ललित शर्मा का नमस्कार, लखनऊ ब्लॉगर सम्मेलन निपट गया, लोग मिले जुले पुरस्कार ग्रहण किया। समारोह के चित्रों एवं हो रही चर्चाओं से प्रतीत होता है कि परिकल्पना समारोह सफ़ल रहा है। कोई भी समारोह हो पर उसके बाद कुछ छींटा-कसी तो होती ही हैं। ऐसा ही कुछ गत दो दिनों में ब्लॉग जगत में देखने मिला। कल अरविंद मिश्रा जी की पोस्ट पढने मिली। वहाँ पर सवाल-जवाब हो रहा है। एक टिप्पणी हम भी चेप आए - मिसिर जी, ब्लॉग जगत कोई भेड़ बकरियों का रेवड़ नहीं है जिसे कोई भी हाँक कर जैसे चाहे वैसे चरा ले और कोई दो चार लोग नहीं हैं जिन्हे एकत्र करके संगठन बना कर मठाधीशी कर ली जाए। इस विषय पर लोगों को अपनी मानसिकता बदलनी होगी। ब्लॉगिंग करके हम कोई सारे दुनिया जहान को बदल नहीं देगें। मै तो मानता हूं कि परिकल्पना सम्मान से बहाने से ब्लॉगर साथियों में आपस में मेल-मिलाप हआ। बड़े कार्यक्रम में कोई भी आयोजक सभी की तरफ़ ध्यान नहीं दे सकता। कुछ त्रुटियाँ हो ही जाती हैं। जिन्हे पसंद नहीं आया इनका तरीका तो वे अपने तरीके से कर लें। रविन्द्र प्रभात जी ने जो कार्यक्रम किया उसके लिए उन्हे साधुवाद देता हूँ। हालांकि मैं कार्यक्रम में व्यस्तता के कारण सम्मिलित नहीं हो पाया। इसका अफ़सोस रहेगा। क्योंकि ब्लॉगर साथि्यों से मुलाकात का अवसर चूक गया। अभी नहीं सही फ़िर कभी मुलाकात हो जाएगी। कोई भी मान सम्मान छोटा या बड़ा नहीं होता। यह ध्यान में रखना चाहिए। ……… अब चलते हैं आज की लेटलतीफ़ वार्ता पर………
डायरी के पन्नो में वो लड़कीमैं फेसबुक पर लिखने की आदि हू वहा से कुछ चीज़ें ब्लॉग तक आ पाती है कुछ वही रह जाती है ...कुछ एसे ही पेराग्राफ ले आई हू आज ..इन्हें किस श्रेणी में रखा जाए समझ नहीं आ रहा इन्हें मेरी डायरी का हिस्सा माना...ख़ूबसूरत औरतें प्रेम तो था मगर अलभ्य सा, ख़ुशी थी मगर नाकाफ़ी थी। अशांत, अप्रसन्न, टूटे बिखरे जीए जा रहे थे कि किसी ने थाम कर हाथ कहा। मैं भी तुम्हारे साथ चलूँ? ख़्वाब ख़ूबसूरत भी होते हैं। बेवजह की बहुत सारी बातें.....बाकि देश जाए भाड़ में!.राम राम जी, कई दिनों के बाद आज कुछ लिखना चाहता हूँ!असल में मै नहीं चाहता ऐसा लिखना पर क्या करूँ,जो दिखता कलम वो ही तो लिखता है! ऐसा ही कुछ कही पढ़ा या सुना था शायद..... शुरूआती पंक्ति तो पक्का!आगे कुछ-कुछ...
सिर्फ तुम कभी - कभी कोई, किसी के लिए दरवाज़े जब .स्वयं ही बंद कर देता है , तो वह अक्सर उसी की आहट का इंतजार क्यूँ करता है .... क्यूँ ...! हवा में हिलते , सरसराते पर्दों को थाम , उनके पीछे , उस के होने की चाह रखता ह...छू-मंतर Facebook Like Box ब्लॉगर के लिएफेसबुक लाइक बॉक्स(Facebook Like Box) हममें से बहुत ब्लॉगरों ने अपने ब्लॉग में लगाया हुआ है। कुछ इसे ब्लॉगर साइडबार में इसका प्रयोग कर रहें हैं और कुछ ने मेरी पिछली पोस्ट विजेट पॉपअप फेसबुक लाइक बॉक्स (Popu...चंदा ज्यों गागर से ढलका खाली है मन बिल्कुल खाली एक हाथ से बजती ताली, चेहरा जन्म पूर्व का जैसे झलक मृत्यु बाद की जैसे ! ठहरा है मन बिल्कुल ठहरा मीलों तक ज्यों फैला सेहरा, हवा भी डरती हो बहने ...बदलता इंसान इंसानियत की दहलीज़ को पार कर, हैवानियत के संसार में खो गया है वो मार कर अपने ज़मीर को , खुद का ही क़ातिल हो गया है वो अपने पराये का जो भेद जानता भी न था , आज अहम् ( मैं )...
dilli darshan ke bahane यूँ तो दिल्ली शुरू से ही दर्शनीय रहा है. कुछ अपने एतिहासिक इमारतों की भरमार की वजह से और कुछ अपने प्रशासनिक भवनो की वजह से भी .वैसे काफ़ी सारे बाग -बगीचे तो हैं ही साथ ही आधुनिक समय के अनुसार बनाए गये पर्य...बाप रे! बड़े खतरनाक इरादे हैं इस छोरी के लड़की का ख्वाब होता है वह हीरोइन बने, पर वो खलनायिका बनना चाहती है। हालांकि, जल्द ही रिलीज होने वाली फिल्म में उसका किरदार पॉजीटिव है पर उसे नकारात्मक किरदार में ज्यादा स्...हम जब सिमट के आपकी बाँहों में आ गए शांत नदी किनारे जब सूरज डूबे हाथों में हाथ लिए एक दूजे में खो जाएं! सारी दुनिया को भूलकर प्रीत के गीत गाएं कुछ तुम मुझसे कहो कुछ हम तुम्हे सुनाएं!! मौन शब्दों के भाव होठों पर आएं शरमाकर जब हम बाँहों ...
उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान में बवाल, अमृतलाल नागर पर मुद्राराक्षस की टिप्पणी से मची अफरा-तफरी मेरे कुछ निजी विचार जिन्हें सार्वजनिक करना अब अनिवार्य है . . . ------------------------------------------------------------------------- आज उत्तर प्र...३१ अगस्त ३१ अगस्त ....* *नींव **हिली .... देह थरथराई .... नीले पड़े होंठों पर ** इक **फीकी सी मुस्कराहट थी .... ''इक नज़्म का जन्म हुआ है ''* *आज उम्र की कंघी का इक और टांका टूट गया .......!!** छोटे से एक पौधे का रुतबा दरख़्त बोनसाई मैं वज्ह पूछ ही न सका बेवफ़ाई की थी रस्म आज उस के यहाँ मुँह-दिखाई की क़ातिल बता रहा है नज़र है क़ुसूरवार किस वासते है उस को ज़ुरूरत सफ़ाई की हर ज़ख्म भर चुका है मुहब्बत की चोट का मिटती नहीं है पीर मगर जग-...फांसी को नहीं, फांसी पर लटकाना चाहिए फांसी की सजा पाने वालों की फेहरिश्त में एक और दुश्मन आ गया। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर यानि संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरू को फांसी की सजा दिए जाने के बाद से उसे अब तक लटकाया नहीं गया है, अलबत...
वार्ता को देते हैं विराम, मिलते हैं ब्रेक के बाद राम राम