शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

जीवन भी क्या है ? अभिव्यक्ति है प्रीत की... ब्लॉग4वार्ता....संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार... पूरी दुनिया में विद्वान लोग ईश्वर के प्रति एक खास नजरिया रखते हैं. उनका सोचना है कि ईश्वर निराकार है. हम उसे वैसे नहीं देख सकते हैं, जैसे अपने को आईने में देखते हैं. ईश्वर पूरी तरह से बोध का मामला है. जो उस बोध से गुजर जाता है, वही बुद्ध हो जाता है...लीजिये अब प्रस्तुत है आज की ब्लॉग वार्ता, आज आपके लिए लाए हैं, कुछ खास लिंक्स, चित्र पर क्लिक करते ही पहुँचिये ब्लॉग पोस्ट पर..........



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दौड़ती भागती रही उम्र भर तेरे इश्क की कच्ची गलियों में लगाती रही सेंध 
बंजारों की टोलियों में होगा कहीं मेरा बंजारा भी 
जिसकी सारंगी की धुन पर इश्क की कशिश पर 
नृत्य करने लगेंगी मेरी चूड़ियाँ रेशम की ओढनी ...



Shyam kori 'uday' - Bilaspur, India 

यह एक मायावी संसार है यहाँ, कुछ लोगों का काम ही है जाति, 
धर्म व ईश्वर रूपी - भ्रम फैलाना ... 
पर हमें, उनकी - बातों में नहीं आना है ! ईश्वर एक है...  

My Photo 

बतला दे मेरे चन्दा - *वाणी गीत जी के ब्लॉग गीत मेरे से एक गीत * * * 



दर्शन कौर 

वो समुंदर का मोती था ...सिप उसका घर था ..बाहरी  दुनियाँ से वो अनजान था .....
अपने दोस्तों से उसको बहुत प्यार था ...कुर्बान था वो अपनी दोस्ती पर ,मस्त मौला बना...  

ललित शर्मा  

लाया हूँ मैं सहज ही तुम्हारे लिए टेसू के फ़ूल 
जो अभिव्यक्ति है मेरी प्रीत की गुलाब तो अभिजात्य वर्ग के नकली प्रेम की निशानी है 
गुलाबी प्रेम में झलकती है बेवफ़ाई/कटुताई टेसू के फ़ूल निर्मल निर्दोष सहज और...

 Sangita Puri

ज्‍योतिष के बारे में जन सामान्‍य की उत्‍सुकता आरंभ से ही रही है , गणित ज्‍योतिष के क्षेत्र में हमारे ज्‍योतिषियों द्वारा की जाने वाली काल गणना बहुत सटीक है। 
पर इसके फलित के वास्‍तविक स्‍वरूप के बारे में ....



जीवन भी क्या है ? एक यक्ष प्रश्न , हम सुलझाने की कोशिश करते हैं और यह उलझता जाता है. 
हम एक सिरा पकड़ते हैं और हमारे सामने कई सिरे आ जाते हैं।
 हम एक इच्छा की पूर्ति के लिए दिन रात मेहनत करते हैं, लेकिन ...

 Amit Kumar Srivastava


रात गहरी हो चली थी | मैं अपनी आँखें मूंदे मूंदे ख्यालों में एक कविता गुन, बुन रहा था |
 गुनते ,बुनते कब आँख लग गई पता नहीं चला | 
सपनों में , हाँ ,सपना ही रहा होगा,मैं अपनी कविता को शब्दों , भावों और स्मृत..


तुम्हारा प्रेम पत्र कल ही मिला किताब में छुपा हुआ था, 
नहीं रखकर भूली नहीं थी दरअसल, छुपाने के लिए किसी जगह की तलाश वहीं ख़त्म हुई थी, 
बदनसीब था मेरा पहला प्रेम पत्र भी किस ...  


हे प्रसन्नमना, प्रसन्नता बाँटो न - अभी एक कार्यक्रम से लौटा हूँ,
 अन्य गणमान्य व्यक्तियों के साथ मंच पर एक स्वामीजी भी थे। 
चेहरे पर इतनी शान्ति और सरलता कि दृष्टि कहीं और टिकी ही नहीं, कानो... 

  
हरा भरा प्रीत का झरना, बहे सुवास अमराई में
कांटे चुन लूं राह के तेरी, संग हूँ जग की लड़ाई में
दिवस ढलता चंदा ढलता, मै यामिनी सी जगती हूँ
........


अगली वार्ता में फिर भेंट होगी तक के लिए दीजिये इजाज़त नमस्कार......
.

8 टिप्पणियाँ:

पसंद आया वार्ता का यह अंदाज भी .....आपकी मेहनत को सेल्यूट ...!

बहुत बढ़िया वार्ता......
सुन्दर प्रस्तुति...........

सस्नेह
अनु

बहुत ही रोचक अन्दाज़ रहा वार्ता का

बेहतरीन लिंक्‍स बढिया वार्ता ...आभार

तुम्हारा प्रेम पत्र कल ही मिला किताब में छुपा हुआ था,

mann ko chhoo gayi.

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