मंगलवार, 14 अगस्त 2012

सचमुच! जनता भैंस, तो बाबा के हाथ में पूंछ? ......... ब्लॉग4वार्ता ....... ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार , फेसबुक पर अनिल पुसदकर कह रहे हैं.....एक और वाक्या याद आ रहा है वो है शाहरूख खान की फिल्म के प्रदर्शन के समय का.सारे देश में फिल्म का प्रदर्शन जरुरी हो गया था और उसका विरोध करने वाले साम्प्रदायिक और कथित भगवा आतंकवादी.पर आज इतना कुछ हो गया मगर वाह रे मीडिया एक बार भी ये नही बताया कि कौन लोग थे हिंसा करने वाले?किस रंग के थे?किस धर्म के थे?किस तरह का प्रदर्शन था ये?शायद इसिलिये प्रदर्शनकारियों ने जिनकी तरफदारी में मीडिया हमेशा लेटा हुआ रह्ता था,उसे ही अपने गुस्से का शिकार बना दिया.अब देश की अखण्डता खतरे में नही आ रही है? अब चलते हैं  की वार्ता  पर.......
 
वो घूरते हैं ज़िस्मों कोवो घूरते हैं ज़िस्मों को, अपनी ऐनक चॅढी आँखों से!! और घर में जाके बनते हैं, बच्चों के आगे शरीफ इंसान!! बस दाँत ही बाहर नहीं आते, उनकी हवस की गनीमत है!! वरना आँखों के रास्ते ही , वे पेबस्त होना चाहते हैं!! क...कोई ऐसी रात आएमेरे ख्वाबों से भरी कोई ऐसी रात आए... तू जब भी बात करे फिर, तो मेरी बात आए... चलो ढूँढे कोई दुनिया, जहाँ मोहब्बत में... न उम्र, न कोई मज़हब, न कोई जात आए.... इश्क़ करने की इस आदत से परेशान हूँ मैं... मेरी...सचमुचसचमुच! ये सब ज्यों का त्यों हो रहा है मुझमें कोई आवाज़! किसी की बात किसी का होना ना होते हुए भी छू रहा है मेरे ज़ेहन को किसी के छू लेने का एहसास मेरे बाहर भीतर आस पास मुझे जकड़ता जा रहा है मेरे ही हाथों स...

अद्रश्य भय से.. मै , सोते हुए भी आँखें नहीं मूंदना चाहता डरता हूँ कही न खुलीं तो एक भय कहीं दूर तक मेरे अंतर्मन मे घर किये बैठा है नस्वर शरीर को नस्वरता प्रदान करने के लिए कोई छिपकर बैठा है आत्मा से अलग मेरे ही शरीर मे...श्याम हमारे आओ .मुरारी मुरली आज बजाओ ! भक्ति की गंगा जमुना में तुम भक्तों को नहलाओ , वृन्दावन की कुञ्ज गलिन में आओ रास रचाओ , यमुना तट पर फिर मनमोहन मीठे राग सुनाओ , क्यों तुम रूठ गये हो कान्हा यह तो हमें बताओ , भारतवास..." रेस्त्रां , वेटर और टिप.रेस्त्रां में प्रायः तो खाने का शौक नहीं , क्योंकि घर के खाने क़ी बात ही कुछ और होती है , पर कभी कभार बच्चों के आग्रह पर , जब वे अपनी मम्मी को खुश करना चाहते हैं , बाहर खाना हो जाता है | ( बना बनाया खाना...

ऐसा भी कोई मित्र होता है भला ?इन्टरनेट पर एक अलग फेसबुक समाज की स्थापना हो चुकी है , आभासी दुनिया की सीमा को लांघ कर यहाँ भी वास्तविक जीवन के सारे गुण दोष , अफवाहें , आरोप , प्रेम , तकरार , नफरत अपनी पूरी भावप्रवणता के साथ मौजूद हैं . .ज़रूरी नहीं ...ज़रूरी यह नहीं कि प्रेम कितनी बार हुआ एक बार हुआ या कई बार ज़रूरी यह है कि जब हुआ ..जिससे हुआ उस वक्त हम उसके साथ पूरी तरह से थे या नहीं . उन पलों में जब थे साथ तब जिए पूर्ण ईमानदारी से मन-तन सब रहा उसके सा...गुप्तचर बनाम गुप्तचर जरायल के लोग अमेरिका की गुप्तचरी कर रहे हैं यह बात एक बार फिर समाचारों में है :यहूदी राज्य के नेताओं ने अभी हाल में जोनाथन पोलार्ड की रिहाई का अनुरोध किया है तथा एसोसियेटेड...

" शायर "सुबह से शाम , और शाम से सुबह ;* *ज़िन्दगी यूँ ही बेमानी है दोस्तों ....* *किसी अनजान सपने में ,* *एक जोगी ने कहा था ;* *कि, एक नज़्म लिखो तो कुछ साँसे उधार मिल जायेंगी ...* *शायर हूँ मैं ;* *और जिंदा हू...हिन्दी न्यूज चैनल की पत्रकारिता जंतर-मंतर की आवाज 10 जनपथ या 7 रेसकोर्स तक पहुंचेगी। देखिये इस बार भीड़ है ही नहीं। लोग गायब हैं। पहले वाला समां नहीं है। तो जंतर-मंतर की आवाज या यहां हो रहे अनशन का मतलब ही क्या है। तो क्या यह कहा जा सक...वक़्तभागता दौड़ता वक़्त बहुत ही मिन्नतों से एक पल के लिए आया था मेरी मुट्ठी में ठीक किसी गीले बादल सा और छोड़ गया अपनी नमी मेरी हथेलियों से आँखों की उपरी पलकों में न जाने कहाँ गया वह छोटे से हसीन वक़्त ...

फटेहालीचंद खिलाड़ियों के जज्बे से, आज शान-ए-वतन कायम है 'उदय' वर्ना, सिंहासन प्रेमियों के इरादे, .......... तो हैं माशा-अल्लाह ? ... 'उदय' अब हम कैसे समझाएं इन्हें, कि वे कोई बात सुनेंगे नहीं क्योंकि - उन...कुछ-२ सबको बांटे दिलबोयें नैना, काटे दिल, कुछ-२ सबको बांटे दिल, खुशियाँ मातम, लाये गम सूखी पलकें, कर दे नम, जख्मों को है छांटे दिल, कुछ-२ सबको बांटे दिल, पल में ज्यादा, पल में कम, लाये बारिश, का मौसम, वादा करके नाटे दिल...जनता भैंस, अन्‍ना के हाथ में सिंघ, तो बाबा के हाथ में पूंछअन्‍ना हजारे का अनशन एवं बाबा रामदेव का प्रदर्शन खत्‍म हो गया। अन्‍ना हजारे ने देश की बिगड़ी हालत सुधारने के लिए राजनीति में उतरने के विकल्‍प को चुन लिया, मगर अभी तक बाबा रामदेव ने किसी दूसरे विकल्‍प की त...

कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -35कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -35- कविता वर्मा की कहान... आगे पढ़ें: रचनाकार: कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -35- कविता वर्मा की कहानी : और क्या करती? http://www.rachanakar.org/2012/08/35.html#ixzz23QrvlwF1 अरुण देव की कविताएँमैं ब्‍लागिंग की अपनी शुरूआत में काफी सक्रिय रहा...फिर ग़ायब-सा हो गया या कहिए कि होना पड़ा। इस बीच कुछ बहुत सुन्‍दर और सार्थक कर दिखाने वाले ब्‍लाग आए हिंदी में, जिन तक मैं देर में पहुंचा। *समालोचन* ऐसा...स्वतंत्रता दिवस..मैं आज़ाद भारत की जनता बेबस ,लाचार, लुटी -पिटी , जानवरों की तरह रहने की आदी...... यह शब्द सुनने मुझे अच्छे नहीं लगते .... क्यूँ कि वे सारे ही गुण मुझ में नहीं है ............ हाँ मैं सहनशील जरुर हूँ , पर कम...

 चलते चलते एक सवाल  ........

वार्ता को देते हैं विराम, मिलते हैं ब्रेक के बाद, राम राम 

7 टिप्पणियाँ:

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ... आभार

बहुत खूबसूरत वार्ता अच्छे लिंक्स

बहुत ही अच्‍छी वार्ता अच्छे लिंक्स...आभार ललितजी


अच्छी रही वार्ता |
आशा

सुंदर वार्ता ..

अच्‍छे लिंक्‍स ...

बहुत सुन्दर लिंक्स एवं बहुत प्यारी वार्ता ललित जी ! मेरी माँ की रचना 'श्याम हमारे आओ' को सम्मिलित करने के लिये आपका बहुत बहुत आभार !

सुन्दर सूत्रों से सजी वार्ता..

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