सोमवार, 5 नवंबर 2012

पेसल वार्ता में कुँवर रविन्द्र .................... ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार,  कवि, चित्रकार, लेखक के विचारों की उड़ान अनंन्त होती है। कला कर्म सहज नहीं होता, उसके लिए मस्तिष्क की बत्ती हमेशा जलाये रखनी पड़ती है, चाहे बिजली का बिल कितना ही आ जाये। पेट की रोटी काट कर, कष्ट सहकर भी कलाकार अपनी कला को जीवित रखता है। अभिव्यक्ति का माध्यम चाहे कुछ भी हो, चिन्तनशील मानव हर हाल में अभिव्यक्त करता है। कुछ जन्मजात कलाकार होते हैं, उनके द्वारा खींची गयी आड़ी-टेढ़ी रेखाएं भी बहुत कुछ कह जाती हैं। उनके चित्रों में समुद्र सी गहराई है तो नदियों सा अल्हडपन भी है। गाँव की माटी की सोंधी खुशबू है तो शहर की धुप भी। उनके रेखांकन अद्भुत होते हैं, लकीरें ही बहुत कुछ कह जाती हैं, ऐसे कलम एवं कूंची के धनी कुँवर रविन्द्र हैं।

कुँवर रविन्द्र ब्लॉग जगत में 2009 से है, इनकी कृतियाँ भारत की पत्र-पत्रिकाओं "साक्षात्कार, अक्षरा, वागर्थ, मधुमती, सारिका, धर्मयुग, कहानीकार, नई कहानियां, पहल, गवाह, कथानक,कथाबिम्ब, कथादेश, काव्या, कारखाना, शिराजा, हंस, सारिका टाईम्स, नवभारत टाईम्स, संडे मेल, दिनमान, आजकल, नवनीत, खनन भारती, आकलन, वर्तमान साहित्य, समकालीन जनमत, समकालीन जनगाथा, आकंठ, संबोधन, ओर, वसुंधरा, मध्यांतर, शुरूआत, असुविधा, कल के लिए,गुंजन आकल्प, अर्चना, भाषासेतु, पुरुष, कला प्रयोजन,प्रेरणा,साहित्य अमृत, उत्तर प्रदेश, सदभावना दर्पण, कृति ओर,संकेत, परिकथा जैसी साहित्यिक पत्रिकाओ के साथ देश की अनेको व्यावसायिक -अव्यावसायिक पत्र -पत्रिकाओ, पुस्तकों के मुख पृष्ठों पर अबतक लगभग १४.००० ( चौदह हजार ) रेखांकन/चित्र के साथ कविताये प्रकाशित हो चुकी हैं।

इनके चित्रों की प्रदर्शनी  रायपुर छत्तीसगढ़ - १९७९, ब्योहारी , मध्यप्रदेश - १९८३, शहडोल, मध्यप्रदेश - १९८३, विधानसभा सभागार, भोपाल - १९८५, मध्यप्रदेश कला परिषद्, भोपाल - १९८६, दंगा और दंगे के बाद, हिंदी भवन, भोपाल - १९९३, विवेकानंद सभागार, बेतुल - १९९५ एवं 28 अक्तूबर 2012 को महंत घासीदास संग्रहालय की आर्ट गैलरी संपन्न हो चुकी है। इन्हें सृजन सम्मान -१९९५, भोपाल(म.प्र.), कलारत्न -१९९८, बिहार,सृजन सम्मान- २००३, रायपुर(छ.ग.) आदि सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। मिलनसार एवं  व्यक्तित्व के स्वामी कुंवर रविन्द्र को मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं। इनके ब्लॉग का नाम अमूर्त है, मेरी 4 लाइनों के साथ प्रस्तुत हैं इनकी कुछ कृतियाँ ............

 फूलों  का  दर्द  आंसुओं से निचो कर इत्र बनता है.
लाखों  में  कोई  एक हमदर्द अपना मित्र बनता है.
ग़ालिब की गजल मीरा का विरह रंगों में घोलकर 
                                         कतरा  कतरा   रंगों  से  कोई  एक चित्र बनता है. 
                                                                                 (c) तोप रायपुरी 



अब वार्ता को देते है विराम, मिलते हैं ब्रेक के बाद ........... राम राम 

9 टिप्पणियाँ:

ललित जी परिचय करवाने हेतु धन्यवाद |
आशा

बहुत सुन्दर कलाकारी! प्रस्तुतकर्ता का आभार...

वाह सुन्दर कलाकारी………परिचय कराने हेतु आभार

कलम और कूची के धनी कलाकार से परिचय करवाने के लिए आभार ललित जी... शुभकामनायें

जानकारी का आभार ..
बहुत अच्‍छी पेसल वार्ता है !!

कला और कलम के धनी कुँवर रविन्द्र जी को सलाम
उनके सुन्दर चित्र देख कर हम तो उनके प्रंशसक हो गये

चित्र और कवितायें : रूप और रस की सुन्दर साधना -
मन हर्षित होता है !

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