रविवार, 22 अगस्त 2010

वेद सार और जिंदगी के सबक से गांव छोडब नाहिं तक .. ब्‍लॉग4वार्ता .. संगीता पुरी

आप सबों को संगीता पुरी का नमस्‍कार ... हिंन्‍दी चिट्ठा जगत में चिट्ठों की संख्‍या 15,000 तक पहंचनेवाली है , प्रतिदिन 10 से 20 चिट्ठे इसमें जुटते जाते हैं , एक से एक धुरंधर लिक्‍खाडों द्वारा , सप्‍ताह भर में नए जुडे चिट्ठों में से कुछ , जो मुझे अच्‍छे लगें , आपके सम्‍मुख प्रस्‍तुत है ......
 
तुम जीवन के आधार प्रभो !
तुम सत्त चित्त आनंदरूप
शत शत करते आभार प्रभो !
तुम निर्माता इस सृष्टि के
सूरज के तुम , तुम वृष्टि के
तुम शीतल हो ,तुम तेज प्रखर
कण कण में हो साकार प्रभो !

जिंदगी के सबक सिखा रहे हैं आचार्य केशव जी ....
क बार मगध के महामंत्री चाणक्य राजकाज संबंधी परामर्श के लिए सम्राट चंद्रगुप्त से मिलने जा रहे थे।रास्ते में उनके पांव में कांटा चुभ गयाऔर उनके मुंह से जोर से चीख निकल गई।उन्होने झुककर उस    कंटीले पौधे को देखा ,फिर कुल्हाडी मंगवाई और अपने हाथेों से इस पौधे को उखाड कर फोंक दिया।उखाड कर फेंकने के बाद उन्होने उस पौधे की जड़ों को भी जमीन से निकाला औऱ उन्हें जला दिया ।
मुझे घर जाने से लगता डर,
थोडा सा ही सही ज़हर दे दो.
बाबा की काठी बूढी हुई...
वो दर्द छुपायें...खुश होकर.
माँ की आँखों मे सपने दिखें...
उन सपनो से बचता मै छुप-छुप कर.
मुझे घर जाने से लगता डर...
गुड़ की डली- सा मीठा बचपन
चला गया
पर अपनी कच्ची मिटटी के
गुल्लक से
कुछ मीठी यादों के सिक्के
डाल गया
मेरी जवानी के खजाने में ।
वो प्यारा बचपन ,
जब चाकलेट , टाफी ,मिठाई ,
और खिलौनों का ढेर था ,
माँ की गोद ,
राजा- रानी और परियों की कहानी में
मेरी दुनिया बसती थी तब ,
मगर अब बड़ा होने पर
मेरी दुनिया ही बदल गई है ।
आज देश चाहे जितनी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है....
क्या दुनिया में ऐसा भी कोई देश है जहां इतना गेहूं सड़ रहा है
मै आपसे और अपने आप से पूछता हूं ये सवाल, खेलों के नाम पर छली गई आम जनता की खाल
कॊमनवेल्थ के नाम पर जितना उड़ाया गया सरकारी माल, तो गेहूं छुपाने में क्यों रहे हम कंगाल

भीखा सिंह भिखारी के भेष में वही कर रहा है जो आम लोग भिखारी करते हैं। मतलब भीखा सड़कों पर कभी भगवान के नाम पर, तो कभी अल्लाह के नाम पर, या आम लोगों के पूज्य...(जैसे कि लोगों का भेष दिखता है) के नाम पर कुछ रुपए मांग रहा है। लेकिन बड़ी बात ये है कि भीखा भीख क्यों मांग रहा है?

1. हमारे वचन चाहे कितने भी श्रेष्ठ क्यों न हो, परन्तु दुनिया हमे हमारे कर्मो के द्वारा पहचानती है.
2. यदि आप मरने का डर है तो इसका यही अर्थ है की आप जीवन के महत्व को ही नहीं समझते.
3. अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से अंहकार आ सकता है, परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते है उतनी ही नम्रता आती है.
4 .वही सबसे तेज चलता है, जो अकेला चलता है।
5. प्रत्येक अच्छा कार्य पहले असम्भव नजर आता है।
व्याकुल मन, अश्रु भरे नयन,
किनारे पर बैठा देख रहा दुर्दशा,
पथ में रेत, टीले में झीण किनार,
बेसहारा पुत्र, स्पर्श को दर्शन दुर्लभ,
मृत श्वांस, शहर श्मसान।

 दिव्‍यांशु भारद्वाज की पगडंडी ........
कहते हैं कि शादी-ब्याह कोई गुड्डे-गुड़ियों का खेल नहीं होता है। लेकिन आज कल तो यह खेल-तमाशा ही बनता जा रहा है। कुछ लोगों ने इसे खेल बना दिया है। इनके लिए शादी और खेल में ज्यादा अंतर नहीं है। खेल की तरह ही इसमें पैसा है, मनोरंजन है और ग्लैमर भी है। इसमें भी मीडिया कवरेज है और खेलों की तरह मैच फिक्सिंग का खतरा भी। 

मनीष मेहता जी के साथ .... आओ लडें .....
मित्रों एक बार आज़ादी आई और मेरे जेहन में कईं सवालात छोड़ गई.....कितने आज़ाद है हम ..??  क्या वाकई में आज़ाद है हम..??
 कल घर से ज्यूँ ही बाहर निकला चंद कदम चलने के बाद सड़क पै पहुचा तो ... तो एक लगभग १०-१२ साल का लड़का मिला .तन पै एक फटा सा कपडा...हाथ पै तिरंगा लिए....बोल रहा था "साहब ले लो .ले लो न साहब..." देख कर सोचने को मजबूर हो गया कि क्या वाकई में हमें आज़ाद हुए ६४ वर्ष हो गये है..?? क्या ये बच्चा भी आज़ाद है...??
कुछ हुआ और शायरी हो गई


"हम गर जीते नही आप की खतीर
पर एक बार मर तो सकते हैं
बातें ना हो आपसे गम नही
आपको याद कर तो सकते हैं "
आज स्वतंत्रता दिवस की ६४ वी वर्षगांठ पे मै तरुण आप सभी मित्रों को हार्दिक बधाइयाँ देता हुए कुछ सवाल आप सब से पूछना चाहता हू जो मेरे जेहन में काफी दिनों से कौंध रहे है.
मित्रों क्या हम सही मायने में आजाद हो गए है? क्या है आज कल की युवा पीढ़ी के लिए आजादी के मायने? बस एक दिन का अवकाश या और कुछ?
मीडिया के लोकलाइजेशन के नुकसान : पत्रकारिता के क्षेत्र में तेजी से आए बदलाव हतप्रभ करते हैं. पिछले 20-25 सालों में काफी कुछ बदल गया है. खबरों का अंदाज, तेवर, परिदृश्य, फलक... सब बदला है. बानगी देखिए. नीचे दो खबरें दे रहा हूं. एक वर्ष 1974 में प्रकाशित है तो एक इसी महीने. दोनों के फर्क को महसूस करिए....

डॉ चंद्र प्रकाश जी की पहचान .....
जयप्रकाश जयप्रकाश रट रट के लोग   यहाँ देश के प्रधान और मंत्री बन आये  थे
साथ साथ चीखते थे क्रांति क्रांति उनके वे चौहत्तर में क्रांति का शंख जो बजाये थे
समझी थी जानता कुछ भला करे देश का ये इसीलिए वोट उनको ही दाल आये थे
पर पता चला की एक सत्ता को हटा के यारो सत्तालोलुपो  की पूरी फ़ौज ले आये थे

लोकतंत्र लोकतंत्र की तों बात सब करे पर लोकतंत्र का मतलब ना कोई जानता

लोकतंत्र नही ये तों भीडतंत्र है यारो डंडे गोली बिना  यहाँ कोई बात नही मानता
समझे है अर्थ  सब जो चाहे सो  करे चाहे  कोई मारे और  चाहे  कोई  मर जाये
लोकतंत्र वहा नही चल सकता है  देश जो अधिकार   और कर्त्तव्य ना पहचानता
देश की राजकुमारी का स्वयंवर था रचा
नौजवां देश के कवियों में था कुछ शोर मचा
ये शर्त थी की जो कविता को वो पसंद करे
उसी कविता के रचयिता से वो शादी भी करे
और तारीफ जो पसंद उसे आई नहीं
कवि समझे की कभी ज़िन्दगी थी पायी नहीं
किसन !—” बड़े साहब ने चपरासी को घूरते हुए पूछा, “तुम मेरे कक्ष से क्या चुराकर ले जा रहे थे?”
कुछ नहीं साहब।
झूठ मत बको!—” बड़े साहब चिल्लाए, “चौकीदार ने मुझे रिपोर्ट किया है, तुम डिब्बे में कुछ छिपाकर ले जा रहे थेक्या था उसमें? सच-सच बता दो नहीं तो मैं पुलिस में तुम्हारे खिलाफ—”
नहींनहीं साहब! आप मुझे गलत समझ रहे हैं—” किसन गिड़गिड़ाया, “मैं आपको सब कुछ सच-सच बताता हूँमेरे घर के पास सड़क विभाग के बड़े बाबू रहते हैं, उनको दीमक की जरूरत थी, आपके कक्ष में बहुत बड़े हिस्से में दीमक लगी हुई है । बसउसी से थोड़ी-सी दीमक मैं बड़े बाबू के लिए ले गया था। इकलौते बेटे की कसम !मैं सच कह रहा हूँ ।

हमारे यहां छात्र राजनीति की दो धाराएं रही हैं। आजादी से पहले वाली और आजादी के बाद वाली। आजादी से पहले हमारे देश में छात्र राजनीति की महत्वपूर्ण शुरूआत होती है 1921 में, जब महात्मा गांधी ने छात्रों से कहा, 'स्कूल और कॉलेज का बहिष्कार करो।' उस समय असामान्य परिस्थिति थी और आजादी की लडाई चल रही थी। ज्यादातर लोगों ने गांधीजी के आह्वान को सही माना, लेकिन तब भी एनी बेसेंट ने इसका विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि छात्रों को सक्रिय राजनीति में शामिल न करके हमें कोशिश करनी चाहिए कि वे राजनीति के बारे में रूचि रखें और अपनी जानकारी बढाएं।
और ये हैं
सरकार के द्वारा बनाये हुए पानी के हैण्ड पम्प
हर सड़क पर १००- २०० मीटर की दूरी पर बनाये गए हैं ...
जो की खुसी की बात है .....
गृह मंत्री महोदय ने घोसदा की है किअगेर कोई नाक्स्सल्वाडियो का समर्थन करता पाया जायेगा तो उसे गर्कनुनी गतिविधि निरोधक कानून १९६७ के अनतेरगत १० साल कि सजा हो सकती है.चिदुम्बेरुम जी ने जनता को यह भी सूचित किया है कि देश के २२० जिलो यानि ४०%हिस्से में विकास के अभाव के लिए आदिवासी जिम्मेदार है.अगेर यह दावा वास्तव में सही है तो सर्कार के दमन या ओप्रतिओं ग्रीन हंट का औओच्त्य समझ में अत है। -अज हालत यह है कि चानेल वालो ने अभिनेताओ और श्र्ळीटीश्र जैसे लोगो द्वारा बहस को सतही तरह से सिर्फ हिंसा और अहिंसा का मुद्दा बना दिया है और इन सबके बीच आदिवासियो और हसिया के लोगो के विरुध सरकार द्वारा पिचले ६ दशक से जरी हिंसा,जर जबर्दस्ती लूट के मुद्दों को ओझल केर दिया गया है.
वो देख कर मुस्कराये नहीं,
कोई बात नहीं

नाव मंझधार मैं फँसी है,

कोई बात नहीं है

दिल उनको दे दिया,वो लौटा दे,

कोई बात नहीं

मैं उनको चाहता हूँ,वो ना चाहे,

कोई बात नहीं
बहुराष्टïरीय कंपनियों द्वारा विकसित दवा के मरीजों पर प्रयोग (ड्रग ट्रायल) से राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 51 रोगियों पर साइड इफेक्ट हुए हैं। ये मरीज पिछले पांच वर्ष में कॉलेजों से जुड़े अस्पतालों में इलाज के लिए गए थे।
यह जानकारी विधानसभा से जारी एक दस्तावेज में उपलब्ध है। चिकित्सा शिक्षा राज्य मंत्री महेंद्र हार्डिया ने विधानसभा में यह जानकारी दी थी। उन्होंने यह भी बताया था कि पांच वर्ष में 2365 रोगियों पर ट्रायल हुआ। इसमें 1644 बच्चे और 721 वयस्क हैं। 
सदियों से कृषि प्रधान देश के तौर पर जाने-जाते रहे देश की सबसे बड़ी विडंबना यही रही है कि जब वोटों की बात आती है तो पूरी की पूरी राजनीति किसानों और गरीबों के नाम पर की जाती है, लेकिन जब नीतिया बनाकर उसे लागू करने का वक्त आता है तो जनता के जरिए चुनी गई अपनी लोकतात्रिक सरकारें भी किसानों के हितों की अनदेखी करने लगती हैं।
मिलते हैं अब अगले सप्‍ताह .. तबतक के लिए शुभ विदा .. 


17 टिप्पणियाँ:

नए चिट्ठों की वार्ता अद्भुत है।
आपके माध्यम से हम नए चिट्ठों तक पहुंच जाते हैं।
आभार

नए चिट्ठों बढ़िया वार्ता है।

अच्छी वार्ता।

*** राष्ट्र की एकता को यदि बनाकर रखा जा सकता है तो उसका माध्यम हिन्दी ही हो सकती है।

इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

बहुत ही सुन्दर ! प्रभावी चर्चा रचना !

माओवादी ममता पर तीखा बखान ज़रूर पढ़ें:
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html

संगीता दीदी .........इन उम्दा चिट्ठो तक हम सब को पहुँचाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार ! बेहद उम्दा ब्लॉग वार्ता !
अपनी ब्लॉग वार्ता आपकी इस लगन की वजह से ही आज कल टॉप पर जा रही है ! बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

ब्लॉग 4 वार्ता के पूरे वार्ता दल की ओर से आप सभी पाठको का बहुत बहुत आभार........ ब्लॉग 4 वार्ता को इतना मान सम्मान दे सब से आगे रखने के लिए !

नए चिट्ठों की चर्चा के लिए आपको ढेर सारी बधाई।

नए चिट्ठों की चर्चा के लिए आपको ढेर सारी बधाई।

बहुत खुसी हुई ...की आप हमारे ब्लॉग पर आये
और हमारे कार्य को सहर ....................
पूरी पूरी कोसिस करूँगा की ब्लॉग जगत की गरिमा को .
बनाये रखूँ ........
नए चिट्ठों की चर्चा के लिए आपको ढेर सारी .....**बधाई**

उम्दा ब्लॉग वार्ता !

बहुत बढ़िया वार्ता ..नए चिट्ठों से परिचय अच्छा लगा ..

अच्छा है सुन्दर प्रस्तुति सार्थक

हमारी भाषा के प्रसार के लिए आपके प्रयत्नों को शब्दों मैं नहीं बाँध सकता हूँ.
हृदय से नमन करता हूँ
डा.राजेंद्र तेला :निरंतर",अजमेर
"निरंतर" की कलम से.....

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी में किसी भी तरह का लिंक न लगाएं।
लिंक लगाने पर आपकी टिप्पणी हटा दी जाएगी।

Twitter Delicious Facebook Digg Stumbleupon Favorites More