सोमवार, 13 अगस्त 2012

गरजत बरसत लहुकत हे बादर आंखी म जइसे आंजे हे काजर...ब्लॉग4वार्ता....संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार... भारतीय पहलवान सुशील कुमार ने ओलम्पिक कुश्ती के 66 कि.ग्रा. वर्ग में देश के लिए इन खेलों में रजत पदक जीता... उधर देश के अनाज गोदामों में गरीबों के लिए रखे जिस सड़े अनाज को सुप्रीम कोर्ट की फटकार व निर्देश के बाद जमीन में दफना दिया गया था उड़ीसा के भूखे गरीब उसी अनाज को निकलकर खा रहे हैं, उनका कहना है इसमें कोई भी खराबी नहीं है...आइये चलें आज की ब्लॉग वार्ता पर इन लिंक्स के साथ....


तम और गहराता तम और अधिक गहराता गैरों सा व्यवहार उसका जीवन बेरंग कर जाता कोइ अपना नहीं लगता जीना बेमतलब लगता जब कोइ साथ नहीं देता मन में कुंठाएं उपजाता जब भी खुशी चेहरे पर आती सहना भी उसे मुश्किल होता यही परायाप...कोई ऐसी रात आए...  मेरे ख्वाबों से भरी कोई ऐसी रात आए... तू जब भी बात करे फिर, तो मेरी बात आए... चलो ढूँढे कोई दुनिया, जहाँ मोहब्बत में... न उम्र, न कोई मज़हब, न कोई जात आए.... इश्क़ करने की इस आदत से परेशान हूँ मैं... मेरी... .सुनो ........मुझे भी सीखा दो जीना ! .ना जाने कौन सी डाल पर बैठती है चिड़िया ना जाने कहाँ बनाएगी अब नया आशियाना ये उम्र भर उड़ते रहने की जद्दोजहद कहीं लील ना ले उसकी उम्र का अनकहा हिस्सा जो परों से तुल जाये वो उडान कहाँ जो उम्र से बढ़ जाये वो आ...

दिल की तबाही  *दिल की तबाही । (गीत)* *अब मान भी जाओ, इस दिल की तबाही कम है क्या..!* * * *चले भी आओ इन, टिसुओं की गवाही कम है क्या..!* * * *(तबाही=बरबादी; टिसुआ =आंसु; गवाही=साख )* * * *अंतरा-१...सच तुम जो भी हो आभासी नही (Girish Billore) at इश्क-प्रीत-लव ..मनोरमा: अश्क बनकर बह गए भाव प्रायः जिन्दगी के, गीत मेरे कह गएअनकहे जो रह गए वो अश्क बनकर बह गएहजारों ख्वाइशें ऐसी .....कुछ पूरी हुईं ...कुछ रह गयीं ....मन का सही चित्रण करती कविता ....शुभकामनायें ....


कितनी बदल रही है हिन्‍दी ! शोधपरक आलेख हिन्दी भाषा पर फारसी और अंग्रेजी का प्रभाव लेखक: ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ हिन्दी भाषा की विकास यात्रा के दौरान जिन दो महत्वपूर्ण कारकों ने उसे सर्वाधिक प्रभावित किया, उनमें भारत में मुस्लिम शासकों क... बादशाहत ... - तमाम कोशिशें हमारी, ................. नाकाम रही थीं 'उदय' कुछ ऐंसी कशिश थी उनमें, कि हम खुद को रोक नहीं पाए ? ... ये कैसा मुल्क है 'उदय', जहां चोर-उ...चोरी भी सीनाजोरी भी ....फरीद ज़कारिया नहीं हैं भारतीय! - विश्वप्रसिद्ध टाईम पत्रिका ने अपने एक प्रमुख स्तंभकार और कई आमुख कथाओं (कवर स्टोरी ) के प्रस्तुतकर्ता फरीद रफीक ज़कारिया को निकाल बाहर किया और सी एन एन...

इस वर्ष दो भाद्रपद क्यों ? --- तेरह महीने का वर्ष - अभी भादों का महीना चल रहा है। इसके समाप्त होने के बाद इस वर्ष कुंवार का महीना नहीं आएगा बल्कि भादों का महीना दुहराया जाएगा। दो भादों ह... जिह्वा - रहिमन जिह्वा बावरी, कहिगै सरग-पाताल आपहु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल. रहीम खानखाना का यह दोहा कई सदर्भों में सटीक बैठता है. मनुष्यों की पाँच कर्मेन्द...prerna ki kalpanayen - *सुरक्षा नारी की* *इंसान नहीं कोई वस्तु है वो* *किसी भी सामान से बहुत सस्ती है वो* *कैसे भी किसी ने भी उसका उपयोग किया* *जिसने चाहा जब चाहा उसको बेइज्जत किय...

 
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नई कविता - प्रयोगवाद व नई कविता में भेद रेखा स्पष्ट नहीं है। एक प्रकार से प्रयोगवाद का विकसित रूप ही नई कविता है। प्रयोगवाद को इसके प्रणेता अज्ञेय कोई वाद नहीं मानते।...  ..यदा यदा हि धर्मस्‍य - मानव देह धरी प्रकृति सूँ मन सकुचो घबरायौ।  सच सनकै कि देवकीनन्‍दन जसुमति पेट न जायौ।  सोच सोच गोकुल की दुनिया को समझहि परायौ। सुन बतियन वसुदव, दृगअन में घन ... मध्यमवर्गीय - वह श्रमजीवी होता है मगर खुद को बुद्धिजीवी समझता है। दशहरा-दीवाली पर रात-रात भर जागकर सुनता है पत्नी के ताने पूरी करता है स्वप्न में बच्चों की मुरादें सुबह...

कार्टून :- नो कमेंट

 

अब लेते है विदा अगली वार्ता में आपसे फिर मुलाकात होगी तब तक के लिए नमस्कार.... 

1 टिप्पणियाँ:

बहुत अच्छा सजाया है वार्ता को संध्या जी |
सुशील कुमार की हार ने झटका तो गहरा दिया पर उसके कौशल को सलाम |है बहुत योग्य हारना जीतना तो चलता है |यही खेल भावना है |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा

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