे श्री अरविंद मिश्र ने सबसे उम्दा टिप्पणीकारों को उनकी स्व-हस्ताक्षरित पुस्तक "एक और क्रौंच वध" की प्रति भेजने का ऐलान किया था. उसी के मद्देनजर सुश्री Zeal, सुश्री संगीता पुरी, श्री अजयकुमार झा और सुश्री मुक्ति का पुस्तक भेजने के लिये चयन किया गया है. आप तीनों से निवेदन है कि आप अपना पोस्टल एडरेस drarvind3@gmail.com या taau@taau.in पर भिजवाने की कृपा करें जिससे कि उपरोक्त पुस्तक की प्रति आपको प्रेषित की जा सके.


रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" और ताऊ


ताऊ : अरे रामप्यारे. आज तो घणा बण ठण कै जींस पहणकै..सपीकर पै बैठ्या सै.. यानि टिपटाप हो रया सै...कित जाण की तैयारी सै तेरी?

रामप्यारे : ताऊ मैं मेरे दोस्त की बारात म्ह भोपाल जारया सूं...और उत डीजे पै डांस करुंगा आज तो जमकै..

ताऊ : ठीक सै भाई रामप्यारे, तू के मेरे कहण तैं माणने आला सै? जा नाच्या भाई दोस्त की शादी म्ह डीजे पै.

रामप्यारे : ताऊ मैं भोपाल जारया सूं...तो उडे थारा कोई ब्लागर दोस्त हो तो बतादे...मैं मिलकै ज्ञान लेता आऊंगा.

ताऊ : हां भई रामप्यारे...उडे भोपाल म्ह घणे सारे ब्लागर सैं भाई. पर तू नू करिये कि पी.एन सुब्रमनियन जी तैं जरुर मिलतो आईये. और मिसेज सुब्रमनियन की तबियत का हाल चाल भी बूझता आईये..

रामप्यारे : ताऊ वो मैं बिना कहे ही बूझ ल्युंगा..पर ये सुब्रमनियन जी के बारे म्ह कुछ मन्नै भी तो बतादे....

ताऊ : अरे "प्यारे" इब तू ध्यान लगा कै सुण...मैं तन्नै बताऊं सूं....ये हैं श्री पी.एन.सुब्रमनियन

मल्हार के मालिक श्री पी.एन. सुब्रमनियन


श्री पी.एन.सुब्रमनियन का जन्म २० जनवरी १९४२ में, केरल के एक ग्रामीण ब्राह्मण परिवार में हुआ. स्नातक की पढाई के बाद भारतीय स्टेट बैंक की सेवा में भरती हो गए. वहां कार्यरत रहते हुए बैंकिंग में सी ये आई आई बी की परीक्षा पूरी की.

रामप्यारे : अच्छा ताऊ अब समझ गय ये वो ही बैंक वाले अंकल हैं?

ताऊ : अबे ओ बावलीबूच प्यारे...जब मैं बोलूं तब बीच मे ना बोल्या कर...बस चुपचाप सुनता रहा कर...और हुक्का ठंडा हो जाये तो भरता रहा कर...समझगया ना..? हां तो आगे सुन...

उसके बाद सुब्रमनियन जी शिक्षण केंद्र में प्रशिक्षक, शाखाओं में शाखा प्रबंधक, प्रशासनिक अधिकारी, बिलासपुर - रायपुर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक में, महा प्रबंधक, बुंदेलखंड क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक में अध्यक्ष, रायपुर में क्षेत्रीय प्रबंधक आदि पदों पर कार्य करते भोपाल आ पहुंचे. भोपाल प्रधान कार्यालय में कंप्यूटर एवं संचार विभाग के कर्ता धर्ता बना दिए गए. सन २००२ में ६० वर्ष की आयु होने पर यहीं से सेवा निवृत्त होकर भोपाल में ही बस गये.

सुब्रमनियन जी को बचपन में डाक टिकट इकट्ठे करने का और पत्र मित्र बनाने का शौक भी सर पर हावी रहा. फोटोग्राफी में भी अच्छी दखल रखते हैं. पिछले २०/२५ वर्षों से पुरातत्व की और रुझान बना और इसी के कारण प्राचीन मुद्राओं को स्थल विशेष में ही खोजने और अध्ययन करने में रूचि बनी.

रामप्यारे : वाह ताऊ वाह, ये बहुत बढिया परिचय दिया आपने सुब्रमनियन जी का. अब आप अपनी पसंद की उनकी ब्लाग पोस्ट भी बताओ.

ताऊ : हां ये हुई ना बात रामप्यारे....ले इब सुण ले इनकी ब्लाग पोस्ट जो मन्नै घणी पसंद आई...सबतै पहले तो...
स्त्री सशक्तीकरण – एक पुरानी परंपरा

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नम्बूतिरी ब्राह्मणों के निवास को “मना” और कुछ जगह “इल्लम” कह कर पुकारते है. ये साधारणतया एक बड़े भूभाग पर आलीशान बने होते हैं. इसी के अन्दर सेवकों आदि के निवास की भी व्यवस्था होती थी. नाम्पूतिरी लोग भी उत्तर भारतीय पंडितों की तरह चुटैय्या धारण करते थे लेकिन इनकी चोटी पीछे न होकर माथे के ऊपर कोने में हुआ करती थी. इष्ट देव की आराधना में मन्त्र के अतिरिक्त तंत्र की प्रधानता होती है. पारिवारिक संपत्ति का उत्तराधिकारी केवल ज्येष्ठ पुत्र ही हुआ करता था और वही एक मात्र व्यक्ति विवाह करने का भी अधिकारी होता था. पत्नियों की संख्या चार तक हो सकती थी (Polygamy). परिवार के सभी सदस्य एक साथ “मना” में ही निवास करते थे.

इस व्यवस्था से संपत्ति विघटित न होकर यथावत बनी रहती थी. अब परिवार के जो दूसरे युवा हैं उन्हें इस बात की स्वतंत्रता दी गई थी कि वे चाहें तो बाहर किसी अन्य ज़ाति (क्षत्रिय अथवा शूद्र) की महिलाओं, अधिकतम चार से “सम्बन्ध” बना सकते थे. ऐसे सम्बन्ध अधिकतर अस्थायी ही होते थे. “सम्बन्ध” बनने के लिए पसंदीदा स्त्री को भेंट स्वरुप वस्त्र (केवल एक गमछे से काम चल जाता था) दिए जाने की परम्परा थी. वस्त्र स्वीकार करना “सम्बन्ध” की स्वीकारोक्ति हो जाया करती थी. जिस महिला से “सम्बन्ध” बनता था, उसके घर रहने के लिए रात में जाया करते और सुबह उठते ही वापस अपने घर “मना” आ जाते. रात अंधेरे में सम्बन्धम के लिए जाते समय अपने साथ एक लटकने वाला दीप भी ले जाते, जिसकी बनावट अलग प्रकार की होती थी और इसे “सम्बन्धम विलक्कू” के नाम से जाना जाता था.


"प्यारे" : ये तो बहुत बढिया पोस्ट की जानकारी दी ताऊ आपने....अब अगली पोस्ट के बारे में बताईये.

ताऊ : ले भई प्यारे...इब अगली पोस्ट पढले जिसमे महिलाओं के एक बहुत बडे आयोजन के बारे मे बता रहे हैं और जो शायद समूचे विश्व में अपनी तरह अनूठा और बडा आयोजन है...... विश्व में महिलाओं का विशालतम धार्मिक आयोजन

यह बात हम नहीं कह रहे हैं. गिनीज़ बुक में लिखा है कि संसार में इतना बड़ा महिलाओं द्वारा आयोजित कोई दूसरा धार्मिक अनुष्ठान नहीं है जिसमे लाखों महिलाई जाति, धर्म, ऊँच नीच के भेदभाव को भुलाकर दूर दूर से चलकर थिरुवनंथपुरम के प्राचीन आट्टूकल भगवति (देवी) मंदिर के प्रांगण में बिना किसी बुलावे या निमंत्रण के एकत्रित होती हैं. यहाँ इस मंदिर में प्रति वर्ष फ़रवरी मार्च के महीने में दस दिनों का उत्सव होता है. उत्सव भरणी /कृत्तिका नक्षत्र के दिन प्रारंभ होता है. नौवां दिन विशेष महत्त्व का रहता है जब सभी महिलाएं देवी के लिए नैवेद्य के रूप में वहीँ चूल्हे जलाकर खीर पकाती हैं. इसलिए इस ख़ास अनुष्ठान का नाम है “पोंगाला” जिसका शाब्दिक अर्थ होता है उफनने तक उबालन.


pongala


इस तरह के पोंगाला का प्रचलन तमिलनाडु में भी कई जगह है परन्तु जो बात आट्टूकल में है वह अन्यत्र नहीं. कल्पना कीजिये लाखों चूल्हे और हर चूल्हे पर एक या दो महिलाएं. कहा जाता है कि पिछली बार यह संख्या १५ लाख थी. जहाँ देखो वहां चूल्हा, सड़क के दोनों और, स्थानीय निवासियों के घरों के कम्पौंड, दफ्तरों के बाहर या कहें जहाँ जगह मिली वहीँ. लगभग मंदिर के ५ किलोमीटर की परिधि में यत्र तत्र. परन्तु कतारबद्ध. यह त्यौहार केवल महिलाओं के लिए है और पुरुष इसमें भाग नहीं ले सकते.


"प्यारे" : वाह वाह, मजा आगया इतनी दिलचस्प और उम्दा जानकारी प्राप्त करके...अब और बताईये.

ताऊ : अरे रामप्यारे...और बताईये...और बताईये..लगा राखी सै...जरा देख..हुक्का ठंडा होरया सै..जरा तमाखूं डालकै भरल्या..और सिलगा के देदे मन्नै...इब अगली पोस्ट सै...देवता यहाँ भी मदिरा माँगते हैं

"प्यारे" : ताऊ, यो के बात कही? मन्नै तो मामला किम्मै गडबड दिक्खै सै.....मदिरा यानि दारू यानि अपनी वो ही राज भातिया जी के सथ आली जगाधरी न.१...?

ताऊ : अबे बावलीबूच...प्यारे...तन्नै और किम्मै काम नही सूझता के? अबे यो तेरे उस काम आली दारू कोनी...जरा पूरी पोस्ट बांच ले उसके बाद किम्मै बोलिये....

केरल में कन्नूर या कन्ननोर से मात्र २० किलो मीटर की दूरी पर उत्तर की ओर पहाड़ी की तलहटी में एक गाँव है परस्सनिकडवु. जहाँ वालपट्नम नामक नदी के आकर्षक किनारे पर बना हुआ है एक विशाल मंदिर और जिस देवता के लिए यह समर्पित है वह हैं मुथप्पन. एक ऐसा देव जिसे भूंजी हुई सूखी मछलियों और मदिरा से संतुष्‍ट किया जा सकता है. यही यहाँ का भोग है.

कुछ वर्षों पूर्व तक यहाँ पहुँचने के लिए नदी पर नाव से जाना पड़ता था पर अब पहाड़ियों पर से सड़क बना दी गयी है जिससे आवागमन सुविधाजनक हो गया है.


"प्यारे" : ये तो बहुत जोरदार जानकारी मिली. इब आगे और सुनावो ताऊ.

ताऊ : अरे प्यारे, इब आगे तू मीनाक्षी देवी के बारे मे सुणले..बहुत जोरदार जानकारी से भरपूर पोस्ट सै यो...“अयोनिजा” गर्भ के बाहर जन्मी “मीनाक्षी”

पर्यटन के लिए दक्षिण भारत जाने वाले तमिलनाडु की सांस्कृतिक राजधानी “मदुरै”, वहाँ के सबसे बड़े आकर्षण “मीनाक्षी अम्मान मंदिर” या “मीनाक्षी सुन्दरेश्वरर” के दर्शनार्थ जाते हैं. इस लेख का उद्देश्य मंदिर दर्शन तो नहीं है पर सन्दर्भवश कुछ मोटी मोटी बातों से अवगत कराना चाहूँगा.

यह मंदिर है तो बहुत ही पुराना जिसका उल्लेख ७ वीं सदी के तमिल साहित्य में मिलता है परंतु वर्तमान में दिखने वाला निर्माण लगभग १६३० का है जिसे नायक राजाओं ने प्रारंभ किया था. समझा जाता है कि पुराने मंदिर को मुसलमान आक्रमणकारी “मलिक कफूर” ने सन १३१० में ध्वस्त करवा दिया था. वर्तमान मंदिर ४५ एकड़ में फैला हुआ अपने १२ गोपुरमों (बुर्ज जैसा निर्माण) के साथ शहर के केंद्र में स्थित है. दक्षिण दिशा वाला गोपुर सबसे ऊँचा है जिसकी ऊँचाई १७० फीट है.


"प्यारे" : वाह ताऊ , बहुत लाजवाब पोस्ट है. यानि ज्ञान और जानकारी से भरपूर...इब आगे कुणसी पोस्ट के बारे म्ह बतारे हो?

ताऊ : अरे प्यारे, ले इब तू यो एक प्रेम आलेख पढले...जिसतैं तेरी बुद्धि भी थोडी निर्मल और पवित्र होज्येगी...विश्व का प्राचीनतम उत्कीर्ण प्रेम लेख

उदयगिरी की गुफाएं मेरे लिए महत्वपूर्ण थी. यहाँ इतिहास प्रसिद्ध (दूसरी सदी ईसापूर्व} कलिंगराज खरवेळ का शिलालेख विद्यमान था. मेरे मन में उसे देखने की लालसा थी. सीढियों से होकर पहाडी पर चढ़ना था. परिवार की महिलाओं में ऊपर आकर गुफाओं को देखने की रूचि नहीं थी. लिफ्ट होता तो कोई बात होती. वे सब दूसरी दिशा में चल पड़े. मैं अपने पुत्र, भतीजे और भतीजी को साथ लेकर अपने पूर्व निर्धारित लक्ष्य की ओर निकल पड़ा.

ऊपर जाकर जितने भी दर्शनीय गुफाएं आदि थी, देखा. कलिंगराज खरवेळ का शिलालेख भी दिख गया. फिर बायीं ओर चल पड़े. सामने एक शेर के मुंह के आकर में तराशी गई गुफा दिखी. उसके सामने एक आयताकार मंच भी दिख रहा था. मुझे ऐसा लगा जैसे यह चिरपरिचित जगह है. मस्तिष्क में एक दूसरी गुफा का चित्र साकार हो रहा था. रामगढ पहाडियों की सीताबेंगरा और जोगीमढा गुफाएं जो सरगुजा जिले (छत्तीसगढ़) में हैं. दोनों में समानताएं थीं. अब हम उडीसा से छत्तीसगढ़ की ओर रुख कर रहे हैं.


रामप्यारे : ताऊ सुब्रमनियन जी का ब्लाग तो जानकारी खजाना निकला. इब तो मैं इनकी और भी पोस्ट नियमित पढूंगा...और थारै लिये इब हुक्का भर के ल्याता हूं......फ़िर मन्नै अगले ब्लागर के बारे मे बताणा...

ताऊ : अरे "रामप्यारे" इब आज इतना ही घणा सै...अगले ब्लागर के बारे मे इब अगले सप्ताह बात करेंगे.....और इब तू भी रोटी राबडी और घंठी का कलेवा कर ले....और सुणिये जरा...पहले वो सुब्रमनियन जी को फ़ोन मिला के दे मेरे को...जरा सीधी भिडंत करनी सै....

"रामप्यारे" : ले ताऊ, सुब्रमनियन जी लेण पै बाट देख रे सैं...बात करले...


ताऊ से सीधी भिडंत टैलीफ़ून पै

ताऊ : हैल्लो...सुब्रमनियन जी रामराम....मैं ताऊ रामपुरिया सपीक रया हूं.... आप मन्नै एक बात बतावो कि "ब्लागजगत के बारे में आपका क्या सोचणा हैं?"

पी.एन सुब्रमनियन : हिंदी ब्लागजगत का भविष्य तो उज्जवल ही होगा. हाँ आपस में टांग खिंचाई के लिए इसका प्रयोग चिंता का विषय बनता जा रहा है.

ताऊ : आप कुछ उपाय बतायेंगे?

पी.एन सुब्रमनियन : पर यहां सुनेगा कौन? आपके पान वाले की भाषा में : "कृपया यहां ज्ञान ना बांटे, यहां सभी ज्ञानी हैं."

ताऊ : धन्यवाद सुब्रमनियन जी, आपने हमारे सवालों के सीधे और सहज उत्तर दिये. आपका बहुत बहुत धन्यवाद.

हां तो प्यारे ब्लागर गणों अब अगले सप्ताह फ़िर आपमें से ही किसी एक ब्लागर से हम सीधी भिडंत करेंगे. हमारा यह प्रयास आपको कैसा लगा? अवश्य बतायें. अगले सप्ताह तक के लिये ताऊ और रामप्यारे की तरफ़ से रामराम.

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