मंगलवार, 7 अगस्त 2012

लेखक पार्लियामेंट होता है...ब्लॉग4वार्ता....संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार...मंगल ग्रह पर जीवन की खोज करने के लिए नासा का "क्यूरोसिटी" आज सुबह मंगल ग्रह की सतह पर सुरक्षित उतर गया, उसने वहां की तस्वीरें भेजना आरम्भ कर दी है. भारतीय इंजीनियरों ने भी इस योजना में सहयोग किया है. भारत भी मंगल की तैयारी में है  ... आइये अब चलते हैं, आज की ब्लॉग वार्ता पर इन चुनिन्दा लिंक्स के साथ ...

उदयप्रकाश: लेखक पार्लियामेंट होता है उदय प्रकाश की कहानी से मेरा परिचय लगभग 20 वर्ष पूर्व हुआ था। इंडिया टूटे के कहानीकार विशेषांक में "वारेन हेस्टिंग्स का सांड" पढी थी। उसके बाद उन्हे कुछ और पढा। फ़िर भिलाई रंग शिल्पी के नाट्य समारोह....पता न था वक्त ऐसे बदल जाएगा एक आग सी जलती थी मुझ में आज राख का एक ढ़ेर हूँ मैं मत छेड़ना इसे तुम वरना सब कुछ बिखर जाएगा पता न था वक्त ऐसे बदल जाएगा अलमस्त सा उड़ता था गगन में आज पंखहीन सा लाचार हूँ मैं मत पूछना कुछ मुझे तुम वरना द.... एक लायक आदमी इश्क के लायक नहीं बचता....इश्क को उसने उठाकर जिन्दगी के सबसे ऊंचे वाले आले में रख दिया था. उस आले तक पहुँचने के लिए पहले उसने खुद को पंजों पर उठाया. अपने हाथों को खींचकर लम्बा करना चाहे. इतनी मशक्कत मानो अचानक उसके पैरों की लम्ब...

श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (२५वीं-कड़ी) अनासक्त हो कर्म फलों से कर्तव्य समझ कर्म जो करता. वह ही सच्चा योगी सन्यासी, न वह जो यज्ञ कर्म को तजता. (१) कहते हैं सन्यास जिसे सब, उसे योग ही जानो...भूल गया क्यों तुम को? *लगभग साल भर से यह पंक्तियाँ ड्राफ्ट में सुरक्षित थीं। पूर्व में अन्यत्र प्रकाशित अपनी इन पंक्तियों को अपने ब्लॉग पर आज प्रकाशित कर रहा हूँ-* उस क्षण ! मैंने तुमको किया था याद बहुत जब गहरे अंधेरों में खुद...टूटे न ख्वाबों की लड़ी मुझे तुम्हारी आहट सुनाई पड़ी थी पर मैं नींद में था मैंने सोंचा भी कि आये हो तो ख़्वाब तक तो आओगे ही और मैं निश्चिन्त था पर तुम कम थोड़े हो, बाहर से ही लौट गए न चलो अच्छा हुआ वर्ना तुम जान लेते कि किसी की...

तब आता है बसंत  पिछली पोस्ट से आगे  तब आता है बसंत में मौसम और प्रेम एक दूसरे पर किस तरह आश्रित हैं, इसका परिचय मिलता है. प्रकृति में होते बदलाव जहाँ एक ओर ऋतु परिवर्तन का संदेश देते हैं, वहीं प्रिय से मिलने की प्रेरणा .. .बदलती भावनाएं भावनाएं हर समय एक सी नहीं होती,कभी पेम भरी होती हैं कभी नफरत भरी कभी क्रांति विचार आते हैं कभी विद्रोह विचार और कभी समर्पण...अगर हम इन सब भावनाओं से अछूते रहकर सिर्फ अच्छा और बस अच्छा दिखने वाला जीकर चल... पहाड़ और क़ानून पहाड़, पत्थरों पर जिनका था अधिकार वे कानून की किताब से हैं बाहर उन्हें पढनी नहीं आई क़ानून की भाषा और जो भाषा जानते हैं वे उस भाषा में नहीं लिखा जाता है क़ानून पेड़ नहीं जानते हैं कैसे वे कटने के बाद बदल ...

मानवता का दुश्मन परमाणु बम !  *हिरोशिमा -नागासाकी में विनाशकारी परमाणु बादल * *(६ अगस्त और ९ अगस्त १९४५ ) * दोस्तों ! माचिस से चूल्हा ...इंतज़ार में....अक्सर अपने घर के अकेलेपन में महसूस होते हो तुम . मैंने देखे हैं तुम्हारे होंठों के निशाँ अपनी चाय की प्याली पे . गीला तौलिया बिस्तर पे पडा मुझको चिढाता हुआ. सुनाई देती हैं मुझे मेरी आवाज़ जब दिखती हैं ,..चलिए गंगा जी चलें.... पिछली पोस्ट एक शाम गंगा के नाम में आपने देखा था कि गंगा जी बढ़ रही हैं। मैने लिखा था कि अब एक घाट से दूसरे घाट की ओर जाना संभव नहीं। अब शायद मैं आपको गंगा की तश्वीरें न दिखा पाऊँ। मन नहीं माना तो आज शाम फि...

क्‍या करें क्‍या न करें 6 और 7 अगस्‍त 2012 को ??. मेष लग्नवालों के लिए 6 और 7 अगस्त 2012 को भाग्य , भगवान , धर्म . ये सब चिंतन के विषय बने रहेंगे। किसी धार्मिक क्रियाकलाप में व्यस्तता रहेगी। कोई बडा खर्च उपस्थित होगा, बाह़य संबंध मजबूत होंगे , पर बाहरी ...जिन्दगी,,,, जिन्दगी... जिंदगी तुझसे बहुत प्यार है, कितना हंसी तेरा ये साथ है ! मगर तेरे तो दुनिया में रंग हजार, जी चाहता है हर रंग से करू प्यार ! मन में होता है न जाने क्यों अहसास, कम दिनों का बचा है तेरा-मेरा साथ !..  जब सारा आलम सो गया * * *जब सारा आलम सो गया । (गीत ।)* * * * * *जब सारा आलम सो गया, दर्द मेरा ये जाग रहा ।* * * *इश्क - ए - गुनाह का हिसाब मुझ से ये माँग रहा ।* * * * * *अंतरा-१.* * * * * *रात अमा, घना अंधेरा,...

परछाईयों से ...... * अपनी , परछाईयों से डरने लगे हैं हम ,* * अपनी लगायी आग में, जलने लगे हैं हम -* * * * ...गूगल के नाम पर गोरखधंधा ** *एक फ़ोन आता है मैं महिंद्रा सत्यम से बोल रहा हूँ आपका टेलीफोनिक इंटरव्यू है और इंटरव्यू लेने वाला बात करके कहता है १-२ दिन में आपसे हमारी HR बात करेंगी.२-३ दिन बाद HR का फ़ोन आता है कहती हैं आप सेलेक्ट... कैसी है तेरी सरहद ...कविताओं के दौर से निकल के पेश है आज एक गज़ल ... आशा है पसंद आएगी ... चाहे मेरा जितना कद पर बापू तू है बरगद बंटवारे का खेल हुवा खींची अपनी अपनी हद बेटे ने बस पूछ लिया अम्मा है कितनी...

 "चल भ्रम उड़ जा " अब शोर बीच यूँ कुछ तो बोलो इस चुप्पी को कुछ तो खोलो / ढूंढ रहा यूँ कब से तुमको धुंध हटा अब देख उजाला इस जग में मत रह मतवाला आँख नशीली खोल , बोल अब / यही रहस्य तो यही सौंदर्य ...चमका क्या? कविता के कोड में भी कमबखत ऑन और ऑफ है या तो चमकती है या फिर नहीं चमकती चमका क्या? नहीं चमका ....? चमकाता हूँ जरा रूको और फिर से पढो इन्तजार कर रहा हूँ....! चमका क्या? नहीं चमका ....? मेरी अमरीका यात्रा  न्‍यूयॉर्क का जे.एफ.के. हवाई अड्डा एकदम साधारण सा है बल्‍कि‍ हमारे रेलवे स्‍टेशनों का सा लगता है. यह बहुत व्‍यस्‍त हवाई अड्डों में से एक है, इसके कई टर्मिनल हैं...

एक व्यंग ..



आज के लिए बस इतना ही फिर भेंट होगी तब तक के लिए नमस्कार....

7 टिप्पणियाँ:

अच्छी वार्ता
बहुत सुंदर लिंक्स

बहुत सुंदर वार्ता ..

अच्‍छे लिंक्‍सों के लिए आभार संध्‍याजी !!

अच्छी लिंक्स से सजी वार्ता |
आशा

काफ़ी सुन्दर लिंक्स सहेजे हैं………रोचक वार्ता

अच्छी वार्ता...बढ़िया लिंक्स..
शुक्रिया संध्या जी.
सस्नेह
अनु

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