प्रिय मित्रों,
बुढऊ ब्लागर्स एशोसियेशन की मेंबरशिप के लिये बहुत सारे आवेदन आये हुये पडे थे. सब काम नियम पूर्वक हो इसलिये हमने आज का दिन बुढऊ ब्लागर्स एशोसियेशन का मेन्युअल पढकर सब कार्य निपटाने के लिये तय किया हुआ था. और हम ताऊ प्रकाशन की बहुत ही महत्वपूर्ण पुस्तकों को देखने में अति व्यस्त थे.
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पर रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" आ धमका और बोला कि आज तो ललित शर्मा जी वाली वार्ता4यू के लिये "ताऊ की नजर से" स्तंभ का है. और आप जानते हैं कि "प्यारे" भले ही गधा हो पर कामकाज बिल्कुल नियम से और सलीके से करता है. तो आईये आज आपको इस स्तंभ में मिलवाते हैं बुढऊ समीरलाल "समीर" से.
बुढऊ समीरलाल "समीर" नाम सुन कर आप चौंक गये होंगे और सोच रहे होंगे कि इस रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" ने ताऊ को कहीं भांग वांग ना खिला दी हो? तो भाई ऐसी कोई बात नही है. हमारी तरह हमारा रामप्यारे भी सब नशों से मुक्त है. वो अलग बात है कि हुक्का जरुर पी लिया करते हैं. और इसको हम बुरा नही मानते. हमारे यहां किसी को हुक्का पिलाना उसको इज्जत बख्सने जैसा काम माना जाता है.
बात हो रही थी शीर्षक कि "ताऊ की नजर में : बुढऊ समीरलाल जी" की. आपने धर्मगुरू गुरजिएफ़ के बारे मे अवश्य सुना होगा. कहते हैं कि गुरजिएफ़ बुढ्ढा ही पैदा हुआ था. ये गुरजिएफ़ वही हैं जिसका शिष्य महान गणितज्ञ पी.डी.आस्पेंसकी था, गुरजिएफ़ की सारी देशनाएं इन्हीं के मार्फ़त दुनियां तक पहुंची जैसे स्वामी रामकृष्ण परमहंस की विवेकानंद जी के मार्फ़त.
अब शारीरिक रुप से ना तो कोई बुढ्ढा पैदा हो सकता है और ना ये संभव ही है. हां ये हो सकता है कि किसी किसी मनुष्य में जन्म से ही वो प्रज्ञा हो जो वो बूढा होने तक की उम्र में प्राप्त कर पाता. और ऐसा ही गुरजिएफ़ के साथ हुआ होगा. इसीलिये लोग कहते थे कि गुरजिएफ़ बुढ्ढा ही पैदा हुआ. और पैदायशी बुढ्ढे का मतलब भी यही होता है.
और अगर मैं समीरलाल जी के लिये भी कहूं कि ये भी पैदायशी बुढऊ ही हैं तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी. आज हिंदी ब्लाग जगत में कोई भी ऐसा दूसरा ब्लागर नही है जो समझदारी की इतनी खूबसूरत मिसाल पेश करता हो.
जब कोई इतनी ऊंचाई छूता है तो स्वाभाविक रूप से कुछ विघ्नसंतोषी सक्रियता दिखाते हैं. और इसमे कुछ बुरा भी नही है क्योंकि ये भी एक साधारण सा मनोविज्ञान है कि " तेरी कमीज मेरी कमीज से उजली क्युं?" और इन सब बातों से परे रहकर समीर जी ने जो मिसाल पेश की है वो उन्हें पैदायशी बुढ्ढा साबित करती है.
मित्रों, अगर मैं कहूं कि मैं खुद एकाधिक बार अपने ताली मित्रों के दुर्व्यवहार से दुखी होकर यहां से किनारा करने का पक्का मन बना चुका था उस समय समीर जी ने पता नही किस जादू की छडी से मुझे रोका, मैं खुद नही जानता.
जब भी कोई मनुष्य इस ऊंचाई पर पहुंचता है तो जरूर उसमे कुछ विषेष बात होती है इसे आप दैवीय कृपा कहें या चाहे जो भी कहलें. आज हिंदी ब्लाग जगत के पास एक सर्वमान्य और सहजता से भरे व्यक्तित्व का होना सौभाग्य ही कहा जायेगा.
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आज समीर जी के कद के सामने सभी के कद बौने दिखाई देते हैं और ये किसी दूसरे की लकीर को छोटी करके नही बल्कि खुद की लकीर को दूसरों की लकीर से बहुत बडी करके प्राप्त किया गया इनाम है. आज जब टिप्पणियों का चहुं और अकाल पडा हुआ है उस समय समीर जी की पोस्ट पर १०० टिप्पणीयां पार होना मामूली बात है. और पिछली पोस्ट पर तो टिप्पणी संख्या 170 पार हो रही है. बहुत से लोग यह कह सकते हैं कि टिप्पणियाँ ही उच्च लेखन के पैमाने नहीं है, किन्तु काठ की हांडी बार बार तो नहीं चढ़ा करती. कुछ तो उनके लेखन में बात होगी, जो सहज ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है.
आज टिप्पणी देने, टिप्पणी प्राप्त करने, नियमित पोस्ट लिखने और सभी को साथ लेकर चलने मे यानि किसी भी दिशा मे समीर जी हम सबसे बहुत आगे निकल गये हैं. कुछ लोगों को इससे जलन होती है और कुछ लोगों को प्रसन्नता. स्वभाव अपना अपना.
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तो आईये अब मैं आपको समीर जी की कुछ उन पोस्टों के बारे मे बताता हूं जो मेरी पसंद की हैं. ये कहना बडा ही आसान है पर शुद्ध सोने में से भी शुद्ध सोना क्या छाटेंगे? फ़िर भी ये धृष्टता कर ही लेता हूं आशा है आप पाठक गण क्षमा करेंगे. क्योंकि समीरजी की हर पोस्ट इतनी सटीक और जबरदस्त होती हैं कि उन पर आई हुई टिप्पणीयां हमेशा पिछला रिकार्ड तोडने को बेताब दिखाई देती हैं. अभी उन की पिछले सप्ताह की पोस्ट मजहबी विवाद, साम्प्रदायिकता और ब्लॉग जगत!! ने टिप्पणियों का पिछला सर्वकालिक रिकार्ड तोड दिया है. यह पोस्ट लिखे जाते समय तक वहां 166 टिप्पणीयां मौजूद थी और अब शायद आंकडा और भी पार होगया होगा.
मानवीय संवेदनाओं को उकेरती यह पोस्ट हैलो , हैलो, मैं सुंदर चिडिया हूँ. रविवार, दिसंबर 31, 2006 की है. इसे पढकर आप एक अलग ही संसार में पहुंच जायेंगे. जहां रिश्ते नाते क्या होते हैं? या क्या हो सकते हैं पर विचार करते करते एक अलग ही दुनियां में स्वत: पहूंच सकते हैं. .
रात में हमेशा झूले पर चढ़ कर सोती थी. बाकि सारे दिन झूला देखती भी नहीं थी. जब भी घर में किसी को देखती, अपनी खुद की धुन का गाना, चीं चीं आवाज में सुनाती. सोचती थी हमारा दिल बहला रही है, वैसे सच में, बहलाती तो थी. खाने में थोड़ा पिकी थी. हम कोई सा भी लेटेस खा लें, उन्हें फ्रेश रोमन लेटेस (सबसे महंगा) ही खाना है. साधारण वाला लगाकर तो देखो, वो देखे भी न उसकी तरफ. रईसों के बच्चों वाले सारे चोचले पाल लिये थे. हर महिने नया खिलौना, खाने में हाई स्टेन्डर्ड और लड़की थी तो स्वभाविक है, शीशा दिख तो जाये, घंटों खुद को निहारती थी. एक बार शीशा देखे, फिर हमें कि देखो, कितनी सुंदर दिख रही हूँ. सच में बहुत सुंदर थी, दिखने में भी और दिल से भी.
रामप्यारे उरफ़ "प्यारे" : अरे वाह वाह ताऊ, समीर लाल जी बहुत ही भावुक कर देते हैं. पर मैने तो सुना था कि वो पुराने दिनों मे भी कभी कभी स्वामी समीरलाल "समीर" के नाम से लिख लिया करते थे?
ताऊ : अबे "प्यारे"...तू बीच मे बोले बिना नही रह सकता क्या? चुपचाप सुन....मेरा ध्यान मत बंटाया कर...स्वामी समीरलाल "समीर" ने मंगलवार, दिसंबर 26, 2006 को चिट्ठाकारों के लिये गीता सार का उपदेश दिया था जो भी प्राप्त कर और अपने ज्ञान चक्षु खोल ले. इस उपदेश को आत्मसात कर के जो भी ब्लागर सुबह शाम पाठ करेगा उसको इस ब्लागजगत का कोई भी मोह माया कभी व्याप्त नही होगा और इस दुनियां के रहने तक आनंद पूर्वक बिना किसी टंकी या बांस पर चढे ब्लागिंग का अखंड सुख भोगता रहेगा.
एक पोस्ट पर ढ़ेरों टिप्पणियां मिल जाती है,
पल भर में तुम अपने को महान साहित्यकार समझने लगते हो.
दूसरी ही पोस्ट की सूनी मांग देख आंख भर आती है और तुम सड़क छाप लेखक बन जाते हो.
टिप्पणियों और तारीफों का ख्याल दिल से निकाल दो,
बस अच्छा लिखते जाओ... फिर देखो-
तुम चिट्ठाजगत के हो और यह चिट्ठाजगत तुम्हारा है.
न यह टिप्पणियां तुम्हारे लिये हैं और न ही तुम इसके काबिल हो
(वरना तो किसी किताब में छपते)
यह मिल गईं तो बहुत अच्छा और न मिलीं तो भी अच्छा है.
रामप्यारे उरफ़ "प्यारे" : ताऊ यह पोस्ट पढकर तो मुझे ऐसा लगता है जैसे कि मैं साक्षात ब्रह्मलोक मे पहुंच गया हूं...आनंद आगया ताऊ...
ताऊ : अबे "प्यारे" ...तू ब्रह्मलोक से जल्दी नीचे आ वर्ना कान के नीचे दो बजाऊंगा तेरे...चुपचाप जाके हुक्का भरकर ल्या..ताजी तंबाकू का....जब तक मैं तुझे कबीर दास का चिट्ठाकाल पढवाता हूं. इस मे तुझको यह मालूम पडेगा कि चिठ्ठाकाल की शुरुआता कब हुई और कबीर दास जी ने उनके दोहे ब्लागरों के लिये ही रचे थे. उनमें से भी परम मोक्ष दायक सात दोहों का मर्म समझा रहे हैं समीरला जी. अत: "प्यारे" तू ध्यान पूर्वक इन दोहों का श्रवण और मनन कर, जिससे तेरे समस्त ताप शाप शांत हो जायेंगे.
आग जो लगी समुंद्र में, धुआं न परगट होए
सो जाने जो जरमुआ जाकी लागे होए.
भावार्थ: जब किसी चिट्ठाकार का कम्प्यूटर या इंटरनेट कनेक्शन खराब हो जाता है तो उसके दिल में चिट्ठाजगत से दूर होने पर ऐसी विरह की आग लगती है कि धुँआ भी नहीं उठता. इस बात का दर्द सिर्फ़ वही जान सकता है जो इस तकलीफ से गुजर रहा हो. बाकी लोगों को तो समझ भी नहीं आता कि वो कितना परेशान होगा अपनी छ्पास पीड़ा की कब्जियत को लेकर.
रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" : वाह...वाह...ताऊ आज पहली बार कबीरदास जी के दोहों का मर्म समझ आया. अब तक तो मैने व्यर्थ जन्म गंवायां...अब ये बिल्कुल ताजी तंबाकू का हुक्का खींचों ताऊ और पोस्ट सुनाओ...
ताऊ : अरे वाह "प्यारे" ये तो बडी सुथरी और खालिश तंबाकू डाली तैने आज हुक्के में..मजा आगया...इब देख तू ये नया राशा हद करती हैं ये लड़कियाँ भी..
रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" : ताऊ ये ज्ञान ध्यान और सत्संग की बातें करते करते इन लडकियों को कहां से बीच में ले आये?
ताऊ : अरे बावलीबूच...इस पोस्ट में आपबीती तो बुढऊ की ही है पर दूसरों को ज्ञान देने के बहाने बता रहे हैं कि "हे गुरुवर, सुकन्या के पीछे चलते वक्त दो जूते की सुरक्षित दूरी का ज्ञान तो आपने दे दिया किन्तु उनके बाजू में चलने/बैठने के विषय में भी हमारा कुछ ज्ञानवर्धन करें."
रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" : तो ताऊ समीर जी इस काम की भी सलाह देते हैं क्या? मैने तो सुना था वो CA का काम धंधा करते हैं.
ताऊ : अबे "प्यारे" तू निरा गधे का गधा रहेगा...ताऊ के साथ रह कर भी...अरे इस काम में खुद की दबी छुपी इच्छायें भी पूरी हो जाती हैं और पार्ट टाईम कमाई भी हो जाती है...समझा कर...
अरे, मैं क्यूँ कुछ कहूँगा किसी अजनबी औरत से-अच्छा खासा शादीशुदा दो जवान बेटों का बाप-ऐसा सालिड एक्सक्यूज होते हुए भी. बस, समझो. किसी तरह बच निकले.वो तो लफड़ा मचा नहीं वरना तो सुरक्षाकवच ऐसे ऐसे थे कि जबाब न देते बनता उनसे. मैं तो तैयार ही था कहने को कि हम भारतीय है.
हमारी संस्कृति में विवाहित महिलाये ऐसी नहीं होती कि पूछती फिरें –आपने कुछ कहा? अरे, हमारे यहाँ तो सही में भी अपरिचित महिला से कुछ पूछ लो तो कट के सर झुका के लज्जावश निकल लेती है. लज्जा को नारी के गहने का दर्जा दिया गया है. उस संस्कृति से आते हैं हम. तुम क्या जानो.
और "प्यारे" सुन, आज के जमाने मे बेटा होना भी बहुत बडा गुनाह है...
रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" : अरे ताऊ ये क्या कह रहे हो? लोग तो आज भी बेटियों को मारने जैसी कमीनी हरकते करते हैं और आप कहते हो कि बेटा होना गुनाह है?
ताऊ : अरे रामप्यारे ..बावलीबूच...तन्नै कितनी बार समझाया कि बिना पूरी बात समझे बीच में टांग ना अडाया पर लगता है तू टांग अडाने की अदा सीख आया दिखता है...अबे ये मैं नही समीर जी कह रहे हैं कि अगले जनम मोहे बेटवा न कीजो.. बल्कि ऐश्वर्या राय बना देना....ले खुद ही बांच ले...
अब के कर दिये हो, चलो कोई बात नहीं. अगली बार ऐसा मत करना माई बाप. भारी नौटंकी है बेटा होना भी. यह बात तो वो ही जान सकता है जो बेटा होता है. देखो तो क्या मजे हैं बेटियों के. १८ साल की हो गई मगर अम्मा बैठा कर खोपड़ी में तेल घिस रहीं हैं, बाल काढ़ रही हैं, चुटिया बनाई जा रही है और हमारे बाल रंगरुट की तरह इत्ते छोटे कटवा दिये गये कि न कँघी फसे और न अगले चार महिने कटवाना पड़े. घर में कुछ टूटे फूटे, कोई बदमाशी हो बस हमारे मथ्थे कि इसी ने की होगी. फिर क्या, पटक पटक कर पीटे जायें. पूछ भी नहीं सकते कि हम ही काहे पिटें हर बार? सिर्फ यही दोष है न कि बेटवा हैं, बिटिया नहीं.
बेटा होने का खमिजियाना बहुत भुगता-कोई इज्जत से बात ही नहीं करता. जा, जरा बाजार से धनिया ले आ. फलाने को बता आ. स्टेशन चला जा, चाचा आ रहे हैं, ले आ. ये सामान भारी है, तू उठा ले. हद है यार!!
रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" : ताऊ बात में दम तो है.
ताऊ : रामप्यारे ...बात मे दम हैतो जरा यहां भी नजर डाल ले...जूता विमर्श के बहाने : पुरुष चिन्तन ये भी तेरे काम की चीज है...
मैं आज तक नहीं समझ पाया कि इनको क्या पहले खरीदना चाहिये-पार्टी ड्रेस फिर मैचिंग चप्पल और फिर पर्स या चप्पल, फिर मैचिंग ड्रेस फिर पर्स या या...लेकिन आजतक एक चप्पल को दो ड्रेस के साथ मैच होते नहीं देखा और नही पर्स को.
गनीमत है कि फैशन अभी वो नहीं आया है जब पार्टी के लिए मैचिंग वाला हसबैण्ड अलग से हो.
तब तो हम घर में बरतन मांजते ही नजर आते.
घर वाला एक आरामदायक हसबैण्ड और पार्टी वाले मैचिंग के बीस.
गम भरे प्यालों में,
दिखती है उसी की बन्दगी,
मौत ऐसी मिल सके
जैसी कि उसकी जिन्दगी.
"प्यारे" : ताऊ मन्नै तो डर लागण लाग्ग्या सै....मैं नहीं पडता इन कामों में...मन्नै सुण राख्या सै कि समीर जी को सिगरेट खींचनेण का घणा शौक था और उस शौक तैं एक नई विधा की कविता पैदा हूई "विल्स कार्ड"...मेरे को वो सुणावो...
ताऊ : अरे हां "प्यारे" ये तूने अच्छी याद दिलायी...तो भाई रुक जाना मौत है- विल्स कार्ड ८ पढले तू...घणी सुथरी पोस्ट सै यो...
बरसात
उस रोज
मैं घर आया
बरसात में भीग
भाई ने डॉटा
’क्यूँ छतरी लेकर नहीं जाते?’
बहन ने फटकारा
’क्यूँ कुछ देर कहीं रुक नहीं जाते’
पिता जी गुस्साये
’बीमार पड़कर ही समझोगे’
माँ मेरे बाल सुखाते हुए
धीरे से बोली
’धत्त!! ये मुई बरसात’
"प्यारे" : वाह वाह ताऊ...मजा आगया ...जरा और बांचो ये विल्स कार्ड वाली पोस्टें..
ताऊ : अबे ओ बवालीबूच "प्यारे"...तू मन्नै के बेवकूफ़ समझ राख्या सै?
रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" : ना ताऊ, बेबकूफ़ को और क्या बेवकूफ़ समझना?
ताऊ : हां तब तो ठीक सै...पर इब सारी दोपहरी हो गई...ये पोस्ट बांचते बांचते...काम धंधा भी करणा सै या नही?
जा...पहले तो ज्ञानू धोबी के जलेबी घाट से कपडे ढो के ले आ...फ़िर रामदयाल कुम्हार की मिट्टी ढो के ला...और फ़िर खेत से अपनी भैंस का चारा ढो ला...खा खा के इत्ता बडा ऊंट सरीखा होगया...जा फ़टाफ़ट काम कर के आजा..और हां सुण...जरा एक चिलम भी भरकर पकडाता जाईये..
रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" : ताऊ, इत्ती गर्मी में इतना काम करके...मैं कैसे करुंगा? बीमार पड जाऊंगा...कुछ तो रहम करो...
ताऊ : अबे बीमार पड जायेगा तो अपणा डाक्टर झटका बेकार बैठ्या सै...उसतैं इंजेक्शन लगवा देंगे...इब चुपचाप काम पे निकल ले...तावला सा...
रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" : अरे ताऊ, मन्नै एक बार टैलीफ़ोन पै सीधी भिडंत तो कर लेने दे समीर लाल जी से...
ताऊ : चल तू भी क्या याद रखेगा...आज तू ही करले सिधी भिडंत टैलीफ़ून पै...लगा टैलीफ़ोन और फ़टाफ़त बात करके काम पै निकल ले.
रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" : हैल्लू..हैल्लू...समीर जी नमस्ते....मैं रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" बोल रिया सूं...मन्नै आप टैलीफ़ून पै ही एक कविता सुना दो जी ...
समीरलाल जी : अरे "प्यारे" जी नमस्ते....आप तो नीचे वाला विडियो देखकर सुनिये कविता....और बताईये कैसी लगी?
रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" : ओ जी समीर जी, मजा आगया जी कविता सुनके तो...अब ब्लागर्स के कोई संदेश देना चाहो तो दे दो जी?
समीरजी : "प्यारे" जी बस वही संदेश देना चाहुंगा कि :-
प्रिय ब्लॉगर साथियों:
हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ
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हां तो भई ब्लागर मित्रों...समीर जी की हर पोस्ट...अपने आप में नायाब है...मैने तो मोतियों के ढेर से कुछ मोती ही आपके सामने पेश किये हैं. आशा है ताऊ और उसके गधे रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" का यह प्रयास आपको पसंद आया होगा. इब अगले सप्ताह फ़िर मिलते हैं.
36 टिप्पणियाँ:
समीर जी का वृहद् ब्लॉग ज्ञान ब्लॉगर्स के यूँ ही काम आता रहे ...
कविता ..." लौटा रहा हूँ ..." अच्छी लगी...
इस परिचय के लिए ताऊ और ताऊ के गधे का बहुत आभार ....!!
समीरलाल वाकई बुढ़ऊ पैदा हुए थे? विश्वास नहीं हो रहा।
yah bhee badhiyaa rahaa tau !!
वाकई सच। पर समीर जी की कविता तो यूं सुनाई दे रही है कि 'लोटा, ला रहा हूं' वैसे आजकल लोटों की जरूरत नहीं पड़ती है। तकनीक उन्नत हो गई है। समीर लाल की पोस्टें पढ़कर हिन्दी ब्लॉगर उनकी पोस्टों पर टिप्पणियों के रूप में लोट लोट जाते हैं और समीर भाई लोटपोट हुए जाते हैं। यही उनकी लोटपोटीय काया का राज है।
समीर जी का परिचय कराने का तरीका भी मजेदार लगा |
तारीफ़ करुं मैं उसकी जिसने तुझे बनाया,
समी्र भाई के विषय में विस्तृत जानकारी के लिए आभार
राम राम ताऊ जी
समीर जी तो ब्लाग जगत के सबसे युवा हैं हमारी नजर में
अरे नहीं ! समीर लाल बुढऊ पैदा नहीं हुई थे । अभी १९४७ की ही तो बात है जब उन से मिलना हुआ था । एकदम झकास, जवान, लग रहे थे ...
बुढऊ का अर्थ होता है परिपक्व। समीरजी इस ब्लाग जगत में परिपक्व व्यक्तित्व हैं। हमें उनपर गर्व है। पोस्ट पर केवल टिप्पणियों से ही किसी का आकलन नहीं होता लेकिन समीरजी समग्र रूप से श्रेष्ठ हैं। हमारी उनको शुभकामनाएं।
बेहतरीन................
regards
समीर जी के बारे में जानकारी देने का .. और उनके शुद्ध खरे सोने के समान लेखों के लिंक के लिए आभार .. अभी पढती हूं .. बहुत अच्छा लगा पढकर !!
ताऊ,
सारी कायनात में एक ही सूरज था, है और हमेशा रहेगा...उस सूरज का नाम है समीर लाल समीर...
आज समीर जी के व्यक्तित्व के अनछुए पहलुओं से रू-ब-रू कराने के लिए आभार...
और जहां तक पैदा ही बुढ़ऊ होने वाली बात है, मक्खन का एक किस्सा सुना देता हूं...शादी के बाद मक्खन मक्खनी की डोली लेकर घर आने के लिए ससुराल से विदाई ले रहा था...मक्खनी के बाप ने रोते-रोते मक्खन से कहा...दिल का टुकड़ा दे रहा हूं तुम्हे...बड़े नाज़ों से पाला था...मक्खनी के बाप ने दोनों हाथों से अंजुली बनाते हुए कहा, इतनी सी थी बस, जब से आंखों में बसी हुई है...इस पर मक्खन ने कहा...हां वो बस इतनी सी थी, और हम तो जैसे पैदा होते ही छह फुट के हो गए थे...
जय हिंद...
अच्छा लगा समीरलाल जी के बारे में जानकर!
हा हा ...कुछ हम जैसे यंगिस्तान के लिए कुछ कीजिये.....और हाँ, हम लोगों के लिए एक विडियो सन्देश हो तो क्या बात है....
How about your next blog in a form of video? यू टीयूब पे तहलका मच जायेगा
यार ताऊ, तुस्सी ग्रेट हो यार..........समीर लाल जी के बारे में बताने के लिए थंकउ
एक बात पूछनी थी तुमसे.....अब ये मत बोलना एक क्या दो पूछ ले
चलो फेर कभी पूछ लेंगे
Sameer Lal ji indeed has a mesmerizing persona. He is an enlightened soul. His polite and modest behaviour is outstanding. Its our fortune to have him among us.
Sameer ji aur Sadhna bhabhi ko humara shat-shat naman.
Tau ji-
thanks for the wonderful post.
Hey Rampyare !...Howdy?
I am gradually falling in love with Rampyare....oopsssssss...
आपने समीर जी के बारे में बहुत कुछ बताया और बहुत सशक्त तरीके से....जिन पोस्ट्स कि चर्चा कि है उनको ज़रूर पढूंगी....मैंने सारी पोस्ट्स समीर जी कि नहीं पढ़ी हैं..आपका आभार उनके लिंक्स देने का...और सच है कि उनके लेखन में एक विशिष्टता है इसीलिए सब प्रभावित होते हैं... आपकी इस पोस्ट के लिए आभार
समीर लाल ?
पहली बार सुना है, इनका नाम !
अभी फौरन उनके ब्लॉग पर पहुँचता हूँ ।
ऎसे ब्लॉगर को यूँ प्रोत्साहन देते रहना हमारा परम कर्तव्य है ।
आपने इनसे परिचय करा कर एक परम पुनीत कार्य किया है, ताऊ !
मेरे घणी घणी राम राम उनसे भी बाँटना !
ताई को मेरी तरफ़ से चरण स्पर्श कर देना !
और रामप्यारी को मेरा ’ भौं-भौं ’ पहुँचे...
समीर जी के बारे में कुछ कहना तो सचमुच सूरज को दीपक दिखाने के जैसा ही है....न सिर्फ उनके लेखन अपितु उनके व्यक्तित्व में भी कुछ ऎसी कशिश है जो कि पाठकों को अनायास ही अपनी ओर आकर्षित करती है...आमतौर पर ऎसा बहुत ही कम देखने को मिलता है...
आज ब्लॉग बादशाह से मिला कर जी बाग़ बाग़ कर दिया आपने -फोटो भी बड़े झक्कास हैं -और कुछ पेय पदार्थ तो बस चार पांच चाँद लगा रहे हैं ,,,साधना जी का भी दर्शन करा दिया आपने ,मेरी पत्नी की गुरु भगिनी हैं -सबको करहूँ प्रणाम जोरि जुग पाणी!
बहुत ही बढ़िया लेख है। समीर जी की कुछ पोस्ट्स का चुनाव करना तो असंभव काम है किन्तु आपने उसे कर ही लिया। आभार।
घुघूती बासूती
KISEE KEE NAZAR SE HO,SAMEER JEE KABHEE BUDAOO
HO HEE NAHIN SAKTE HAIN.KABHEE MAST MAULA BHEE
BUDHAOO HOTA HAI ?
हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
समीरलाल वाकई बुढ़ऊ पैदा हुए थे? विश्वास नहीं हो रहा।
वाह क्या बात है.साठ साल के जवान या तीस साल के बुढाऊ वाला च्यवनप्राश का विग्य़ापन याद आ गया.
बहुत सुंदर पोस्ट।
पर नजर के बारे में क्या कहा जाए :)
समीर जी , के व्यक्तित्व के अलग अलग पहलुओं से परिचित कराने का शुक्रिया...
nice !!
अरे ताऊ जरा बज में तो झाँक के देखो
क्या दुकान सजा रखी है मिया ने :)
सब कुछ तो कहा जा चुका समीर जी के बारे में!
मेरे लिए कुछ छोड़ा ही नहीं!!
मैं अब क्या कहूँ?
चलिए हम एक बार और उनके घर हो आते हैं
बहुत बढिया ताऊ... आज तो समीर जी से भी अच्छे से मुलाकात हो गयी...
समीर जी के लिये कुछ कह ही नहीं सकते, दुनिया में एकदम सिंगल पीस हैं.
ताऊ ! मान गए यार !
समीर लाल के बारे में भी नंबर मार ले गए ..हम सोचते ही रह गए ! बड़ा अच्छा लेख ...मुझे याद है प्रारम्भ में गिने चुने कमेंट्स में उड़न तश्तरी को देख बड़ा सुकून मिलता था ! प्रोत्साहित करने वालों को अगर गिना जाए तो समीर लाल शिखर पर ही मिलेंगे ! इस पोस्ट को सम्मान सहित आपका धन्यवाद !
अरे त ई है ताऊ? ताऊ अब हम तुमका बिटवा भी नाही कह सकत अऊर ताऊ भी कैसे कहें? खैए अब ई फ़ैसला त बाद मा होता रहेगा. बहरहाल तुमका बहुते धन्यवाद ताऊ...जो तुम हमार समीर बिटवा का बारें में इत्ता अच्छा अच्छा जान्कारी दिये हो.
ई समीर बिटवा त हमार बहुते लाडला अऊर राजा बिटवा है...अरे समीर बिटवा ई बहुरानी का साथ मा बैठ्कर क्या पी रहे हो? खबरदार जो कोनू उल्टी सीधी चीज को हाथ लगाया तो. अऊर ई ताऊ का कोनू भरोसा भी नाही है...ये कहां गाय के नीचे भैंसिया का पडवा पटक दे.
-तुम सबकी अम्माजी
bahut khoob bhaiya!
the best part is i can see the glimpse of jbp house in some of the pics as background!
juss missing old dayz..
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