शनिवार, 29 सितंबर 2012

गणपति बाप्पा मोरया, पुढच्या वर्षी लवकर या... ब्लॉग4वार्ता....संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार ....भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक चलने वाले विद्या, बुद्धि, ऋद्धि-सिद्धि के दाता, मंगलकर्ता, विध्न विनाशक श्रीगणेश जी के १० दिवसीय जन्मोत्सव की धूम का आज समापन दिवस भी आ गया पता ही नहीं चला ये दस दिन कैसे बीत गए घर, शहर सभी कुछ बाप्पा की भक्ति में डूबा रहा आज उनके विसर्जन का दिन है, आइये उन्हें अंतिम विदाई इस उम्मीद के साथ देते हैं कि अगले साल गणपति फिर आएंगे और हम सभी उनके आशिर्वाद को पुन: प्राप्त कर सकेंगे. गणपति बाप्पा मोरया, पुढच्या वर्षी लवकर या... अब चलते हैं आज की वार्ता पर...  




मैं इस सोने की मरी हुई चिड़िया को बेचकर चला जाऊंगा - विमल कुमार का एक इंटरव्यू आपने आज सुबह यहाँ पढ़ा होगा. अब पढ़िए उनकी एक चर्चित कविता – मैं इस देश को बेचकर चला जाऊंगा विमल कुमार सोने की इस मरी हुई चिड़िया..खुरपेंचें, खुराफातें…पीढ़ी दर पीढ़ी - जी, खुरपेंची होना हमारे बैसवारा की सबसे बड़ी विशेषता है. बड़े-बड़े लम्बरदार भी इससे बाज नहीं आते. बचपन से ऐसी खुराफातें देखकर बड़ी होने के बाद भी मैं इतनी ....बड़ापन कोठियों मे, बड़प्पन सड़कों पर - यह, कुछ दिनों पहले की, इन्दौर की बात है। एक मित्र के यहाँ बैठा था। वे साहित्यकार तो नहीं हैं किन्तु ‘साहित्य और साहित्यकार प्रेमी’ हैं। इसीलिए, इन्दौर के ... 

एक दरिया ख्वाब में आकर यूँ कहने लगा - कभीजलते चराग के लौ को बना कर अपना साथी, हमने दास्तान सुना दी गम -ए- ज़िन्दगी की | कभी हवा के झोंके संग "रजनी" उड़ा दिए , जितने भी ...बरसात के बाद शिशिर के आगमन से पहले - बरसात के बाद जब मौसम करवट लेता है शिशिर के आगमन से पहले और बरसात के बाद की अवस्था मौसम की अंगडाई का दर्शन ही तो होती है शिशिर के स्वागत के लिए हरा कालीन बिछ ... .दोस्ती... (Dostee...) - बात ये नहीं कि तूने मायूस किया.. अफ़्सोस ये, कि तेरे किये को तेरा कसूर न मान, तुझ पर आँख बन्द कर ऐतबार किया उसे अपनी ग़लती मानना होगा... कि "तूने कहा और मैं... 


जयपुर में आर्ट व पेंटिंग शो - 19 से 21 अक्टूबर तक* जयपुर के जवाहर कला केन्द्र में भीलवाड़ा (राजस्थान ) की आर्टो फिल आर्ट गैलेरी द्वारा आर्ट व पेंटिंग शो का आयोजन किया जा रहा है। 19 से ...रूबरू : चार्ली चैप्लिन - *अनुवाद एवं प्रस्तुति: संदीप मुद्गल* विश्व सिनेमा के आदि पुरुष चार्ली चैप्लिन की प्रतिभा के कई पहलू थे। वह अभिनेता-निर्देशक होने के साथ-साथ एक लेखक व संग... त्रिपाठी बाबू जी - रेखा कई दिनों से महसूस कर रही थी कि विपिन के साथ सब कुछ ठीक नहीं था। पूछने पर विपिन उसे बातों ही बातों में टाल देता। आज जब विपिन ऑफिस से लौटा तो रेखा ने ..

पतझर / हाइकु - झरते पत्ते देते यह संदेश जाना तो है ही । ये मेरा मन झर झर जाता है पीले पत्तों सा । ऋतु दबंग हर लेती है पत्ते स...  देखा है मैंने - ** *देखा है मैंने* * * *घर के पिछले दरवाजे से तुमको छिपकर आते हुए।* * * *देखा है मैंने* * * *तुम्हारे चखे हुए शहतूतों को खट्टा बताकर खाते ... प्यार सिर्फ एहसास ही नहीं - अभिव्यक्ति भी है - जो भी नाम दो... प्यार इश्क मुहब्बत ख़ुदा कहो या ईश्वर शिव कहो या आदिशक्ति ........ एहसास तो है ही यह रूह से इसे महसूस भी करते हैं पर जिस तरह ईश्वर मंत... 


जहाँ न हो - ब्लोगर साथियों मेरी कविता "जहाँ न हो " की दो पंक्तियाँ मैंने २००२ में सपने में सुना था जो तब से मेरा पीछा कर रही थी इससे पीछा छुड़ाने के लिए मैंने आज उसे ...  नरपिशाच हैं ये दोनों - राजेश और बेबी नामक दो नरपिशाचों ने आपस में विवाह कर लिया , फिर छः वर्ष तक बच्चा न होने पर अपने रिश्तेदार की छः वर्षीय बेटी शिवानी को गोद ले लिया ! जिस द... फिर लौटे हैं वो लम्हें...Memories are back - * * *फिर लौटे हैं वो लम्हें* *यादों की शामों के साथ* *फिर एक बार चाहूँ मैं हरदम* *छिपना तेरे दिल के पास* * * *छू लो मेरे मन को तुम फिर से* *कहनी है तुमसे वो..

नीतीश कुमार आईना देखकर परेशान क्यों है? - *हरेश कुमार* * * एक पुरानी कहावत है कि चौबे जी चले थे, छब्बे जी बनने और दूबे जी बनकर आ गए। लगता है नीतीश कुमार, (बिहार के मुख्यमंत्री) के मामले में ऐसा ह... आभा का घर - मुझे बहुत सारे बच्चे याद आते हैं। अपनी मम्मा की साड़ी, ओढ़ना, चुन्नी और बेड कवर जैसी चीजों से घर बनाने का हुनर रखने वाले बच्चे। वे सब अपने घर के भीतर कि...लता मंगेशकर - एक आवाज 83 साल की - लता मंगेशकर, एक आवाज...;भारत की आवाज.....जि‍स आवाज को हम सब बचपन से लगातार सुनते आ रहे हैं....शायद ही कोई दि‍न गुजरता हो जब हमारे कानों को ये आवाज छूकर न... 


हिरोइन नहीं थी वो, - हिरोइन नहीं थी वो, और न ही किसी मॉडल एजेंसी की मॉडल फिर भी, जाने कैसा आकर्षण था उसमे जो भी देखता, बस, देखता रह जाता, उसका सांवला सा चेहरा, मनमोहक मुस्कान, औ...फार्मा नीति और चोर बाज़ारी - मंत्रियों के समूह ने आख़िर में लम्बे विचार विमर्श के बाद नयी फार्मा नीति के बारे में सहमति दे दी है जिसके बाद इसे विचार के लिए कैबिनेट मे... एकताल - केलो-कूल पर कला की कलदार चमक रही है। यह आदिम कूंची की चित्रकारी के नमूनों, कोसा और कत्थक के लिए जाना गया है। यहां रायगढ़ जिले की छत्तीसगढ़-उड़ीसा सीमा से ल.....

चलते-चलते एक कार्टून ...    

  

अब लेते हैं, विराम अगली वार्ता तक के लिए नमस्कार ..........

शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

व्यस्तता नहीं , अर्थपूर्ण व्यस्तता आवश्यक है .... ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप


आज की वार्ता में  संगीता स्वरूप का नमस्कार ..... वार्ता4 ब्लॉग   पर मेरी पहली वार्ता ........ सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार के लिए यह ज़रूरी नहीं है कि वह प्राईवेट कंपनियों  को प्राकृतिक संसाधन देने के लिए नीलामी की प्रक्रिया ही अपनाएं । अब प्रक्रिया कोई भी हो  घोटाला तो होना ही है .... चलिये घोटालों के बीच ही हम चलते हैं आज की वार्ता पर --


सब कुछ गूगलमय ---
रात लगभग आधी बीत ही चुकी। लेकिन बात कुछ ऐसी है कि 'रह न जाए बात आधी।' घड़ी का काँटा १२ के डिजिट को विजिट कर  उस पार की यात्रा पर निकल गया। अब तो डेट भी बिना लेट किए करवट बदल ली। २७ की अठ्ठाइस हो चुकी। लेकिन बात तो आज ही  की है; आज ही की  शाम की है.....ये शाम कुछ अजीब थी....
आज शाम एक ताना सुनने को मिला कि मैं बहुत 'कर्री' और लगभग  'गद्द नुमा कवितायें' लिखने लग पड़ा हूँ।

रचना जब विध्वंसक हो
जब चुप्पी इतनी क़ातिल है,
लब खोलेंगे तब क्या होगा ?


जब छूछे नैन बरसते हैं,
भर आएँगे तब क्या होगा ?

व्यस्तता नहीं, अर्थपूर्ण व्यस्तता आवश्यक है
यूँ तो आजकल हर कोई व्यस्त है । जीवन की गति से तालमेल बनाये रखने को आतुर । जीवन से भी अधिक तेज़ी से दौड़ने को बाध्य । आपाधापी इतनी कि  हम यह विचार करना भी भूल ही गए  कि जितना व्यस्त हैं , इस व्यस्तता के चलते जितना लस्त-पस्त हैं, उसकी आवश्यकता है भी या नहीं।

ख्वाब तुम पलो  पलो
तन्हा कदम उठते नहीं
साथ तुम चलो चलो
नींद आ रही मुझे
ख्वाब तुम पलो पलो


कमला बाई की कहानी उसकी जुबानी
नागपुर से ट्रेन में सवार हुआ, आरक्षण था नहीं, इसलिए रायपुर तक का जनरल बोगी का ही सफ़र लिखा था। फिर अधिक  दूरी भी नहीं है, सिर्फ 5 घंटे का सफ़र यूँ ही कट जाता है। बड़ी मशक्कत के बाद बोगी में घुसने मिला, शर्मा जी ने बालकनी में सीट देख ली थी, चलने की जगह पर भी लोगों का सामान रखा हुआ था।

राधा को ही क्यों चलना पड़ता है, हर युग में अंगारों में !
राष्ट्र-संपदा  की लूट-खसौट,
बंदर बांट लुंठक-बटमारों में,
नग्न घूमता वतनपरस्त, 
डाकू-लुटेरे बड़ी-बड़ी कारों में !

ज़रूरी नहीं कि हर सीने का दर्द दिल का दौरा ही हो
सीने का दर्द कई कारणों से हो सकता है लेकिन इसे हमेशा दिल के दौरे से जोड़ कर देखा जाता है। लोगों में दिल के दौरे का खौफ इस कदर समाया हुआ है कि जरा सा छाती में खिंचाव, दर्द या जलन की शिकायत हुई नहीं कि दौड़ पड़े निकट के डॉक्टर के पास। तुरंत ईसीजी और खून की कई जाँचें तत्काल करा ली जाती हैं पर नतीजा कुछ नहीं निकलता। इसके बाद भी संतोष नहीं हुआ तो पास के किसी नर्सिंग होम या छोटे अस्पताल में जाकर भर्ती हो गए और वहाँ के आईसीयू में चार-पाँच दिन गुजारने के बाद तसल्ली मिली।

साधना शब्‍दों की ... !!!
साधना शब्‍दों की
तुम्‍हारे शब्‍दों को जब भी मैं अपनी
झोली में लेती वे तुम्‍हारी खुश्‍बू से
मुझे पहले ही सम्‍मोहित कर लेते
तुम्‍हारे कहे का अर्थ
मैं पूछती जब भी चुपके से


‘रेणु’ से ‘दलित’ तक
एक था ‘रेणु’ और दूसरा था ‘दलित’ | दोनों का सम्बंध जमीन से था | रेणु का जन्म बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिम्गना गाँव में हुआ | दलित का जन्म छत्तीसगढ़ के अर्जुंदा टिकरी गाँव में हुआ | दोनों ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े | रेणु कथाकार र्हा और दलित कवि |

बाहरी (लघु कथा)

गरीबा समुद्र के किनारे बैठा देख रहा था, कि लोग बारी-बारी से गणेश जी की विभिन्न आकर की प्रतिमाएँ लाते और उन्हें समुद्र मैं विसर्जित करके नाचते-गाते वहाँ से  चले जाते. गरीबा बहुत देर तक यह सब देखता रहा.

बरसात के बाद शिशिर के आगमन से पहले

बरसात के बाद
जब मौसम करवट लेता है
शिशिर के आगमन से पहले
और बरसात के बाद की अवस्था
मौसम की अंगडाई का दर्शन ही तो होती है


"स्वास्थ्यवर्धक के नाम पर लूट!"

आदरणीय स्वामी जी!
   आपकी बात मानकर मैं स्थानीय पतंजलि क्रयकेन्द्र पर गया तो वहाँ 5 अनाजों से निर्मित स्वास्थ्यवर्धक आटे का दाम पचास रुपये किलो था।...

विचलन

चारों और घना अन्धकार
मन होता विचलित फँस कर
इस माया जाल में
विचार आते भिन्न भिन्न
कभी शांत उदधि की तरंगों से


" १९ जुलाई से २८ सितम्बर तक ....

वर्ष में १२ माह होते हैं परन्तु हमारे यहाँ तीन माहों में ही हम सब के जन्म दिन हो जाते हैं | पार्टियां करो तो लोग कहते हैं , यार इनके यहाँ तो रोज ही जन्म दिन होता है | जब बच्चे छोटे थे तब दोनों का जन्म दिन हमलोग अक्सर किसी एक की ही तिथि पर मना लिया करते थे | पर उस दशा में दोनों में गिफ्ट के लिए बहुत लड़ाई होती थी |

बेहतर

वेदना संवेदना है
क्रोध है और कामना है
मोह है और भावना है
मद है कुछ अवमानना है
प्रेम है सद्भावना है
इनके चलते मै सिरफ
इन्सान हूँ यह मानना है ।

आंच-120 : चांद और ढिबरी
दीपिका जी के ब्लॉग ‘एक कली दो पत्तियां’ पर पोस्ट की गई कविताएं पढ़ते हुए मैंने महसूस किया है कि कविता के प्रति दीपिका जी की प्रतिबद्धता असंदिग्ध है और उनकी लेखनी से जो निकलता है वह दिल और दिमाग के बीच कशमकश पैदा करता है

एकताल
केलो-कूल पर कला की कलदार चमक रही है। यह आदिम कूंची की चित्रकारी के नमूनों, कोसा और कत्थक के लिए जाना गया है। यहां रायगढ़ जिले की छत्तीसगढ़-उड़ीसा सीमा से लगा गांव है- एकताल

परिंदे ऐसे आते हैं
आज सुबह जब आंख खुली
रात की आलस धुली
मैंने पाया
मैं चिड़िया बन गया हूँ

सूर्य  पुत्र
एक समय की बात है जब बेल्ला कूला नदी से कुछ ही दूरी पर रहने वाली युवती अपने ही कबीले के नवयुवकों की ओर से आने वाले सारे विवाह प्रस्तावों को ठुकरा रही थी क्योंकि वह स्वयं सूर्य से विवाह करने की इच्छुक थी , अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए उसने अपना गांव छोड़ा और सूर्य की खोज में चल पड़ी

हीरोइन  नहीं थी वो
हिरोइन नहीं थी वो,
हिरोइन नहीं थी वो,
और न ही किसी मॉडल एजेंसी की मॉडल
फिर भी,
जाने कैसा आकर्षण था उसमे
जो भी देखता, बस, देखता रह जाता,


अपनी कहानी, आपके साथ
ये वक्त भी कट जाएगा और वक्त की तरह। बस इंतजार है हमें अपनी किस्मत का।
तो क्या? हम कोई लेखक हैं जो लिख कर रखते हैं। अपनी तो अदा ही निराली है, बस एक नजर देखा और लिख डाला सब कुछ।
इतने दिनों बात उनसे हमारी मुलाकात हुई। कब देखत-देखते सुबह से शाम हो गई ये पता ही ना चला।

रेखा जोशी की लघुकथा - एक कप चाय और सौगंध बाप की

शर्मा जी ने हाल ही में सरकारी नौकरी का कार्यभार संभाला था,अपनी प्रभावशाली लेखन शैली के कारण वह बहुत जल्दी अपने ऑफ़िस में प्रसिद्ध हो गए।

आज के लिए इतना ही ..... मिलते हैं एक ब्रेक  के बाद

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

मियाँ मस्त है छाप डालो...ब्लॉग 4 वार्ता---ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार .....सूना पड़ा पंडाल, पर्यटन के पंडे मालामाल। छत्तीसगढ पर्यटन विकास मंडल तीन दिवसीय (25 सितम्बर से 27 तक) विश्व पर्यटन दिवस मना रहा है। गुरु तेगबहादूर सभागृह रायपुर ( राजभवन के सामने) में आयोजन स्थल पर पहुंचने पर पर्यटन विकास मंडल का कोई अधिकारी या कर्मचारी नहीं मिला। न ही पर्यटन के जिज्ञासु, जिनके लिए आयोजन किया गया है। पर्यटन के विकास के नाम पर मंडल सिर्फ़ सफ़ेद हाथी साबित हो रहा है। अगर पर्यटन विकास मंडल गंभीरता से कार्य करे तो भारत में छत्तीसगढ जैसा संस्कृति, पुरातात्विक धरोहरों एवं नैसर्गिक प्राकृतिक सम्पदा से मालामाल अन्य कोई प्रदेश नहीं। धन्य है छत्तीसगढ पर्यटन विकास मंडल...........अब चलते हैं आज की वार्ता पर, प्रस्तुत हैं कुछ उम्दा चिट्ठों के लिंक। 

रमाशंकर शुक्ल की 4 लघुकथाएं - लघु कथा ०१ जंगल, रजनी और नेट. पैंतालीस के पार राघव इन दिनों अपने में खोए रहते हैं. घंटों कम्प्यूटर के स्क्रीन पर घूरते हुए कभी खिसियाहट में किसी के फेसबुक ...हल्का- फुल्का - कुछ अंगों,शब्दों में सिमट गई जैसे सहित्य की धार कोई निरीह अबला कहे, कोई मदमस्त कमाल. ******************* दीवारों ने इंकार कर दिया है क... हिंदी ब्लॉग जगत ' -- एग्रीगेटर , कपिल सिब्बल का है ! - "हिन्दिब्लौग्जगत" नामक एग्रीगेटर कपिल सब्बलों का है जो अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता से घबराकर कभी फेसबुक बंद कराने की धमकी देते हैं तो कभी कुछ ! पूर्व में भी... 

पुकार रही हूँ तुम्हें चातक की तरह नहीं अपनी तरह - अजन्ता देव की एक कविता आप ने कल पढी थी. आज उसी क्रम में एक और कविता - अर्द्धसमाप्त जीवन क्या यही मृत्यु हैजबकि सब-कुछ रह गया पहले सामैं भी मेरा जीवन भीरह ... मत नफ़रत की राह सुझाओ - मत नफ़रत की राह सुझाओ, तुम्हें मिलाने दिल भेजा है. मंदिर मस्ज़िद की दीवारें क्यों इंसां के बीच खड़ी हो. एक तत्व है सब प्राणी में, राम रहीम में अंतर क्यों ...तुम जो नहीं हो तो... आ गए बताओ क्या कर लोगे... - *कल रात देवांशु ने पूरे जोश में आकर एक नज़्म डाली अपने ब्लॉग पर, डालने से पहले हमें पढाया भी, हमने भी हवा दी, कहा मियाँ मस्त है छाप डालो... और तभी से उनकी... 

बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन? - घोटालों पर अब किसी का ध्यान नहीं जाता हरेश कुमार इस देश की जनता अपने नेताओं के द्वारा किए जा रहे घोटालों की अभ्यस्त हो गई है। इसलिए अब लाखों-करोड़ों रु...मुखौटे - कुछ लोग अभागे होते हैं वो जिनके पास होते हैं या जो इनके पास होते हैं वो सब के सब ओढ़े ही रहते हैं मुखौटे ताउम्र. उनके आवरणों के टाँके कच्चे हो भले ... बच्चों का जीवन - 'ऐसी क्या चीज है, जो आपको तो नहीं मिलती है पर आपसे उसकी आशा सदैव की जाती है', आलोक ने बच्चों से पूछा। इज्जत या आदर, उत्तर मिलने में अधिक देर नहीं लगी, और ...

आधे सच का आधा झूठ - *आधे सच का आधा झूठ * * * *ईस्ट इंडिया कम्पनी की नै अवतार सरकार की दलाली करने वाले हिन्दुस्तान में बहुत से लोग हैं .ये आज भी वही कर रहे हैं जो तब करते थे ....  मेरे शिवा के गणपति! - इन दिनों भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक चलने वाले १० दिवसीय विद्या, बुद्धि, ऋद्धि-सिद्धि के दाता, मंगलकर्ता, विध्न विनाशक गणेश जी के जन्मोत्सव ... आसाम समस्या से मुहं मोडना कहाँ तक उचित !! - आसाम में कोकराझार हिंसा के बाद पुरे आसाम में अवैध बंगलादेशी नागरिकों के बारे में एक माहौल बन गया है वहाँ पर लगातार इन अवैध नागरिकों के प्रति शांतिपूर्ण प्..

महेशपुर: भग्न मंदिरों का वैभव दर्शन - बड़े देऊर मंदिर, के पी वर्मा,ललित शर्मा, राहुल सिंह महेशपुर जाने के लिए उदयपुर रेस्टहाउस से आगे जाकर दायीं तरफ़ कच्चा रास्ता है। यह रास्ता आगे चलकर एक डब्लु... ....वर्ष का सर्वश्रेष्ठ घुमक्कड- नीरज जाट - एक दिन सन्दीप भाई घूमते घूमते हमारे यहां आ गये। उनका जब भी कभी लोहे के पुल से जाना होता है, वे अक्सर आ ही जाते हैं। बोले कि इस बार तू परिकल्पना द्वारा आयोज..विविधा..... - * ** * * **बड़ी द्विविधा में हूँ आजकल......* *किसे स्वीकार करूँ.....???* *एक वो 'तुम' हो * *जिसे मैं अब तक जानती थी,* *पहचानती थी...!* *आज वो कहीं गुम ह... 

 शायद ....गज़ल... - कभी जो राह तकते थे वो अब नश्तर से चुभते हैं किताबों में रखे हैं फ़ूल वो अब खंजर से दिखते हैं... हुई ये आँख भी गीली और उदासी का समन्दर है अगर कोई जाम भी छलके... सच से हम डर जाते हैं - रामायण गीता, कुरान, सब हैं पास, इन सब की झूठी कसमें खाते हैं, जाने क्या चोर है मन में, इस सच से हम डर जाते हैं, दिल में नफरत, तो लबो पे मुस्कान, दिल में म....अक्षुण्ण है भारतीय संस्कृति की मौलिकता - पं. दीनदयाल उपाध्याय - * *** *पं. दीनदयाल उपाध्याय की जंयती 25 सितम्बर पर विशेष * पं. दीनदयाल उपाध्याय एक महान राष्ट्र चिन्तक एवं एकात्ममानव दर्शन के प्रणेता थे. उन्होने मा....

साकार होंगे नवस्वप्न... बिलकुल नए अँधेरे में आँखें मूंदकर देखे नवस्वप्न.... क्या होगा इनका साकार होंगे या टूट जायेंगे टूटना कोई नई बात नहीं साध्य पीढ़ी नई मेरी दृष्टी प्राचीन तो ...पढ़ रहा है मंत्र कोई .... - *** * * ** ** ** ** ** ** ** * * ** * * * * ** ** ** ** पढ़ रहा है मंत्र , कोई * * ...सवाल - * * * * *कितने सवाल थे तुम्हारे * *एक मैं ही क्यूँ * *और भी तो कई है इस जहाँ में* *क्यूँ चुना है तुमने मुझे* *अपने लिए बताओ ना ???* * * *अब क्या कहूँ * * ... 


 
देते हैं आज की वार्ता को विराम, राम-राम ............ 

बुधवार, 26 सितंबर 2012

तेरे अन्दर -मेरे अन्दर, एक समंदर... ब्लॉग4वार्ता....संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार ......कभी -कभी एक ऐसा वक़्त भी जीवन में आता है, जब जीवन की राह में हमें कई मोड़ दिखाई देते हैं, माना की हर राह, हर मोड़ मंजिल तक पहुंचा देती है, लेकिन हमें राह वही चुननी चाहिए जो सही हो सच्ची हो, क्योंकि संघर्ष जितना कठिन होगा जीत उतनी ही शानदार होती है .....
"मोड़ आते हैं के जिन्दगी को पड़ाव मिले
थकान  मिटे मन प्रसन्न हो
आगे बढ़ने के लिए नयी उर्जा मिले
नयी आशाएं जागें खुशियाँ मिले 
आगे बढने को मन करे
जिंदगी की राह पे
चलते चलते.... " इसी शुभकामनाओं के साथ आइये चलते हैं आज की वार्ता पर...... 

तुम जो नहीं हो तो... चाँद डूबा नहीं है पूरा, थोड़ा बाकी है | वो जुगनू जो अक्सर रात भर चमकने पर, सुबह तक थक जाता, रौशनी मंद हो जाती थी, अभी भी चहक रहा है, बस थोड़ा सुस्त है | यूँ लगता है जैसे रात पूरी, जग के सोयी है , आँख में जगने की नमी है, दिल में नींद की कमी | सूरज के आने का सायरन, अभी एक गौरेया बजाकर गयी है | अब चाँद बादलों की शाल ओढ़ छुप गया है , सो गया हो शायद, थक गया होगा रात भर चलता जो रहा  , बस तुम्हारी खुशबू नहीं. महकती ... हताशा असफलता और बेचारगी बेरोजगारी की पीड़ा से वह भरा हुआ हताशा से है असंतुष्ट सभी से दोराहे पर खडा सोचता किसे चुने सोच की दिशाएं विकलांग सी हो गयी गुमराह उसे कर गयी नफ़रत की राह चुनी कंटकाकीर्ण सकरी पगडंडी गुमनाम उसे कर गयी तनहा चल न पाया साये ने भी साथ छोड़ा उलझनो में फसता गया जब मुड़ कर पीछे देखा बापिसी की राह न मिली ..तुम कहाँ हो ?  तुम कहाँ हो ? युगों युगों की पुकार ना जाने कब तक चलेगी यूँ ही अनवरत बहती धारा प्रश्न चिन्ह बनी अपने वजूद को ढूंढती क्योंकि तुमसे ही है मेरा वजूद तुम नहीं तो मैं नहीं मैं .............

 कथरी .कैसन तबियत हौ माई? कहारिन ठीक से तोहार सेवा करत हई न? काहे गुस्सैले हऊ! पंद्रह दिना में घरे आवत हई, ई खातिर? का बताई माई तोहार पतोहिया कsतबियत खराब रहल अऊर ओ शनीचर के छोटका कs स्कूल में, ऊ का कहल जाला, पैरेंट मीटिंग रहल तू तs जानलू माई! शहर कs जिनगी केतना हलकान करsला! तोहसे से तs कई दाईं कहली, चल संगे! उहाँ रह! तोहें तs बप्पा कs माया घेरले हौ!  .......... नकाब आज हर चेहरा सच्चा नहीं हर चेहरे पर नकाब है सच्चाई को ढकता हुआ नकाब कभी इन चेहरे को ढके हुए नकाब हटा कर तो देखो देखते ही रह जाओगे फिर सोचोगे, जो देखा था , वो धोखा था हर किसी का चेहरा होगा अनजान जो देखा, जो सोचा, सब झूठ था ! अपनी बातो से दूसरो को भी झूठा बनाया ! पर कब तक छुपायेगा एक दिन तो सच सामने आयेगा और उस दिन वह नकाब हटाएगा..." दर्द का महाराजा .......दाँत का दर्द ...." **'वेदना'* शब्द की उत्पत्ति में *'वेद'* शब्द का क्या महत्त्व है, यह तो नहीं पता ,परन्तु इतना तो अवश्य तय है कि जितना ज्ञान वेदना की स्थिति में प्राप्त होता है उतना ज्ञान वेद से भी नहीं मिल सकता | शायद इसीलिए उस स्थिति को * वेद-ना* कहा गया है | वेदना में भावनाओं का भी समावेश झलकता है |  ईश्वर ने दर्द को शायद...

चार दिन फुटपाथ के साये में रहकर देखिए, डूबना आसान है आंखों के सागर में जनाब - अदम गोंडवी एक बड़े और प्रतिबद्ध जनकवि थे. उनकी सबसे विख्यात रचना "  मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको"   काफी समय पहले कबाड़खाने में लगाई गयी थी. आज उनकी ए...  हे भद्र पुरुषों.. - हे भद्र पुरुषों , किसी स्त्री को इतना भी ना चाहो की मंथरा की पहचान ही न कर सको ! और हे भारत की नारियों , किसी पुरुष को कभी भी गांधारी बन कर ना पूजो ! तुम ... मोहब्बत जो ना कराये थोडा - ये मोहब्बत जो ना कराये थोडा अभी अभी मिली खबर के अनुसार एक हसीना का का दिल एक हसीं पर आ गया है अब आप कहेंगे इसमें क्या खास है दिलों का कारोबार तो आम है ..... 

 12,000 साल पुरानी भीमबेटका की गुफाएं - भीमबेटका में 750 गुफाएं हैं जिनमें 500 गुफाओं में शैल चित्र बने हैं। यहां की सबसे प्राचीन चित्रकारी को 12,000 साल पुरानी है। मध्य प्रदेश के रायसेन ... गाँठ पड़ना ठीक है ! - गाँठ जो है तेरे मेरे बीच, बाँधती भी है अलगाती भी है। गाँठ जो खुलती है तेरे मेरे बीच, राह बढ़ती है, तन्हा छोड़ जाती है । गाँठ गर पड़ती नहीं तेरे मेरे बीच,... ये कृष्ण का कदम्ब - .......जो खग हों तो बसेरो करो मिलि कालिंदी कूल कदम्ब की डारन मानुष हो तो वही रसखान ................... बचपन में तो इसे रटा गया था , अब जब पूजा मे... 

हर कोई एक तरीका ढूँढ लेता है जीने का ....... - हर कोई एक तरीका ढूँढ लेता है जीने का ....... उठने का ,बैठने का , जागने का , सोने का ,हँसने का , रोने का, खाने का और पीने का। कभी मन से,कभी बेमन से , कभी जान...  .मैं, मौन हूं---- - क्योंकि, यह मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है जो, मुझसे कोई छीन नहीं सकता है— मुझसे मेरा घर छीना जा सकता है ... .दारू पियत में ... - आज सुबह सुबह मै कवि एवं गायक पंडित शिव प्रसाद जी शुक्ल "*शिब्बू दादा*" की पुस्तक "बिगड़ी मेरी बना दो" पढ़ रहा था . पुस्तक में आदरणीय शुक्ल जी द्वारा शराबबंद... 

चिता - जल रही थी चिता धू-धू करती बिना संदल की लकड़ी या घी के.... हवा में राख उड़ रही थी कुछ अधजले टुकड़े भी.... आस पास मेरे सिवा कोई न था... वो जगह श्मशान भी नहीं थी श.. तेरे अन्दर -मेरे अन्दर, एक समंदर - "तेरे अन्दर -मेरे अन्दर, एक समंदर उस समन्दर के अंदर सिद्धांत के कुछ बुलबुले सवाल कुछ चुलबुले नाराज सी नैतिकता निरीह नीति समय के सामने कुछ संकेत सीमित... बंजारा सूरज - बंजारा सूरज *श्यामनारायण मिश्र* किसे पता था सावन में भी लक्षण होंगे जेठ के आ बैठेगा गिद्ध सरीखे मौसम पंख समेट के बंजारा सूरज बहकेगा पीकर गांजा भंग जंगल तक ..

 चलते -चलते ....! 1234 - सकते लिए समझ http://www.chalte-chalte.com/feeds/posts/default समय ठहर उस क्षण,है जाता,,,, - समय ठहर उस क्षण,है जाता,,, ज्वार मदन का जब है आता रश्मि-विभा में रण ठन जाता, तभी उभय नि:शेष समर्पण ह्रदयों का उस पल हो जाता, समय ठहर उस क्षण,है जा...किन्तु! मृत्यु ठहरी हुई !! - वेग से चलती रेल, और ठहरा हुआ प्लेटफ़ॉर्म !!! जो प्रत्येक यात्री का, है अंतिम गंतव्य........ जीवन भी वेग से चलायमान किन्तु! मृत्यु ठहरी हुई !! वो भी प...  

कार्टून :- ऐसा शुभदि‍न सबके जीवन में आए

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एक गीत मेरी पसंद का ....


अगली वार्ता तक के लिए नमस्कार ..........

रविवार, 23 सितंबर 2012

कोई चेहरा भूला सा .. ब्‍लॉग4वार्ता .. संगीता पुरी


संगीता पुरी का नमस्‍कार ... रेल मंत्री के पद से तृणमूल कांग्रेस के नेता मुकुल रॉय के इस्तीफे के बाद शनिवार को रेल मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री सीपी जोशी को सौंप दिया गया है। प्रधानमंत्री की सिफारिश पर रॉय समेत तृणमूल कांग्रेस के सभी छह मंत्रियों का इस्तीफा मंजूर करते हुए राष्ट्रपति ने जोशी को रेल मंत्रालय की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपे जाने का निर्देश जारी कर दिया। इस तरह फिलहाल रेल मंत्रालय यूपीए गठबंधन की अगुवा कांग्रेस के खाते में आ गया है।
1989 की कवितायें - दो तिहाई ज़िन्दगी यह उन दिनों की कविता है जब नौकरी भी आठ घंटे करनी होती थी और मजदूरी के भी आठ घंटे तय होते थे , शोषण था ज़रूर लेकिन इतना नहीं जितना कि आज है । कुछ अजीबोगरीब बिम्बों के साथ लिखी यह कविता ... 59 दो तिहाई ज़िन्दगी भुखमरी पर छिड़ी बहस ज़िन्दगी की सड़क पर मज़दूरी करने का सुख कन्धे पर लदी अपंग संतान है जो रह रह मचलती है रंगीन गुब्बारे के लिये कल्पनाओं के जंगल में ऊगे हैं सुरक्षित भविष्य के वृक्ष हवा में उड़ –उड़ कर सड़क पर आ गिरे हैं सपनों के कुछ पीले पत्ते गुज़र रहे हैं सड़क से अभावों के बड़े- बड़े पहिये जिनसे कुचले जाने का भय महाजन की तरह खड़ा है मन के मोड़ पर तब फटी जे... अधिक पढें ...


कोई चेहरा भूला सा ..मेरे मन की मो सम कौन कुटिल खल ......?से एक पोस्ट* कोई चेहरा भूला सा *इस पोस्ट के बारें में कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा सिर्फ़ सुना और महसूस किया जा सकता है --*असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पानाकबीरा खडा़ बाज़ार में*असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पाना * * * Blood Clots Unlikely To Be Prevented By Statins * * * * *.डॉ .अरविन्द मिश्रा जी को समर्पित है यह पोस्ट जिनके आग्रह पर इसकी पहल हुई है .* * * * * * Despite previous studies suggesting the contrary, statins (cholesterol-lowering drugs) may not prevent blood clots (venous thrombo-embolism) in adults, according to a large analysis by international researchers published in this week's PLOS Medicine. * * * *Venous* * * *रुधिरवाहिनियों से (शिराओं से )जो खून दिल की ओर लौटता है वह वीनस कहलाता है .THROMBUS कहते... अधिक पढें ...


दूरियाँ !.. बैसवारी baiswariगोपाल चतुर्वेदी और लालित्य ललित के साथ ! देखता हूँ आसमान के तारों को एक निश्चित अंतराल में टिमटिमाते हुए यहाँ ज़मीन पर नियमित रूप से हमारा कुछ भी नहीं है ! दूर तक फैले गगन में कितना कुछ है पंख पसारने को, यहाँ दिल से दिल की दूरी भी नपी-नपाई होती है ! विशेष:चित्र का रचना के साथ कोई साम्य नहीं है मुक्तक .. झरोख़ा१ धरती का पानी , धरती पर ही वापस आना है पर हाँ ! उसको भी पहले वाष्प फिर घटा ,तब कहीं वर्षा बन बरस धरा में मिल जाना है ... २ हथेलियों में जब मेहंदी सजी रहती है हाथों की लकीरों में ये कैसा अनजानापन बस जाता है ! ३ सच ! सच में इतना कड़वा क्यों होता है जब भी कभी सच बोलो आँखों में चुभते काँटे और जुबान पर ताले क्यों लग जाते है ? ४ आसमान के सियाह गिलाफ़ पर चाहा तारों की झिलमिल छाँव बेआस सी ही थी अंधियारी रात बस किरन टँकी इक चुनर लहराई इन्द्रधनुष के रंग झूम के छम से छा गये तारों की पूरी कायनात ... अधिक पढें ...


नमस्ते मोदीजलेस मेरठवो जो चौराहे पर चीखे सिर को नोचें, मुटठी भींचे वो ताकत में कहॉं बडा है? देखो तो किस जगह खडा है. उसको घेर रही हैं आहें बेबस और लाचार निगाहें लाशें चारों और पडी हैं जली,अधजली,बहुत सडी हैं बदबू बहुत कुकर्मां की है करनी इन बेशर्मों की है शर्मिन्दा पूरा भारत है इनको लानत है, गारत है पर देखो इनकी बेहयाई लाज नहीं इनको है आई फिर से चढा रहें हैं बाहें ताक रहे दिल्ली की राहें बढते ज्यूँ बढता कबाड है भूले दिल्ली में तिहाड है स्वागत है जल्दी से आयें फैलाये फोलादी बाहें कोठरियॉं जेलों की खाली साफ किये हैं लोटा, थाली तुम्हें गोद में बैठायेंगी बंगारू के संग गायेंगी उमा नमस्ते, नमस्ते मोदी, नमस्ते... अधिक पढें ..


अनिल जनविजय की पाँच कविताएँपूर्वाभासअनिल जनविजय ------------------------------ 28 जुलाई 1957, बरेली (उत्तर प्रदेश) में जन्मे हिन्दी और हिन्दी साहित्य के प्रति जी-जान से समर्पित कविता कोश और गद्य कोश के पूर्व संपादक एवं रचनाकोशके संस्थापक-संपादक अनिल जनविजय जी सीधे-सरल स्वभाव के ऊर्जावान व्यक्ति हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.कॉम और मॉस्को स्थित गोर्की साहित्य संस्थान से सृजनात्मक साहित्य विषय में एम. ए. करने के बाद आपने मास्को विश्वविद्यालय (रूस) में ’हिन्दी साहित्य’ और ’अनुवाद’ का अध्यापन प्रारम्भ कर दिया। तदुपरांत आप मास्को रेडियो की हिन्दी डेस्क से भी जुड़ गये। 'कविता नहीं है यह'(1982), 'माँ, बापू कब आएंगे' (1990),...अधिक पढें ..


राजधानी में बढ़ता सेंसलेस किलिंग का यह दौर चिंता का विषय हैAnil Narendra Blog*Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published From Delhi* * Published on 23 September, 2012 * * **अनिल नरेन्द्र* राजधानी में एक बार फिर हत्याओं के दौर ने चिंता पैदा कर दी है। एक तरफा प्रेम, अवैध संबंध व सनक के चलते बढ़ती और कभी-कभी बिल्कुल बेतुकी हत्याओं व आत्महत्या का दौर कम ही देखा गया है। 3 सितम्बर को एक सिरफिरे आशिक रवि ने बिंदापुर और गाजियाबाद में एक के बाद एक 5 हत्याओं को अंजाम दिया और इसके बाद खुद को गोली मार ली। 7 सितम्बर को स्वरूप नगर में दो दोस्तों मनीष व राजबीर ने प्यार की नाकामी व पारिवारिक कलह से परेशान होकर 5 लोगों को गोली मारने के बाद खुद को गोली से उड़ा लिया। दो ... अधिक पढें ..


क्षणिकाएंयात्रानामासवाल और भी हैं जो दे सको जवाब -पर तेरी मजबूर निगाहें कुछ पूछने नहीं देती . वक्त के संग कदम मिला के चल -यार नाटके -ऐ-जिन्दगी में रि-टेक नहीं होते . कहते हैं परछाइयों के चहरे नहीं होते दाग कितने लगें - पर गहरे नहीं होते . आके मस्जिद में रहे तो खुदा है मंदिर में रहे तो क्या खुदा ना हुआ . सच मैं हिन्दू हूँ मुसलमान भी हूँ रामायण हूँ राम की कुरान भी हूँ . आरती हूँ - सुबह की अज़ान भी हूँ फ़क्त आदमी नहीं - इंसान भी हूँ . जो तेरा है वही तो मेरा है - यार बाकी ये धर्म तो बखेड़ा है यार . फ़क्त इंसान बने रहने से होता क्या है फरिश्तों से होड़ ले तो कोई बात बने . हरेक पल का पूरा मज़ा ले प्य... अधिक पढें ..


 तुम हो !वीथी*तुम हो !** ______ **तुम नहीं हो** **जानता है दिल** **मानता नहीं** **क्योंकि** **तुम्हारा प्रेम** **आज भी सींचता है** **मन की प्यास को** **जब भी अकेली होती हूँ** **बरसता है** **गंगा-जमना बन** **मेरी अँखियों से** **भीग जाती हूँ मैं** **तरबतर** **और जैसे तुम** **आ बैठते हो पास** **थाम लेते हो मुझे** **मज़बूत बाँहों में** **तुम्हारा चेहरा** **प्रेम की लौ से** **दीप्‍त हो जाता है** **मेरी प्रीत** **उस लौ में जलकर** **हो जाती है फ़ीनिक्स !** **कौन कहता है** **दुनिया से जाने वाले** **नहीं लौटते** **ज़रूर लौटते हैं** **ज़िस्मों के पार** **गर रिश्‍ते रूहानी हों** **रूहानी हो पीर !** -**सुशीला ... अधिक पढें ..


रास्ता कहाँ है?जिज्ञासा1991 के बाद शुरू हुए आर्थिक सुधारों पर इस समय चल रही बहस पर हाल में सामने आए घोटालों की छाया है। कुछ लोग इन सारे घोटालों का कारण उदारीकरण को मान रहे हैं और कुछ लोग मानते हैं कि उदारीकरण के कारण ये घोटाले सामने आए हैं। पहले ये सामने नहीं आते थे। इसके अलावा यह भी कि सरकरारी निर्णय प्रक्रिया पुराने ढर्रे पर ही चल रही है। उसमें भी सुधार की ज़रूरत है। प्रधानमंत्री ने कहा कि कड़े फैसले करने होंगे। पर क्या जनता जानती है कि कड़े फैसलों का मतलब क्या होता है? उसे दाल-आटे के भाव में ही कड़े या मुलायम फैसले नज़र आते हैं। अधिकतर राजनीतिक दल आर्थिक सुधारों के विरोधी हैं। इसमें बीजेपी भी शामिल है,... अधिक पढें ...


हर तरीका आजमाया हमने"निरंतर" की कलम से.....परrajendra tela हर तरीका आजमाया हमने हमारी तरफ गर्दन तक नहीं घुमायी उन्होंने आदत से मजबूर थे हमें छिछोरा समझते रहे शक से देखते रहे घमंड में नाक की सीध में चलते रहे उन्हें पता नहीं था हम सड़क पर गिरे उनके कानों के झुमके को लौटाने की कोशिश कर रहे थेपोर्टेबल डाउनलोड मेनेजर |Computer Tips & Tricksअगर आप को इन्टरनेट से कोई फाइल या सॉफ्टवेर डाउनलोड करना होता है तो उसको आप अपने कंप्यूटर में इंस्टाल किये गए डाउनलोड मेनेजर के द्वारा तेज गति से डाउनलोड कर लेते हैं और अगर आप को किसी और कंप्यूटर में कोई फाइल या अप्लिकेशन डाउनलोड करना हो और उस कंप्यूटर में डाउनलोड मेनेजर इंस्टाल नहीं हो तो डाउनलोड करने में बहुत सारा वक़्त बर्बाद हो जाता है खास कर के जब कभी घर से बाहर इन्टरनेट केफे में आप हो तो | इस परेशानी से अगर आप बचना चाहते हैं तो आप इस पोर्टेबल डाउनलोड मेनेजर की मदद ले सकते हैं | ये एक छोटा सा सॉफ्टवेर है जिसको इंस्टाल करने की जरुरत नहीं है इस सॉफ्टवेर को डाउनलोड कर के अपन... अधिक पढें ...


शीर्षकहीनnazariya.....नजरिया...अरसे बाद ग़ज़ल कही है...... ! आप की खिदमत में हाज़िर कर रहा हूँ_____---- किया सब उसने सुन कर अनसुना क्या वो खुद में इस क़दर था मुब्तिला क्या मैं हूँ गुज़रा हुआ सा एक लम्हा मिरे हक़ में दुआ क्या बद्दुआ क्या किरन आयी कहाँ से रौशनी की अँधेरे में कोई जुगनू जला क्या मुसाफ़िर सब पलट कर जा रहे हैं ‘यहाँ से बंद है हर रास्ता क्या’ मैं इक मुद्दत से ख़ुद में गुमशुदा हूँ बताऊँ आपको अपना पता क्या ये महफ़िल दो धड़ों में बंट गयी है ज़रा पूछो है किसका मुद्दु’आ क्या मुहब्बत रहगुज़र है कहकशां की सो इसमें इब्तिदा क्या इंतिहा क्याकमबख्त नौकरी, जीवन की एक मज़बूरीPrakashये ऊँची फंडू बातों में, कडवी तीखी सच्चाई मुख पर होती तारीफें, पीछे से खूब खिंचाई चापलूसी, चमचागिरी, कहीं हुस्न पे झुकाव अँधा भरोसा कहीं पर, कहीं हर बात में टकराव कहीं इर्ष्या, कहीं जलन, आपस में खिंचा-तानी राजनीति, कूटनीति, और साथ मिले बेईमानी जिक्र तनखा का हो, वो चुनावी लुभाते वादे प्रमोसन में बरसों, इन्क्रीमेंट चंदों से आते ये रोज नये से टार्गेट, साहब की जी-हुजूरी *कमबख्त नौकरी, जीवन की एक मज़बूरी* पहरा


Akankshaक्षणिका :- विचारों की सरिता की गहराई नापना चाहता पंख फैला नीलाम्बर में उड़ना चाहता तारों की गणना करना भी चाहता पर चंचल मन स्थिर नहीं रहता उस पर भी रहता पहरा | दोहे – कालजयी साहित्यअरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)परअरुण कुमार निगम**** *[दोहा – प्रथम और तृतीय (विषम) चरणों में 13 मात्राएँ. द्वितीय और चतुर्थ (सम) चरणों में 11 मात्राएँ . प्रत्येक दल में 24 मात्राएँ. अंत में एक गुरु * *,एक लघु.]* मान और सम्मान की,नहीं कलम को भूख महक मिटे ना पुष्प की , चाहे जाये सूख | अक्षर -अक्षर चुन सदा , शब्द गठरिया बाँध राह दिखाये व्याकरण ,भाव लकुठिया काँध | अलंकार रस छंद के , बिना कहाँ रस-धार बिन प्रवाह कविता कहाँ गीत बिना गुंजार | खानपान जीवित रखे , अधर रचाये पान जहाँ डूब कान्हा मिले , ढूँढू वह रस खान | दीपक पलभर जल बुझे,नित्य जले आदित्य ज्योतिर्मय जग को करे,कालजयी साहित्य |


आज के लिए बस इतना ही .. मिलते हैं एक ब्रेक के बाद ....

शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

तुम्हारे लिए फुरसत के दिन, आराम बेच दूँ...ब्लॉग4वार्ता...संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार ...... सवाल उठता है कि शासन स्कूल बच्चों को पढ़ाने के लिए खोलता है या छुट्टियां देने के लिए। ठीक है लगातार पढ़ाई के बाद कुछ दिनों का अवकाश बच्चों को मिलना चाहिए, लेकिन इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि छुट्टी इतनी लम्बी न हो कि स्कूलों में जो पढ़ा हुआ है, उसे बच्चे भूल जाएं। साथ-साथ छुट्टियों की जरूरत पर भी गौर करना चाहिए।ऐसा लगता मानो व्यवस्था चाहती ही नहीं कि प्रदेश में शिक्षा को बढ़ावा मिले, यहां की पीढ़ी अच्छी शिक्षा प्राप्त कर आगे बढ़े। क्योंकि पिछड़ापन से कई तरह के राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध होते हैं। राजनीति को अज्ञानता और पिछड़ापन से कई फायदे है, लेकिन यह सोच सामंती है। लोकतंत्र में इसका कोई स्थान नहीं। पूरी कोशिश हो कि शिक्षा का स्तर सुधरे …आइये अब चलते हैं आज की वार्ता पर इन बेहतरीन लिंक्स के साथ…

टूटता कहाँ है दिल ... विशुद्ध रासायनिक किया है दिल का टूटना देखने में भले ही भौतिकी लगे, इसमें भौतिक इतना ही होता है कि किसी को देखने की लत से मजबूर नशेड़ी आँखें चेहरे से हटकर दिल में फिट हो जाती हैं फिर दिल से दिखायी पड़ने लगता है सब कुछ और पथरा जाती है चेहरे की आँखें जरा भी आकस्मिक घटना नहीं है दिल टूटना क़तरा-क़तरा करके ज़मींदोज़ होता है कोई ख़्वाब रेशा-रेशा करके टूटता है एक धागा लम्हा-लम्हा करके बिखरती है जिंदगी उखडती है....पापा के डर से ...मुझे याद नहीं पापा ने कब गोद में उठाया कब भागे आइसक्रीम खाने प्रसन्नता के अतिरेक में हां ये जरूर याद है माँ रह गयी पीछे भागते भागते मुझे याद नहीं पापा ने कब अपने कन्धों पर बिठाकर रामलीला दिखाई और माँ खरीदती रही खिलौने कभी चाभी से चलने वाली कार कभी हसने वाला जोकर मुझे ये भी याद नहीं ... क्‍या किया है कमाल मेरे खूने जिगर ने,जरा देख तो लूं .. लाल सुर्ख है उसके पांव की मेहंदी,जरा देख तो लूं क्‍या किया है कमाल मेरे खूने जिगर ने,जरा देख तो लूं मद्दतों मेरे पहलू में रहा उमडती घटाओं की तरह रक़ीब़ की बाहों में अब बरसना उसका जरा देख तो लूं दिवानगी में भी हदों से पार न हुआ महफूज़ रहा आज मगर बिखरनां उस जज्‍ब़ात का जरा देख तो लूं था इल्‍म, तेरे वादे-वफा-मोहब्‍बत की रस्‍में सब फ़रेब़ है

गणेश जी मुंगडा ओ मुंगडा से जन्नत की हूर तक पिछले साल के मुंगडा ओ मुंगडा वाले गणेश इस वर्ष कोई जन्नत की वो हूर नहीं के साथ आए....अजीब लगता है ना सुनकर पर हाईटेक ज़िन्दगी के साथ लोगो ने पहले गणेश जी को हाईटेक बनाया और अब गणेश पंडालों में बजने वाले गाने आपको चौका देंगे गणेश जी भी सोचते होंगे क्या है भाई कुछ तो शर्म करो ..ड्रीमम वेकपम' की संदर्भ सहित व्याख्या...खुशदीप पढ़ाई के तरीके बदल रहे हैं...अब उन तरीकों से बच्चों को पढ़ाने पर ज़ोर दिया जा रहा है जिन्हें वो आसानी से समझ सकें...जैसे बच्चा-बच्चा और किसी को पहचानता हो या न हो लेकिन सचिन तेंदुलकर और शाहरुख़ ख़ान को ज़रूर पहचानता होगा...इसलिए अब कई सेलेब्रिटीज़ को बच्चों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जा रहा है...कहते हैं कविता हमारे जीवन से खत्म होती जा रही है...लेकिन धन्य है हमारा बॉलीवुड ...यादों का मैं गोदाम बेंच दूँ .चाहत के पल,.... बेदाम बेंच दूँ, फुरसत के दिन, आराम बेंच दूँ, मुस्किल है,... कांटेदार जिंदगी, फूलों को गम का,...बाम बेंच दूँ, धोखा... बेचैनी.... और... बेबसी, दिल को दिल का मैं काम बेंच दूँ, गायब हो,, ये,,, मुस्कान होंठ से, नैनों को इतना,,,,,, जाम बेंच दूँ, रहता है तन्हा,,, रोज़- रोज़ दिल, यादों का मैं,,,,,,,, गोदाम बेंच दूँ, ...

 घास  मैदानों में ढलानों में घर के लानों में खेत-खलिहानों में बागानों में सड़कों के किनारों में कवि के विचारों में बारिश की रिमझिम फुहारों में धरती का मखमली गुदगुदा बिस्तर बनने का सुख घास को हासिल है घास आस है विश्वास है दर्शन है उपहास -परिहास है घास स्वाभिमान है - तूफानों में खुद को झुका लेती है हो जाती है नत-मस्तक छद्म -क्षणिक प्रभुत्व के आगे और बाद की शांति में हो जाती है...शब्दों की सीमा बाहर है शब्दों की सीमा बाहर है शब्दों से ही परिचय मिलता उसके पार न जाता कोई, शब्दों की इक आड़ बना ली कहाँ कभी मिल पाता कोई ! ऊपर ऊपर यूँ लगता है शब्द हमें आपस में जोड़ें, किन्तु कवच सा पहना इनको बाहर ही बाहर रुख मोड़ें ! भीतर सभी अकेले जग में खुद ही खुद से बातें करते, एक दुर्ग शब्दों का गढ़ के बैठ वहीं से घातें करते ! खुद से ही तो लड़ते रहते खुद को ही तो घायल....शत शत प्रणाम करुणा सागर.. ** *जनकवि स्व. कोदूराम “दलित”* * * *(चित्र गूगल से साभार) * हे ओम् रूप , गज वदन देव हे गणनायक , हे लम्बोदर | हे सिद्धि सदन ,कल्याण धाम शत-शत प्रणाम करुणा सागर || हे एकदंत , हे दयावंत विज्ञान पुंज , अनुपम उदार | कर दूर अविद्या , अनाचार भर दे जन-जन में सद् विचार || सुख शांति सम्पदा कर प्रदान त्रय ताप पाप दुख दारिद हर | हे ओम् रूप , गज वदन देव हे गणनायक , हे लम्बोदर || भारत - स्वतंत्रता रहे अमर गण-तंत्र सफल होवे ...

तुम्हारे लिएतुम्हारे लिए एक खुशी है फिर एक अफसोस भी है कि कोई लगता है गले और एक पल में बिछड़ जाता है। खिड़की में रखे सलेटी रंग के गुलदानों में आने वाले मौसम के पहले फूलों सी इक शक्ल बनती है, मिट जाती है। ना उसके आने का ठिकाना ना उसके जाने की आहट एक सपना खिलने से पहले मेरी आँखें छूकर सिमट जाता है। कल रात से मन मचल मचल उठता है, ज़रा उदास, ज़रा बेक़रार सा कि ये कौन है जो लगता है गले और बिछड़ जाता है। एक ख़ुशी है, फिर एक अफ़सोस भी है। * * ...आश्रिता कभी कभी प्रकृति अजीब से सवालों में उलझा देती है, सोच में डाल देती है... जैसे आँगन की दीवार पर चिपक कर चढ़ने वाली वो बेल क्या उस खुरदुरी सूखी दीवार से मोहब्बत करती होगी ? या बिना उसके सहारे चढ़ जो नहीं सकती आश्रित है उस पर इसलिए उससे मोहब्बत का स्वांग रचती है ?? काश के सच्चे प्यार को पहचानना इस कदर मुश्किल न होता....दरवाज़े की ओट से ...* * बहुत बार ध्यान से देखा है तुम्हें दरवाज़े की ओट से ... तुम रोती हो ,चुपचाप आँसू बहाती हो बिन किसी शोर के....पर क्यों? क्या दुःख है तुम्हें ? अभिव्यक्ति ,प्रकृति व जीवनक्रम के साथ अंतरद्वंद में डूबी, जिसे तुम बाँट नहीं सकती क्या बात है दिल में तुम्हारे, जिसे तुम ,बतला नहीं सकती सिसकती हैं धड़कने तुम्हारी , पर कभी कोई आवाज़ क्यों नहीं आती ...

" चलती कार में ठिठकी निगाहें ......"साथ उसका और , सफ़र कार का, बाहर मौसम सुहाना था, भीतर वह दीवाना था , निगाहों में उसके रफ़्तार थी, मेरी निगाहें उस प्यार पे थीं , उंगलियाँ उसकी गुनगुनाती जब थी , मैं लजाती शर्माती इठलाती तब थी , पलकें मेरी गिरती उठती , और सहमती थी भय से , *पर जब भी देखा था हौले से ,* *मुस्करा के उसने ,* *निगाहें तब तब ठिठकी सी थी |* ...सुबह के साथी आइये आज आपका परिचय एक और विलक्षण व्यक्तित्व से करवाती हूँ जिनसे हम लोगों का परिचय शाहजहाँ पार्क में सुबह की सैर के दौरान ही हुआ ! ये सज्जन हैं श्री कृष्ण मुरारी अग्रवाल ! पुराने आगरा से कचहरी घाट से ये हर रोज पार्क में आते हैं और इनकी पार्क के हर मोर, तोते, कौए यहाँ तक कि कुत्तों व बंदरों के साथ भी बड़ी अच्छी दोस्ती है !...शिकायत है मुझे शिकायत तुमसे दर्शक दीर्घा में बैठे आनंद उठाते अभिनय का सुख देख खुश होते दुःख से अधिक ही द्रवित हो जाते जब तब जल बरसाते अश्रु पूरित नेत्रों से आपसी रस्साकशी देख उछलते अपनी सीट से फिर वहीँ शांत हो बैठ जाते जो भी प्रतिक्रिया होती अपने तक ही सीमित रखते मूक दर्शक बने रहते अरे नियंता जग के यह कैसा अन्याय तुम्हारा तुम अपनी रची सृष्टि के कलाकारों को...

तन्हाई है ...जो छाई है तन्हाई है घर की तुलसी मुरझाई है जो है टूटा अस्थाई है कल था पर्वत अब राई है अब शर्म नहीं चिकनाई है महका मौसम तू आई है दुल्हन देखो शरमाई है (गुरुदेव पंकज जी के सुझाव पे कुछ कमियों को दूर करने के बाद) ....जश्न के बिना आदमी की गुज़र होती नहीं *अपने लिए तो ग़मों की रात ही जश्न बनी * *जश्न के बिना आदमी की गुज़र होती नहीं * *इसीलिये सजदे में सर अब भी झुका रक्खा है * ** *गम की आदत है ये दिन रात भुला देता है * *हम नहीं आयेंगे इसके झाँसे में * *चराग दिल का यूँ भी जला रक्खा है * ** *नाम वाले भी कभी गुमनाम ही हुआ करते हैं * *ज़िन्दगी गुमनामी से भी बढ़ कर है * *ये गुमाँ खुद को पिला रक्खा है *....खरोंच कल तक जो आन बान और शान थी कल तक जो पाक और पवित्र थी जो दुनिया के लिए मिसाल हुआ करती थी अचानक क्या हुआ क्यों उससे उसका ये ओहदा छीन गया कैसे वो मर्यादा अचानक सबके लिए अछूत चरित्रहीन हो गयी कोई नहीं जानना चाहता संवेदनहीन.. 

कार्टून :- घोटालों का सच

  

चलते-चलते मेरी पसंद का एक गीत..... रुक जाना नहीं तू कही हार के काँटों पे चलके मिलेंगे साये बहार के ... ओ राही ओ राही ... 

अब देते है वार्ता को विराम अगली वार्ता तक के लिए नमस्कार....

बुधवार, 19 सितंबर 2012

टंकी की नौटंकी - अब एक नेता टंकी ………… ब्लॉग4वार्ता ……… ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार, ब्लॉगरी रोग ममता बनर्जी को भी लग गया। अब वह भी टंकी पर चढ गयी हैं। गैस, डीजल मूल्य वृद्धि एवं एफ़ डी आई के मुद्दे को लेकर यूपीए की सहयोगी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने सरकार से बाहर रहने का फ़ैसला किया है। ममता बनर्जी ने यूपीए से खफ़ा होते हुए कहा है कि सरकार में शामिल उनकी पार्टी के मंत्री शुक्रवार तक त्याग-पत्र देगें। इसका तात्पर्य है कि हम तुमसे वहाँ तक समर्थन वापस लेगें, जहाँ तक सरकार न गिरे। अरे जब विरोध ही है तो सीधे सरकार से समर्थन वापस लेना चाहिए। क्या भीतर से समर्थन क्या बाहर से समर्थन। ईश्वर इन्हे सदबुद्धि दे जिससे मंहगाई की मार से तड़प रही भारत की जनता को राहत मिले। अब चलते हैं आज की वार्ता पर…… प्रस्तुत हैं कुछ उम्दा लिंक………

दे दना-दन ...दे मार ... दे मार ... दे मार ... दे दना-दन ... उठा-उठा ... पटक-पटक ... दे दना-दन ... दे मार ... दे मार ... दे दना-दन ... लल्लु ... मल्लु ... कल्लु ... जो भी आए ... दे दना-दन ... दे मार ... दे...अँधेरी कोठरी के अकेले रौशनदान थेएक दिन पिताजी के अनन्य मित्र स.ही. वात्स्यायन 'अज्ञेय'जी ने उनके सम्मुख यह प्रस्ताव रखा कि मुंबई जाकर जयप्रकाशजी से मिल आना चाहिए. उन दिनों पिताजी आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे थे. आपातक...मीडिया-पुलिस रिश्तों में सहजता के लिए प्रशिक्षण जरूरीएमसीयू में ‘पुलिस और मीडिया में संवाद’ *भोपाल,18 सितंबर।* माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के तत्वाधान में ‘*पुलिस और मीडिया में संवाद**’*विषय पर आयोजित...

हथेली पे सूरज हथेली पे सूरज अपने हिस्से का उगा लिया सूरज खुश हूँ तुमने पा लिया सूरज कितनी बार बादलो ने छुपा लिया सूरज खुश हूँ तुमने पा लिया सूरज किस्मत ने जब दबा लिया सूरज खुश हूँ तुमने पा लिया सूरज सोनल उलझन उलझन तुम एक जटिल साहित्य की तरह हो , पढ़ तो लिया पर समझ नही पा रही हू मै.. तुम एक कठिन गणित की तरह हो , समझ तो लिया पर हल नही कर पा रही हूँ मै तुम सहज हो ........ पर तुम्हारी सहजता में भी एक उलझन है ... तु...जाने कहाँ आ गए हम जाने कहाँ आ गए हम छोड़ी धरती चूमा गगन . आकांशाओ के वृक्ष पर बारूदो का ढेर बनाया तोड़े पहाड़ , कटाये वन दूषित कर पवन ,रोग लगाया सूखी हरीतिमा की छाँव सिमटे खेत , गाँव बना मशीनी इंसान पत्थर...
जानेमन तुम कमाल करती हो! मेरी प्रिय जानेमन, कई दिनों से सोच रही थी तुमसे दिल की सारी उथल-पुथल साझा करूं, ज़िन्दगी के उन मुख़्तसर मसलों पर तुम्हारी राय पूछूं जो यूं तो बेतुकी और बेमानी होते हैं, लेकिन अक्सर उन मसलों की संजीदगी दो...वही इंद्रधनुष जीवन में ऐसा भी होता है कि किसी संग विवाह तय हुआ हो लेकिन कुछ कारणों से विवाह नहीं हो पाये. बाद में जब वही दोनों जन एक दूसरे को जाने-अनजाने मौका पड़ने पर सामने पड़ते हैं तो परिस्थितियां मन में कई अन...किस्तों में जिंदगी ,नस्तर से कट गयी ,किस्तों में जिंदगी ,* *जख्म गहरे, हरे हो गए हैं -* * कैद- ए - महंगाई में , गमजदा हो * *अपना जीवन बसर कर रहे हैं -* * **देखा , रोटी तो हंसकर के ...


यूं विलुप्त हो जाने देना..   ललित शर्मा जी का ये आलेख पढ़ कर आज एक घटना याद आ गयी.स्कूल में महिलाओं का पसंदीदा विषय होता है साड़ि...कभी स्वयं के लिए भी जीएं, जीवन की नई ऊर्जा मिलेगी * हमारे निजी रिश्ते सिर्फ पत्नी या मित्रों तक ही सीमित नहीं होते। एक और रिश्ता होता है जो * * **हमारा नितांत निजी होता है, वो है हमारा अपने आप से रिश्ता। हम खुद में कितना जीते हैं, क्या * * **खुद के लिए सम... सुख शायद अनजाना सा था सुख शायद अनजाना सा था सुख सागर से था मुँह मोड़ा दुःख के इक प्याले की खातिर, सुख शायद अनजाना सा था दुःख ही था अपना परिचित चिर ! अपनी एक पोटली दुःख की सभी लगाये हैं सीने से, पीड़ा व संताप जहां ..

बस,आ जाओ सीधी सी बात यही है कि.. बस,तुम आओ.... चले आओ...मेरे पास. कोई मौसम हो... उससे क्या फर्क पड़ता है ? मेरे मन के सारे मौसमों पे तो बरसों बाद भी एक बस तेरा ही कब्जा है . मौसम का आना जाना उससे मुझे क्या लेना द...शगुफ्ता शगुफ्ता बहाने तेरे मुझे लंबी छुट्टी चाहिए कि मैं बहुत सारा प्रेम करना चाहता हूँ। मैंने सुकून के दिन खो दिये हैं। मैंने शायद लिखने के आनंद को लिखने के बोझ में तब्दील कर लिया है। मैं किसी शांत जगह जाना चाहता हूँ। ऐसी जगह...लुटेरों की निगहबानी में रहना लुटेरों की निगहबानी में रहना. तुम अपने घर की दरबानी में रहना. अगर इस आलमे-फानी में रहना. तो बनकर बुलबुला पानी में रहना. शरीयत कौन देता है किसी का नमक बनकर नमकदानी में रहना. यही हासिल है शायद जिंदगी का हम.......

चलते - चलते एक कार्टून 

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अब देते हैं वार्ता को विराम सबको राम-राम...... .

मंगलवार, 18 सितंबर 2012

काहे गए रे पिया बिदेस... ब्लॉग4वार्ता....संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार... आज यानि भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन अखंड सौभाग्य की कामना के लिए स्त्रियां हरतालिका तीज का विशिष्ट व्रत हैं. यह व्रत महिलाएं तथा युवतियां भी रखती हैं. इस तीजा के व्रत में बहुत नियम-कायदे होते हैं. छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना पड़ता है. सुबह चार बजे उठकर मौन स्नान और फिर दिन भर निर्जल व्रत रखना होता है और रात भर जागरण किया जाता है.महिलाएं इस दिन पूरे सोलह श्रृंगार के साथ तैयार होकर पूजा में हिस्सा लेती हैं. भारतीय महिलाओं ने इस पुरानी परंपराओं को कायम रखा है. इसलिए आज का दिन स्पेशल बहनों के लिए... सभी बहनों को हरितालिका तीज की शुभकामनाये... आइये अब चलें आज की वार्ता पर ...


हृदय के रूप .....*1-* *हृदय** वही * *पिघले मोम जैसा**,* *पाषाण नहीं । * 2- *मोम**-सा मन* *आंच मिली ज़रा सी ..* *पिघल गया ।*** 3- *प्रवाह लिये** * *सरिता**- सा हृदय* *बहता गया ।*** *4-* *छाई बादरी * *बरसती बूंदरी .....मैं और तुम १. तुम्हे पता है..? मेरे बारे में लोग कहते हैं कि मैं, मैं नहीं कोई और होता हूँ जब भी मैं लिख रहा होता हूँ... कोई गीत, कोई कविता तुम्हारे बारे में ! २. मन मेरा घूम आया बन बंजारा सात समुन्दर पार से पर तुम ..फिर मिलने का... *फिर मिलने का....* *बाद मुद्दत के मिले हो चलो कुछ दूर चले खामोश रहे और बात करे एहसासात को जिए लम्हों को थामें आँसू की बूँदें आँखों में बांधें कुछ पल ठहरें दरख्तों के नीचे चुपचाप निहारें दर्द सवारें फिर बा...

उलझा सुलझा सा कुछ... मन की राहों की दुश्वारियां > निर्भर होती हैं उसकी अपनी ही दिशा पर > और यह दिशाएं भी हम -तुम निर्धारित नहीं करते > ये तो होती हैं संभावनाओं की गुलाम > ये संभावनाएं भी बनती हैं स्वयं > देख कर हालातों का .नाउ प्रेक्टीकल प्रेमीझ आर इन ट्रेंडप्रेम के प्रतिमान बदल गए हैं और इनका बदल जाना निश्चित भी था जब रिश्तों के लिए हमारी विचारधारा बदल गई ,जिंदगी में रिश्तों के मायने बदल गए ,घर बाहर इंसानों की भूमिकाएं बदल गई तो प्रेम का बदल जाना कोई नई ...अकेला पन  जन्म से ही अकेलेपन से बचता इंसान रिश्तो में पड़ता है. बंधनों में जकड़ता है. कुछ रिश्ते धरोहर से मिलते कुछ को अपनी ख़ुशी के लिए खुद बनाता है कुछ दोस्त बनाता है उम्मीदें बढाता है कि वो अपनत्व  ...

 

ब्लॉग्गिंग के दो साल -सम्हले या बेअसर हुए  क्या जाने क्या हाल हुआ है, सम्हले या बेअसर हुये, सहमे सहमे आये यहाँ पर, जीवन जीने पसर गये। उपरोक्त पंक्तियाँ श्री प्रवीण पाण्डेय जी की उदगार है जो उन्होंने मेरे ब्लॉग के एक वर्ष पूर्ण होने पर लिखे गए ...एक दस्तक जरुरी गंगा का किनारा दूर क्षितिज में छुपता सूरज शंख - घंटियों की ध्वनि हाँ यही तो है हमारा हिन्दोस्तान और वही दूसरी तरफ ... कुछ घरों में फांकों की नौबत घर से बहार जान की कीमत हर निगाह निगलने को बैचेन हर कदम पर ..ट्रैफिक सिग्नल सी ज़िन्दगी ....... ट्रैफिक सिग्नल सी टिक गयी हूँ ज़िन्दगी के उलझे चौरस्ते पर जब किसी की गति की तीव्रता को थामना चाहा तनी हुई भौंहों की सौगात मिली पर हाँ ! ये अनदेखा कैसे कर जाती सहज करती राहों पर बढती गति , स्मित...

दुपट्टे कांधे का बोझ बन गए - आ जाती थी हया की रेखाएं, आँखों में जब भी ढल जाता था , कांधे से दुपट्टा | शर्माए नैन तकते थे राहों में जाने -अनजाने निगाहों को, जब भी हट जाता वक्ष से ,... हम्माम का तमाशा देखने को तैयार रहें - आज जहां आम जनता की क्रय क्षमता दिन पर दिन लगातार कम होती जा रही है या यूं कहें कि करवाई जा रही है। जहां मिडिल क्लास में जन्म लेना श्राप सरीखा हो गया है, ... .क़रार चाहिए बेक़रार होने को - है कलेजा फ़िगार होने को दामने-लालाज़ार होने को इश्क़ वो चीज़ है कि जिसमें क़रार चाहिए बेक़रार होने को जुस्तजू-ए-क़फ़स है मेरे लिए ख़ूब समझे शिकार होने को ..


 **** मेरा राज **** - * * *जीवन की कई बातें * *कुछ अपनी , कुछ दुनिया की* *कुछ पूरी , कुछ अधूरी* *ये सारी बातें मेरी डायरी में बंद* *जो ना कह पाती हूँ किसी से* *वो कहती हूँ सिर्फ... हार - *मोहब्बत के किस्से भी अजीब हैं.......जितने आशिक उतनीं बातें........कुछ किस्से महकते तो कुछ दहकते से....कुछ सही कुछ झूठे....मोहब्बत पर यकीं करना भी बड़ा ... भरोसे की साँस यानी ‘विश्वास’ - [पिछली कड़ी- *भरोसे की भैंस पाड़ो ब्यावे* से आगे  हि न्दी में यक़ीन ( yaqin ) शब्द का भी खूब प्रयोग होता है । हालाँकि भरोसा, विश्वास, ऐतबार ...  

विश्वकर्मा पूजा विशेष: भारत के परम्परागत शिल्पकार--- जहाँ पर मानव सभ्यता के विकास का वर्णन होता है वहां स्वत: ही तकनीकि रुप से दक्ष परम्परागत शिल्पकारों के काम का उल्लेख होता है। क्योंकि परम्परागत शिल्पकार... जनता जब मजाक करेगी, कहीं के नहीं रहोगे शिंदे साहब!!! - जुबान का क्या भरोसा, फिसल जाती है। देश के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे की जुबान भी फिसल गई और बाद में जब उनकी फिसली जुबान के बाद हंगामा मचा तो उन्होंने पलट...चुप रही तो कलम का क्या फायदा!!!!! - आस-पास ये कैसा मंजर छा रहा है, मुल्क क्यों हिस्सों मे बँटता जा रहा है। चुप रही तो कलम का क्या फायदा, सियासी चालों का दबदबा नजर आ रहा है। गरीबों का खून सड़को... 


 

चलते-चलते मेरी पसंद का एक गीत ........

दीजिये इजाज़त अगली वार्ता में फिर मुलाक़ात होगी तब तक के लिए नमस्कार ...

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