गुरुवार, 6 सितंबर 2012

ये कैसी सरकार देखिये, दिल्ली में तकरार देखिये...ब्लॉग4वार्ता....संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार... आज संसद में हुई एक घटना ने देश को शर्मसार कर दिया है, वहीँ दूसरी तरफ किसी समय में पश्चिमी मीडिया में सराहना और सुर्खियाँ बटोरने वाले भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अब लगता है कि पश्चिमी मीडिया के निशाने पर आ गए हैं. टाइम ने अपने कवर पर मनमोहन सिंह की तस्वीर छापकर उन्हें 'अंडरएचीवर' बताया, वहीं वॉशिंगटन पोस्ट ने कहा है कि अब नौबत ऐसी आ गई है कि खतरा है कि मनमोहन सिंह को इतिहास में एक विफल नेता के तौर पर ही याद किया जाए. भारत सरकार ने इस पर खासी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है और केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने खबर की निंदा करते हुए वॉशिंगटन पोस्ट पर 'सनसनी फैलाने वाली पत्रकारिता' करने का आरोप लगाया है और कहा है कि वे भारत के विदेश मंत्रालय से इस मुद्दे को आगे बढ़ाने की बात करेंगी. इन खास ख़बरों के बाद लीजिये अब प्रस्तुत है आज की ब्लॉग वार्ता, कुछ नए लिंक्स के साथ...

उस प्रिय गुरुवर का वंदन है...... - *एक संगीत-शिक्षिका ने शिक्षक दिवस के लिए एक गीत माँगा, तो उसे दे दिया. फोन पर ही नोट कराया था और उसने गीत को 'भीमपलासी' में निबद्ध करके फोन पर ही कल सुना द..गुरु-शिष्य की बदलती परंपरा - भारतीय संस्कृति का एक सूत्र वाक्य है-‘तमसो मा ज्योतिर्गमय।‘ अंधेरे से उजाले की ओर ले जाने की इस प्रक्रिया में शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान है। भारतीय परम्परा. हैप्पी टीचर्स-डे...- आज शिक्षक दिवस (Teachers day) था. हम बच्चों ने इसे अपने स्कूल में खूब इंजॉय किया. आज तो हमारी जल्द ही छुट्टी भी हो गई. वैसे, हमारी टीचर जी बहुत प्यारी हैं...

हाइकु - जीवन - (१) रात का दर्द समझा है किसने देखी है ओस? (२) दिल का दर्द दबाया था बहुत छलकी आँखें. (३) जीवन राह बहुत है कठिन जीना फिर भी. (४) जाता है रा. .अज्ञात की श्रेणी मे हूँ ……क्या ढूँढ सकोगे मुझे? - अज्ञात की श्रेणी मे हूँ क्या ढूँढ सकोगे मुझे? मै कोई दरो-दीवार नही कोई इश्तिहार नही कोई कागज़ की नाव नहीं ना अन्दर ना बाहर कोई नही हूँ कोई पता नहीं कोई दफ़्...मेरे सजदे का सितमगर ने ऐसा क्यों सिला दिया - उसने अपना कहके क्यों नज़र से मुझको गिरा दिया !! मेरे सजदे का सितमगर ने ऐसा क्यों सिला दिया !! याद में जिसकी बहाती रही, ये मेरी नादाँ आँखें आँसू !! उस सितमगर...

 ये कैसी सरकार देखिये - आमजनों के शुभचिंतक का, दिल्ली में तकरार देखिये लेकिन सच कि अपना अपना, करते हैं व्यापार देखिये होड़ मची बस दिखलाने की, है कमीज मेरी उजली पर मुश्किल कि समझ रह..भारत एवं धर्मनिरपेक्ष प्रजातंत्र - अभी हाल तक कुछ लोग यह विचार व्यक्त कर रहे थे कि हमारे देश में साम्प्रदायिकता के प्रभाव में काफी कमी आयी है। कुछ का तो यहां तक कहना था कि बदले हुए वातावरण क..आरक्षण पर कब तक राजनैतिक रोटियाँ सेकी जायेगी !! - आज बाबा साहेब की आत्मा स्वर्ग में सोच रही होगी कि मैंने कैसे नासमझ लोगों को आरक्षण नाम का झुनझुना दे दिया जिन्होंने अपना वोट बेंक बनाने के चक्कर में मेरी ब.. 

नहीं पढूंगी तुम्हारी पोस्टों को .. - उसकी पोस्ट पर एक लाईक उनकी पर दो उनकी पर तीन उनकी पर पांच और तुम्हारे पर एक भी नहीं ?? क्या समझूं मैं ? तुम बकवास लिखते हो ! एक भी लाईक नहीं है तुम्हारे आले...  ख्वाबी मंसूबे ... - बेवफाई का इल्जाम, ..... तुम यूँ न लगाओ यारो खामोशियों की वजह, कुछ और भी हो सकती है ? ... शायद, अब हम नहीं मिल पाएंगे तुमसे दरमियाँ हमने, इक लकीर खीं...ओये मनमोहन वाशिंगटन पोस्ट ओये - साहब, इस दो कौड़ी के अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट द्वारा, मनमोहन जी को मौनी बाबा करार दिये जाने से, हमारा दिल को बहुत ठेस लग गया है। इनका हिम्मत कैसे ह...

स्पर्श एक अनजान आदमी नदी की धारा के साथ बहता हुआ कल्पनातीत ख्यालों में डूबा लहरों से बातें करता हुआ थपेड़ों को चीरता चला जा रहा है ! अचानक कुछ सकुचाता हुआ लहरों को छू लिया अब व्यग्र हो सोच रहा कहीं लहरें मैली तो...मुझे आज भी याद है...  मुझे आज भी याद है... वो काम ना करने का बहाना बनाना...और बड़ी सादगी से पकड़ा जाना... वो आपका कान मरोड़ना...और फिर हिदायत देके छोड़ना... मुझे आज भी याद है... वो ककहारा रटवाना...वो जोड़-ब... दिखना काफी नहीं होता, होना होता है...  बाहर बारिश थी. शायद भीतर भी. शीशे के उस पार एक बूँद थी. उस बूँद पर इस पार से मैंने उंगली रख दी. बूँद के साथ उंगली भी धीरे-धीरे सरकने लगी. बूँद उस पार, उंगली इस पार. छूने का एहसास लेकिन बीच में कांच की दी... 

अगले बरस के नुक्‍कड़डॉटकॉम महाशिखर सम्‍मान की घोषणा - सच्चा हिंदी ब्लॉगर वही जो धन न कमाए बेहियाब, बे-वज़ह विवाद बढ़ाए अगले बरस नुक्कड़ॉडॉटकॉम देगा इन्हीं उपलब्‍धियों पर पुरस्कार और करेगा महाशिखर सम्मान कौन ... कहाँ चले आये – - न आरजू न तमन्ना, कहाँ चले आये थकन से चूर ये तनहा कहाँ चले आये .... सुनो न ..तुम , कुछ कहो न कहो.. कुछ लिखो न लिखो मुझे वो सारे हुनर आते हैं जिनसे तुम्हारी आँखों से होकर मैं मन तक पहुँच जाती हूँ और सब अनकहा ...सुन आती हूँ. सब अनलिखा ...पढ़ आती हूँ . अब तो कभी नहीं कहोगे न .. कि "...आंसू - आंसुओं का कोई रंग नहीं होता रहते रंग हीन सदा चाहे जब भी आएं हंसते हंसते या दुख में वह जाएँ स्वाद उनका रहता सदा एकसा खारा हों वे चाहे खुशी के या .....

चलते-चलते एक कार्टून 



अगली वार्ता में फिर भेंट होगी तक के लिए दीजिये इजाज़त नमस्कार......

5 टिप्पणियाँ:

संध्या जी हैप्पी टीचर्स दे |आज भी काफी कुछ है पढने के लिए |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा

बढिया लिंक्स ……रोचक वार्ता

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