गुरुवार, 30 जून 2011

सरकार का गुगल को फ़रमान--ब्लॉग हटाए --- ब्लॉग़4वार्ता - ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार, कहने के लिए तो भारत में मीडिया स्वतंत्र है और अभिव्यक्ति की पूरी आज़ादी है लेकिन क्या सरकारें और प्रशासन अपनी निंदा बर्दाश्त कर पाते हैं?अगर सर्च इंजिन गूगल की मानें तो उत्तर होगा, नहीं.गूगल की 'ट्रांसपरेंसी रिपोर्ट' के मुताबिक़ छह महीनों में प्रशासन और यहाँ तक कि अदालतों की ओर से भी गूगल से कई बार कहा गया कि वे मुख्यमंत्रियों और अधिकारियों की आलोचना करने वाले रिपोर्ट्स, ब्लॉग और यू-ट्यूब वीडियो को हटा दें.
जाट देवता जा रहे हैं महादेव दर्शन के लिए पद यात्रा पर चवन्नी नहीं तो क्या  रुपए धेले से काम चल जाएगा।बाबा का ढाबा बंद है, खाना किधर कूँ मिलेगा, इन्हे चिंता लग गयी है, बात बजूद पर आकर अटक गयी। जाट तो आखिर जाट ठहरे, इन्होने मणिपुर हिंदी परिषद से समपर्क किया, समस्या का समाधान किया और चेताया ब्लॉगरों सावधान  कभी काग तंत्र  के चक्कर में मत पड़ना घटा घनघोर घोर छा गयी, बादल आये अब बरसात होने वाली है। मैं ,मेरी श्रीमतीजी भीग गए, अजन्में का इन्तजार है, हम जानते हैं है यही रीत दुनिया की। बात भीतर की है वक्त ने मुझे बड़ा बना दिया पापा, बड़ा एक दिन बनना ही था, सभी पापा इंतजार करते हैं, एक दिन बेटा बड़ा होगा।सरकारी स्कूल में पढने के बाद कुछ बनना बड़ा मुस्किल है।

पत्नी को चूमना सरे आम ठीक नहीं, सामाजिक उसुलों के खिलाफ़ है, चाहे कितने ही मार्डन हो जाओ। जीना मरना इसी समाज में है।मैं समय हूँ तो क्या हुआ, एक दिन तलाक का दर्द होगा ही। भले ही अश्क हम पलकों में छिपा लेते हैं। विदेशों में भारतीय महिलाओं का जीवन- संघर्ष की मिसाल देनी ही पड़ेगी चश्म -ए- जहाँ की जो मिली चिलचिलाती धूप तो मलीहाबादी आमों की बहार आनी ही थी। हमने तो इस बरस आम्रपाली और दशहरी से सबको हराया। आम मंहगे  होने पर भडकी है आग, सरकार को आमों पर सब्सिडी देनी चाहिए। ताकि गरीब भी आमों का स्वाद चख सकें।हम चुप रहे हम हँस दिए तुम्हारी अदा पर ज़िंदगी का तमाशा यही है।सभी के हैं शिखर अपने जहाँ भी जो खड़े हैं जी यह बात पते की है।

कहने के लिए तो भारत में मीडिया स्वतंत्र है और अभिव्यक्ति की पूरी आज़ादी है लेकिन क्या सरकारें और प्रशासन अपनी निंदा बर्दाश्त कर पाते हैं?अगर सर्च इंजिन गूगल की मानें तो उत्तर होगा, नहीं.गूगल की 'ट्रांसपरेंसी रिपोर्ट' के मुताबिक़ छह महीनों में प्रशासन और यहाँ तक कि अदालतों की ओर से भी गूगल से कई बार कहा गया कि वे मुख्यमंत्रियों और अधिकारियों की आलोचना करने वाले रिपोर्ट्स, ब्लॉग और यू-ट्यूब वीडियो को हटा दें.'ट्रांसपेरंसी रिपोर्ट' के मुताबिक़ जुलाई 2010 से दिसंबर 2010 के बीच ऐसे 67 आवेदन आए, जिन्हें गूगल ने नहीं माना.

इन 67 आवेदनों में से छह अदालतों की ओर से आए और बाक़ी 61 प्रशासनिक हल्कों से.रिपोर्ट के अनुसार ये आवेदन 282 रिपोर्ट्स को हटाने के बारे में थे. इनमें से 199 यू ट्यूब के वीडियो, 50 सर्च के परिणामों, 30 ब्लॉगर्स से संबंधित थे.गूगल की ट्रांसपेरंसी रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि दुनिया के ज़्यादातर देशों की न्याय प्रक्रिया से जुड़ी अलग-अलग एजेंसियाँ गूगल से उसकी सेवाएं इस्तेमाल करने वालों की जानकारी मांगती हैं.भारत में जुलाई 2010 से दिसंबर 2010 के बीच ऐसे 1,699 आवेदन किए गए, जिनमें से गूगल ने 79% के लिए जानकारी उपलब्ध करवाई.गूगल के हालांकि इसके विवरण नहीं दिए हैं लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक़ उसने कोई भी रिपोर्ट हटाई नहीं, हालांकि 22% में बदलाव किए. आगे पढें
 वार्ता को देता हैं विराम, मिलते हैं ब्रेक के बाद, राम राम

9 टिप्पणियाँ:

हिन्दुस्तान के बारे में गूगल की रीयल टाइम रिपोर्ट यहाँ उपलब्ध है

और लिंक्स आज भी बढ़िया मिले इस पोस्ट से

अच्छी सजी चौपाल बधाई |और आभार मेरी रचना शामिल करने के लिए
आशा

बढ़िया वार्ता ... आभार !

बेसिरपैर की आलोचना व असभ्‍य शब्‍दावली वाले ब्‍लॉगों को हटाने में कोई बुराई नहीं है। इससे तो थोडी बहुत सफाई ही होगी।

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ओझा उवाच: यानी जिंदगी की बात...।
नाइट शिफ्ट की कीमत..

पाबला जी ने तो रिपोर्ट के सीधे दर्शन ही करा दिए. आपका आभार.

bahut dino ke baad aaj aapne mere blog ko bhi shaamil kar hi liyaa...aabhaar.

बेहतरीन लिंक, मेहनत से तलाश करके लगाने का आभार

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