संगीता पुरी का नमस्कार ... रेल मंत्री के पद से तृणमूल कांग्रेस के नेता मुकुल रॉय के इस्तीफे के बाद शनिवार को रेल मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री सीपी जोशी को सौंप दिया गया है। प्रधानमंत्री की सिफारिश पर रॉय समेत तृणमूल कांग्रेस के सभी छह मंत्रियों का इस्तीफा मंजूर करते हुए राष्ट्रपति ने जोशी को रेल मंत्रालय की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपे जाने का निर्देश जारी कर दिया। इस तरह फिलहाल रेल मंत्रालय यूपीए गठबंधन की अगुवा कांग्रेस के खाते में आ गया है।
1989 की कवितायें - दो तिहाई ज़िन्दगी यह उन दिनों की कविता है जब नौकरी भी आठ घंटे करनी होती थी और मजदूरी के भी आठ घंटे तय होते थे , शोषण था ज़रूर लेकिन इतना नहीं जितना कि आज है । कुछ अजीबोगरीब बिम्बों के साथ लिखी यह कविता ... 59 दो तिहाई ज़िन्दगी भुखमरी पर छिड़ी बहस ज़िन्दगी की सड़क पर मज़दूरी करने का सुख कन्धे पर लदी अपंग संतान है जो रह रह मचलती है रंगीन गुब्बारे के लिये कल्पनाओं के जंगल में ऊगे हैं सुरक्षित भविष्य के वृक्ष हवा में उड़ –उड़ कर सड़क पर आ गिरे हैं सपनों के कुछ पीले पत्ते गुज़र रहे हैं सड़क से अभावों के बड़े- बड़े पहिये जिनसे कुचले जाने का भय महाजन की तरह खड़ा है मन के मोड़ पर तब फटी जे... अधिक पढें ...
कोई चेहरा भूला सा ..मेरे मन की मो सम कौन कुटिल खल ......?से एक पोस्ट* कोई चेहरा भूला सा *इस पोस्ट के बारें में कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा सिर्फ़ सुना और महसूस किया जा सकता है --*असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पानाकबीरा खडा़ बाज़ार में*असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पाना * * * Blood Clots Unlikely To Be Prevented By Statins * * * * *.डॉ .अरविन्द मिश्रा जी को समर्पित है यह पोस्ट जिनके आग्रह पर इसकी पहल हुई है .* * * * * * Despite previous studies suggesting the contrary, statins (cholesterol-lowering drugs) may not prevent blood clots (venous thrombo-embolism) in adults, according to a large analysis by international researchers published in this week's PLOS Medicine. * * * *Venous* * * *रुधिरवाहिनियों से (शिराओं से )जो खून दिल की ओर लौटता है वह वीनस कहलाता है .THROMBUS कहते... अधिक पढें ...
दूरियाँ !.. बैसवारी baiswariगोपाल चतुर्वेदी और लालित्य ललित के साथ ! देखता हूँ आसमान के तारों को एक निश्चित अंतराल में टिमटिमाते हुए यहाँ ज़मीन पर नियमित रूप से हमारा कुछ भी नहीं है ! दूर तक फैले गगन में कितना कुछ है पंख पसारने को, यहाँ दिल से दिल की दूरी भी नपी-नपाई होती है ! विशेष:चित्र का रचना के साथ कोई साम्य नहीं है मुक्तक .. झरोख़ा१ धरती का पानी , धरती पर ही वापस आना है पर हाँ ! उसको भी पहले वाष्प फिर घटा ,तब कहीं वर्षा बन बरस धरा में मिल जाना है ... २ हथेलियों में जब मेहंदी सजी रहती है हाथों की लकीरों में ये कैसा अनजानापन बस जाता है ! ३ सच ! सच में इतना कड़वा क्यों होता है जब भी कभी सच बोलो आँखों में चुभते काँटे और जुबान पर ताले क्यों लग जाते है ? ४ आसमान के सियाह गिलाफ़ पर चाहा तारों की झिलमिल छाँव बेआस सी ही थी अंधियारी रात बस किरन टँकी इक चुनर लहराई इन्द्रधनुष के रंग झूम के छम से छा गये तारों की पूरी कायनात ... अधिक पढें ...
नमस्ते मोदीजलेस मेरठवो जो चौराहे पर चीखे सिर को नोचें, मुटठी भींचे वो ताकत में कहॉं बडा है? देखो तो किस जगह खडा है. उसको घेर रही हैं आहें बेबस और लाचार निगाहें लाशें चारों और पडी हैं जली,अधजली,बहुत सडी हैं बदबू बहुत कुकर्मां की है करनी इन बेशर्मों की है शर्मिन्दा पूरा भारत है इनको लानत है, गारत है पर देखो इनकी बेहयाई लाज नहीं इनको है आई फिर से चढा रहें हैं बाहें ताक रहे दिल्ली की राहें बढते ज्यूँ बढता कबाड है भूले दिल्ली में तिहाड है स्वागत है जल्दी से आयें फैलाये फोलादी बाहें कोठरियॉं जेलों की खाली साफ किये हैं लोटा, थाली तुम्हें गोद में बैठायेंगी बंगारू के संग गायेंगी उमा नमस्ते, नमस्ते मोदी, नमस्ते... अधिक पढें ..
अनिल जनविजय की पाँच कविताएँपूर्वाभासअनिल जनविजय ------------------------------ 28 जुलाई 1957, बरेली (उत्तर प्रदेश) में जन्मे हिन्दी और हिन्दी साहित्य के प्रति जी-जान से समर्पित कविता कोश और गद्य कोश के पूर्व संपादक एवं रचनाकोशके संस्थापक-संपादक अनिल जनविजय जी सीधे-सरल स्वभाव के ऊर्जावान व्यक्ति हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.कॉम और मॉस्को स्थित गोर्की साहित्य संस्थान से सृजनात्मक साहित्य विषय में एम. ए. करने के बाद आपने मास्को विश्वविद्यालय (रूस) में ’हिन्दी साहित्य’ और ’अनुवाद’ का अध्यापन प्रारम्भ कर दिया। तदुपरांत आप मास्को रेडियो की हिन्दी डेस्क से भी जुड़ गये। 'कविता नहीं है यह'(1982), 'माँ, बापू कब आएंगे' (1990),...अधिक पढें ..
राजधानी में बढ़ता सेंसलेस किलिंग का यह दौर चिंता का विषय हैAnil Narendra Blog*Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published From Delhi* * Published on 23 September, 2012 * * **अनिल नरेन्द्र* राजधानी में एक बार फिर हत्याओं के दौर ने चिंता पैदा कर दी है। एक तरफा प्रेम, अवैध संबंध व सनक के चलते बढ़ती और कभी-कभी बिल्कुल बेतुकी हत्याओं व आत्महत्या का दौर कम ही देखा गया है। 3 सितम्बर को एक सिरफिरे आशिक रवि ने बिंदापुर और गाजियाबाद में एक के बाद एक 5 हत्याओं को अंजाम दिया और इसके बाद खुद को गोली मार ली। 7 सितम्बर को स्वरूप नगर में दो दोस्तों मनीष व राजबीर ने प्यार की नाकामी व पारिवारिक कलह से परेशान होकर 5 लोगों को गोली मारने के बाद खुद को गोली से उड़ा लिया। दो ... अधिक पढें ..
क्षणिकाएंयात्रानामासवाल और भी हैं जो दे सको जवाब -पर तेरी मजबूर निगाहें कुछ पूछने नहीं देती . वक्त के संग कदम मिला के चल -यार नाटके -ऐ-जिन्दगी में रि-टेक नहीं होते . कहते हैं परछाइयों के चहरे नहीं होते दाग कितने लगें - पर गहरे नहीं होते . आके मस्जिद में रहे तो खुदा है मंदिर में रहे तो क्या खुदा ना हुआ . सच मैं हिन्दू हूँ मुसलमान भी हूँ रामायण हूँ राम की कुरान भी हूँ . आरती हूँ - सुबह की अज़ान भी हूँ फ़क्त आदमी नहीं - इंसान भी हूँ . जो तेरा है वही तो मेरा है - यार बाकी ये धर्म तो बखेड़ा है यार . फ़क्त इंसान बने रहने से होता क्या है फरिश्तों से होड़ ले तो कोई बात बने . हरेक पल का पूरा मज़ा ले प्य... अधिक पढें ..
तुम हो !वीथी*तुम हो !** ______ **तुम नहीं हो** **जानता है दिल** **मानता नहीं** **क्योंकि** **तुम्हारा प्रेम** **आज भी सींचता है** **मन की प्यास को** **जब भी अकेली होती हूँ** **बरसता है** **गंगा-जमना बन** **मेरी अँखियों से** **भीग जाती हूँ मैं** **तरबतर** **और जैसे तुम** **आ बैठते हो पास** **थाम लेते हो मुझे** **मज़बूत बाँहों में** **तुम्हारा चेहरा** **प्रेम की लौ से** **दीप्त हो जाता है** **मेरी प्रीत** **उस लौ में जलकर** **हो जाती है फ़ीनिक्स !** **कौन कहता है** **दुनिया से जाने वाले** **नहीं लौटते** **ज़रूर लौटते हैं** **ज़िस्मों के पार** **गर रिश्ते रूहानी हों** **रूहानी हो पीर !** -**सुशीला ... अधिक पढें ..
रास्ता कहाँ है?जिज्ञासा1991 के बाद शुरू हुए आर्थिक सुधारों पर इस समय चल रही बहस पर हाल में सामने आए घोटालों की छाया है। कुछ लोग इन सारे घोटालों का कारण उदारीकरण को मान रहे हैं और कुछ लोग मानते हैं कि उदारीकरण के कारण ये घोटाले सामने आए हैं। पहले ये सामने नहीं आते थे। इसके अलावा यह भी कि सरकरारी निर्णय प्रक्रिया पुराने ढर्रे पर ही चल रही है। उसमें भी सुधार की ज़रूरत है। प्रधानमंत्री ने कहा कि कड़े फैसले करने होंगे। पर क्या जनता जानती है कि कड़े फैसलों का मतलब क्या होता है? उसे दाल-आटे के भाव में ही कड़े या मुलायम फैसले नज़र आते हैं। अधिकतर राजनीतिक दल आर्थिक सुधारों के विरोधी हैं। इसमें बीजेपी भी शामिल है,... अधिक पढें ...
हर तरीका आजमाया हमने"निरंतर" की कलम से.....परrajendra tela हर तरीका आजमाया हमने हमारी तरफ गर्दन तक नहीं घुमायी उन्होंने आदत से मजबूर थे हमें छिछोरा समझते रहे शक से देखते रहे घमंड में नाक की सीध में चलते रहे उन्हें पता नहीं था हम सड़क पर गिरे उनके कानों के झुमके को लौटाने की कोशिश कर रहे थेपोर्टेबल डाउनलोड मेनेजर |Computer Tips & Tricksअगर आप को इन्टरनेट से कोई फाइल या सॉफ्टवेर डाउनलोड करना होता है तो उसको आप अपने कंप्यूटर में इंस्टाल किये गए डाउनलोड मेनेजर के द्वारा तेज गति से डाउनलोड कर लेते हैं और अगर आप को किसी और कंप्यूटर में कोई फाइल या अप्लिकेशन डाउनलोड करना हो और उस कंप्यूटर में डाउनलोड मेनेजर इंस्टाल नहीं हो तो डाउनलोड करने में बहुत सारा वक़्त बर्बाद हो जाता है खास कर के जब कभी घर से बाहर इन्टरनेट केफे में आप हो तो | इस परेशानी से अगर आप बचना चाहते हैं तो आप इस पोर्टेबल डाउनलोड मेनेजर की मदद ले सकते हैं | ये एक छोटा सा सॉफ्टवेर है जिसको इंस्टाल करने की जरुरत नहीं है इस सॉफ्टवेर को डाउनलोड कर के अपन... अधिक पढें ...
शीर्षकहीनnazariya.....नजरिया...अरसे बाद ग़ज़ल कही है...... ! आप की खिदमत में हाज़िर कर रहा हूँ_____---- किया सब उसने सुन कर अनसुना क्या वो खुद में इस क़दर था मुब्तिला क्या मैं हूँ गुज़रा हुआ सा एक लम्हा मिरे हक़ में दुआ क्या बद्दुआ क्या किरन आयी कहाँ से रौशनी की अँधेरे में कोई जुगनू जला क्या मुसाफ़िर सब पलट कर जा रहे हैं ‘यहाँ से बंद है हर रास्ता क्या’ मैं इक मुद्दत से ख़ुद में गुमशुदा हूँ बताऊँ आपको अपना पता क्या ये महफ़िल दो धड़ों में बंट गयी है ज़रा पूछो है किसका मुद्दु’आ क्या मुहब्बत रहगुज़र है कहकशां की सो इसमें इब्तिदा क्या इंतिहा क्याकमबख्त नौकरी, जीवन की एक मज़बूरीPrakashये ऊँची फंडू बातों में, कडवी तीखी सच्चाई मुख पर होती तारीफें, पीछे से खूब खिंचाई चापलूसी, चमचागिरी, कहीं हुस्न पे झुकाव अँधा भरोसा कहीं पर, कहीं हर बात में टकराव कहीं इर्ष्या, कहीं जलन, आपस में खिंचा-तानी राजनीति, कूटनीति, और साथ मिले बेईमानी जिक्र तनखा का हो, वो चुनावी लुभाते वादे प्रमोसन में बरसों, इन्क्रीमेंट चंदों से आते ये रोज नये से टार्गेट, साहब की जी-हुजूरी *कमबख्त नौकरी, जीवन की एक मज़बूरी* पहरा
Akankshaक्षणिका :- विचारों की सरिता की गहराई नापना चाहता पंख फैला नीलाम्बर में उड़ना चाहता तारों की गणना करना भी चाहता पर चंचल मन स्थिर नहीं रहता उस पर भी रहता पहरा | दोहे – कालजयी साहित्यअरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)परअरुण कुमार निगम**** *[दोहा – प्रथम और तृतीय (विषम) चरणों में 13 मात्राएँ. द्वितीय और चतुर्थ (सम) चरणों में 11 मात्राएँ . प्रत्येक दल में 24 मात्राएँ. अंत में एक गुरु * *,एक लघु.]* मान और सम्मान की,नहीं कलम को भूख महक मिटे ना पुष्प की , चाहे जाये सूख | अक्षर -अक्षर चुन सदा , शब्द गठरिया बाँध राह दिखाये व्याकरण ,भाव लकुठिया काँध | अलंकार रस छंद के , बिना कहाँ रस-धार बिन प्रवाह कविता कहाँ गीत बिना गुंजार | खानपान जीवित रखे , अधर रचाये पान जहाँ डूब कान्हा मिले , ढूँढू वह रस खान | दीपक पलभर जल बुझे,नित्य जले आदित्य ज्योतिर्मय जग को करे,कालजयी साहित्य |
आज के लिए बस इतना ही .. मिलते हैं एक ब्रेक के बाद ....
4 टिप्पणियाँ:
संध्या जी आज की वार्ता बहुत अच्छी लगी |आज बहुत सी लिंक्स दी हैं पढाने के लिए |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
|
आशा
बड़ी ही रोचक वार्ता..
बढ़िया वार्ता, बहुत सुन्दर लिंक्स...
बहुत बढ़िया लिंक्स ...
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी में किसी भी तरह का लिंक न लगाएं।
लिंक लगाने पर आपकी टिप्पणी हटा दी जाएगी।