रविवार, 26 फ़रवरी 2012

आमचो बस्तर कितरो सुंदर....ब्लॉग4वार्ता...ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार,  संध्या शर्मा  जी ने कल की वार्ता में ब्लॉग लेखकों की पोस्ट कम आने की वजह के विषय में लिखा था। यह सत्य है कि वर्तमान में ब्लॉग के प्रति लेखकों का रुझान कम हो रहा  है। 2009 में मैने लगभग 3500 ब्लॉगों पर लिंक समेत स्वागत कमेंट किया था। गुगल ने सर्च करने पर यही संख्या बताई। उन 3500 ब्लॉग में लगभग 100 ब्लॉग भी सक्रीय नहीं है। इससे लगता है कि लोग ब्लॉग तो बना लेते हैं पर लिखना नहीं चाहते या लिखने का समय नहीं मिलता। लगभग ब्लॉगर फ़ेसबुक पर सक्रीय हैं अब। इससे ब्लॉगिंग में शिथिलता आनी स्वाभाविक है। एक दिन सतीश पंचम जी ने बहुत सही लिखा था फ़ेसबुक पर "एक पाव फ़ेसबुक 10 किलो ब्लॉगिंग को खा जाती है।" स्थायी तो ब्लॉग ही  है, फ़ेसबुक की चार दिन की चाँदनी आर्कुट जैसे ही मानी जा सकती है। अब चलते हैं आज की ब्लॉग4वार्ता पर…………ये भी सुन लीजियेइन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान.

ओह...
*अजीब खरी- खरी * *पथरीली सी जिन्दगी* *हम अपना काव्यांश* *ढूँढते रह गए..* *जाने कब शुरू कब * *ख़त्म हुई कहानी* *हम मध्यांश* *ढूँढते रह गए..* *ओह...* *कितने सलीके से पूछ गए* *कैसा रहा सफ़र* *और हम अपना सारांश...
दूजे की आसान, हंसी उड़ाना है सखे --
हिन्दुत्व की आलोचना सुनने वाले और करने वाले दोनों यहाँ पढे !! एक हि धुन जय जय भारत! मेरी शर्ट सफ़ेद, दूजे की गन्दी दिखे । दुनिया भर के भेद, फिर भी हम सब एक हैं । दूजे की आसान, हंसी उड़ाना है सखे । गिरेबान ...
कशिश
*बदलते * *रि**श्ते* *...* किसे सुनाये दास्ताँ अपनी कौन यहा, अपना है .. अधूरे अरमान , ख्वाब अधूरे .. अधुरा हर सपना है ... एक दोस्त मिला आज ऐसा , जो पीड़ा को peda बना देता है ... दर्द ...
प्रेम सरोवर
*तुम्हे प्यार करते-करते कहीं मेरी उम्र न बीत जाए*
अवसर
अवसर कहाँ किस रूप मे हमारे सामने हों कहा नहीं जा सकता। बहुत सी बातें हम अक्सर सोचते हैं,बहुत से सपने हम अक्सर देखते हैं और उनके सच होने की आशा भी हम रखते हैं। इसे मैं अपना सौभाग्य ही कहूँगा कि एक दिन रश्म...
राजीव रंजन प्रसाद के उपन्यास "आमचो बस्तर" की विवेचना – डॉ.वेद व्यथित
लेखक – राजीव रंजन प्रसाद प्रकाशक - यश प्रकाशन, नवीन शहादरा, नई दिल्ली आमचो बस्तर लोक जीवन के विविध भावों, नेह, छोह, प्यार मनुहा और विशेष तौर से अपने भोले जीवन के प्रति रूप अत्याचारों को सहता और सुलगता ...
वक्त आयेगा एक दिन !
* * * * * * * * * * * * * * * * *दिन आयेगा महफ़िल में जब, होंगे न हम एक दिन,* *ख़त्म होकर रह जायेंगे सब रंज-ओ-गम एक दिन।* * * *नाम मेरा जुबाँ पे लाना, जिन्हें वाजिब नहीं लगता, * *जिक्र आयेगा तो नयन उनके भी...
आ वसन्त ! खेलो होली !
मंथर गति से मलय पवन आ सौरभ से नहला जाता , कुहू-कुहू करके कोकिल जब मंगल गान सुना जाता ! हरित स्वर्ण श्रृंगार साज जब अवनि उमंगित होती थी , स्वागत को ऋतुराज तुम्हारे सुख स्वप्नों में खोती थी ! भर फूलों में र...
देर तक देखती रही...दूर तक देखती रही.....!!!
*यूँ ही इक दिन खिड़की से जाने किसे जाते,* *देर तक देखती रही....दूर तक देखती रही......* * * *ख्यालो में खोई थी या,* *खुद के अन्दर उठे सवालों में उलझी थी* *मन आवाज़ दे रहा था,* *पर मौन **खड़ी **अपलक खिड़की से...
इतना तो ज़रूर ही हुआ कि मैं अपनी गलतियों से भी पहचान में आया
कुमार अम्बुज हमारे समय के सबसे महत्वपूर्ण और ज़रूरी कवियों में से हैं. उन के नवीनतम कविता-संग्रह ‘अमीरी रेखा’ से आपको कुछेक पसंदीदा कवितायेँ पढ़वाता हूँ सिलस... 
बिहिनिया - संझा १ मार्च से
बिहिनिया - संझा नामक दैनिक अख़बार १ मार्च से शुरू होगा . पत्रकारिता कैसे होती है यह भी बताने की कोशिश होगी ,   
यशवन्‍त कोठारी का व्यंग्य : कागज फाड़ कला 
इधर देश में कागज फाड़ विकास का दौर चल रहा है। लोग-बाग मंच से कागज फाड़कर उसकी चिन्‍दियां बना बना कर हवा में उछाल रहे हैं और विकास की गति हवा से बात कर रही
ज्‍योतिष के विकास के लिए इसका विकसित विज्ञान के साथ सहसंबंध बनाना आवश्‍यक ... 
पृथ्‍वी की निरंतर गतिशीलता के कारण प्रत्‍येक दो घंअे में विभिन्‍न लग्‍नों का उदय है। इसकी दैनिक गति के कारण दिन और रात का अस्तित्‍व है, वार्षिक गति के कारण... 
भूली सारे राग रंग 
भूली सारे राग रंग पड़ते ही धरा पर कदम स्वप्न सुनहराध्वस्त हो गया सच्चाई से होते हीवास्ता दिन पहले रंगीन हुआ करतेथे भरते विविध रंग जीवन में थी राजकुम...
मोहब्बत तब भी थी मोहब्बत अब भी है 
जब तक बात की मैंने महफ़िलो और जाम की लोग मेरे साथ दौलते अपनी खूब लुटाते रहे जिक्र छेड़ दिया जिस दिन एक बच्चे की भूख का कतराते है जाने क्यों लोग, उस बच्चे...
कैक्‍टस के मोह में बिंधा एक मन-6: महेंद्र मोदी के संस्‍मरणों की श्रृंखला
रेडियोनामा पर जानी-मानी रेडियो-शख्सियत महेंद्र मोदी रेडियोनामा पर अपनी जीवन-यात्रा के बारे में बता रहे हैं। अनेक कारणों से पिछली और इस कड़ी के बीच का वक...
बेटियों को पहला वारिस क्यों नहीं माना जाता...खुशदीप
पिछले साल उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की पत्नी सलमाअंसारी के एक बयान को लेकर खूब हो हल्ला हुआ था।सलमा अंसारी ने कहा था कि हमारे देश में मां - बाप कोअपने ...
तीस करोड़ साल पुरानी राख के नीचे मिला सुरक्षित जंगल
खबरों में इतिहास अक्सर इतिहास से संबंधित छोटी-मोटी खबरें आप तक पहुंच नहीं पाती हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए यह ब्लाग इतिहास की नई खोजों व पुरातत्व, मिथक... 

वार्ता को देते हैं विराम, सबको राम राम.

6 टिप्पणियाँ:

फेसबुक के कुछ फायदे हैं ..
पर नुकसान उससे अधिक ..
पर ब्‍लॉगिंग में सिर्फ फायदे ही फायदे..
अच्‍छी वार्ता के लिए आभार !!

सही कहा है आपने स्थायी तो ब्लॉग ही है, सार्थक लेखन की आवश्यकता है, जिसका सबसे अच्छा माध्यम ब्लॉग ही है...
बहुत अच्छी वार्ता और अच्छे लिंक्स के लिए आभार....

बढ़िया वार्ता... बढ़िया लिंक्स...

एक शंका - 'आमचो' छात्तीसगढ़ी शब्द है या बस्तर की किसी प्रचलित बोली का शब्द...?
सादर.

यही तो देखना है कि अमराई की सदाबहार छाया के आगे दरख्तों के अंधेरे-उजाले कब तक भरमाते हैं।
पर कहीं.........?

कई लिंक्स लिए वार्ता |
बहुत सटीक |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार
आशा

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