गुरुवार, 14 जनवरी 2016

मकर संक्रांति 'तीळ गुळ घ्या आणि गोड गोड बोला' ब्लॉग4वार्ता....संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार.........तिल और गुड की मिठास आप सभी के जीवन को मिठास और आनंद से भर दे और मकर संक्रांति के सूर्योदय के साथ एक नए सवेरे का शुभारम्भ हो इसी कामना के साथ आप सभी को ब्लॉग वार्ता परिवार की ओर से  मकरसंक्रांति, लोहड़ी एवं पोंगल की  हार्दिक शुभकामनायें.... लीजिये प्रस्तुत है, लम्बे अंतराल के बाद एक लेट लतीफ़ वार्ता ................



सूर्योपासना का पर्व है मकर संक्रांति -हमारे भारतवर्ष में मकर संक्रांति, पोंगल, माघी उत्तरायण आदि नामों से भी जाना जाता है। वस्तुतः यह त्यौहार सूर्यदेव की आराधना का ही एक भाग है।  मकर सक्रांति, एक पुण्य पर्व *बाप-बेटे में कितनी भी अनबन क्यों ना हो रिश्ते तो रिश्ते ही रहते हैं। अपने फर्ज को निभाने और दुनियां को यह * *समझाने के लिए ....



एक आस्था का गीत -यह प्रयाग है -चित्र -गूगल से साभार प्रयाग के संगम पर दुनिया का सबसे बड़ा अध्यात्मिक मेला लगता है |इसे तम्बुओं का शहर भी कहते हैं |बारह वर्ष पर महाकुम्भ और छः वर्ष पर ... सुख लौटा दो - शापित धन-यश नहीं चाहिये, व्यथा-जनित रस नहीं चाहिये । त्यक्त, कुभाषित जीवन, तेरा संग पाने को अति आकुल है । तेरी फैली बाहों में छिप जाने को रग रग व्याकुल है ।....


शुभाशंसा  जीवन जीने के लिये दो इतना अधिकार चुन कर दुःख तुम पर करूँ सुख अपने सब वार ! हर पग पर मिलती रहे तुम्हें जीत पर जीत फ़िक्र नहीं मुझको मिले कदम कदम पर हार ! बिखराने को पंथ में चुन कर लाई फूल सँजो लिये अपने हृदय काँटों के गलहार ! चुभे न भूले से कोई शूल तुम्हारे पाँव सुख मानूँ मुझको मिलें चाहे कष्ट अपार ! गहन तिमिर के कोष्ठ मैं रहूँ भले ही क़ैद तुम्हें मिले आलोकमय खुशियों का संसार ! मेरे शब्दों के है.......,!!! तुमसे रिश्ते मेरे सभी... शब्दों के है.... तुमने सुना नही कभी, मैंने कहा नही कभी..... तुम पढ़ लेते हो मुझको, मैं लिख लेती हूँ तुमको.. तुमसे एहसास मेरे सभी.... शब्दों के है.... हम सदा अंजान ही रहे इक दूजे से, तुम मिल लेते हो मुझसे मैं छु लेती हूँ तुमको, तुमसे बयाँ करते जज्बात मेरे सभी, शब्दों के है.... इक दुरी सी थी हमारे दरमियाँ, इक गहरी खामोशी की तन्हाईयाँ, तुम्हारे सवालो के जवाब सभी, मेरे शब्दों के है.......!!



अंतर्मन - हलकी सी आहट गलियारे में कहाँ से आई किस लिए किस कारण से लगा समापन हो गया निशा काल का तिमिर तो कहीं न था स्वच्छ नीला आसमान सा दृष्टि पटल पर छाया ...दूसरी दुनिया का कोई फाहा, जाग के कंधे पर -बंद आँखों में कभी-कभी चहचहाती हैं नीली- धूसर चिड़ियाँ. खुली आँखों में जैसे कभी बेवक्त चले आते हैं आंसू. सुबहें तलवों के नीचे तक घुसकर गुदगुदी करती हैं...

रामायणकालीन खरदूषण की नगरी : खरौद तपोभूमि छत्तीसगढ़ को प्राचीन काल में दक्षिण कोसल के नाम से जाना जाता था।... स्वागत नवीनता का ... -परिवर्तन प्रकृति का नियम है, जो कभी परिवर्तित नहीं होता। सकारात्मक दृष्टिकोण से देखा जाए तो हर परिवर्तन नवीनता से भरपूर होता है, तो आइये इस नवीनता का स्वागत करें ...



दीजिये इजाज़त! नमस्कार........ 


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