आप सबों को संगीता पुरी का नमस्कार , करीब एक सप्ताह में पहली बार देश की मुद्रा रुपया बुधवार को डॉलर के मुकाबले 56 के मनोवैज्ञानिक स्तर से नीचे पहुंच गई। बाजार के जानकारों का कहना है कि माह के आखिर में देनदारियों के भुगतान के लिए आयातकों के में डॉलर की मांग बढ़ने के कारण रुपये पर दबाव देखा जा रहा है। उनके मुताबिक डॉलर के मुकाबले यूरो में कमजोरी और शेयर बाजारों में गिरावट का भी रुपये पर नकारात्मक असर पड़ा। अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता बनी हुई है , सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है , क्योकि लापरवाही से कहीं ऐसा न हो जाए कि हमें 1 डॉलर के लिए 100 रूपए चुकाना पड जाए।अब चलते हैं आज की वार्ता पर ..
स्याह या सफ़ेद...? (http://www.anusheel.in/2012/05/blog-post_30.html ) न सफ़ेद होता है... न स्याह होता है बीच में कई रंग घुले-मिले होते हैं चरित्र में, इंसान झूलता रहता है दो किनारों के मध्य और आकार उभरते जाते हैं चित्र में... मानों, सब परिस्थितियां ही निर्धारित करती हैं, हमारी दुकान पे किसी से कोई प्रमाण पत्र माँगा नहीं जाता...(http://albelakhari.blogspot.in/2012/05/blog-post_30.html ) गड़गड़ गड़गड़ गड़गड़ गड़गड़ धुप्प गड़गड़ गड़गड़ गड़गड़ गड़गड़ धुप्प आओ आओ आओ, आजाओ आजाओ आजाओ हमारी दुकान पर आओ बिना पूछे घुस जाओ नो एंट्री वाला कोई गेट नहीं है देना कोई सर्टीफिकेट नहीतेरे आने के बाद (http://aprnatripathi.blogspot.in/2012/05/blog-post_30.html) *तेरे आने से पहले मेरी नींदें* *ख्वाबों से बेजार तो ना थी* * प्यार के अहसास से दिल* * मरहूम रहा हो ऐसा भी ना था* * मगर फिर भी तेरे आने से* * लगता है सब बदल सा गया* * अब ही से तो हमने किया है* *
आग की आंच...( kaushal-1.blogspot.com/2012/05/blog-post_30.html) यदि पड़ोसी के घर लगी आग नहीं बुझाओगे तो इसमें खुद के घर भी जल जाने से नहीं रोक सकते। इतनी सी बात न तो प्रदेश के मुखिया को समझ आती है और न ही भारतीय जनता पार्टी के जेहन में बैठ रही है। नाम दिल पर जो लिखा उसको मिटाकर देखो (http://ashutoshmishrasagar.blogspot.in/2012/05/blog-post_30.html) एक दिन अपने पराये को भुलाकर देखो एक दिन यूं ही नजर हमसे मिलाकर देखो मेरे सीने में जो दिल है, वो धडकता भी है आह निकलेगी कोई, इसको जलाकर देखो नाम तुमने जो मिटाया,. बिना अभिमन्यु बने चक्रव्यूह नहीं टूटेगा (http://www.nirantarajmer.com/2012/05/blog-post_8885.html) कहीं खो गया हूँ खुद को भूल गया हूँ सब की सोचते सोचते खुद भटक गया हूँ आत्मविश्वास से डिग गया हूँ निराशा के चक्रव्यूह में उलझ गया हूँ इतना अवश्य पता है
पॉश खेल .. (shikhakriti.blogspot.in/2012/05/blog-post_30.html) विशुद्ध साहित्य हमारा कुछ उस एलिट खेल की तरह है जिसमें कुछ सुसज्जित लोग खेलते हैं अपने ही खेमे में बजाते हैं ताली एक दूसरे के लिए ही पीछे चलते हैं लगवाना है आर.ओ. तो ज़रा इधर नज़र मारो (http://saadarblogaste.blogspot.in/2012/05/blog-post_30.html) दोस्तों मुझे भारत के लगभग हर हिस्से से लोग फोन करके पूछते हैं की हम वाटर प्यूरीफायर लगवाना चाहते हैं. कौन सा लगवाएं? वाटर प्यूरीफायर लगाना एक ऐसा धंधा बन चुका है, गंगा चित्र-6 ( गंगा दशहरा ) ( http://devendra-bechainaatma.blogspot.in/2012/05/6.html)हरिश्चंद्र घाट साधुओं की अड़ी केदार घाट पंचगंगा घाट दशाश्वमेध घाट
बढ़ कदम रुकने न पाये (http://anukhyaan.blogspot.in/2012/05/blog-post_30.html) राह काँटों से भरी हो, या उमड़ती सी सरी हो, जीत की चाहत खरी हो, काल सिर नत हो झुकाये। बढ़ कदम रुकने न पाये। पंख अपने आजमाता, .मन-रेगा तन-रेगा -(http://anukhyaan.blogspot.in/2012/05/blog-post_30.html)(1) मन-रेगा रेगा अरे, तन रेगा खा भांग | रक्त चूस खटमल करें, रक्तदान का स्वांग | रक्तदान का स्वांग, उदर-जंघा जन-मध्यम | उटपटांग दो टांग, चढ़े अनुदानी उत्तम | पर हराम की खाय, पाँव हाथी सा फूला |‘‘आम‘‘ लोग ‘‘खास‘‘ कब से हो गये? (http://svatantravichar.blogspot.in/2012/05/blog-post_30.html)जब से पेट्रोल के भाव में 7.50 रू. की बढ़ोतरी पेट्रोलियम कम्पनियों द्वारा की गई है तब से पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ है,
अधूरी कविता...संध्या शर्मा (anamika7577.blogspot.com/2012/05/blog-post_30.html ) *जीवन के केनवास पर आज फिर नए रंग नयी तूलिका के साथ कब से बना रही हूँ एक तस्वीर आड़ी टेडी सीधी रेखाएं क्या बना रही हैं मैं खुद नही समझ सकी क्यों है ये रंगों का बिखराव क्यों है चौखटें (anamika7577.blogspot.com/2012/05/blog-post_30.html ) तुम्हारे घर की चौखटें तो बहुत संकीर्ण थी... चुगली भी करती थी एक दूसरे की... फिर तुम कैसे अपने मन की कर लेते थे...? शायद तुम्हारी चाहते घर की चौखटों से ज्यादा बुलंद थी तब. आज मसरूफ़ियत (sushilbhagasara.blogspot.com/2012/05/blog-post_30.html) आज फिर गोलू पहुँचा अपनी प्यारी दुनिया में खुशबुओं की क्यारी में रंग-बिरंगे फूल खिले थे हरे पेड़ तन कर खड़े थे भँवरे गुंजन कर रहे थे पक्षी खूब चहक रहे थे नाचा बहुत सुंदर मोर
फार्मूला ईजाद करनेवाला निर्देशक (http://anukhyaan.blogspot.in/2012/05/blog-post_30.html) दिबाकर बनर्जी जब अपनी फिल्म ‘खोंसला का घोंसला’ लेकर आये थे, तो इस फिल्म ने बनने में जितना वक्त लिया, उससे कहीं अधिक वक्त व संघर्ष उन्होंने फिल्म को रिलीज कराने के लिए किया."झंडा है जरूरी" (http://vandana-zindagi.blogspot.in/2012/05/blog-post_30.html)ये मत समझ लेना कि वो बुरा होता है पर तरक्की पसंद जो आदमी होता है किसी ना किसी पार्टी से जुडा़ होता है पार्टी से जो जुडा़ हुवा नहीं होता है उसकी पार्टी तो खुद खुदा होता है.श्रापित मोहब्बत हो कोई और उसे मुक्तिद्वार मिल जाये (http://vandana-zindagi.blogspot.in/2012/05/blog-post_30.html) आज भी कुंवारी है मेरी मोहब्बत जानते हो तुम रोज आती हूँ नंगे पाँव परिक्रमा करने उसी बोधिवृक्ष की जहाँ तुमने ज्ञान पाया जहाँ से तुमने आवाज़ दी
आज के लिए बस इतना ही ... मिलते हैं एक ब्रेक के बाद