मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

अजब रूप धारे शिवजी हमारे ... ब्‍लॉग4वार्ता .. संगीता पुरी

सभी प्राणियों के आराध्य हैं। वह सर्वेश्वर और देवादिदेव है । पहनने के लिए वस्त्र की जगह बाघम्बर अथवा मृगशाला, आभूषण के नाम पर विषधर सर्प तथा मुंडमाल शृंगार की जगह मात्र भस्म का लेपन, उन के स्वरूप की पहचान है। वे बैल की सवारी करते हैं। श्मशान वासी हैं। कंठ में धारित विष से नीलकंठ कहलाते हैं। उन के साथ भूत-प्रेत निशाचर और पिशाचों का झुण्ड रहता है। वे महाकाल भैरव के रूप में भी जाने जाते हैं।

फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान् शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया। तीनों भुवनों की अपार सुंदरी तथा शीलवती गौरां को अर्धांगिनी बनाने वाले शिव प्रेतों व पिशाचों से घिरे रहते हैं। उनका रूप बड़ा अजीब है। शरीर पर मसानों की भस्म, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष, जटाओं में जगत-तारिणी पावन गंगा तथा माथे में प्रलयंकर ज्वाला है। बैल को वाहन के रूप में स्वीकार करने वाले शिव अमंगल रूप होने पर भी भक्तों का मंगल करते हैं और श्री-संपत्ति प्रदान करते हैं।


 ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए थे। इस संबंध में एक पौराणिक कथा भी है। उसके अनुसार-भगवान विष्णु की नाभि से कमल निकला और उस पर ब्रह्माजी प्रकट हुए। ब्रह्माजी सृष्टि के सर्जक हैं और विष्णु पालक। दोनों में यह विवाद हुआ कि हम दोनों में श्रेष्ठ कौन है? उनका यह विवाद जब बढऩे लगा तो तभी वहां एक अद्भुत ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ। उस ज्योतिर्लिंग को वे समझ नहीं सके और उन्होंने उसके छोर का पता लगाने का प्रयास किया, परंतु सफल नहीं हो पाए। जब दोनों देवता निराश हो गए तब उस ज्योतिर्लिंग ने अपना परिचय देते हुए कहां कि मैं शिव हूं। मैं ही आप दोनों को उत्पन्न किया है।

महाशिवरात्रि का व्रत फाल्गुन महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रखा जाता है ( Falgun Krishna Paksha Chaturdashi tithi Mahashivratri)। शिवरात्रि न केवल व्रत है, बल्कि त्यहार और उत्सव भी है. इस दिन भगवान भोलेनाथ का कालेश्वर रूप प्रकट हुआ था. महाकालेश्वर शिव की वह शक्ति हैं जो सृष्टि के अंत के समय प्रदोष काल में अपनी तीसरी नेत्र की ज्वाला से सृष्टि का अंत करता हैं। महादेव चिता की भष्म लगाते हैं, गले में रूद्राक्ष धारण करते हैं और नंदी बैल की सवारी करते हैं. भूत, प्रेत, पिशाच शिव के अनुचर हैं. ऐसा अमंगल रूप धारण करने पर भी महादेव अत्यंत भोले और कृपालु हैं जिन्हें भक्ति सहित एक बार पुकारा जाय तो वह भक्त की हर संकट को दूर कर देते हैं. महाशिवरात्रि की कथा में शिव के इसी दयालु और कृपालु स्वभाव का परिचय मिलता है.

कल्याण करने वाले निश्चित रूप से उसे प्रसत्र करने के लिए मनुष्य को उनके अनुरूप ही बनना पड़ेगा’शिवो भूत्वा शिवं यजेत‘ अथात् शिव बनकर ही शिव की पूजा करें धम ग्रंथों में शिव के स्वरूप की प्रलयंकारी रूद्र के रूप में स्तुति की गयी है शंकर के ललाट पर स्थित चंद्र, शीतलता और संतुलन का प्रतीक है यह विश्व कल्याण का प्रतीक और सुंदरता का पयाय है, जो निश्चित ही ’शिवम्‘ से ’सुंदरम्‘ को चरिताथ करता है सिर पर बहती गंगा शिव के मस्तिष्क में अविरल प्रवाहित पवित्रता का प्रतीक है.

उस एक चेतना, एक बीज का नृत्य जिससे विश्व में १० लाख से भी अधिक प्रजातियां प्रकट हुई हैं, वो शिवजी हैं।। सारा विश्व भोलेपन और बुद्धि की शुभ लय से चल रहा है जो शिवजी हैं। शिव ऊर्जा का स्थाई एवं अनन्त स्त्रोत हैं; एक और सिर्फ एक अस्तित्व का अनंत स्वरुप है।शिवरात्रि का अक्षरशः अर्थ होता है वह रात्रि जो शिव तत्व या अंतर्ज्ञान सिद्धांत के तीन अंग को उत्तेजित करता है। समाधि को कई बार शिव सायुज्य से निर्दिष्टि किया जाता है, यह वह धारणा है, जिसे समझाना कठिन है । कबीर दास इसे कहते हैं “कोटि कल्प विश्राम”। दस लाख वर्ष से अधिक का विश्राम एक क्षण में संजोया हुआ। यह सतर्कता के साथ गहन विश्राम की अवस्था है, जो हर पहचान से मुक्ति प्रदान करता है ।

शिव बारात सज रही है!
आज तो बम बम बोल रही है काशी....शिवरात्रि पर काशी शिवमय हो जाती है ..शिव बारात सज रही है ...बरात क्या है चित्र विचित्र दृश्यों का संयोग है -एक बूढा बैल पकड़ा गया है,लोग उस पर भयावह से लग रहे बाल शिव को बैठाने के उपक्रम में हैं ...बैल बिदक रहा है ..लोग उसे संभाले हुए है ..दर्शक दूर से नमस्कार कर रहे हैं ..कहीं बैल बिदक गया तो किसी के थामें न थमेगा ..मेरे मन में भी दहशत है इसलिए एक सुरक्षित कोना ढूंढ लिया है ..बारात सज बज रही है ...यह भी कोई बरात है?

सरकारी दफ्तरों की छुट्टी है और शिवमंदिरों में लोगों की भीड़ लगी है। शिवलिंग पर से दूध की धार थम ही नहीं रही है। जितनी तस्वीरें हमारे फोटोग्राफर लेकर आए हैं या जो टीवी के परदे पर दिख रही हैं वे दूध से अभिषेक की तस्वीरें हैं। यही त्यौहार नहीं, बाकी त्यौहार भी और दूसरे धर्मों के भी त्यौहार भी, इसी किस्म के बहुत से रीति-रिवाज लेकर आते हैं जब ईश्वर के सामने लड्डुओं से लेकर तरह-तरह की कुर्बानी चढ़ाई जाती है। ऊपर वाले का दरबार चढ़ावों से लबालब होता है। सड़क किनारे से जब लोगों को हटाया जाता है तो रोज कमाकर रोज खाने वाले फुटपाथी लोग सबसे पहले हटाए जाते हैं, और ईश्वर की दूकान आखिर तक चलती रहती है।



पत्तों और
कच्चे फलों से
विरक्त कर दिया गया
'बेल 'का पेड़ .....!


श्रद्धा ,अभिव्यक्ति का
ये रूप 
मुझे गया झकझोर ....

क्यूंकि ,
एक स्पर्श के बाद
पत्तों ,फलों की 
जगह थी
कचरे का डिब्बा ...!!

माना जाता है कि 175 साल पहले शिवरात्रि के तीसरे प्रहर में 14 वर्षीय बालक मूलशंकर के हृदय में सच्चे शिव को पाने की अभिलाषा जगी थी। शिव' विद्या और विज्ञान का प्रदाता स्वरूप है परमात्मा का। इसी दिन मूलशंकर को बोद्ध-ज्ञान प्राप्त हुआ था और वह महर्षि दयानन्द सरस्वती बन सके।इस दिन को याद करते हुए दयानंद बोध दिवस के रूप में हर साल मनाया जाता है।

सो अपने कुटुम्बजनों- मेरे चचेरे भ्राता जनों, को मैं सायाश ही एक पत्र लिखा, व इसे डाक द्वारा प्रेषित कर दिया।हालाँकि यह पत्र मेरे कुछ ही बंधुओं को डाक द्वारा प्राप्त हुआ, किंतु जिन्हें प्राप्त हुआ और जिन्होंने इसे पढ़ा , उनसे पत्रोत्तर संवाद अति भावुकतापूर्ण था। मेरा अनुभव रहा है कि विगत कुछ वर्षों में कौटुम्बिक , पारिवारिक संबंधों व अपनेपन पर भारी कुठाराघात हुआ है( यह मेरा मात्र व्यक्तिगत अनुभव है, और इसे आप कतई पारिवारिक संबंधों के बारे में मेरी सामान्य राय के रूप में न लें, और यदि आपका स्वयं का अनुभव इससे इतर है, तो यह जानकर शायद मुझसे प्रफुल्लित व्यक्ति कोई नहीं हो सकता।), और इससे मेरा मन बड़ा दुखी व भावुक था।इन्ही विचारप्रवाहों में ये शब्द मेरे पत्र में उकेरित हो गये।


एक झलक जो तेरी पाए
तेरा दीवाना हो जाये,
गा-गा कर फिर महिमा तेरी
मस्त हुआ सा दिल बहलाए !

तू कैसी सरगोशी करता
जो जैसा, तुझे वैसा देखे,
पल–पल चमत्कार दिखलाता
बुद्धि खा जाती है धोखे !

अनुतप्त न होगा कभी तेरा मन,
कर भोर भये भोले का सुमिरन|
रख शिव चरणों में मनोरथ अपना,
निश्चित मनोकामना होगी पूरन||
सरल सहृदय मन कृपालु बड़े है,
जय भोलेनाथ सन्निकट खड़े है|
अनसुलझी रहे न कोई उलझन,
कर भोर भये भोले का सुमिरन||

रसमसी चाल चले अलबेली अंग चढाय विभूत ।
कानन कुंडल मुकुट विराजत पीताम्बर ओढ़े कटि पूत ।। १ ।। 
दंड कमंडल गहि जपमाला आसन लीनों बनाय ।
कोटि जतन राधा पचिहारी मुख न बोलत मुसिक्याय ।। २ ।।
जगजीवन जोगी हे आये अरस परस लिये ग्वाल ।
मानों कोटि उडुगण शशि जैसे ऐसे बने नंदलाल ।। ३ ।।
दृग दृग थेई थेई धुनि बाजे इत गोपी उत ग्वाल ।
आनंद भई हैं सकल व्रज निता बोलत बचन रसाल ।। ४ ।।

हे भोले ... बम बम भोले ...
देवादि देव महादेव ...
तुम्हें प्रणाम ... कोटि कोटि प्रणाम ...
मैं आज तुम्हारी चौखट पे
कुछ लेने नहीं !
और न ही कुछ जानने आया हूँ !!

अब अंत में शिवरात्रि पर एक विशेष गीत सुनिए ......


आप सबों को शिवरात्रि की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं ...
नमस्‍कार , फिर मिलते हैं एक ब्रेक के बाद  ... 

9 टिप्पणियाँ:

सुंदर शिवमय वार्ता - आभार एवं शुभकामनाएं

शिवमय झांकी हो गयी !
भक्तियुक्त वार्ता!

ॐ नमः शिवाय.
बढ़िया वार्ता...
शिवरात्री की सादर बधाईयाँ....

सुन्दर शिवभक्तिमय वार्ता के लिए आपका आभार...

शिवमय सुन्दर वार्ता.

्शिवमय वार्ता बेहद उम्दा।

आज की वार्ता ने सब को शिवमय कर दिया |
आशा

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