संध्या शर्मा का नमस्कार... हर भाषा को अन्तर्निहित करने वाली हमारी इस भाषा का दुर्भाग्य ही है कि आज़ादी के इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी अपने ही देश में उपेक्षा का शिकार है, और आज तक यह राजकाज की भाषा बनने का सौभाग्य नहीं पा सकी. आज अपने ही देश में अपनों के ही हाथो हमारी मातृभाषा हिंदी क्यों शापित है? क्यों अपमानित है? रोजगार से ना जुड़ पाना क्यों इसका दुर्भाग्य बनकर रह गया है? क्यों यह हिंदी दिवस तक सिमट के रह गई है? आइये विश्व हिंदी दिवस के इस पुनीत दिवस पर हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि हम हिंदी की पुरातन पहचान को वापस लाकर इसे फिर से नव जीवन देंगे. आने वाला हर युग हिंदी युग हो और हर दिन हिंदी दिवस....इसी अभिलाषा के साथ आप सभी को हिंदी दिवस की अनेकानेक शुभकामनायें...प्रस्तुत है आज की वार्ता कुछ बेहतरीन लिंक्स के साथ...
अपनों के बीच कितनी बेगानी हुई हिन्दी! - हर बर्ष १४ सितम्बर को देशभर में हिंदी दिवस एक बहुत बड़े पर्व की भांति सरकारी-गैर सरकारी और बड़े उद्योगों का मुख्य केंद्र बिंदु बनकर सप्ताह भर उनकी तमाम गत...गर्व करिये अपने देसी होने पर गर्व करिये अपनी हिन्दी पर - इस समय हिन्दी पखवाडा चल रहा है. ऐसे मे हिन्दी चर्चा और भी प्रासंगिक हो जाती है. हिंदी भाषा के उज्ज्वल स्वरूप का भान कराने के लिए यह आवश्यक है कि उसकी गुणवत..."मैं अभिव्यक्ति की आज़ादी बोल रही हूँ" - आप सब मेरी एक रचना पढिये जो अभी 5-6 दिन पहले अचानक लिखी गयी और उम्मीद नही थी कि इसका प्रयोग इतनी जल्दी हो जायेगा ……और देश मे जो घटने वाला है वो कलम से उद्...
सागर की सच्चाई - बागों की शोभा फूलों से ही नहीं .... तितलियों से भी होती है माँ -बाप को कन्धा बेटे हीं नहीं बेटियाँ भी देती है ...... खुद के दम पर आगे बढ़कर सजाती है घर-...नारी किसी का और का नहीं खुद का शिकार है - आज कि आजाद नारी कहाँ पहुँच गयी है ? हैरानी होती है यह देख और सोचकर मुझको क्या यही भारत वर्ष है, देश देवियों का हमारा देवियाँ रखे हुए हैं जहाँ छद्म रूप अ... आगे लोकतंत्र का खतरनाक मोड़ है... - "जनतंत्र की नहीं है यह लड़ाई...जनतंत्र के अपने अपने मन्त्र की भी नहीं है यह लड़ाई...यह लड़ाई है एनार्की ( Anarchy ) यानी अराजकता से उत्पन्न स्वेच्छाचारिता की...
होड़....... - पैसे की चमक ने चौंधिया दी हैं सबकी आँखें और हो गए हैं लोंग अंधे अंधे - आँख से नहीं दिमाग से पैसे की अथाह चाह ही राहें खोलती है भ्रष्टाचार की का... तुम पागल हो - कितना कुछ कहना था कब से रुका हुआ था अंदर दबा हुआ सा था मन पे एक बोझा था अकेले सहना मुश्किल था . अब..... सब बह गया है.. उतर गया है सब. पाँव ज़मीन पे ...कवि का क्या भरोसा ? - कवि का क्या भरोसा ? कब क्या कह दे मात खायी बाज़ी पर भी शह पर शह दे... कविता का क्या मोल है ? हिसाब में बड़ा झोल है... क्या ये नारियल का खोल है ? या फूटी हुई...
रघुवीर बाबू बच गये थे! अरे अपने सहाय जी!! - हम अपनी ओर से कुछ नहीं कहेंगे, न जोड़ेंगे, न घटायेंगे। आप लोग खुदे समझिये और समझाइये: राष्ट्रगीत में भला कौन वह भारत-भाग्य-विधाता है फटा सुथन्ना पहने जिसक..व्यथा ! - *सुन दरी !* *बिछोने का इक तू ही तो * *अकेला सहारा थी मेरी,* *बाजुओं में दबाये * *लिए फिरता था मैं तुझे * *सुबह से शाम,* *इस पार से उस पार,* ... पापा, भैया लोग मुझे ऐसी अजीब सी नज़रों से क्यों घूर रहे थे? - ग्यारह बसंत पूरे कर चुकी मेरी बिटिया के एक सवाल ने मुझे न केवल चौंका दिया बल्कि उससे ज्यादा डरा दिया.उसने बताया कि आज ट्यूशन जाते समय कुछ भैया लोग उसे अजीब...
बेहया के फूल - एक समय था जब उसने उसे एक सफेद रंग का फूल दिया था और उसने मुस्कुराकर कहा था - "अरे यह तो शहनाई जैसा दिखता है." वह बहुत खुश हुई थी उस दिन..!! एक समय ऐसा भी आय... बैरन हो गयी निंदिया ... रात एक बजे वाली करवट बोली नहीं कुछ सुलगती रही अंदर ही अंदर मगर फिर डेढ़ बजे वाली ने चुपचाप आती जाती साँसों के कान में भर दिया न जाने कैसा ज़हर अंदर जाती हर साँस ने नाखूनों से खरोंचना शुरू कर दिया दि...आखिर बुरा क्या है -- आखिर बुरा क्या है ? *********************************** मन के दरख्त पर जमा ली ख्वाहिशो ने अपनी जड़े और फलती फूलती जा रही है अमर बेल की तरह उतरोतर. रसविहीन दरख्त मौन है बना हुआ पंगु सा जब होगा एहसास हक...
सूखी रेत के निशान उठ कर चल दिए मुझे छोड़ कर यूँ बिना अलविदा कहे दूर तक दिखता रहा तुम्हारा धुंधलाता अक्स सोचती रही क्या होंगे उन आँखों में आंसूं या एक खुश्क ख़ामोशी जैसे कुछ हुआ ही ना हो. बिखरी पड़ी यादों को अकेले ...काश!.. भिनसारे भिनसारे ही कोयलिया की कूक सुनाई देने लगी सोचने लगा, अभी कौन से आम बौराए हैं जो कोयलिया कूक रही है विहंग को कौन बांध पाया है? वे कोई मानव नहीं? किसी प्रांत के एपीएल, बीपीएल कार्डधारी लाभार्थी नागरिक ..नासमझ की बात - जीवन की आपाधापी में कंहा एक छण भी विश्राम मिला मन के भावों को व्यक्त करने कंहा कोई आयाम मिला जिधर भी गयी नजर हर तरफ ख्वाहिशें ही ख्वाहिशें कंहा भला प्यार..
गलती किसकी ? - कभी-कभी माता-पिता भी अपने बच्चों के दुश्मन हो जाते हैं , बच्चा आपसे कभी कुछ नहीं माँगता , सिर्फ अपने प्रेम-विवाह के समय होने वाले सामाजिक विरोध के समय अथवा...“रस अलंकार पिंगल [रस, अलंकार, छन्द काव्यदोष एवं शब्द शक्ति का सम्यक विवेचन]” हमने सोचा कि हिन्दी साहित्य की बारीकियों को पढ़े हुए वाकई बहुत दिन हो गये हैं, यह किताब मैंने वर्षों पहले पढ़ी थी, अपने महाविद्यालयीन पाठ्यक्रम को अच्छे से समझने के लिये, फ़िर इसके नये नये संवर्धित संस्करण आते रहे, और कुछ वर्षों पहले इसका हमने १७ वां संस्करण लिया था, इस बार फ़िर सोचा कि अपने हिन्दी के ज्ञान को थोड़ा समृद्ध कर लिया जाये।.......
एक कार्टून :-
अब लेते हैं विराम अगली वार्ता तक के लिए नमस्कार ............
8 टिप्पणियाँ:
हम स्वतंत्र हमारा सोच स्वतंत्र
फिर भी स्वतंत्रता नहीं
मन के भाव प्रगट करने की
है यह विसंगति कैसी मालूम नहीं |
भाषा पर विवाद कैसा
यह तो मात्र है माध्यम
जिसे जैसा अच्छा लगे
वही चुनने का अधिकार उसको |
हिन्दी दिवस पर शुभ कामनाएं
आशा
हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं एवं बधाई……………
हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ...
बहुत ही सुन्दर सूत्र, हिन्दी दिवस की शुभकामनायें।
हिंदी भारतवर्ष में ,पाय मातु सम मान
यही हमारी अस्मिता और यही पहचान |
वाह ... बहुत ही अच्छे लिंक्स
हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं
बहुत सुन्दर लिंक संयोजन
हिन्दी ना बनी रहो बस बिन्दी
मातृभाषा का दर्ज़ा यूँ ही नही मिला तुमको
और जहाँ मातृ शब्द जुड जाता है
उससे विलग ना कुछ नज़र आता है
इस एक शब्द मे तो सारा संसार सिमट जाता है
तभी तो सृजनकार भी नतमस्तक हो जाता है
नही जरूरत तुम्हें किसी उपालम्भ की
नही जरूरत तुम्हें अपने उत्थान के लिये
कुछ भी संग्रहित करने की
क्योंकि
तुम केवल बिन्दी नहीं
भारत का गौरव हो
भारत की पहचान हो
हर भारतवासी की जान हो
इसलिये तुम अपनी पहचान खुद हो
अपना आत्मस्वाभिमान खुद हो …………
बहुत अच्छी वार्ता....
सभी लिंक्स सुन्दर....
हिन्दी दिवस की अनंत शुभकामनाएं
सस्नेह
अनु
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