शनिवार, 17 नवंबर 2012

नमक इश्क़ का , एक पल कुन्दन कर देना ...ब्लॉग 4 वार्ता ...संगीता स्वरूप

आज की वार्ता में संगीता स्वरूप  का नमस्कार ----

औरत की आज़ादी के मायने from उसने कहा था... by Madhavi Sharma Guleri

आज़ादी, स्वतंत्रता, फ्रीडम... कानों में इन शब्दों के पड़ते ही एक सुखद, प्यारा-सा अहसास मन को हर्षाने लगता है। ये शब्द उस अनुभूति को परिलक्षित करते हैं जो संसार के हर इंसान को प्यारी है। क्या है यह आज़ादी, क्यों है यह इतनी प्रिय हर किसी को? और आज़ादी में भी अगर हम ख़ासकर औरतों की आज़ादी की बात करें तो क्या इसके मायने बदल जाते हैं?>>>आगे


कैसा होमोसेपियंस? from कुछ मेरी कलम से kuch meri kalam se ** by रंजना [रंजू भाटिया]


अभिषेक पाटनी की लिखी यह पंक्तियाँ उनके परिचय के साथ जब पढ़ी थी तो ही वह विशेष लगी थी और जब उनका संग्रह कैसा होमोसेपियंस पढ़ा तो उत्सुक हुई यह जानने के लिए कि आखिर इसका नाम इस तरह का क्यों रखा गया ? हिंदी कविता का संग्रह और नाम वैज्ञानिक ?जो विज्ञान में रूचि रखते हैं उनके लिए यह नाम नया नहीं हो सकता है पर हिंदी कविता संग्रह के लिए यह नाम जरुर कुछ अनोखा लगता है>>>>आगे

इसका होना ही प्रेम है !!!  from SADA by सदा

कुछ शब्‍दों का भार आज
कविता पर है
वो थकी है मेरे मन के बोझ भरे शब्‍दों से
पर समझती ह‍ै मेरे मन को
तभी परत - दर - परत
खुलती जा रही है तह लग उसकी सारी हदें
उतरी है कागज़ पर बनकर>>>>>>>>>>>>>
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शिक्षा - क्या और क्यों ?    from न दैन्यं न पलायनम् by noreply@blogger.com (प्रवीण पाण्डेय)


शिक्षा का नाम सुनते ही उससे संबद्ध न जाने कितने आकार आँखों के सामने घुमड़ने लगते हैं। कुछ को तो लगता होगा कि बिना शिक्षा सब निरर्थक है, कुछ को लगता होगा कि बिना लिखे पढ़े भी जीवन जिया जा सकता है।आगे


क़तारों से क़तरे उलझते रहे  from ठाले बैठे by NAVIN C. CHATURVEDI

हो पूरब की या पश्चिमी रौशनी

अँधेरों से लड़ती रही रौशनी

क़तारों से क़तरे उलझते रहे

ज़मानों को मिलती रही रौशनी>>>>>>आगे


" के.वाई.सी. ......."  from "बस यूँ ही " .......अमित by Amit Srivastava


आजकल एक फैशन आम हो चला है ," के.वाई.सी. " का ,अर्थात 'know your customer' | कभी बैंक से नोटिस  आती है और कभी गैस कंपनी से कि ,कृपया अपना के.वाई.सी. करा लें नहीं तो आपकी सेवायें बंद कर दी जायंगी | दसियों साल से अधिक से बैंक में , गैस कंपनी में निरंतरता बनी हुई है फिर भी अपनी शिनाख्त वहां कराना आवश्यक माना जा रहा है >>>>आगे


सरहद और नारी मन  from nayee udaan by उपासना सियाग

सरहद पर जब भी
युद्ध का बिगुल बजता है
मेरे हाथ प्रार्थना के लिए
जुड़ जाते हैं
दुआ के लिए भी उठ जाते हैं>>>>
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अपने पूर्वजों जैसी हरकत करना भी एक कला है ---  from अंतर्मंथन by डॉ टी एस दराल

आपने बंदरों को कूदते फांदते अवश्य देखा होगा . कैसे एक मकान की छत से दूसरे मकान की छत पर या एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर कूद फांद करते रहते हैं . इन्हें देखकर कई बार लगता है -- काश हम भी ऐसा कर पाते. हालाँकि कहते हैं , हमारे पूर्वज भी तो बन्दर ही थे. लेकिन फिर मानव ने विकास की पथ पर अग्रसर होते हुए अपने लिए सभी सुख साधन जुटा लिए.>>>>>आगे

विक्रम और वेताल 6  from ज़रूरत by Ramakant Singh

राजन
आप ही परमपिता की संतान हो?
हो गई इति?
पूरी कर ली
मन की मुराद?
क्या मिल गया तुम्हें
वातावरण को दूषित करके?>>>>>
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नमक इश्क़ का  from Madhushaalaa by Madhuresh

इक बूँद इश्क़िया डाल कोई तू,
मेरे सातों समंदर जाएं रंग !!'
... कितना गहरा होता होगा इश्क का रंग, कि एक ही बूँद काफी होता है सातों समंदर रंगने के लिए !
आजकल का modern इश्क़ जाने इन एहसासों से परे क्यों लगता है ...>>>>>
आगे

चली बिहारन थोड़ी और बिहारी बनने!  from मैं घुमन्तू by Anu Singh Choudhary

मैं दिल्ली में रहनेवाले बिहारियों के उस तबके में शामिल नहीं जो साल में सिर्फ दो ही बार घर जाता है – छठ पर और होली में। मैं उन लोगों में से भी नहीं जो अपने परिजन, कुल-बिरादर, लोग-समाज, दोस्त-यार, अड़ोसी-पड़ोसियों से साल में दो-एक बार ही मिल पाते हैं। मैं उन लोगों में से भी नहीं जो छह महीने खटकर घर जाएंगे तभी जेब में इतना रुपया आएगा कि जिससे परिवार के छठव्रतियों के लिए सूती धोतियां, सूप, अर्घ्य देने के लिए केतारी, नारियल, नींबू और फल-फूल खरीदा जा सके।>>>>>आगे

तेरी धधकती आँखों का स्पर्श  from swati by swati

तेरी धधकती आँखों का स्पर्श
              इक गले की हँसली से ठीक नीचे का गड्ढा झुलसता है
              फिसलती है इक सोच तेरे कंठ मेंकुछ सांसें अटक जाती हैं, मेरी भी>>>>>
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उठते-उठते उठता है तूफ़ान कोई   from ग़ज़लगंगा.dg by devendra gautam

हैवानों की बस्ती में इंसान कोई.
भूले भटके आ पहुंचा नादान कोई.
कहां गए वो कव्वे जो बतलाते थे
घर में आनेवाला है मेहमान कोई.>>>>>
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रस्म बन कर रह गयी ..... from उन्नयन (UNNAYANA) by udaya veer singh

रस्म   बन    कर   रह  गयी  है
रस्म    अदायिगी   कर  रहे  हैं -
जल  रहा  हर  शख्स    अन्दर ,
दीये   ही   बाहर  जल   रहे  हैं->>>>आगे


इक पल कुंदन कर देना  from वाग्वैभव by vandana

तम हरने को एक दीप

तुम मेरे घर भी लाना

मृदुल ज्योति मंजु मनोहर

उर धीरे से धर जाना>>>>>आगे

आस्था का महापर्व - छठ   from मधुर गुंजन by ऋता शेखर मधु

कार्तिक महीना त्योहारों का महीना हे| करवा चौथ तथा पंचदिवसीय त्योहार दीपावली मनाने के बाद अब आ रहा हे आस्था का चारदिवसीय महापर्व- छठ पर्व| दीपावली के चौथे दिन से इस पर्व की शुरुआत हो जाती है|>>>>आगे

तेरी सासों में क़ैद, मेरे लम्हे  from जुदा जुदा सा, अंदाज़-ए-बयां by शबनम खान

वो लम्हे

तेरी सांसों में क़ैद

जो मेरे थे

सिर्फ मेरे,

जिनमें नहीं थी

मसरूफियत ज़माने की

रोज़ी-रोटी कमाने की>>>>>>>आगे


और अंत में ----
कार्टून:-ये तस्‍वीर है कि‍ बदलती क्‍यों नही



आज की वार्ता बस इतनी ही .... फिर मिलते हैं ...नमस्कार

13 टिप्पणियाँ:

बहुत ही अच्‍छें लिंक्‍स संयोजित किये हैं आपने ... आपके श्रम को सादर नमन

बड़े सुन्दर ढंग से प्रस्तुत वार्ता ....बधाई

पढ़ पाए हैं कुछ ही पोस्ट ..

आते हैं कुछ काम निपटा फिर पढ़ते हैं शेष वार्ता ....



अच्छे अच्छे लिंक्स मिले...मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार!!

अब किये हैं पूरा सभी रचनाओं का पठन

टिपियाइ दिए हरेक पर कर चिंतन मनन

.....सुन्दर प्रस्तुति के लिए पुनः बधाई ..

बहुत बढ़िया प्रस्तुति, मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार

बहुत बढ़िया लिंक्स.

बहुत बढ़िया वार्ता संगीता जी, आभार

बहुत बढ़िया प्रस्तुति...आभार संगीता जी

bahut badhiya charcha hai ... achchhe link mile... abhaar

बढ़िया संयोजन और साज़ सज्जा परिचय सेतुओं का ,संक्षिप्त और मनोहर ,बधाई .

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