संध्या शर्मा का नमस्कार....आज का दिन हमारे लिए बहुत खास है. गुस्ताखियों को कहो ज़रा मेरे शहर के कोने मे ठहर जायें
रात को घूंघट तो उठाने दो ज़रा
कहीं सुबह की नज़ाकत ना रुसवा हो जाये
एक पर्दानशीं का वादा है
चन्दा भी आज आधा है
लबों पर जो ठिठकी है
वो कमसिनी ज्यादा है
ऐसे मे क्यों ना गुस्ताखी हो जाये
जो सिमटी है शब तेरे आगोश मे
उसे जिलावतन किया जाये
एक तस्वीर जो उभरी थी ख्यालों मे
क्यों ना उसे तस्दीक किया जाये
यूँ ही बातों के पैमानों मे
एक जाम छलकाया जाये
रात की सरगोशी पर
चाँदनी को उतारा जाये
फिर दीदार तेरा किया जाये
कि चाँदनी भी रुसवा हो जाये
ये किस हरम से गुज़री हूँ
इसी पशोपेश में फँस जाये
पर्दानशीनों की महफ़िल में
बेपर्दा ना कोई शब जाए. आइये चलते हैं, आज की वार्ता पर हमारी पसंद के खास लिंक के साथ .......
सहनशीलता - सहनशीलता जिसमें नहीं है, वह शीघ्र टूट जाता है. और, जिसने सहनशीलता के कवच को ओढ़ लिया है, जीवन में प्रतिक्षण पड़ती चोटें उसे और मजबूत कर जाती हैं. मैंने सुन... गोवर्धन यादव की कहान - महुआ के वृक्ष - महुआ के वृक्ष ऊंचे-ऊंचे दरख्तों से उतरकर अंधियारा सड़कों-खेतों, खलिहानों में आकर पसरने लगा था। गांव के तीन चार आवारा लौंडे खटिया के दाएं-बाएं...सुधीर चौधरी की ‘छोटी’ गलती ही भारी पड़ गयी - बड़ा खिलाड़ी बनिए वरना… ♦ दीपक शर्मा देश के सबसे बड़े उद्योगपतियों में एक अनिल अंबानी टूजी घोटाले में जेल नहीं गये। दिल्ली में दलाली की सबसे बड़ी दुकान चला...
जिसके खो जाने का डर तारी है...
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मुझे नहीं मालूम कि ख़ास मेरे बॉस ने मुझे रिकोर्डिंग स्टूडियो क्यूँ जाने को
कहा था...शाम के कुछ पहले का वक़्त था...स्टूडियो में एक बेहद अच्छे म्यूजिक
डायरेक...शायद
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फारेस्ट, इवान शिशकिन
Forest, Ivan Shishkinहालाँकि खून नहीं बह रहा है -- शायद मैं घायल हूँ,
तुम्हारे जीवन की किरणों में से एक के साथ
चलते-चलते.
जंगल के बीचों...पुस्तकें मौन हैं !
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पुस्तकों ने
बोलना बंद कर दिया है
और हमने सुनना,
हमारा बहरापन
खत्म हो जायेगा जिस दिन
पुस्तकें अपना मौन-व्रत खोल देंगी !
अभी पुस्तकों के मुँह बंद हैं
...
कहानी कोफ्ते की !!!
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आज सुबह माताश्री ने कल के बचे कोफ्ते के मटीरियल से फिर से कोफ्ते बनाये और
हमने दबा-दबा के खाए | कोफ्ते का शेप चिकन नगेट्स की तरह दिखा…हमें लगा की
कोफ्ते ..जन्म, मृत्यु और आइस पाइस
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जन्म:
गिन रहा हूँ आँखें मूँदे एक से सौ तक
सब छिप जायँ तो आँखें खुलें, गिनती बन्द हो।
मृत्यु:
मिल गया आइस पाइस खेल में आखिरी शाह भी
चोर ने राहत की साँस ली...खोखले से हम
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खोखले से हम
नाते रिश्तों
मैत्री सम्बन्धों
पड़ोसी से बोलचाल
सोफे पर चिपके
टी वी पर आँख कान गड़ाए
अपनों को छोड़,
राह चलतों को राम राम
जय श्री कृष्ण
नमस्कार ...
कला की एकांत साधिका- सुश्री साधना ढांढ
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यों तो मैंने लगभग आठ-नौ वर्षों पहले महाकौशल कला विथिका में सुश्री साधना
ढांढ की कृतियों की प्रदर्शनी देख रखी थी, पर उस वक़्त मुझे कतई गुमां न था कि
ये कृत..
गाज़ा में सुबह - मृत्युंजय की ताज़ा कविता
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गाज़ा में युद्धविराम हो गया है। पिछले कुछ दशकों में वहाँ इस युद्ध और विराम
की इतनी (दुर) घटनाएं हुई हैं कि अब न तो युद्ध से वह दहशत पैदा होती है न
विराम ...मैत्रेयी पुष्पा के बहाने स्त्री आत्मकथा के पद्धतिशास्त्र की तलाश
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आत्मकथा में सब कुछ सत्य नहीं होता बल्कि इसमें कल्पना की भी भूमिका होती है।
आत्मकथा या साहित्य में लेखक का 'मैं' बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।....
ये बात तो सही है...
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"आपने सिगरेट पीना छोड़ा नहीं न अब तक? ये अच्छी चीज नहीं है, आपसे कितनी बार तो कह चुका हूँ।" कश्यप बोला।
"अरे यार, दिमाग खराब मत कर। है तो यहीं हापुड़ का .शादी-ब्याह की मौज-मस्ती में!
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बचपन में जब कभी किसी की शादी-ब्याह का न्यौता मिलता था तो मन खुशी के मारे
उछल पड़ता, लगता जैसे कोई शाही भोज का न्यौता दे गया हो। तब आज की तरह
रंग-बिरंगे ....बेटी संज्ञा, बहू सर्वनाम
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* *आमतौर पर होता यह है कि एक स्त्री अपने बेटे के विवाहेतर संबंध को
जस्टीफ़ाई ही करती है या फिर उस संबंध का दोष भी अपनी बहू के मत्थे मढ़ देती
है- पहले तो मे...
क़ब्रों में बंद आवाज़े - क़ब्रों में बंद आवाज़े यदि बोल सकती तो पूछती उनसे क्या वाकई मिलता है दिली सकून यहाँ भीतर बिना किसी आहट के एहसास में जीना और खुद से ही घंटों बाते करना... फिर से पढ़ी है एक दुआ - उससे मैं कई सालों बाद मिली। हमने अपनी ज़िन्दगी के सबसे मुश्किल लम्हे गुज़ारे हैं एक साथ। जिन दोस्तों के साथ कॉफी, मुस्कुराहटों और ऐश के दिनों का साथ रहा हो... नाराज़ आँखे - * * *नाराज़ आँखे बोलती रही रातभर * *पर आंच न आया तुम पर -* *रहे बेखबर !* * * *सूखे पत्ते सी फडफडाती रही यूं ही * *और गीली आँखों ने चाँद -* *सुखाया रातभर !* ...
क़ब्रों में बंद आवाज़े - क़ब्रों में बंद आवाज़े यदि बोल सकती तो पूछती उनसे क्या वाकई मिलता है दिली सकून यहाँ भीतर बिना किसी आहट के एहसास में जीना और खुद से ही घंटों बाते करना... फिर से पढ़ी है एक दुआ - उससे मैं कई सालों बाद मिली। हमने अपनी ज़िन्दगी के सबसे मुश्किल लम्हे गुज़ारे हैं एक साथ। जिन दोस्तों के साथ कॉफी, मुस्कुराहटों और ऐश के दिनों का साथ रहा हो... नाराज़ आँखे - * * *नाराज़ आँखे बोलती रही रातभर * *पर आंच न आया तुम पर -* *रहे बेखबर !* * * *सूखे पत्ते सी फडफडाती रही यूं ही * *और गीली आँखों ने चाँद -* *सुखाया रातभर !* ...
हमारी पसंद का एक गीत
आज के लिए बस इतना ही नमस्कार ...........