शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

मैं तो भूल चली बाबुल का देस ... ब्लॉग 4 वार्ता... संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार....आज का दिन हमारे लिए बहुत खास है. गुस्ताखियों को कहो ज़रा मेरे शहर के कोने मे ठहर जायें रात को घूंघट तो उठाने दो ज़रा कहीं सुबह की नज़ाकत ना रुसवा हो जाये एक पर्दानशीं का वादा है चन्दा भी आज आधा है लबों पर जो ठिठकी है वो कमसिनी ज्यादा है ऐसे मे क्यों ना गुस्ताखी हो जाये जो सिमटी है शब तेरे आगोश मे उसे जिलावतन किया जाये एक तस्वीर जो उभरी थी ख्यालों मे क्यों ना उसे तस्दीक किया जाये यूँ ही बातों के पैमानों मे एक जाम छलकाया जाये रात की सरगोशी पर चाँदनी को उतारा जाये फिर दीदार तेरा किया जाये कि चाँदनी भी रुसवा हो जाये ये किस हरम से गुज़री हूँ इसी पशोपेश में फँस जाये पर्दानशीनों की महफ़िल में बेपर्दा ना कोई शब जाए. आइये चलते हैं, आज की वार्ता पर हमारी पसंद के खास लिंक के साथ .......



सहनशीलता - सहनशीलता जिसमें नहीं है, वह शीघ्र टूट जाता है. और, जिसने सहनशीलता के कवच को ओढ़ लिया है, जीवन में प्रतिक्षण पड़ती चोटें उसे और मजबूत कर जाती हैं. मैंने सुन... गोवर्धन यादव की कहान - महुआ के वृक्ष - महुआ के वृक्ष ऊंचे-ऊंचे दरख्तों से उतरकर अंधियारा सड़कों-खेतों, खलिहानों में आकर पसरने लगा था। गांव के तीन चार आवारा लौंडे खटिया के दाएं-बाएं...सुधीर चौधरी की ‘छोटी’ गलती ही भारी पड़ गयी - बड़ा खिलाड़ी बनिए वरना… ♦ दीपक शर्मा देश के सबसे बड़े उद्योगपतियों में एक अनिल अंबानी टूजी घोटाले में जेल नहीं गये। दिल्ली में दलाली की सबसे बड़ी दुकान चला... 


जिसके खो जाने का डर तारी है... - मुझे नहीं मालूम कि ख़ास मेरे बॉस ने मुझे रिकोर्डिंग स्टूडियो क्यूँ जाने को कहा था...शाम के कुछ पहले का वक़्त था...स्टूडियो में एक बेहद अच्छे म्यूजिक डायरेक...शायद - फारेस्ट, इवान शिशकिन Forest, Ivan Shishkinहालाँकि खून नहीं बह रहा है -- शायद मैं घायल हूँ, तुम्हारे जीवन की किरणों में से एक के साथ चलते-चलते. जंगल के बीचों...पुस्तकें मौन हैं ! - पुस्तकों ने बोलना बंद कर दिया है और हमने सुनना, हमारा बहरापन खत्म हो जायेगा जिस दिन पुस्तकें अपना मौन-व्रत खोल देंगी ! अभी पुस्तकों के मुँह बंद हैं  ...


कहानी कोफ्ते की !!! - आज सुबह माताश्री ने कल के बचे कोफ्ते के मटीरियल से फिर से कोफ्ते बनाये और हमने दबा-दबा के खाए | कोफ्ते का शेप चिकन नगेट्स की तरह दिखा…हमें लगा की कोफ्ते ..जन्म, मृत्यु और आइस पाइस - जन्म: गिन रहा हूँ आँखें मूँदे एक से सौ तक सब छिप जायँ तो आँखें खुलें, गिनती बन्द हो। मृत्यु: मिल गया आइस पाइस खेल में आखिरी शाह भी चोर ने राहत की साँस ली...खोखले से हम - खोखले से हम नाते रिश्तों मैत्री सम्बन्धों पड़ोसी से बोलचाल सोफे पर चिपके टी वी पर आँख कान गड़ाए अपनों को छोड़, राह चलतों को राम राम जय श्री कृष्ण नमस्कार ...  


कला की एकांत साधिका- सुश्री साधना ढांढ - यों तो मैंने लगभग आठ-नौ वर्षों पहले महाकौशल कला विथिका में सुश्री साधना ढांढ की कृतियों की प्रदर्शनी देख रखी थी, पर उस वक़्त मुझे कतई गुमां न था कि ये कृत.. गाज़ा में सुबह - मृत्युंजय की ताज़ा कविता - गाज़ा में युद्धविराम हो गया है। पिछले कुछ दशकों में वहाँ इस युद्ध और विराम की इतनी (दुर) घटनाएं हुई हैं कि अब न तो युद्ध से वह दहशत पैदा होती है न विराम ...मैत्रेयी पुष्पा के बहाने स्त्री आत्मकथा के पद्धतिशास्त्र की तलाश - आत्मकथा में सब कुछ सत्य नहीं होता बल्कि इसमें कल्पना की भी भूमिका होती है। आत्मकथा या साहित्य में लेखक का 'मैं' बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।....
ये बात तो सही है... - "आपने सिगरेट पीना छोड़ा नहीं न अब तक? ये अच्छी चीज नहीं है, आपसे कितनी बार तो कह चुका हूँ।" कश्यप बोला। "अरे यार, दिमाग खराब मत कर। है तो यहीं हापुड़ का .शादी-ब्याह की मौज-मस्ती में! - बचपन में जब कभी किसी की शादी-ब्याह का न्यौता मिलता था तो मन खुशी के मारे उछल पड़ता, लगता जैसे कोई शाही भोज का न्यौता दे गया हो। तब आज की तरह रंग-बिरंगे ....बेटी संज्ञा, बहू सर्वनाम - * *आमतौर पर होता यह है कि एक स्त्री अपने बेटे के विवाहेतर संबंध को जस्टीफ़ाई ही करती है या फिर उस संबंध का दोष भी अपनी बहू के मत्थे मढ़ देती है- पहले तो मे... 


क़ब्रों में बंद आवाज़े - क़ब्रों में बंद आवाज़े यदि बोल सकती तो पूछती उनसे क्या वाकई मिलता है दिली सकून यहाँ भीतर बिना किसी आहट के एहसास में जीना और खुद से ही घंटों बाते करना... फिर से पढ़ी है एक दुआ - उससे मैं कई सालों बाद मिली। हमने अपनी ज़िन्दगी के सबसे मुश्किल लम्हे गुज़ारे हैं एक साथ। जिन दोस्तों के साथ कॉफी, मुस्कुराहटों और ऐश के दिनों का साथ रहा हो... नाराज़ आँखे - * * *नाराज़ आँखे बोलती रही रातभर * *पर आंच न आया तुम पर -* *रहे बेखबर !* * * *सूखे पत्ते सी फडफडाती रही यूं ही * *और गीली आँखों ने चाँद -* *सुखाया रातभर !* ...

हमारी पसंद का एक गीत

आज के लिए बस इतना ही नमस्कार ...........

गुरुवार, 29 नवंबर 2012

सावधानी हटी, दुर्घटना घटी नयनों का क्या भरोसा... ब्लॉग 4 वार्ता... संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार....  देह के अपने इस प्रांगण में कितनी कीं अठखेली पिया रे मधुघट भर भर के छलकाये औ रतनार हुई अखियाँ रे । खन खन चूडी रही बाजती छम छम छम छम पायलिया रे हाथों मेहेंदी पांव महावर काजल से काली अंखियां रे वसन रेशमी, रेशम तन पर केश पाश में बांध हिया रे । कितने सौरभ सरस लुटाये तब भी खिली रही बगिया रे । पर अब गात शिथिल हुई जावत मधुघट रीते जात पिया रे । पायल फूल कंगन नही भावत ना मेहेंदी ना काजलिया रे । पूजा गृह में नन्हे कान्हा मन में बस सुमिरन बंसिया रे । तुलसी का एक छोटा बिरवा एहि अब रहत मोर बगिया रे सेवा पहले की याद करि के रोष छोड प्रिय करो दया रे । दिन तो डूब रहा जीवन का सांझ ढले, फिर रात पिया रे नैन लगे उस पार ।. लीजिये प्रस्तुत हैं आज की वार्ता ........
बंठाधार ... - उन्हें चिट्ठी लिखी, और खुद ही डर के फाड़ डाली मुहब्बत में 'उदय', ये दौर भी... देखा है हमने ? ... आज, बेहद हंसी मौक़ा है 'उदय', ............... दुकां ... दो पैसे की धूप, चार आने की बारिश - *(*मुंबई के पॉश इलाके वर्सोवा में समंदर किनारे बनी एक इमारत की छठी मंज़िल पर हूं। दरवाज़े की घंटी बजाने पर रिस्पॉन्स नहीं मिलता, घंटी ख़राब है या शायद... नयनों का क्या भरोसा, कब नूर छोड़ देंगे। - *तनिक तुम अगर अपना गुरुर छोड़ देंगे, हम ये गंवारू समझ और शऊर छोड़ देंगे। सिर्फ तुमको नापसंद,बल्कि जहां ही सारा, इक इशारे पे तुम्हारे हम, हुजूर ... 

मन की कोमल पंखुड़ी पर ....फिर बूँद बूँद ओस.....!! - सुषुप्ति छाई ....गहरी थी निद्रा .... शीतस्वाप जैसा .. .. ....सीत निद्रा में था श्लथ मन ........!! न स्वप्न कोई .....न कर्म कोई ...न पारितोष ...... अचल ...  आज याद आया - आज याद आया वह किस्सा पुराना जो ले गया उस मैदान में जहां बिताई कई शामें गिल्ली डंडा खेलने में कभी मां ने समझाया कभी डाटा धमकाया पर कारण नहीं बताय... ये कैसा चक्रव्यूह - पिछले कुछ महीनो में कई फ़िल्में आयीं और उन्होंने काफी दर्शकों को थियेटर की तरफ आकर्षित किया। बर्फी, इंग्लिश-विन्ग्लिश, OMG , जब तक है जान आदि। पर इन सबके...

मैनपुरी की तारकशी कला - *मैनपुरी की तारकशी कला * मैनपुरी का देवपुरा मोहल्ला…..तंग गलियों में हथौडी की चोट की गूंजती आवाज़…..को पकड़ते हुए जब चलना शुरू कर देंगे तो एक सूने से लकड़ी... पोखरा की यात्रा-3 - भाग-1 भाग-2 से आगे..... अन्नपूर्णा रेंज की धवल पर्वत श्रृखंलाएँ ही नहीं, झीलों, झरनों और गुफाओं के मामले में भी प्रकृति ने पोखरा को दोनो हाथों से सुंदरता... घर के कुछ काम तो ऑफिस में करने दीजिये --- - बहुत समय से हास्य काविता लिखने का समय और विषय नहीं मिल रहा था. हालाँकि दीवाली पर उपहारों के आदान प्रदान पर लिखने का बड़ा मूड था. इस बार अवसर मिल ही गया. आ... 

 "अद्रश्य डोर " - उसके और मेरे बींच वो क्या है जो हम दोनों को जोडती है ... एक अद्रश्य डोर है जो मजबूती से हमे जकड़े हुए है .... वो इसे प्यार नहीं कहता --- पर यह ... चुहिया - ● चुहिया ● सामने वाली दीवार की जड़ में बने छोटे उबड़-खाबड़ से गोल छेद को निहारे जाना जैसे मेरी रोज़ाना की आदत बन गयी थी | जब भी दिल उदास या खिन्न होत... थानेदार बदलता है - *थानेदार बदलता है* श्यामनारायण मिश्र कितना ही सम्हलें लेकिन हर क़दम फिसलता है जाने क्यों हर बार हमें ही मौसम छलता है। खेतों खलिहानों में मंडी की दहश... 

वक़्त - *ऐ राही !* *तुम उसे जानते हो * *वो तुन्हें जानता भी नहीं* *तुम संग उसके चलते हो * *वो ठहरता भी नहीं * *तुम पथ पर ठोकर खाते हो* *वो गिरता ...  आँसू को शबनम लिखते हैं - जिसकी खातिर हम लिखते हैं वे कहते कि गम लिखते हैं आस पास का हाल देखकर आँखें होतीं नम, लिखते हैं उदर की ज्वाला शांत हुई तो आँसू को शबनम लिखते हैं फूट गए गलत... बावली नदी - *नदी हूँ मैं** **नदिया के जैसी ही ** **चाहत मेरी है...** **समंदर! तू कितना खारा है** **फिर भी मुझे जान से प्यारा है....* *इतराती,इठलाती * *मेरी हर मस्ती ... 

तड़प,,, - *तड़प* जिन्दगी आज कैसी बदहवास सी दिखती है, तन्हाई में भी तू ही तू आस पास दिखती है! दरिया में रह कर भी मै प्यासा रह गया, मेरी निगाहों में सदियों क...  ये सुंदरियां.. अभिव्यक्ति की सुंदरियां भावों के कालजयी मंच पर हंसती, मुस्कुराती,गाती ख़ुशी से थिरक...विदा होती हूँ मैं ... - "रात की तन्हाई में नदी में डूबती कश्ती देखी कभी तुमने ? मेरी आँखों में जलते चरागों में डूबती है रात खाली हाथ ख्वाब है कोई नहीं अब उस हकीकत का जो लोक... 

नरेन्द्र मोदी : सावधानी हटी, दुर्घटना घटी ... - *आपसे* वादा था कि गुजरात चुनाव के बारे में आप सबको अपडेट दूंगा, तो चलिए आज गुजरात विधानसभा चुनाव की ही कुछ बातें कर ली जाए। दो दिन पहले ही दिल्ली से अहमदा...तालाब परिशिष्‍ट - वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी डा. के.के. चक्रवर्ती जी के साथ दसेक साल पहले रायपुर से कोरबा जाने का अवसर बना। रास्ते में तालाबों पर चर्चा होने लगी। अनुपम मिश्र ... निर्मल रेत की चादर पर - किताबें बड़ी दिल फरेब चीज़ होती हैं। मैं जब भी किसी किताब को अपने घर ले आता हूँ तब लगता है कि लेखक की आत्मा का कोई टुकड़ा उठा लाया हूँ। ...  

  

अब इजाज़त दीजिये नमस्कार......

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शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

पांखुरी पांखुरी बोल रही है...मोहब्बत जीत जाएगी...ब्लॉग 4 वार्ता... संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार....एक लम्बे ब्रेक के बाद हम फिर से लाये हैं कुछ खास चुनिन्दा लिंक्स... आशा करते हैं हमारी पसंद आपकी भी पसंद होगी. लीजिये प्रस्तुत हैं आज की वार्ता ........

http://www.shaunkillenphotography.com/wp-content/uploads/2010/10/mull-sunrise-2-900x600-srgb.jpg

करिश्माई ... - सौदागिरी का हुनर, हम सीख के भी क्या लेते 'उदय' क्योंकि - ईमान का सौदा हमसे मुमकिन नहीं होता ? ... कहीं मातम, तो कहीं जश्न के मंजर हैं उफ़ ! मौत ...आंसू तो दिल की जुबान हैं - *वैज्ञानिकों के अनुसार आंसूओं में इतनी अधिक कीटाणुनाशक क्षमता होती है कि इससे छह हजार गुना ज्यादा जल में भी इसका प्रभाव बना रहता है। एक चम्मच आंसू, ...सुख-दुख से परे - एकमात्र सत्य हो तुम ही तुम्हारे अतिरिक्त नहीं है अस्तित्व किसी और का सृजन और संहार तुम्ही से है फिर भी कोई जानना नहीं चाहता तुम्हारे बारे में ! कोई तुम्...

 प्यार न भूले,,, - *प्यार न भूलें,* हम भूलें तो नफरत को, मगर प्यार न भूलें, निरादर को भुला दें , मगर सत्कार न भूलें! ये जीवन की हकीकत है,कैसे ..प्रेम की सीढ़ी मन चढ़ता है - प्रेम की सीढ़ी मन चढ़ता है रेशमी ख्वाब बुनने हैं, रोशनी के गीत गुनने हैं चांदनी चादर बिछा दो, फूल कुछ खास चुनने हैं पांखुरी पांखुरी बोल रही है ... मोहब्बत जीत जाएगी.....!!! - मोहब्बत जीत जाएगी अगर तुम मान जाओ तो मेरे दिल में तुम ही तुम हो ये आखिर जान जाओ तो ...!!! *मेरे दिलबर कसम तुमको कभी ना दूर जाना तुम मेरी चाहत बुल... 

ओ रे कसाब ! - * * *गर किया होता तूने * *एक ठों काम नायाब,* *फिर चुकाना क्यों पड़ता * *इसतरह तुझे * *अपने कर्मों का हिसाब !* *ओ रे कसाब** !!* *नरसंहार का * *एक अकेला * *... देश अभी शर्मिंदा है, अफजल गुरु जिंदा है ! - आज बात तो करने आया था महाराष्ट्र सरकार के उस शर्मनाक फैसले की, जिससे उसने देश के एक बड़े तपके के घावों पर नमक छिड़कने का काम किया। यानि शिवसेना सुप्रीमों ...कसाब गया, असली गुनाहगार बाकी - भारत के खिलाफ युद्ध छेडऩे के दोषी पाए गए मुंबई हमले के एकमात्र जीवित पकड़े गए आतंकी अजमल कसाब को आखिरकार बुधवार की सुबह फांसी दे दी गई। पुणे के यरवदा ...

मी बाल ठाकरे बोलतो - बाला साहेब ठाकरे को उनके जाने के बाद भी लोग अलग अलग कारणो से याद कर रहे हैं। विरोधी उनकी शव यात्रा में उमड़ी भीड़ का उचित संबंध नफ़रत की राजनीती से जोड़ ...डीपीआईपी की महिलाओं ने बनाया समुदाय आधारित बीमा संगठन विश्व बैंक दल द्वारा अभिनव प्रयास की सराहना मध्यप्रदेश के भ्रमण पर आये विश्व बैंक दल ने आज पन्ना, रीवा, सागर एवं नरसिंहपुर जिले का भ्रमण कर स्व-सहायता समूहों एवं ग्राम उत्थान समितियों में शामिल महिलाओं से उनके द्वारा प्रारम्भ की गई आजीविका गतिविधियों से उनकी आमदनी में हो रही वृद्धि के संबंध में जानकारी प्राप्त की। ....सुख-दुख से परे एकमात्र सत्य हो तुम ही तुम्हारे अतिरिक्त नहीं है अस्तित्व किसी और का सृजन और संहार तुम्ही से है फिर भी कोई जानना नहीं चाहता तुम्हारे बारे में ! कोई तुम्हें याद नहीं करता आराधना नहीं करता कोई भी तुम्हारी कितने उपेक्षित-से हो गए हो तुम पहले तो ऐसा नहीं था !! भले ही तुम सुख-दुख से परे हो किंतु, मैं तुम्हारा दुख समझ सकता हूं ऐ ब्रह्म !!

चाँद तारे तोड़ लूं तू ज़रा करीब आ तो पुछ लूं कि उनका सूरज दूर क्यों है ? चिराग़ सिर्फ बंद दीवारो के बीच सकून तौलते है आ ज़रा करीब तो चाँद तारे तोड़ लूं उन्हें भी मय्यसर हो उजाले फेर जरा हाथ तो वो नज़ारे जोड़ दूं !!  ....गुमशुदा - तेरी यादों की भीड़ में ...मैं गुमशुदा बहुत हो चुका अब तुम्हें आना ही होगा कि मैं भी थक चुका हूँ इस कोलाहल से . चले आओ यादों से निकलकर मेरे ऐन सामने ...जीवन को मैं फुसला रही!!! - *तुम्हारी स्मृतियाँ निशा के संग दबे पाँव आ रही*** *ना जाने क्यूँ हृदय पीड़ा**? अभ्र बन,नैनो मे मेरा छा रही।* * * *सो गए इस गहन तम मे**,जग के सभी सहयात्री..

चचा छक्कन और चोर पार्टी की सदारत - सुबह की सैर के वक्त चचा छक्कन दिखाई दे गए, दुआ सलाम के साथ हाल-चाल खैरियत का आदान-प्रदान हुआ। "क्या बताएं मियाँ महंगाई ने हालत ख़राब कर दी, जीना मुहाल हो ... एक व्यंग्य : ...छपाना एक पुस्तक का..."(भाग-1) - प्रिय मित्रो ! बहुत दिन बाद इस ब्लाग पर लौटा हूं. सेवा में एक व्यंग्य रचना "...छपाना एक पुस्तक का..." (भाग-1) लगा रहा हूँ शायद पसन्द आए.... ......*छपाना ...कभी कभी यूँ भी .... - देश में आजकल माहौल बेहद राजनीतिक हो चला है. समाचार देख, सुनकर दिमाग का दही हो जाता है.ऐसे में इसे ज़रा हल्का करने के लिए कुछ बातें मन की हो जाएँ. हैं ए... 

 

Department : Cartoon of the Day

 

कार्टून :- कसाब जी के मानवाधि‍कारों का उल्‍लंघन

 

अब इजाज़त दीजिये नमस्कार......

शनिवार, 17 नवंबर 2012

नमक इश्क़ का , एक पल कुन्दन कर देना ...ब्लॉग 4 वार्ता ...संगीता स्वरूप

आज की वार्ता में संगीता स्वरूप  का नमस्कार ----

औरत की आज़ादी के मायने from उसने कहा था... by Madhavi Sharma Guleri

आज़ादी, स्वतंत्रता, फ्रीडम... कानों में इन शब्दों के पड़ते ही एक सुखद, प्यारा-सा अहसास मन को हर्षाने लगता है। ये शब्द उस अनुभूति को परिलक्षित करते हैं जो संसार के हर इंसान को प्यारी है। क्या है यह आज़ादी, क्यों है यह इतनी प्रिय हर किसी को? और आज़ादी में भी अगर हम ख़ासकर औरतों की आज़ादी की बात करें तो क्या इसके मायने बदल जाते हैं?>>>आगे


कैसा होमोसेपियंस? from कुछ मेरी कलम से kuch meri kalam se ** by रंजना [रंजू भाटिया]


अभिषेक पाटनी की लिखी यह पंक्तियाँ उनके परिचय के साथ जब पढ़ी थी तो ही वह विशेष लगी थी और जब उनका संग्रह कैसा होमोसेपियंस पढ़ा तो उत्सुक हुई यह जानने के लिए कि आखिर इसका नाम इस तरह का क्यों रखा गया ? हिंदी कविता का संग्रह और नाम वैज्ञानिक ?जो विज्ञान में रूचि रखते हैं उनके लिए यह नाम नया नहीं हो सकता है पर हिंदी कविता संग्रह के लिए यह नाम जरुर कुछ अनोखा लगता है>>>>आगे

इसका होना ही प्रेम है !!!  from SADA by सदा

कुछ शब्‍दों का भार आज
कविता पर है
वो थकी है मेरे मन के बोझ भरे शब्‍दों से
पर समझती ह‍ै मेरे मन को
तभी परत - दर - परत
खुलती जा रही है तह लग उसकी सारी हदें
उतरी है कागज़ पर बनकर>>>>>>>>>>>>>
आगे


शिक्षा - क्या और क्यों ?    from न दैन्यं न पलायनम् by noreply@blogger.com (प्रवीण पाण्डेय)


शिक्षा का नाम सुनते ही उससे संबद्ध न जाने कितने आकार आँखों के सामने घुमड़ने लगते हैं। कुछ को तो लगता होगा कि बिना शिक्षा सब निरर्थक है, कुछ को लगता होगा कि बिना लिखे पढ़े भी जीवन जिया जा सकता है।आगे


क़तारों से क़तरे उलझते रहे  from ठाले बैठे by NAVIN C. CHATURVEDI

हो पूरब की या पश्चिमी रौशनी

अँधेरों से लड़ती रही रौशनी

क़तारों से क़तरे उलझते रहे

ज़मानों को मिलती रही रौशनी>>>>>>आगे


" के.वाई.सी. ......."  from "बस यूँ ही " .......अमित by Amit Srivastava


आजकल एक फैशन आम हो चला है ," के.वाई.सी. " का ,अर्थात 'know your customer' | कभी बैंक से नोटिस  आती है और कभी गैस कंपनी से कि ,कृपया अपना के.वाई.सी. करा लें नहीं तो आपकी सेवायें बंद कर दी जायंगी | दसियों साल से अधिक से बैंक में , गैस कंपनी में निरंतरता बनी हुई है फिर भी अपनी शिनाख्त वहां कराना आवश्यक माना जा रहा है >>>>आगे


सरहद और नारी मन  from nayee udaan by उपासना सियाग

सरहद पर जब भी
युद्ध का बिगुल बजता है
मेरे हाथ प्रार्थना के लिए
जुड़ जाते हैं
दुआ के लिए भी उठ जाते हैं>>>>
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अपने पूर्वजों जैसी हरकत करना भी एक कला है ---  from अंतर्मंथन by डॉ टी एस दराल

आपने बंदरों को कूदते फांदते अवश्य देखा होगा . कैसे एक मकान की छत से दूसरे मकान की छत पर या एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर कूद फांद करते रहते हैं . इन्हें देखकर कई बार लगता है -- काश हम भी ऐसा कर पाते. हालाँकि कहते हैं , हमारे पूर्वज भी तो बन्दर ही थे. लेकिन फिर मानव ने विकास की पथ पर अग्रसर होते हुए अपने लिए सभी सुख साधन जुटा लिए.>>>>>आगे

विक्रम और वेताल 6  from ज़रूरत by Ramakant Singh

राजन
आप ही परमपिता की संतान हो?
हो गई इति?
पूरी कर ली
मन की मुराद?
क्या मिल गया तुम्हें
वातावरण को दूषित करके?>>>>>
आगे


नमक इश्क़ का  from Madhushaalaa by Madhuresh

इक बूँद इश्क़िया डाल कोई तू,
मेरे सातों समंदर जाएं रंग !!'
... कितना गहरा होता होगा इश्क का रंग, कि एक ही बूँद काफी होता है सातों समंदर रंगने के लिए !
आजकल का modern इश्क़ जाने इन एहसासों से परे क्यों लगता है ...>>>>>
आगे

चली बिहारन थोड़ी और बिहारी बनने!  from मैं घुमन्तू by Anu Singh Choudhary

मैं दिल्ली में रहनेवाले बिहारियों के उस तबके में शामिल नहीं जो साल में सिर्फ दो ही बार घर जाता है – छठ पर और होली में। मैं उन लोगों में से भी नहीं जो अपने परिजन, कुल-बिरादर, लोग-समाज, दोस्त-यार, अड़ोसी-पड़ोसियों से साल में दो-एक बार ही मिल पाते हैं। मैं उन लोगों में से भी नहीं जो छह महीने खटकर घर जाएंगे तभी जेब में इतना रुपया आएगा कि जिससे परिवार के छठव्रतियों के लिए सूती धोतियां, सूप, अर्घ्य देने के लिए केतारी, नारियल, नींबू और फल-फूल खरीदा जा सके।>>>>>आगे

तेरी धधकती आँखों का स्पर्श  from swati by swati

तेरी धधकती आँखों का स्पर्श
              इक गले की हँसली से ठीक नीचे का गड्ढा झुलसता है
              फिसलती है इक सोच तेरे कंठ मेंकुछ सांसें अटक जाती हैं, मेरी भी>>>>>
आगे

उठते-उठते उठता है तूफ़ान कोई   from ग़ज़लगंगा.dg by devendra gautam

हैवानों की बस्ती में इंसान कोई.
भूले भटके आ पहुंचा नादान कोई.
कहां गए वो कव्वे जो बतलाते थे
घर में आनेवाला है मेहमान कोई.>>>>>
आगे

रस्म बन कर रह गयी ..... from उन्नयन (UNNAYANA) by udaya veer singh

रस्म   बन    कर   रह  गयी  है
रस्म    अदायिगी   कर  रहे  हैं -
जल  रहा  हर  शख्स    अन्दर ,
दीये   ही   बाहर  जल   रहे  हैं->>>>आगे


इक पल कुंदन कर देना  from वाग्वैभव by vandana

तम हरने को एक दीप

तुम मेरे घर भी लाना

मृदुल ज्योति मंजु मनोहर

उर धीरे से धर जाना>>>>>आगे

आस्था का महापर्व - छठ   from मधुर गुंजन by ऋता शेखर मधु

कार्तिक महीना त्योहारों का महीना हे| करवा चौथ तथा पंचदिवसीय त्योहार दीपावली मनाने के बाद अब आ रहा हे आस्था का चारदिवसीय महापर्व- छठ पर्व| दीपावली के चौथे दिन से इस पर्व की शुरुआत हो जाती है|>>>>आगे

तेरी सासों में क़ैद, मेरे लम्हे  from जुदा जुदा सा, अंदाज़-ए-बयां by शबनम खान

वो लम्हे

तेरी सांसों में क़ैद

जो मेरे थे

सिर्फ मेरे,

जिनमें नहीं थी

मसरूफियत ज़माने की

रोज़ी-रोटी कमाने की>>>>>>>आगे


और अंत में ----
कार्टून:-ये तस्‍वीर है कि‍ बदलती क्‍यों नही



आज की वार्ता बस इतनी ही .... फिर मिलते हैं ...नमस्कार

मंगलवार, 13 नवंबर 2012

मंगलमय हो दीपो का त्यौहार...ब्लॉग 4 वार्ता...संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार....असतो माऽ सद्गमय , तमसो माऽ ज्योतिर्गमय।....अंधरे पर उजाले की जीत का प्रतीक है ये दीपोत्सव अर्थात  दीपावली का प्रकाश पर्व .दीवाली सभी के लिए आती है बिना किसी भेद-भाव के, रोजी-मजूरी करने वाला हो या अरबपति-खरबपति सभी लक्ष्मी जी को ध्याते हैं। इस कमरतोड़ महंगाई के दौर में सब अपनी-अपनी क्षमता के हिसाब से दीवाली मनाते हैं, फर्क इतना है कि किसी के घर में हजार दीयों की रौशनी होती है तो कोई मन का एक दीप ही जलाता है. किसी की दीवाली मनती है तो किसी का दिवाला निकलता है। खैर जैसे भी हो इस महंगाई के दौर में मन का दीप जलाएं, अंतर्मन जग-मग हो ऐसी मने दीवाली .... आप  सभी को पूरे वार्ता परिवार की ओर से दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें.......


जगमग-जगमग ... - सच ! आज, तेरे होने बस से जगमग-जगमग हो रहा है ये जहां कल जब तुम नहीं थे ... तब, सितारों से भरा ये आसमां, भी ... मायूस हमको लग रहा था !!..."अनदेखे अपनों" को ज्योति पर्व की दिल से बधाई। - इस दीपोत्सव के पावन पर्व पर मेरी ओर से आप सब को सपरिवार हार्दिक शुभ कामनाएं। आने वाला समय हम सब के लिए मंगलमय हो, सभी सुखी, स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें, प्रभू... दीपों का यह पर्व,,, - *.दीपों का यह पर्व.* * * दीपक करने आ गए,धरती पर उजियार आलोकित संसार है, भाग रहा अंधियार. उजलापन यह कह रहा,मन में भर आलोक खुशियाँ बिखरेगी सतत,जगमग होगा लो... 


हर रात दिवाली भारत में.. - हर दिन होगी होली और हर रात दिवाली भारत में हर घर में घंटे गूंजेंगे , हर मंदिर रौशन भारत में ! स्वस्तिक से चिन्हित होकर, ॐ ॐ अब गूंजेगा घंटो की टंकारों से , ...एक ख्याल और सभी ब्लोगर मित्रों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये ! - सर्वप्रथम दीपावली की पूर्व संध्या पर सभी ब्लोगर मित्रों और पाठक मित्रो को हार्दिक शुभकामनाये और आपके समस्त पारिवारिक जनो को भी मंगलमय कामनाएं इस पावन पर्व ... शुभ कामनाएं (दीपावली ) - चाँद ने मुंह छिपाया आसमा की गोद में तारे भी फीके लगे तेरी रौशनी के सामने आज स्नेह से भरपूर अद्भुद चमक लिए तेरी चमक के आगे सभी फीके लगे | रात अमावस की ... 

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दीप बन कर देखो .... / हाइकु - मन का दीप रोशन कर देखो खुशी ही खुशी माटी का दिया एक रात की उम्र ज्योति से भरा । आम आदमी लगा रहा हिसाब कैसे... दीपावली - आप सभी और घरवालों को मंगल हो दिवाली। कोई अमंगल पास न आये चहुँदिश हो खुशहाली।। रिश्तों में सद्भाव हो टूटे अहंकार की थाली। हँसते-हँसते दिन कट जाएँ महके डाली...हर आँगन में दीप - चकाचौंध गर ना हुआ, किसको है परवाह। दीपक इक घर घर जले, यही सुमन की चाह।। रात अमावस की भले, सुमन तिमिर हो दूर। दीप जले इक देहरी, अन्धेरा मजबूर।। हाथ पटाखे है...


काश! प्रेम की आकृति होती काश! प्रेम की आकृति होती एक वायुमंड्ल होता उसका और उसमें तैरते कुछ नीले अन्तर्देशीय पत्र कुछ पोस्टकार्ड होते जिन पर कुछ ना लिखा होता और तुमने हर हर्फ़ पढ लिया होता सिसकने की जहाँ मनाही होती अश्कों की खेती खूब लहलहाती ....मिलकर मनाएं चलो दिवालीमिलकर मनाएं चलो दिवाली रह जाए न देखो ,कोई कोना खाली घर –घर दीपों की झड़ी लगादें मिलकर मनाएं चलो दिवाली…… नव ज्योति के झिलमिल पंखो से आओ हटा दें हर घर से अँधेरा करें जगमग आस किरणों को लाएं फिर एक नया सवेरा मिलकर मनाएं चलो दिवाली… फसलों, पशुओं और दीपों के साथ उत्साह का पर्व दीपावलीभारतीय सनातन परम्परा के अनुसार कार्तिक महीने में दीपों के उत्सव का त्यौहार दीपावली संपूर्ण भारत में मनाई जाती है. पत्र—पत्रिकायें, शुभकामना संदेश दीप और लक्ष्मी के तत्सम तद्भव शब्दों के लच्छेदार वाक्यांशों से भर जाते है...

 

अभी बहुत दूर है वो दीपावली जब तक इन घरों में उजाला नहीं होता क्या मतलब है मेरे घर में हो रही जगमग का मैं मान लेता यह बात कि सबका नसीब होता है उसके साथ यदि हमने ईमानदारी से इन्हें मौका दिया होता प्रकृति से आयी निर्बाध रश्मियों को इन तक निर्बाध ही जाने दिया होता हम मनुष्यों ने किया है....संकल्प* दी *पों के इस महा उत्सव में एक दीप कर्म-ज्योति का हम भी जलाएं। धरा के गहन तिमिर को हर लें हम वो दीपक बन जाएं।। भारत के नवोत्थान के प्रयत्नों में एक अमर प्रयत्न हम भी कर जाएं। उत्कृष्ट भारत के निर्माण में काम आए हम वो नींव का पत्थर बन जाएं।। जला ना पाये जो ज्ञान का दीप..... - कभी घर को बुहारा, कभी घर की दीवारों पर लगे जालों को उतारा, जला ना पाये जो ज्ञान का दीप, कैसे करेंगे वो अज्ञानता संग गुजारा। हृदय की कलुषता मिटा भी ना पाए,...

दिवाली मनाना चाहता हूँ - - * **दिवाली !* *मनाना चाहता हूँ -* *खेलना चाहता हूँ जुआ,* *दांव पर लगाना चाहता हूँ * *जो मेरे पास है -* *छल ,कपट , हिंसा ,व्यभिचार * *कदाचार , भ्रष्टाचार ,अन... दीवाली और धनतेरस का त्यौहार .....सबके लिए शुभ हो - *अरे सुनो तो आज ...कोई बात शुरू करने से पहले .. बात करे दीवाली की यारो बताओ ,कैसे बात करे दीवाली की | * *घर ,गली की या हो बाज़ार और शहर की पर भूलने वाली..चलो पंक्तियाँ दियो की लगा देते है...!!! - चलो पंक्तियाँ दियो की लगा देते है, जहाँ तक हद है नज़रो........

- *दीपावली की शुभकामनाओं सहित पेश हैं कुछ हाइकू ...... इन्हें आप यहाँ भी देख सकते हैं ...... http://hindihaiku.wordpress.com/2012/11/12/%E0%A4%A4

गृहलक्ष्मी का उल्लू......

दीपावली की हार्दिक शु्भकामनाएं, ज्योति पर्व आपके जीवन में उल्लास, समृद्धि, शांति, धन-धान्य लेकर आए।

कार्टून :- तुझे भी दि‍वाली मुबारक, जा क्‍या याद करेगा

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चलते-चलते एक गीत - ज्योति कलश छलके ......

अब इजाज़त दीजिये नमस्कार......

रविवार, 11 नवंबर 2012

धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएं... ब्लॉग 4 वार्ता... संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार....आज पाँच दिवसीय दीपावली पर्व के आरंभ का दिन धन त्रयोदशी है। आप सभी को धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएं..  प्रस्तुत हैं आज की वार्ता ........

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हर आँगन में दीप - चकाचौंध गर ना हुआ, किसको है परवाह। दीया इक घर घर जले, यही सुमन की चाह।। रात अमावस की भले, सुमन तिमिर हो दूर। दीप जले इक देहरी, अन्धेरा मजबूर।। हाथ पटाखे है... दीवाली और धनतेरस का त्यौहार .....सबके लिए शुभ हो - *अरे सुनो तो आज ...कोई बात शुरू करने से पहले .. बात करे दीवाली की यारो बताओ ,कैसे बात करे दीवाली की | * *घर ,गली की या हो बाज़ार और शहर की पर भूलने वाली... चलो पंक्तियाँ दियो की लगा देते है...!!! - चलो पंक्तियाँ दियो की लगा देते है, जहाँ तक हद है नज़रो... 

समीक्षा - भीतर की टूट - फूट का चित्रण है .... “ माँ कहती थी ” - भीतर की टूट - फूट का चित्रण है .... “ माँ कहती थी ” कविता संग्रह मां कहती थी कवयित्री - सुमन गौड़ प्रकाशक - बोधि प्रकाशन जयपुर समीक्षक - विजेंद्र शर्मा ( स... बोझ बड़ा है - व्यर्थ संभावनायें - जिस समय सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे थे, एक आशंका सी रहती थी कि होगा कि नहीं, यदि होगा तो कितने वर्षों में। तैयारी करने वाले प्रतिभागियों में जिसस...कलंकी लाल ... - खूब सोच-विचार के बाद, माँ-बाप ने नाम उसका 'राम' रखा था उनके जेहन में इस बात का अंदेशा भी नहीं रहा होगा कि - इक दिन ... बेटा बड़ा होकर उन... 

वर्तमान ने बच्चों से छीन लिया उनका बचपन - 1. 2. श्रीगंगानगर-क्विज का सेमीफाइनल। दो बच्चों की इंटेलिजेंट टीम। आत्म विश्वास से भरपूर। बढ़िया अंकों से फाइनल में पहुंची। दूसरे सेमीफाइनल स... वो शाम ... - ठंडी पड़ती धूप उस पर सिंदूरी सा रूप हल्की-हल्की बहती हवा गम दूर करने की जैसे दवा महक जिसमें होती खास जगती तुझसे मिलने की आस इन्तजार का होता खात्मा और जी उठत...  ये आंसू मेरे दिल की जुबान हैं... - आँखों में ये खारा पानी कहाँ से आता है किस कैमिकल लोचे से यह होता है,सबसे पहले किसकी आँख में यह लोचा हुआ और क्यों ? और कब इसे एक इमोशन से जोड़ दिया गया... 



तो ये है - - आपको दमा का दौरा दिला हर बेहया सुबह को फूंक-फूंक सुलगाती हुई रोटियों को हथेलियों से पीट-पीट कर अपने स्टाईल में जलाती-पकाती हुई सहमें नमक-प्याज संग पेट खोले ..भूख की दस्तक - * * *ना जाने दस्तक किधर से आ रही है**?* *गरीबों की खोलियों मे भूख कसमसा रही है *** * * *भूख को कैसे सुनाऊँ माँ की सिखाई लोरियाँ *** *लोरियाँ भी सिसकियों मे ..भ्रष्ट्राचाररोधी कुकुरमुत्ता संगठन! स्वघोषित सीबीआई! - * "आजकल देशभर में फैले ‘‘भ्रष्ट्राचार’’ एवं प्रशासन संचालन में ‘‘अव्यवस्था’’ रूपी दानव से लड़ने हेतु एक बड़ा माहौल चहुओर फैलता जा रहा है। देश का प्रत्येक ... 

'बुरा पति' - कलियुग में आबो हवा बदल रही है, पानी बदल रहा है और कुछ हिन्दुओं की मति भी मारी जा रही है , पहले वे सेक्युलर नामक संक्रमाक, लाइलाज रोग से ग्रस्त हो रहे हैं, ... मुझेसे मेरी आज़ादी छीन ली गयी है - 48 वर्षीय नसरीन सतूदेह इरान की बेहद लोकप्रिय मानव अधिकार वकील और कार्यकर्ता हैं जो अपने कट्टर पंथी शासन विरोधी विचारों के लिए सरकार की आंख की किरकिरी बनी ...राम नाम सत्य है- जेठमलानी - सुबह सुबह हमारे पड़ोसी चिंताराम जी चिंतित अवस्था में हमारे पास आए- 'दवे जी देखिए, क्या गड़बड़ सड़बड़ हो रहा है। जेठमलानी कहता है कि राम बुरे पति थे। नराधम... 

कुछ दोहे - चौक पुराऊँ अंगना ,दीप जलाऊँ द्वार | खुशियों की सौगात लिए ,आया यह त्यौहार || *है स्वागत आज तेरा ,पर मन में अवसाद |*** *मंहगाई की मार से ,होने लगी उदास ||*... उनसे जीवन में आलोक - नारी हर रूप में आलोकित करती है आँगन को सजाती है दीपमालाएँ बिखेर देती है प्रकाश छत-मुंडेरों पर और दमक उठता है सबका जीवन माँ के हाथों प्रकशित हुआ ... आई दिवाली,,,  - *आई दिवाली,* ( बाल गीत ) 100 वीं, पोस्ट आई दिवाली आई दिवाली बच्चों में छाई खुशियाली चमक उठी घर की दीवारें आँगन चमक रहें है सारे मम्मी -पापा ...


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अब इजाज़त दीजिये नमस्कार.....

शनिवार, 10 नवंबर 2012

खुद की तलाश ... ब्लॉग4वार्ता ...... संगीता स्वरूप

आज की वार्ता में  संगीता स्वरूप  का नमस्कार ----
"आजकल देशभर में फैले ‘‘भ्रष्ट्राचार’’ एवं प्रशासन संचालन में ‘‘अव्यवस्था’’ रूपी दानव से लड़ने हेतु एक बड़ा माहौल चहुओर फैलता जा रहा है। देश का प्रत्येक नागरिक आज स्वच्छ, ईमानदार और कुशल व्यवस्था चाहता है। ऐसी स्थिति लाने के लिए आम आदमी कोई भी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार है। यही कारण है कि स्वतंत्रता के बाद 65 सालों से कुशासन और भ्रष्ट्राचार में डूबे अपने वतन को बचाने के लिए जनता सीना ताने खड़ी हो गई है। जो आवाम कल तक यह सोचकर भ्रष्टाचार को सहन करती जा रही थी कि जाने दो इससे हमें कौनसा सीधा नुकसान हो रहा है, आज सारे देश के नफा-नुकसान पर चिंतित है। >>आगे पढ़ें


मैं "के बंधन से मुक्ति ही खुद की तलाश है ...ऐसा परिभाषित करती और मुक्तसर शब्दों में बात कहती यह पंक्तियाँ है रश्मि प्रभा जी के संग्रह खुद की तलाश में लिखे अपने व्यक्तव की खुद रश्मि प्रभा जी के ही शब्दों में ...खुद की तलाश हर किसी को होती है |बचपन में हम झांकते हैं कुएँ में ,जोर से बोलते हैं ,पानी से झांकता चेहरा बोली की प्रतिध्वनी पर मुस्कराना खुद को पाने जैसा प्रयास और सकून हैं ...रश्मि जी के लिखे यह शब्द अपने लिखे का परिचय और खुद उनका परिचय देते हैं |>>>आगे पढ़ें


पर्यावरण के हाइकु
१)
गंगा-यमुना
प्रदूषण की मारी
हुई उसांसी ।...................
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पुरानी हिंदी फिल्मों के लोकप्रिय खलनायक अजित अक्सर जब हीरो को पकड़ लेते तो कहते -- रॉबर्ट, इसे गैस चैंबर में डाल दो। कार्बन डाई ऑक्साइड इसे जीने नहीं देगी और ऑक्सीजन इसे मरने नहीं देगी। आजकल दिल्ली शहर ऐसा ही गैस चैंबर बना हुआ है। नवम्बर शुरू होते ही दिल्ली को ऐसी सफ़ेद चादर ने घेर लिया जैसी वो कौन थी जैसी पुरानी हिंदी संस्पेंस फिल्मों में दिखाई देती थी।<<<आगे पढ़ें


तेरे  ख्याल
तेरा जिक्र
तेरे ख्वाब
तेरी छुअन,>>>>>
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लिख रही अविराम सरिता,
नेह के संदेश .
पंक्तियों पर पंक्ति लहराती बही जाती
कि पूरा पृष्ठ भर दे  .
यह सिहरती लिपि तुम्हारे लिये ,प्रिय.
संदेश के ये सिक्त आखर .>>>>
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आई है दीपावली , कर' अनुपम शृंगार !
छत-दीवारें खिल गईं , सज गए आंगन-द्वार !!
सजे शहर भी, गांव भी , घर - गलियां- बाज़ार !
शुभ दीवाली कर रही, शुभ सपने साकार !!>>>>>आगे पढ़ें



यादें  जो जुड़ी रहती हैं हर एक के विगत जीवन से ,सबके पास होता है कुछ न कुछ याद करने को , हर एक के हिस्से में आती हैं यादें - कुछ खट्टी ,कुछ मीठी ,कुछ कसैली ,तो कुछ खुशनुमा .... इन्हीं यादों को पिरोया है ‘यादों के पाखी ‘  में ।  यादों के पाखी एक हाइकु संग्रह  है जिसको संपादित किया है श्री रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु ’ , डॉo भावना कुँअर  और डॉo हरदीप कौर संधु जी ने ।आगे पढ़ें



 


सघन वर्षा वन  के अन्दर जैसे चुपके से उतरता है धूप का एक नन्हा टुकड़ा  और  ख़ामोशी से उसके  चप्पे-चप्पे पर  फेरने लगता है अपनी   इन्द्रधनुषी कूची  .  रेंगकर  जगाता है उनींदी पगडंडियों को और सुनहले  वर्क सा आच्छादित हो जाता है उसमें सोये ताल-तलैय्यों,जीव-जंतुओं ,फूलों , शैवालों पर .... देखती हूँ मेरे वर्तमान में ठीक वैसे ही उतर आता है मेरे अतीत का उजाला.>>>>>आगे पढ़ें


रात ढली, दिन उगा
बोलो किसको श्रम हुआ,
हवा बही सुरभि लिए
बोलो किसने दाम दिए !>>>>
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अभी अभी रूद्र के बैग में  नोटिस देखा  है बड़ी लम्बी छुट्टियाँ हैं ,नवीन जी को बताया तो 10 ओफ्फिस के काम ,लगे गिनाने .बॉस कभी भी चला आएगा , लौन्चिंग अब नहीं टालनी है  ,फिर कभी चलेंगे ,भूल गयी रूद्र के काका चाचा  जी लोग आयेंगे तुम भी तो कब से उनसब से नहीं  मिली हो शुक्र करो कहीं जा नहीं रहे वर्ना कैसे मिल पाते अपनों से , बीजी लाइफ है ,आ रहे हैं ये बड़ी बात है तुम  तयारी करो स्वागत की वगैरह वगैरह .>>>>>आगे पढ़ें


फर्क पड़ता है॰
"तुम्हारे नि:स्वार्थ शब्दों ने मेरी जिन्दगी बदल दी। "
एहसान के भार से दबी राधा ने रमेश से सिसकते हुए कहा ।
"कौन-सी बात ?"
रमेश ने अचकचाकर पूछा ।
"वही नीबू निचोड़ने वाली बात ।"
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रचनाकार: सुरेन्द्र कुमार पटेल की लघुकथा - फ़र्क पड़ता है http://www.rachanakar.org/2012/11/blog-post_699.html#ixzz2BnU4Ayre



पुणे

महाराष्ट्र का दूसरा बड़ा शहर है ....यह महाराष्ट्र की  दो मशहूर नदियों के किनारे बसा हुआ है ...यह  पुणे  जिले का प्रशासकीय मुख्यालय भी है ..पुणे भारत का छटा बड़ा शहर है ..यहाँ अनेक मशहूर शिक्षण संस्थाने है ..इसलिए इसे पूरब का आक्सफोर्ड भी कहा जाता है ...मराठी यहाँ की मुख्य भाषा है ...>>>>आगे पढ़ें



किसी की राह देखी 
कही नजरें बिछायीं 
क्यों कहीं राह में देख 
कैसे हैं नजरें बचाईं 
सुगंध और सुमन से >>>>>
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सुप्रसिद्ध लेखक रंगकर्मी ,अभिनेता श्री गिरीश कर्नाड (जिनके लिखे नाटक तुगलक की पिछले दिनों धूम रही )को मुंबई की एक संस्था द्वारा एक साहित्य समारोह में रंगकर्म से जुड़े अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया गया था |लेकिन कर्नाड को अपने इस ‘’भाषण’’ में प्रसंशा के बावजूद कुछ असहमतियों जिन्होंने छोटे मोटे विवाद का रूप भी ले लिया था ,सामना करना पड़ा |>>>>>आगे पढ़ें


जिस समय सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे थे, एक आशंका सी रहती थी कि होगा कि नहीं, यदि होगा तो कितने वर्षों में। तैयारी करने वाले प्रतिभागियों में जिससे भी मिलते थे, एक उत्सुकता रहती थी, यह जानने की कि कौन कितने वर्षों से तैयारी कर रहा है? तैयारी का कुछ भाग दिल्ली में और कुछ इलाहाबाद में किया था, आपको यह तथ्य जानकर आश्चर्य होगा कि कुछ लोग १० वर्षों से तैयारी कर रहे थे। एक अजब सी आशावादिता व्याप्त थी वातावरण में>>>>>आगे पढ़ें


एक बढ़ई काम करते हुए कई चीज़ों पर ध्यान नहीं देता मसलन लकड़ी चीरने की धुन, उसे चिकना बनाते समय बुरादों के लच्छों का आस-पास फ़़ूलों की तरह बिखरना, कीलें ठोकने के घीमे मद्धिम और तेज सुर,खुद अपने हाथों का फ़़ुर्तीला हर क्षण बदलता संचालन और कभी चिंतन में डूबी, कभी चुस्ती और जोश से लपकती, कभी लगन में डूबी और कभी काम के ढलान पर आख़िरी झंकार छेड़ती अपनी गति वह स्वयं नहीं देखता.>>>>आगे पढ़ें


एक घटना अमूमन सभी बाइक एवं कार चालकों के साथ घटती है, किसी मोहल्ले या सड़क से जाते वक्त किनारे बैठा कोई कुत्ता गाड़ी देख कर गुर्राते हुए हमला करने की मुद्रा बनाकर दूर तक दौड़ाता है. ऐसी हालत में फुटरेस्ट से पैर ऊपर उठाने पड़ते हैं. कहीं काट ले तो इंजेक्शन लगवाने का दर्द झेलना पड़ सकता है. कभी - कभी कार में बैठे होने पर कुत्ते दौड़ाते हैं तो बाइक सवार की तरह पैर अपने आप ही ऊपर उठ जाते हैं.>>>>आगे पढ़ें


मेरे सबसे प्यारे नीमा,
तुम्हें ख़त लिखना ...मेरे प्यारे...बेहद मुश्किल काम है...मैं तुम्हें कैसे बताऊँ कि मैं कहाँ हूँ, इतने छोटे और नादान हो तुम कि कैद, गिरफ़्तारी, सजा, मुकदमा, सेंसरशिप, अन्याय, दमन , आज़ादी, मुक्ति , न्याय और बराबरी जैसे शब्दों के मायने कैसे समझ पाओगे.>>>>आगे पढ़ें


यह सत्य है कि इंसान का अच्छा या बुरा, हिंसक अहिंसक होना उसकी अपनी प्रवृत्ति है। कोई जरूरी नहीं आहार के कारण ही एक समान प्रवृति दिखे। किन्तु यह प्रवृत्तियाँ भी उसकी क्रूर-अक्रूर वृत्तियोँ के कारण ही बनती है. दृश्यमान प्रतिशत भले ही कम हो फिर भी वृत्तियों का असर मनोवृति पर पडना अवश्यंभावी है।>>>आगे पढ़ें


आज की वार्ता बस इतनी ही .... फिर मिलते हैं

शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

आफ़्सपो से आफ़्सपा जिंदगी के दो रंग .......... ब्लॉग4वार्ता ......... ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार, ....राज्योत्सव बनाम राय-पुरोत्सव  समझ नहीं आ रहा है के इस राज्योत्सव को क्या कहूं... मुझे तो ये राय-पुरोत्सव ही ज्यादा लगता है... क्योंकि छत्तीसगढ़ राज्य का बस एक ही मतलब है.. रायपुर.. बाकी जिलों का क्या हाल है ये मेरे बाकी मित्र बहुत अच्छे से जानते ही होंगे जो रायपुर में नहीं रहते.. कहीं और बसते हैं.... पूरा विकास.. पूरी उन्नति सिर्फ और सिर्फ रायपुर की ही हो रही है... ऐसा लगता है मानो क छत्तीसगढ़ राज्य में बस एक ही शहर है... रायपुर .... ... प्रस्तुत है आज की वार्ता ...... 

रहते थे वह परेशां मेरे बोलने के हुनर से वेदना दिल की आंखो से बरस के रह गई दिल की बात फ़िर लफ्जों में ही रह गई टूटती नही न जाने क्यों रात की खामोशी सहर की बात भी बदगुमां सी रह गई बन के बेबसी ,हर साँस धड़कन बनी तन्हा यह ज़िंदगी, तन्हा ही रह गई रहते थे वह परेशां मेरे बोलने के हुनर से खामोशी भी मेरी उन्हें चुभ के रह सपनों की पांखर टूट गई आँख खुलते ही हकीकत ज़िंदगी की ख्वाब बन के रह गई !!  संस्कारधानी जबलपुर के जाने माने वरिष्ठ साहित्यकार, पत्रकार मोहन शशि जी और उनके परिजन आमरण अनशन पर बैठे ...  योवृद्ध 76 वर्षीय मोहन शशि जी संस्कारधानी जबलपुर के जाने माने वरिष्ठ साहित्यकार, पत्रकार हैं . उनका पौत्र अमिय होनहार छात्र होने के साथ साथ एक अच्छा खिलाडी भी है . वह सेंट जेवियर स्कूल शांति नगर जबलपुर में विद्या अध्ययन करता है . खेल कूद में स्कूल में चयनित होने के पश्चात उसका जिलास्तर पर संभागीय खेलकूद प्रतियोगिता में चयन किया गया था . प्रबंधन द्वारा उसे एक किट की जिम्मेदारी दी गई थी और ट्रेन में नरसिहपुर जाते समय किसी के द्वारा धक्का देने के करण उसका ट्रेन दुर्घटना में पैर कट गया 

आफ़्सपो से आफ़्सपा और इरोम शर्मिला जब कोई चीज़ चर्चा से बाहर होने लगे तो उसे सामान्यत: अप्रासंगिक मान लेना चाहिए। कम से कम जिनके बीच होने लगे उस गलियारे से अप्रासंगिक मान लेना चाहिए। 4 तारीख़ राजनीतिक हलकों के लिए काफ़ी कसरती दिन था। दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए तोरण द्वार खोलने के कैबिनेट के फ़ैसले पर सफ़ाई दे रही थी और बता रही थी कि कांग्रेस देश के लिए कितनी ज़रूरी है।जिंदगी के दो रंग. 1.धूल हर्फों से झड़े तो चमक उठे यादों के जुगनू गर्द दीवारों से झड़े तो कुछ यादें बेलि‍बास हुई... मन की कि‍ताब का जो खोला पीला पड़ा हुआ पन्‍ना कैद अश्‍कों की बारि‍श आज तो बेहि‍साब हुई.... 2.कोई तहरीर मि‍टाए तो दि‍ल में कसक होती है कोई खत कि‍सी का जलाए तो धुंआ उठता है... जालि‍म..दि‍ल वो भीगा कागज है कि जलता ही नहीं सीली सी लकड़ी हो जैसे, बस जि‍समें हर वक्‍त धुंआ उठता है....

खनकते सिक्के नारी और पुरुष को एक ही सिक्के के दो पहलू माना है पुरुष को हैड और स्त्री को टेल जाना है पुरुष के दंभ ने कब नारी का मौन स्वीकारा है उसके अहं के आगे नारी का अहं हारा है । पुरुष ने हर रिश्ते को अपने ही तराजू पर तोला है , जबकि नारी ने हर रिश्ता मिश्री सा घोला है । पुरुष अपने चारों ओर एक वृत बना घूमता रहता है उसके अंदर , नारी धुरी बन एक बूंद को भी बना देती है समंदर । दीये बेचने वाली का बेटा बाहर से किसी ने पुकारा तो देखा दीये बेचने वाली का बेटा खड़ा था , देख कर मुस्काया, दीवे नहीं लेने क्या बीबी जी ........... मैंने भी उसकी भोली मुस्कान का जवाब मुस्कान से दिया, लेने है भई, पर तेरी माँ क्यूँ नहीं आयी ..... माँ तो अस्पताल में भर्ती है बीबी जी , ओह ,मैंने कहा, और साथ में तेरा भाई है ये ................ नहीं मेरी छोटी बहन है ये ...... 

जोधपुर किला (मेहरानगढ दुर्ग)राजस्थान यात्रा- पहला भाग जोधपुर आगमन यहाँ है। पिछले लेख पर आपको नागौरी दरवाजे तक लाकर किले की एक झलक दिखाकर ईशारा सा कर दिया गया था कि अगली लेख में आपको क्या दिखाया जायेगा? तो दोस्तों आज के लेख में हम चलते है, मेहरानगढ दुर्ग की ओर........ आगे चलने से पहले आपको नागौरी दरवाजे के बारे में भी थोडा सा बता दिया जाये तो बेहतर रहेगा। ऋषिकेश से नीलकण्ठ साइकिल यात्राहम ऋषिकेश में हैं और आज हमें सौ किलोमीटर दूर दुगड्डा जाना है साइकिल से। इसके लिये हमने यमकेश्वर वाला रास्ता चुना है- पहाड वाला। दिन भर में सौ किलोमीटर साइकिल चलाना वैसे तो ज्यादा मुश्किल नहीं है लेकिन पूरा रास्ता पहाडी होने के कारण यह काम चुनौतीपूर्ण हो जाता है। कुछ दिनों पहले मैंने अपने एक दोस्त करण चौधरी का जिक्र किया था जो एमबीबीएस डॉक्टर भी है। हमारी जान-पहचान साइकिल के कारण ही हुई। करण ने तब नई साइकिल ली थी गियर वाली।

प्राचीन बंदरगाह प्राचीन बंदरगाह महर्षि महेश योगी की जन्म भूमि पाण्डुका से आगे सिरकट्टी आश्रम से पहले मगरलोड़ और मेघा की ओर जाने वाले पुल के किनारे मुझे नदी में लेट्राईट को तोड़ कर बनाई गयी कुछ संरचनाएं दिखाई थी। मैने कयास लगाया कि यह अवश्य ही बंदरगाह है। मैने नदी में उतर कर बंदरगाह का निरीक्षण किया एवं कुछ चित्र लिए। बंदरगाह की गोदियों में घूमते हुए कई तरह के विचार आ रहे थे। कौन लोग यहाँ से व्यापार करते थे? यह बंदरगाह किस समय बना? किसने बनाया? सितारे की चमक ..वैसे तो सूरज को दीपक दिखाने वाली बात है पर एक प्रयास किया है पढ़ने का--* * आज सुनिये एक ऐसे सितारे की लिखी कहानियाँ जिसकी चमक बढ़ती जा रही है .... ** (बिना सुने पोस्ट करने की अनुमति देने के लिए आभार!)* * और पढ़ने को यहाँ है ...कहानियाँ * *यहाँ आप इनकी किताब "चौराहे पर सीढ़ियाँ "लेने के लिये क्लिक कर सकते हैं* 

 कि मर जाना इकलौता सच है बयालीस साल... बयालीस साल कोई गुज़ारता है साथ-साथ। और फिर एक दिन दोनों में से कोई एक चला जाता है चुपचाप। जो रह जाता है, उसकी तन्हाई और तकलीफ़ के बारे में चाहे जितना चाह लें, कुछ भी लिखा नहीं जा सकता। सब दिखता है, फिर भी नहीं दिखता। सब समझ में आता है, फिर भी समझना नहीं चाहते हम। मृत्यु - ज़िन्दगी के इस सबसे बड़े, सबसे कठोर और इकलौते शाश्वत सत्य से क्यों फिर भी स्वीकार नहीं कर पाते हम?  सौदर्य की पीड़ासौन्दर्य के प्रति सहज आसक्ति मानवीय गुण है। लेकिन सौन्दर्य प्राप्ति के लिए बर्बरता ही हद तक जाना अमानवीय प्रवृति। इसी जगत में ऐसी कितनी ही परम्पराओं ने सिर्फ सौन्दर्य प्राप्ति के लिए जन्म लिया है, जो न सिर्फ अप्राकृतिक हैं, बल्कि नृशंस और बर्बर भी हैं। ध्यान रहे, ये सारे अमानवीय प्रयोग महिलाओं पर ही किये गए हैं। फुटबाइंडिंग या पैर बंधन परंपरा: चीनी मान्यताओं में महिलाओं के छोटे पैर ........

वार्ता को देते हैं विराम, मिलते हैं ब्रेक के बाद ..........  राम राम 

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