शनिवार, 10 नवंबर 2012

खुद की तलाश ... ब्लॉग4वार्ता ...... संगीता स्वरूप

आज की वार्ता में  संगीता स्वरूप  का नमस्कार ----
"आजकल देशभर में फैले ‘‘भ्रष्ट्राचार’’ एवं प्रशासन संचालन में ‘‘अव्यवस्था’’ रूपी दानव से लड़ने हेतु एक बड़ा माहौल चहुओर फैलता जा रहा है। देश का प्रत्येक नागरिक आज स्वच्छ, ईमानदार और कुशल व्यवस्था चाहता है। ऐसी स्थिति लाने के लिए आम आदमी कोई भी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार है। यही कारण है कि स्वतंत्रता के बाद 65 सालों से कुशासन और भ्रष्ट्राचार में डूबे अपने वतन को बचाने के लिए जनता सीना ताने खड़ी हो गई है। जो आवाम कल तक यह सोचकर भ्रष्टाचार को सहन करती जा रही थी कि जाने दो इससे हमें कौनसा सीधा नुकसान हो रहा है, आज सारे देश के नफा-नुकसान पर चिंतित है। >>आगे पढ़ें


मैं "के बंधन से मुक्ति ही खुद की तलाश है ...ऐसा परिभाषित करती और मुक्तसर शब्दों में बात कहती यह पंक्तियाँ है रश्मि प्रभा जी के संग्रह खुद की तलाश में लिखे अपने व्यक्तव की खुद रश्मि प्रभा जी के ही शब्दों में ...खुद की तलाश हर किसी को होती है |बचपन में हम झांकते हैं कुएँ में ,जोर से बोलते हैं ,पानी से झांकता चेहरा बोली की प्रतिध्वनी पर मुस्कराना खुद को पाने जैसा प्रयास और सकून हैं ...रश्मि जी के लिखे यह शब्द अपने लिखे का परिचय और खुद उनका परिचय देते हैं |>>>आगे पढ़ें


पर्यावरण के हाइकु
१)
गंगा-यमुना
प्रदूषण की मारी
हुई उसांसी ।...................
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पुरानी हिंदी फिल्मों के लोकप्रिय खलनायक अजित अक्सर जब हीरो को पकड़ लेते तो कहते -- रॉबर्ट, इसे गैस चैंबर में डाल दो। कार्बन डाई ऑक्साइड इसे जीने नहीं देगी और ऑक्सीजन इसे मरने नहीं देगी। आजकल दिल्ली शहर ऐसा ही गैस चैंबर बना हुआ है। नवम्बर शुरू होते ही दिल्ली को ऐसी सफ़ेद चादर ने घेर लिया जैसी वो कौन थी जैसी पुरानी हिंदी संस्पेंस फिल्मों में दिखाई देती थी।<<<आगे पढ़ें


तेरे  ख्याल
तेरा जिक्र
तेरे ख्वाब
तेरी छुअन,>>>>>
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लिख रही अविराम सरिता,
नेह के संदेश .
पंक्तियों पर पंक्ति लहराती बही जाती
कि पूरा पृष्ठ भर दे  .
यह सिहरती लिपि तुम्हारे लिये ,प्रिय.
संदेश के ये सिक्त आखर .>>>>
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आई है दीपावली , कर' अनुपम शृंगार !
छत-दीवारें खिल गईं , सज गए आंगन-द्वार !!
सजे शहर भी, गांव भी , घर - गलियां- बाज़ार !
शुभ दीवाली कर रही, शुभ सपने साकार !!>>>>>आगे पढ़ें



यादें  जो जुड़ी रहती हैं हर एक के विगत जीवन से ,सबके पास होता है कुछ न कुछ याद करने को , हर एक के हिस्से में आती हैं यादें - कुछ खट्टी ,कुछ मीठी ,कुछ कसैली ,तो कुछ खुशनुमा .... इन्हीं यादों को पिरोया है ‘यादों के पाखी ‘  में ।  यादों के पाखी एक हाइकु संग्रह  है जिसको संपादित किया है श्री रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु ’ , डॉo भावना कुँअर  और डॉo हरदीप कौर संधु जी ने ।आगे पढ़ें



 


सघन वर्षा वन  के अन्दर जैसे चुपके से उतरता है धूप का एक नन्हा टुकड़ा  और  ख़ामोशी से उसके  चप्पे-चप्पे पर  फेरने लगता है अपनी   इन्द्रधनुषी कूची  .  रेंगकर  जगाता है उनींदी पगडंडियों को और सुनहले  वर्क सा आच्छादित हो जाता है उसमें सोये ताल-तलैय्यों,जीव-जंतुओं ,फूलों , शैवालों पर .... देखती हूँ मेरे वर्तमान में ठीक वैसे ही उतर आता है मेरे अतीत का उजाला.>>>>>आगे पढ़ें


रात ढली, दिन उगा
बोलो किसको श्रम हुआ,
हवा बही सुरभि लिए
बोलो किसने दाम दिए !>>>>
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अभी अभी रूद्र के बैग में  नोटिस देखा  है बड़ी लम्बी छुट्टियाँ हैं ,नवीन जी को बताया तो 10 ओफ्फिस के काम ,लगे गिनाने .बॉस कभी भी चला आएगा , लौन्चिंग अब नहीं टालनी है  ,फिर कभी चलेंगे ,भूल गयी रूद्र के काका चाचा  जी लोग आयेंगे तुम भी तो कब से उनसब से नहीं  मिली हो शुक्र करो कहीं जा नहीं रहे वर्ना कैसे मिल पाते अपनों से , बीजी लाइफ है ,आ रहे हैं ये बड़ी बात है तुम  तयारी करो स्वागत की वगैरह वगैरह .>>>>>आगे पढ़ें


फर्क पड़ता है॰
"तुम्हारे नि:स्वार्थ शब्दों ने मेरी जिन्दगी बदल दी। "
एहसान के भार से दबी राधा ने रमेश से सिसकते हुए कहा ।
"कौन-सी बात ?"
रमेश ने अचकचाकर पूछा ।
"वही नीबू निचोड़ने वाली बात ।"
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रचनाकार: सुरेन्द्र कुमार पटेल की लघुकथा - फ़र्क पड़ता है http://www.rachanakar.org/2012/11/blog-post_699.html#ixzz2BnU4Ayre



पुणे

महाराष्ट्र का दूसरा बड़ा शहर है ....यह महाराष्ट्र की  दो मशहूर नदियों के किनारे बसा हुआ है ...यह  पुणे  जिले का प्रशासकीय मुख्यालय भी है ..पुणे भारत का छटा बड़ा शहर है ..यहाँ अनेक मशहूर शिक्षण संस्थाने है ..इसलिए इसे पूरब का आक्सफोर्ड भी कहा जाता है ...मराठी यहाँ की मुख्य भाषा है ...>>>>आगे पढ़ें



किसी की राह देखी 
कही नजरें बिछायीं 
क्यों कहीं राह में देख 
कैसे हैं नजरें बचाईं 
सुगंध और सुमन से >>>>>
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सुप्रसिद्ध लेखक रंगकर्मी ,अभिनेता श्री गिरीश कर्नाड (जिनके लिखे नाटक तुगलक की पिछले दिनों धूम रही )को मुंबई की एक संस्था द्वारा एक साहित्य समारोह में रंगकर्म से जुड़े अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया गया था |लेकिन कर्नाड को अपने इस ‘’भाषण’’ में प्रसंशा के बावजूद कुछ असहमतियों जिन्होंने छोटे मोटे विवाद का रूप भी ले लिया था ,सामना करना पड़ा |>>>>>आगे पढ़ें


जिस समय सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे थे, एक आशंका सी रहती थी कि होगा कि नहीं, यदि होगा तो कितने वर्षों में। तैयारी करने वाले प्रतिभागियों में जिससे भी मिलते थे, एक उत्सुकता रहती थी, यह जानने की कि कौन कितने वर्षों से तैयारी कर रहा है? तैयारी का कुछ भाग दिल्ली में और कुछ इलाहाबाद में किया था, आपको यह तथ्य जानकर आश्चर्य होगा कि कुछ लोग १० वर्षों से तैयारी कर रहे थे। एक अजब सी आशावादिता व्याप्त थी वातावरण में>>>>>आगे पढ़ें


एक बढ़ई काम करते हुए कई चीज़ों पर ध्यान नहीं देता मसलन लकड़ी चीरने की धुन, उसे चिकना बनाते समय बुरादों के लच्छों का आस-पास फ़़ूलों की तरह बिखरना, कीलें ठोकने के घीमे मद्धिम और तेज सुर,खुद अपने हाथों का फ़़ुर्तीला हर क्षण बदलता संचालन और कभी चिंतन में डूबी, कभी चुस्ती और जोश से लपकती, कभी लगन में डूबी और कभी काम के ढलान पर आख़िरी झंकार छेड़ती अपनी गति वह स्वयं नहीं देखता.>>>>आगे पढ़ें


एक घटना अमूमन सभी बाइक एवं कार चालकों के साथ घटती है, किसी मोहल्ले या सड़क से जाते वक्त किनारे बैठा कोई कुत्ता गाड़ी देख कर गुर्राते हुए हमला करने की मुद्रा बनाकर दूर तक दौड़ाता है. ऐसी हालत में फुटरेस्ट से पैर ऊपर उठाने पड़ते हैं. कहीं काट ले तो इंजेक्शन लगवाने का दर्द झेलना पड़ सकता है. कभी - कभी कार में बैठे होने पर कुत्ते दौड़ाते हैं तो बाइक सवार की तरह पैर अपने आप ही ऊपर उठ जाते हैं.>>>>आगे पढ़ें


मेरे सबसे प्यारे नीमा,
तुम्हें ख़त लिखना ...मेरे प्यारे...बेहद मुश्किल काम है...मैं तुम्हें कैसे बताऊँ कि मैं कहाँ हूँ, इतने छोटे और नादान हो तुम कि कैद, गिरफ़्तारी, सजा, मुकदमा, सेंसरशिप, अन्याय, दमन , आज़ादी, मुक्ति , न्याय और बराबरी जैसे शब्दों के मायने कैसे समझ पाओगे.>>>>आगे पढ़ें


यह सत्य है कि इंसान का अच्छा या बुरा, हिंसक अहिंसक होना उसकी अपनी प्रवृत्ति है। कोई जरूरी नहीं आहार के कारण ही एक समान प्रवृति दिखे। किन्तु यह प्रवृत्तियाँ भी उसकी क्रूर-अक्रूर वृत्तियोँ के कारण ही बनती है. दृश्यमान प्रतिशत भले ही कम हो फिर भी वृत्तियों का असर मनोवृति पर पडना अवश्यंभावी है।>>>आगे पढ़ें


आज की वार्ता बस इतनी ही .... फिर मिलते हैं

12 टिप्पणियाँ:

बढिया वार्ता, बहुत अच्छे लिंक्स हैं

शानदार चर्चा!!

निरामिष की पोस्ट को सम्मलित करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार!!

वाह बहुत सुन्दर लिंक्स संजोये हैं।

संगीता जी, दीवाली की अग्रिम शुभकामनायें ..रात ढली...के लिए बहुत बहुत आभार !

meri post ko shamil karne ke liye bahut bahut dhanyavaad ,aaki links bhi kamaal ke hai punah dhanyavaad.

बहुत बढ़िया वार्ता प्रस्तुति ..आभार

सुंदर और सार्थक ब्लॉग वार्ता के लिए साधुवाद संगीता जी ! मेरे हाइकु शामिल करने के लिए ह्रदय से आभार।
दीपावली की शुभकामनाएँ !

बढ़िया लिंक्स और सुंदर वार्ता के लिए आभार संगीता जी ... दीपावली की बहुत - बहुत शुभकामनाएं...

चुना हुआ संयोजन - 'सागर के नाम' सम्मिलित करने हेतु आभार और इसके साथ
हार्दिक शुभ कामनाएँ कि सपरिवार आपकी दीवाली मंगलमय हो !

पूरे हफ़्ते बाद देखी वार्ता
वाह क्या लिंक मिले

बड़े ही रोचक ढंग में सजी सूत्रों की प्रस्तुति..

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