गुरुवार, 3 मई 2012

पूरी की पूरी पोस्ट छापी जा रही लगभग रोजिन्ना दैनिक बिहिनिया संझा पर


स्‍मृति की एक बूंद मेरे कांधे  पे नयी-पुरानी हलचललिये  *सदा * ने सबको अभिवादन भेजा है उसमें हमारा  नमस्‍कार .शामिल कर लीजिये जी......... अधिक »

पद्म  सिंह जी को टेंशन है कि... क्यों नपुंसक हो गयी हैं आंधियाँ....?

मां का 'तबेला'...खुशदीप भाई ने बताया देशनामा पर. अधिक  कि ज़ील बताने लगीं किसी के बारे में एक दिन वो मेरे ऐब गिनाने लगा मुझे...ZEAL  तो अदा जी काहे चुप रहतीं बोल पड़ीं कि हर फिकराकस की एक औक़ात होती है..... काव्य मंजूषा मसक जातीं हैं, अस्मतें, किसी के फ़िकरों की चुभन से, बसते हैं मुझमें भी हया में सिमटे आदम और हव्वा, जो झुकी नज़रों से देखते हैं, खुल्द के फल का असर | दिखाती हैं सही फ़ितरत,  इन्सानों की, उनकी तहज़ीब-ओ-बोलियाँ,

तू न जाने आसपास है खुदा...आरसीफिर सुबह हुई है, नरम बिस्तरों पर, मीठी नींद के सपनों से हकालकर उठा दिया जायेंगे, सीली धरती पर अधपेट सोये मजदूर बच्चे, मरियल कुत्ते को अपनी उम्र से बड़ी गाली देते, पत्थर मारकर खीझ निकालेंगे, भूख की रेत पर रोज की तरह रेखाएं खींचने निकल जायेंगे, रोते हुए स्कूल जाते बच्चे को बिजूका की शक्ल बना हँसाएँगे और गर्म कचौरियों की भाप निगलते हुए एफएम् के साथ सुर मिलाते हुए गायेंगे ... तू न जाने आस-पास है खुदा...और कूड़े, रद्दी अखबारों या जूते बर्तनों के ढेर के पीछे छिपे, उम्मीद का गोफन फेंकते शातिर शिकारियों का आसान शिकार बन जायेंगे या फिर पूतना की तरह विषपान करती मिलों की गोद में समां जा...अधिक » रेंगती सी मानवता ...!anupama's sukrity.सदा तेज ताप का प्रताप ... आग बरसाती ग्रीष्म .... टप-टप टपकता पसीना .... इसके अलावा जानती ही नहीं क्या है जीना ...!! इस जहाँ में कब आई ...पता नहीं ... आई तो ....शायद किसी पाप का फल भुगतने .... ....!! कहाँ जाना है ...पता नहीं ... पति का नाम ...? हंसकर ...शरमाकर ...कहती है ... ले नहीं सकती ... न अक्षर ज्ञान ..... न कुछ भान ... क्या कोई मान ...? फिर भी इंसान की ही संतान .... कईयां(गोदी ) पर टाँगे .. अपनी नाक बहती पूँजी ... कृष्ण हों, बुद्ध हों ...गाँधी हों ... मेरे लिए किसी ने क्या किया ...? मैं हूँ भारत कि माटी पर.... चीथड़े लपेटे .... रेंगती सी मानवता ...!  .....मजदूर दि... अधिक »

वो लफ्ज़ दोहरा दो....अनामिका की सदायें ... 

आइये, दैनिक हिंदुस्तान के घपले से एक नया इतिहास रचें | raznama »
बिहार के मुंगेर में कुछ जुनूनी लोगों ने सूचना अधिकार अधिनियम-2005 के बल सबसे बड़े दैनिक हिन्दुस्तान अखबार को न्यायालय में सिर्फ नंगा ही नहीं किया अपितु, पुलिस को भी 
मित्रो ऐसा नहीं है कि आज़ कुछ और अच्छे ब्लाग्स नहीं हैं. बानगी देखिये 

    जिंदगी के आघात /मनोज जी ने लिखा फ़ुरसत में ... 100 : अतिथि सत्कार/ अकलतरा के सितारे सिहांवलोकन ब्लाग परब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि-प्रभा जी ने एकल चर्चा की है अस्मिता http://lee-mainekaha.blogspot.in/

http://mahendra-mishra1.blogspot.in/2012/05/blog-post.html
और प्रतीक संचेती की फ़ेसबुकिया पोस्ट अदभुत है 
"मजदूर की ढहती पुकार"

कहता हूँ अपनी बोझिल जुबान से, चलता बिन पैरदानो के नाम से, ढहती लाजमी मुस्कान में ही हूँ, कुछ नहीं मगर मजदूर इंसान में भी हूँ;
  मीडिया में ब्लाग 


और दैनिक बिहिनिया संझा पर ब्लाग4वार्ता की पूरी की पूरी पोस्ट छापी जा रही लगभग रोजिन्ना 


भी एक खास मुकाम पर है....!!
गर्भनाल का पीडीएफ़ लिंक 

10 टिप्पणियाँ:

बहुत खूबसूरत लिंक संयोजन

अच्छी वार्ता
सुंदर लिंक्स

Thanks for providing great links.

सुंदर लिंक्स खूबसूरत संयोजन|

शॉरी गिरिश जी। प्रसाद तो आप ने दिया। मजेदार प्रस्‍तुति

गिरिश भाई आपने लिंक ही लिंक सजा दी है। मज़ा आया ... खुद को यहां पाकर भी।

आभार सभी का
कुलवंत जी इसमें जय तो ललिल देव की ही होनी चाहिये
शारीवारी वापस लीजिये

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