संध्या शर्मा का नमस्कार... ललित शर्मा जी फ़ेसबुक पर संझा लिख रहे हैं --- "यदि किसी बगुले को स्वर्णहंस समान नीरक्षीर करने वाला आदर्श मान कर आदर एवं सम्मान देते रहते हैं, वह बगुला भी स्वर्ण हंस की भांति अभिनय करता है और सोचता रहता है कि उसका भंडा कभी नहीं फ़ूटेगा। सब यथावत ही चलता रहेगा। लेकिन ऐसा होता कहाँ है? भ्रम स्थायी नहीं होता। एक दिन बगुला अपनी औकात पर आ जाता है और उसका स्वर्णमंडल उतर जाता है। उसे आदर्श मानने वाले का भ्रम भी टूटकर बिखर जाता है। हृदय विदीर्ण हो तार-तार हो जाता है। इसलिए कभी-कभी भ्रम का बना रहना अच्छा होता है क्योंकि टूटने पर दु:ख होने से विषाद जन्म लेकर क्रोध के द्वारा बैर की उत्त्पत्ति से स्थायी घृणा में परिवर्तित हो जाती है। स्थायी घृणा दोनों पक्षों के लिए दुखदायी होती है। इसलिए हे! तुच्छ मानव तू जान ले, कृतघ्नता प्रत्येक परिस्थिति में अक्षम्य होती है। ये दुनिया चिड़ियाघर नहीं है, यहाँ बुद्ध भी हुए और बुद्धि वाले मानव भी बसते हैं। " इस संझा विचार के साथ प्रस्तुत है, आज की वार्ता....
क्या करें क्या न करें 24 और 25 अगस्त 2012 को ?? मेष लग्नवालों के लिए 24 और 25 अगस्त 2012 को स्वास्थ्य या व्यक्तिगत गुणों को मजबूती देने के कार्यक्रम बनेंगे, स्मार्ट लोगों का साथ मिलेगा। रूटीन काफी सुव्यवस्थित होगा , जिससे समय पर सारे कार्यों को अंजाम ...मोह की क्षणभंगुरता में वीरानें में लटकती सांसों को घुंघरू की तरह प्रतिध्वनित होना था जिंदगी दो चार कदम पर गहरी कुआँ थी वक्त बेवक्त नमी सूखती रही प्यास प्याउ पर बिखरी तन्हाई को टटोलती रही सन्नाटे गहराते रहे असंख्य यादों ...आखरी सांस बचाकर रखना एक उम्मीद लगाकर रखना. दिल में कंदील जलाकर रखना. कुछ अकीदत तो बचाकर रखना. फूल थाली में सजाकर रखना. जिंदगी साथ दे भी सकती है आखरी सांस बचाकर रखना. पास कोई न फटकने पाए धूल रस्ते में उड़ाकर रखना. ये इबादत न...
दंतेवाड़ा से कुटुमसर - दंतेवाड़ा की ओर सुबह आँख खुली तो घड़ी 6 बजा रही थी और हम भी बजे हुए थे, कुछ थकान सी थी। कमरे से कर्ण गायब था, सुबह की चाय मंगाई, चाय पीते वक्त टीवी गा रहा था...... "मेरी बेटी-मेरा प्रतिबिम्ब" "मेरी बेटी-मेरा प्रतिबिम्ब" साँसें ठहरी रही, मेरे सीने में एक लम्बे अरसे तक, जैसे, एक तेज महक की घुटन ने, मानो जिंदगी को जकड रक्खा हों, मैंने भी ठान रक्खी थी जीने की, और अपने आप को (मेरी बेटी) जिन्दा र....रिश्तों को ज़मीन पर उतरना ही होता है, चाहें शुरू कहीं से हो..! - वो एक दूसरे से नहीं, एक दूसरे के ख़्यालों से मिले थे पहली दफे। इसकी दुश्वारियां उसने महसूस की थी और उसकी तनहाईयों में ये शामिल हो गया था। वो दोनों अपनी ...
हुनर ... - गर वो सरकार से उतरे तो त्वरत ही मर जाएंगे क्योंकि - सुनते हैं, घोटाले उन्हें ज़िंदा रखे हैं ?? ... काश ! शब्दों में होता हुनर, खुद ही हिट होने का त.. किन किन चीज़ों के लिए आखिर लड़ें महिलाएँ?? - चोखेरबाली, ब्लॉग पर आर.अनुराधा जी की इस पोस्ट ने तो बिलकुल चौंका दिया. मुझे इसकी बिलकुल ही जानकारी नहीं थी कि 1859 में केरल की अवर्ण औरतों को शरीर के उपर... बगल की डाली पर बैठी है कौन...? - कांग्रेस की फुनगी पर कौन है बैठा...?.... बगल की डाली पर बैठी है कौन... हर शाख पर बैठे हैं 2G , आदर्श और कोयले वाले.... अरे किसने लिखा था वो गीत...."हर शाख ...
गीत - मेरे पार्श्व में रहो, ओ मेरे मन के मीत तुमसे ही मुझमें स्पंदन है, तुम्ही हो मेरे गीत. पुष्प नहीं औ’ पत्र नहीं तुम, जिन्हें काल से है प्यार उपम... रहिमन जिह्वा बावरी कहिगै सरग पाताल - आज जब देश का एक बहुत बडा तबका रोज-रोज की मंहगाई से त्रस्त हो किसी तरह दो जून की रोटी की जुगाड में लगा हुआ है, सारा देश इस बला से जूझ रहा है, ऐसे में एक जि... नदी हो तुम... किसी के लिए रुकना नहीं - नदी हो तुम, किसी के लिए रुकना नहीं, बहुत लोग रोकेंगे, बहुत दिक्कतें आएँगी, चलती रहना तुम, किसी के लिए रुकना नहीं, बच्चो का मुंडन होगा, खुशी में थमना नहीं,...
लकीरें हाथों की - *कभी लिखा तफ़सील से,कभी मिटा गयी ,* *हाथों की लकीरें, इतना पता बता गयीं -* * **लिखना तुम्हें पड़ेगा , मुकद्दर अपना,* *कागज,कलम, दवात हाथों में थमा गय... आँच- 117 : केतकी का सुवास पूरे वातावरण में खुशबू भर देता है! - *आँच- 117* केतकी का सुवास पूरे वातावरण में खुशबू भर देता है! [image: Salil Varma की प्रोफाइल फोटो]*सलिल वर्मा* [image: My Photo] *“केतकी”* कहानी की लेखिका...अनमने-अनकहे भाव - ** * * *सुनो, सुनो, सिर्फ सुनो* *रात की तन्हाईयों का गीत।* *इस गीत में शोर नहीं,* *इस गीत में शब्द भी नहीं।* *स्वर नहीं, सुर नहीं* *लय और ताल भी नहीं।* *रंग....
अब थोडा हंसिये मुस्कुराइए ...
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5 टिप्पणियाँ:
संध्या जी, बडे उपयोगी लिंक आपने उपलब्ध कराए। इस सार्थक वार्ता के लिए बधाई स्वीकारें।
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डायन पुराण का विज्ञान!
उद्गम से निष्कर्ष तुम्हारा निश्चित था,
गति खोना, विस्तार निभाना निश्चित था।
फेसबुक पर इतना बढ़िया ज्ञान पढने से चूक गये ...एकदम सत्य वचन !
सभी लिंक्स उत्कृष्ट हैं .
आभार !
अच्छे लिंक्स
बढिया वार्ता
जै हो फ़ेसबुकिया मरीज़ मज़ेदार
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