आप सबों को संगीता पुरी का नमस्कार 'पित दिवस' पूरे विश्व में पिताओं के सम्मान में एक व्यापक रूप से मनाया जाने वाला पर्व हैं जिसमे समाज में पिताओं के प्रभाव को महसूस किया जाता है। अनेक देशों में इसे जून के तीसरे रविवार, तथा बाकी देशों में अन्य दिन भी मनाया जाता है।
यह सच है कि पिता के किए को हम किसी भी तरह चुकता नहीं का सकते , पर इस से हर पिता के चेहरे पर थोड़ी ख़ुशी तो आ ही जाती हैं। कम से कम इस दिन तो हम संकल्प ले सकते हैं कि हम उन्हें अकेला या कष्ट में नहीं छोडेंगे। हम उनके द्वारा किये गए हमारी परवरिश के लिए आज आभार तो जता ही सकते हैं।
आज जून का तीसरा सप्ताह है , इसलिए पूरे विश्व के साथ साथ ब्लॉगर भी अपने पिता को याद कर रहे हैं। आज की वार्ता में हम इन्हें ही समेटने का प्रयास कर रहे हैं ....
पिता वह मजबूत तना है
जिसके आधार पर पनप रहा है परिवार
और माँ वह जड़
जो दिखाई नहीं देती, पर जिसकी वजह से खड़ा है वृक्ष
और जो मुखरित है नई नई कोंपलों और कलिकाओं में...
पिता की रगों में दौड़ता है सत्
सत् जो शाखाओं से होता हुआ उतर आया है फूलों में
जिनके भार से झुक गयीं हैं शाखाएँ
धरा तक
और नई जड़ों ने गाड़ दिये हैं अपने डेरे
वृक्ष जीवित रहेगा बनेगा साक्षी प्रलय का
पिताजी पर --बात पाकिस्तान के साथ बांग्लादेश की आज़ादी के युद्ध के समय की है.पापा आप उस युद्ध में गए थे, लड़ने के लिए, मुझे याद है, आपका वो पत्र जो आया था, काफी इंतजार के बाद,जिसका इंतजार पूरा परिवार कर रहा था. दादी हमेशा डाकिये का इंतजार करती थी. कभी तो कोई चिट्ठी लेकर आएगा ? मुझे कुछ सही खबर बताएगा. एक दिन आपका पत्र डाकिया लेकर आया. उसे सभी घर वालों के सामने खोल कर पढ़ा गया.
कुछ यादें कुछ बातें -- अर्चना चावजी के स्वर में
पिताजी पर --बात पाकिस्तान के साथ बांग्लादेश की आज़ादी के युद्ध के समय की है.पापा आप उस युद्ध में गए थे, लड़ने के लिए, मुझे याद है, आपका वो पत्र जो आया था, काफी इंतजार के बाद,जिसका इंतजार पूरा परिवार कर रहा था. दादी हमेशा डाकिये का इंतजार करती थी. कभी तो कोई चिट्ठी लेकर आएगा ? मुझे कुछ सही खबर बताएगा. एक दिन आपका पत्र डाकिया लेकर आया. उसे सभी घर वालों के सामने खोल कर पढ़ा गया.
कुछ यादें कुछ बातें -- अर्चना चावजी के स्वर में
"आज फ़ादर्स डे है......"
अजीब दुनिया हो गई है ये | जो उत्पत्ति का कारण है ,जिसके बिना शायद दुनिया में कदम भी ना रख पाते और जो हर पल, हर क्षण स्मरणीय है ,उन्हें याद करने के लिए एक दिन मुक़र्रर कर दिया गया 'फादर्स डे' के नाम पर | शायद लोग इतने ज्यादा मेकेनिकल होते जा रहे हैं, और इसी विज्ञानी शैली में जीते जीते भावना शून्य होते जा रहे हैं, इसी लिए इतने निकट संबंधों को याद करने के लिए तमाम तरह के दिन ईजाद कर लिए गए हैं, जैसे मदर्स डे ,ब्रदर्स डे,सिस्टर्स डे, और ना जाने क्या क्या |फादर्स डे................. जस्ट सैलीब्रेट
अमरीकी तहजीब या कहे मार्केटिंग के फंडे ने तरह तरह के डे इजाद कर दिए है . फादर ,मदर ,सिस्टर ,ब्रदर ,सन,डाटर और ना जाने क्या क्या .................. और हम उसे आत्मसात भी कर रहे है . आज फादर डे है . एक पुत्र और एक पिता होने के नाते इस दिन को अपने तरीके से देख रहा हूँ मैपा या पापा नहीं, डैड तो बिल्कुल नहीं, हां पिताजी संबोधन मुझे अच्छा लगता है
बरस 1970। खबर मिलती है मुन्ना तुम्हारे पिताजी का एक्सीडेंट हो गया है। वे दोपहिए लेम्ब्रेटा स्कूटर पर मेरी मम्मीजी के साथ सिनेमा देखने गए थे। सिनेमा हाल इरोज़। जंगपुरा में अब भी है। नहीं हैं तो पिताजी नहीं हैं। मम्मीजी हैं और उन्हीं की हिम्मत और हौंसले के बल पर हम पांच भाई बहन। मैं सबसे बड़ा पर उम्र ग्यारह बरस और कुछ महीने।मम्मी और पिताजी को सफदरजंग अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया है। उनके स्कूटर को एक तेज आती हुई कार ने टक्कर मारी थी।
यह क्या हो गया है हम सब को ???बदलते वक्त के साथ सास-बहू के रिश्ते में भी बदलाव आ गया है। पारंपरिक मान्यता के मुताबिक ससुराल में बहुओं के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है, लेकिन अब ऐसा नहीं है।
... यादों के साये में ... बाबू जी !!
बाबू जी ...
क्या थे, क्या नहीं थे
आज भी, समझना बांकी है
आज "फादर्स डे" पर
वे, यादों में, कुछ इस तरह
उमड़ आये
आँखें, न चाह कर भी
खुद-ब-खुद नम हो गईं
वैसे तो अक्सर
हो ही जाती हैं, नम
आँखें, उनकी याद में
पर, आज, कुछ ज्यादा ही
लबालब हो चलीं
खैर ...
कोई चाहे, या न भी
क्या थे, क्या नहीं थे
आज भी, समझना बांकी है
आज "फादर्स डे" पर
वे, यादों में, कुछ इस तरह
उमड़ आये
आँखें, न चाह कर भी
खुद-ब-खुद नम हो गईं
वैसे तो अक्सर
हो ही जाती हैं, नम
आँखें, उनकी याद में
पर, आज, कुछ ज्यादा ही
लबालब हो चलीं
खैर ...
कोई चाहे, या न भी
हिंदी हाइकू .....
भारत यू एस ए यू के कनाडा , चीन , पाकिस्तान आदि देशों में पितृ -दिवस जून के तीसरे रविवार को(इस बार 19 जून) मनाया जाता है । वैसे तो पितृ -दिवस प्रति क्षण प्रतिदिन है । हम निर्भयता और दायित्वबोध पिता से भी सीखते हैं । रचना श्रीवास्तव ने इस अवसर पर कुछ देर पहले हिन्दी हाइकु के लिए अपने नए हाइकु भेजे हैं । हम सभी की ओर से स्नेह और विश्वास का सहारा देने वाली पितृ-शक्ति को प्रणाम !
डॉ हरदीप सन्धु -रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
रचना श्रीवास्तव
1
पिता विश्वाश
लड़खड़ाते हुए
कदमो का है
2
नन्हे पौधों का
धूप ,पानी, खाद है
केवल पिता
सच में थे भगवान पिता
जब तक थे वे साथ हमारे, लगते थे इंसान पिता
जाना ये जब दूर हो गए, सच में थे भगवान पिता।
पल-पल उनकी गोद में पलकर भी हम ये न जान सके
मेरी एक हंसी पर कैसे, होते थे कुर्बान पिता।
बैठ सिरहाने मेरे गुजरी उनकी जाने रातें कितनी
मेरी जान बचाने खातिर, दांव लगाते जान पिता।
वालिद की वफ़ात पर
तुम्हारी कब्र पर मैं
फ़ातहा पढ़ने नहीं आया
मुझे मालूम था-तुम मर नहीं सकते
तुम्हारी मौत की सच्ची खबर
जिसने उड़ाई थी, वो झूठा था
वो तुम कब थे ?
पिता -एक अप्रतिम गीत -कवि यश मालवीय
कवि -यश मालवीय |
पिता- एक गीत -कवि यश मालवीय
तुम छत से छाये
जमीन से बिछे
खड़े दीवारों से
तुम घर के आंगन
बादल से घिरे
रहे बौछारों से
Hi, Dad !! Very bad.
नौकरी के सिलसिले में मैंने कश्मीर से कन्या कुमारी तक देखा. कई कारणों से अधिकतर नौकरी के दौरान अकेले रहना पड़ा. इनमें माता-पिता की सेहत, बच्चों की पढ़ाई आदि थे.
भारत सरकार की सलाह मानते हुए बच्चों के जन्म में अंतर रखा. समय आया जब बच्चों में से कोई 10वीं में आ रहा था तो कोई 12वीं में. ऐन वक़्त पर मेरे बैंक को स्थानांतरण की याद आती थी. स्पष्टतः बच्चों की पढ़ाई पहला चुनाव रहा. इस पर पत्नी की भी सहमति थी.
मैंने गाँव देखा हैं, बैल गाडी देखी हैं और हरियाले खेतों में लहलहाते गेहूं के बालियाँ तोड़कर होला खाया हैं | मेरे पास अभी भी प्रकृति की पूंजी संरक्षित हैं | मेरी नौ वर्ष की छोटी-सी बेटी के बाल सँवारकर, उनमें आँगन में खिले गुलाब के फूल से शोभा बढ़ा सकता हूँ ! .
कितने जीवन मिल जाते हैं......पितृ दिवस पर.... डा श्याम गुप्त की कविता....
....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ ....
( पितृ दिवस पर------पिता की सुहानी छत्र छाया जीवन भर उम्र के, जीवन के प्रत्येक मोड़ पर, हमारा मार्ग दर्शन करती है....प्रेरणा देती है और जीवन को रस-सिक्त व गतिमय रखती है.....प्रस्तुत है ...एक रचना...जो गीत के एक नवीन -रचना -कृति में ...जिसे मैं .....'कारण कार्य व प्रभाव गीत' कहता हूँ ....इसमें कथ्य विशेष का विभिन्न भावों से... कारण ,उस पर कार्य व उसका प्रभाव वर्णित किया जाता है ....)
( पितृ दिवस पर------पिता की सुहानी छत्र छाया जीवन भर उम्र के, जीवन के प्रत्येक मोड़ पर, हमारा मार्ग दर्शन करती है....प्रेरणा देती है और जीवन को रस-सिक्त व गतिमय रखती है.....प्रस्तुत है ...एक रचना...जो गीत के एक नवीन -रचना -कृति में ...जिसे मैं .....'कारण कार्य व प्रभाव गीत' कहता हूँ ....इसमें कथ्य विशेष का विभिन्न भावों से... कारण ,उस पर कार्य व उसका प्रभाव वर्णित किया जाता है ....)
पिता की छत्र-छाया वो ,
हमारे सिर पै होती है |
उंगली पकड़ हाथ में चलना ,
खेलना-खाना, सुनी कहानी |
बचपन के सपनों की गलियाँ ,
कितने जीवन मिल जाते हैं ||
हिमकर श्याम की पितृदिवस विशेष कविता
प्राणों पे उपकार पिता के
जीवन के आधार में
लयबद्ध संस्कार में
नाम में, पहचान में
झंझावतों, तूफान में
प्राणों पे उपकार पिता के
लयबद्ध संस्कार में
नाम में, पहचान में
झंझावतों, तूफान में
प्राणों पे उपकार पिता के
डांट में, फटकार में
प्यार और दुलार में
बंदिशों, नसीहतों में
सबकी जरूरतों में
कांधे पर हैं हाथ पिता के
प्यार और दुलार में
बंदिशों, नसीहतों में
सबकी जरूरतों में
कांधे पर हैं हाथ पिता के
पितृ महिमा
माता कौ वह पूत है, पत्नी कौ भरतार।बच्चन कौ वो बाप है, घर में वो सरदार।।1।।
पालन पोषण वो करै, घर रक्खे खुशहाल।
देवे हाथ बढ़ाय कै, सुख-दु:ख में हर हाल।।2।।
मैया कौ अभिमान है, माँग भरे सिन्दूर।
दादा दादी हम सभी, उनसे रहें न दूर।।3।।
अपनौ अपनौ काम कर, देवें जो सहयोग।
पालन पोषण वो करै, घर रक्खे खुशहाल।
देवे हाथ बढ़ाय कै, सुख-दु:ख में हर हाल।।2।।
मैया कौ अभिमान है, माँग भरे सिन्दूर।
दादा दादी हम सभी, उनसे रहें न दूर।।3।।
अपनौ अपनौ काम कर, देवें जो सहयोग।
पिता न पीछे कूँ हटे, कैसो हु हो संजोग।।4।
पुरूष पिता पाले भर नेह
जीवन रथ के दो पहिए का
बडा सुहाना अद्भूत मेल।
एक अगर जो नहीं मिला तो
बिगड जाता जीवन का खेल।
नारी प्यारी मां अपनी तो
पुरूष पिता पाले भर नेह । एक जल्लाद और कमजोर पिता ने ऐसे मनाया फादर्स डे
विश्व भर और देश भर में आज फादर्स डे यानी पितृ दिवस मनाया जा रहा है ..यह दिन पिता को उसके कर्तव्यों और पुत्र पुत्रियों को पिता के प्रति उनके मान सम्मान की याद दिलाने के लियें मनाया जाता है ..हजारों हजार करोड़ लोग आज के दिन अपने पिता को इस दिवस पर कुछ न कुछ तोहफा देते हैं ..मुस्कुराहट देते हैं लेकिन राजथान के अलवर जिले के एक रविन्द्र नाम के आदमी ने इस दिवस को खून की होली के रूप में मनाया है ...
17 टिप्पणियाँ:
फ़ादर्स डे के उम्दा लिंक्स के परिपूर्ण वार्ता के लिए
आभार
संगीता जी।
ताई अनुपम चर्चा
बहुत उम्दा
आभार अच्छे लिंक्स के लिये
उम्दा लिंक्स से सजी इस वार्ता में नेरी पोस्ट को शामिल कर सम्मान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार !
बहुत अच्छा संकलन ... अच्छी वार्ता रही
आदरणीया संगीता जी बहुत सुंदर ब्लॉग और प्रस्तुति |मेरी प्रस्तुति को शामिल करने के लिये आभार |
sundar charchaa....
पिता को समर्पित वार्ता .
बहुत सुन्दर.
फादर्स डे पर यानि पितृ दिवस पर आपकी यह प्रस्तुति अनोखी है ! बहुत बहुत बधाई !
अनूठा और गम्भीर सयोजन ्।
मेरा इस मंच पर आने का पहला अवसर है. आप सभी का आभार.
आदरणीय संगीता पूरी जी -हार्दिक अभिवादन - बहुत ही मेहनत भरा और सुन्दर ग्राह्य संकलन आप का -पिता और पुत्र का प्यारा न्यारा रिश्ता सदा बना रहे और किसी पिता को संतान से दर्द न मिले यही अभिलाषा और प्रभु से प्रार्थना के साथ आप को बधाई और शुभ कामनाएं
मेरी रचना ------पुरुष पिता पाले भर नेह -------- को भ्रमर का दर्द और दर्पण से आप ने चुना -आभार आप का
आओ सब मिल अपने समाज को सुंदर बनायें
शुक्ल भ्रमर ५
तुम्हारी कब्र पर मैं
फ़ातहा पढ़ने नहीं आया
मुझे मालूम था-तुम मर नहीं सकते
sunder rachnao ka sanchayan
in lines ko padh kar kuch apne se halaat lage. aksar log apne priyejano ke photo par mala chadhate hain. lekin aaj tak main aisa nahi kar payi kyuki mujhe vo apne priyejan mujhse alag lage hi nahi.
sangeeta ji
kya kamal ka sangrah hai bahut hi pathniye .
is guldaste me mere haiku lene ka bahut bahut dhnyavad.
rachana
पितृ दिवस पर आपने मेरा छोटा सा आलेख "विश्वगाथा" से लेकर आपकी साईट पर स्थान दिया, उसके लिए मैं आभारी हूँ |
Sangeeta ji,
ek sath mere do Blago "MUSKAN" aur "MERI DOSTI MERA PYAAR" ko pitri divas par isthan dene ke liye apka bahut bahut aabhar.
आभार
संगीताजी
मातृ-पितृ-गुरु-राष्ट्र ऋण कोई न सक्यो उतार।
जीवन में इन चार की चरणधूलि सिर धार।।
उपाध्यायान् दशाचार्य आचार्यणां शतं पिता। सहस्त्रं तु पितृन् माता गौरवेणातििरच्यते।
मनुस्मृति (2/145)
'आकुल' महिमा जनक की, जिससे जग अंजान।
मनुस्मृति में लेख है, सौ आचार्य समान।।
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