गुरुवार, 29 नवंबर 2012

सावधानी हटी, दुर्घटना घटी नयनों का क्या भरोसा... ब्लॉग 4 वार्ता... संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार....  देह के अपने इस प्रांगण में कितनी कीं अठखेली पिया रे मधुघट भर भर के छलकाये औ रतनार हुई अखियाँ रे । खन खन चूडी रही बाजती छम छम छम छम पायलिया रे हाथों मेहेंदी पांव महावर काजल से काली अंखियां रे वसन रेशमी, रेशम तन पर केश पाश में बांध हिया रे । कितने सौरभ सरस लुटाये तब भी खिली रही बगिया रे । पर अब गात शिथिल हुई जावत मधुघट रीते जात पिया रे । पायल फूल कंगन नही भावत ना मेहेंदी ना काजलिया रे । पूजा गृह में नन्हे कान्हा मन में बस सुमिरन बंसिया रे । तुलसी का एक छोटा बिरवा एहि अब रहत मोर बगिया रे सेवा पहले की याद करि के रोष छोड प्रिय करो दया रे । दिन तो डूब रहा जीवन का सांझ ढले, फिर रात पिया रे नैन लगे उस पार ।. लीजिये प्रस्तुत हैं आज की वार्ता ........
बंठाधार ... - उन्हें चिट्ठी लिखी, और खुद ही डर के फाड़ डाली मुहब्बत में 'उदय', ये दौर भी... देखा है हमने ? ... आज, बेहद हंसी मौक़ा है 'उदय', ............... दुकां ... दो पैसे की धूप, चार आने की बारिश - *(*मुंबई के पॉश इलाके वर्सोवा में समंदर किनारे बनी एक इमारत की छठी मंज़िल पर हूं। दरवाज़े की घंटी बजाने पर रिस्पॉन्स नहीं मिलता, घंटी ख़राब है या शायद... नयनों का क्या भरोसा, कब नूर छोड़ देंगे। - *तनिक तुम अगर अपना गुरुर छोड़ देंगे, हम ये गंवारू समझ और शऊर छोड़ देंगे। सिर्फ तुमको नापसंद,बल्कि जहां ही सारा, इक इशारे पे तुम्हारे हम, हुजूर ... 

मन की कोमल पंखुड़ी पर ....फिर बूँद बूँद ओस.....!! - सुषुप्ति छाई ....गहरी थी निद्रा .... शीतस्वाप जैसा .. .. ....सीत निद्रा में था श्लथ मन ........!! न स्वप्न कोई .....न कर्म कोई ...न पारितोष ...... अचल ...  आज याद आया - आज याद आया वह किस्सा पुराना जो ले गया उस मैदान में जहां बिताई कई शामें गिल्ली डंडा खेलने में कभी मां ने समझाया कभी डाटा धमकाया पर कारण नहीं बताय... ये कैसा चक्रव्यूह - पिछले कुछ महीनो में कई फ़िल्में आयीं और उन्होंने काफी दर्शकों को थियेटर की तरफ आकर्षित किया। बर्फी, इंग्लिश-विन्ग्लिश, OMG , जब तक है जान आदि। पर इन सबके...

मैनपुरी की तारकशी कला - *मैनपुरी की तारकशी कला * मैनपुरी का देवपुरा मोहल्ला…..तंग गलियों में हथौडी की चोट की गूंजती आवाज़…..को पकड़ते हुए जब चलना शुरू कर देंगे तो एक सूने से लकड़ी... पोखरा की यात्रा-3 - भाग-1 भाग-2 से आगे..... अन्नपूर्णा रेंज की धवल पर्वत श्रृखंलाएँ ही नहीं, झीलों, झरनों और गुफाओं के मामले में भी प्रकृति ने पोखरा को दोनो हाथों से सुंदरता... घर के कुछ काम तो ऑफिस में करने दीजिये --- - बहुत समय से हास्य काविता लिखने का समय और विषय नहीं मिल रहा था. हालाँकि दीवाली पर उपहारों के आदान प्रदान पर लिखने का बड़ा मूड था. इस बार अवसर मिल ही गया. आ... 

 "अद्रश्य डोर " - उसके और मेरे बींच वो क्या है जो हम दोनों को जोडती है ... एक अद्रश्य डोर है जो मजबूती से हमे जकड़े हुए है .... वो इसे प्यार नहीं कहता --- पर यह ... चुहिया - ● चुहिया ● सामने वाली दीवार की जड़ में बने छोटे उबड़-खाबड़ से गोल छेद को निहारे जाना जैसे मेरी रोज़ाना की आदत बन गयी थी | जब भी दिल उदास या खिन्न होत... थानेदार बदलता है - *थानेदार बदलता है* श्यामनारायण मिश्र कितना ही सम्हलें लेकिन हर क़दम फिसलता है जाने क्यों हर बार हमें ही मौसम छलता है। खेतों खलिहानों में मंडी की दहश... 

वक़्त - *ऐ राही !* *तुम उसे जानते हो * *वो तुन्हें जानता भी नहीं* *तुम संग उसके चलते हो * *वो ठहरता भी नहीं * *तुम पथ पर ठोकर खाते हो* *वो गिरता ...  आँसू को शबनम लिखते हैं - जिसकी खातिर हम लिखते हैं वे कहते कि गम लिखते हैं आस पास का हाल देखकर आँखें होतीं नम, लिखते हैं उदर की ज्वाला शांत हुई तो आँसू को शबनम लिखते हैं फूट गए गलत... बावली नदी - *नदी हूँ मैं** **नदिया के जैसी ही ** **चाहत मेरी है...** **समंदर! तू कितना खारा है** **फिर भी मुझे जान से प्यारा है....* *इतराती,इठलाती * *मेरी हर मस्ती ... 

तड़प,,, - *तड़प* जिन्दगी आज कैसी बदहवास सी दिखती है, तन्हाई में भी तू ही तू आस पास दिखती है! दरिया में रह कर भी मै प्यासा रह गया, मेरी निगाहों में सदियों क...  ये सुंदरियां.. अभिव्यक्ति की सुंदरियां भावों के कालजयी मंच पर हंसती, मुस्कुराती,गाती ख़ुशी से थिरक...विदा होती हूँ मैं ... - "रात की तन्हाई में नदी में डूबती कश्ती देखी कभी तुमने ? मेरी आँखों में जलते चरागों में डूबती है रात खाली हाथ ख्वाब है कोई नहीं अब उस हकीकत का जो लोक... 

नरेन्द्र मोदी : सावधानी हटी, दुर्घटना घटी ... - *आपसे* वादा था कि गुजरात चुनाव के बारे में आप सबको अपडेट दूंगा, तो चलिए आज गुजरात विधानसभा चुनाव की ही कुछ बातें कर ली जाए। दो दिन पहले ही दिल्ली से अहमदा...तालाब परिशिष्‍ट - वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी डा. के.के. चक्रवर्ती जी के साथ दसेक साल पहले रायपुर से कोरबा जाने का अवसर बना। रास्ते में तालाबों पर चर्चा होने लगी। अनुपम मिश्र ... निर्मल रेत की चादर पर - किताबें बड़ी दिल फरेब चीज़ होती हैं। मैं जब भी किसी किताब को अपने घर ले आता हूँ तब लगता है कि लेखक की आत्मा का कोई टुकड़ा उठा लाया हूँ। ...  

  

अब इजाज़त दीजिये नमस्कार......

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8 टिप्पणियाँ:

संध्या जी आज कल ब्लॉग वार्ता रोज क्यूँ नहीं लगती ?आज पर्याप्त लिंक्स दी हैं पढाने के लिए |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा

हृदय से आभार संध्या जी इतने सुंदर लिंक्स के बीच अपनी रचना देख कर प्रसन्न हो गया मन ....बहुत सुंदर वार्ता है ....!!

कविताओं के शीर्षक लुभा रहे हैं , काश की सभी कवितायेँ पढ़ पाऊं !
बहुत आभार !

बहुत ही अच्छे सूत्र सजाये हैं..

सभी लिंक्स ...बेहद उम्दा ......सादर

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