2002 में एनडीए शासनकाल में नदियों को जोड़ने के प्रोजेक्ट का आइडिया आया था। उस साल भीषण सूखा पड़ने के बाद तत्कालीन पीएम अटल बिहारी बाजपेयी ने इस प्रोजेक्ट के लिए टास्क फोर्स बनाया था। हिस्सों में प्रोजेक्ट को बांटने का सुझाव दिया था टास्क फोर्स ने अपनी रिपोर्ट में। एक में दक्षिण भारत की नदियों का ग्रिड विकसित करने की योजना थी। दूसरे भाग में गंगा, ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों से जलाशय बनाने थे। इस योजना से 16 करोड़ हेक्टेयर पर हो सकती है सिंचाई से खेती , जबकि पुराने ढर्रे पर 14 करोड़ हेक्टेयर इलाका ही होगा सिंचित 2050 तक। 2016 तक देश की प्रमुख नदियों को आपस में जोड़ना था योजना के तहत। 5 लाख करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट की डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) फिलहाल ठंडे बस्ते में है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से कहा कि वह नदियों को आपस में जोड़ने के प्रोजेक्ट को तयशुदा समय में लागू करे। कोर्ट का मानना था कि प्रोजेक्ट में देरी के कारण इसकी लागत में बढ़ोतरी हो गई।बेंच के जस्टिस स्वतंत्र कुमार ने कहा कि परियोजना राष्ट्रीय हित में है और हमें इसका कोई कारण नजर नहीं आता कि कोई राज्य या केंद्र इसका विरोध करे।अब चलते हैं , आज की वार्ता पर ....
पीड़ा में मन मोद मनाए! ये दुनिया ही ऐसी है संवेदनशील हों अगर आप तो कभी सुखी नहीं रह सकते... एक दर्द रिसता रहता है भीतर एक ज्वाला में जलता रहता है मन एक ऐसी पीर जो आप किसी से कह नहीं सकते! अगर प्रवृति जान ली अपनी तो इसी में चतुर्द...प्रयोजन पार करता हूँ लावा भरी नदी प्रतिदिन , देता हूँ अग्नि परीक्षा,विस्वास की निशिदिन , बनाता हूँ बांध रोकने को बाढ़, पीड़ा की , आत्मबल से , आँधियों से बचने का उपक्रम , बनाता हूँ पीठ की दीवार / बोता हूँ फसल...इसे क्या कहेंगे ठगी या व्यापारिक बुद्धि? *गाडी चली जा रही थी और लोग कभी हाथ में पकडे लिफाफ़े को देख रहे थे और कभी एक दूसरे का मुंह। * *बात वर्षों पुरानी है पर आज जब विभिन्न उत्पादों को बेचने के लिए आजमाई जा रही तिकडमों को देखता हूं तो यह घटना ब...साथ जो मिलता उन्हें चलते रहे बहुत मगर मंजिल का साथ ना मिला सुखनसाज़ बहुत बजते रहे पर करारे-सुकून ना मिला तख्तों ताज़ पर बैठे रहे वो पर वादों पर फूलों सा चमन ना मिला मिलती जो उन्हे इक खुशी चाँद सा चाँदनी जो छुपती,पर बादलो ...माफ़ नहीं करना मुझेआई थी तू मेरे आँचल मेंअभागिन मैंतुझे देख भी न सकीआज भी गूंजती हैतेरी मासूम सी आवाज़मेरे कानो मेंवह माँ- माँ की पुकारबस सुना है तुझे
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याद के पल जीवन की रेल पेल में हर संघर्ष को झेलते हर सुख दुःख को सहते कभी मैंने चाही नही इनसे मुक्ति पर कभी बैठे बैठे यूं ही अचानक जब भी याद आई तुम्हारी तब यह मन आज भी भीगने सा लगता है चटकने लगते हैं तन मन में...देखे विहग व्योम में देखे विहग व्योम में उड़ते लहराती रेखा से थे अनुशासित इतने ज़रा न इधर उधर होते प्रथम दिवस का दृश्य हुआसाकार फिर से यह क्रम रोज सुबह रहता होते ही प्रातः बढ़तेकदम खुले आकाश के नीचे यही मंजर देखने के ...जगती आँखों का स्वप्न * *संत* कहते हैं यह जगत रात के स्वप्न की तरह है. मनोराज्य भी एक स्वप्न ही है, सत्य नहीं है. हमें यह जगत उसी दिन असत्य प्रतीत होगा जिस दिन हम अज्ञान के अंधकार से जाग जायेंगे. रात का स्वप्न तो स...चिरनिद्रा -- ललित शर्मा निद्रा का सताया हुआ थका तन-बदन महसूस नहीं कर पाया रात रानी की महक मेंहदी की खुश्बू बौराई हवा की गंध महुए के फ़ूलों की मदमाती गमक दुर भगाती नींद को उनकी आँखों में तैरते हजारों प्रश्नामंत्रण लाजवाब थे लुढक गय...
वक़्त की लहरें लिखा तो था हम दोनों ने अपना नाम साहिल की रेत पर, बहा कर ले गयी वक़्त की लहरें. काश, लिखा होता पत्थर पर कर देता स्थापित घर के एक कोने में और होता नहीं अकेला कम से कम मेरा नाम तुम्हारे जाने पर. कैलाश शर...क्या आपने देखा है कभी रूदालियों को गोधरा-गुजरात के अलावा देश के किसी और हिस्से मे होने वाले अन्याय पर? गोधरा-गोधरा-गोधरा.गुजरात-मोदी-दंगे-अल्पसंख्यक,अन्याय-न्याय.सुनसुन कर कान पक गये.एक ही गोधरा-गुजरात राग आलापता कथित धर्मनिरपेक्ष मीडिया किसी न किसी बहाने गोधरा रेल काण्ड के बाद फैले दंगो के ज़ख्मों पर मरहम नयन हमारे बरसाती हैं! धड़कनों का संगीत सुनाई दे जाए ऐसी नीरव शांति है यहाँ कुछ शब्द हैं, हैं कुछ विचार जन्म ले रही हर पल मन में क्रांति है यहाँ मेरा मन युद्धक्षेत्र बना हुआ है लड़ रही हैं दो परस्पर विरोधी शक्तियां भरने में लगे ह...... नहीं तो गुलामी क़ुबूल हो ! होगा वही, जो वो चाहेंगे स्वयंभू हैं, किसी की न कभी वो बात मानेंगे ! ... चलो, कोई तो है जिसे, तुमने सरताज माना भले चाहे वो छूकर पांव तेरे, सिर तक आया ! ... सुना है ! उसकी नजरें ढूँढती हैं राह चलते ही मुझे देख...