मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

चलो मिलकर बचाएं पानी-वरना नहीं रहेगी किसी की जिंदगानी

ब्लाग 4 वार्ता  का आगाज करने से पहले सभी ब्लागर मित्रों को राजकुमार ग्वालानी का नमस्कार............. 
आज यह ब्लाग 4 वार्ता की 50वीं चर्चा है। आज चारों तरफ पानी के लिए हाहाकार मचा है। ऐसे में यह जरूरी है कि हम पानी बचाने का जतन करें। अगर हमने अभी से ध्यान नहीं दिया तो इसका मतलब यह है कि हम अपने साथ अपनी आनी वाली पीढ़ी के जीवन से भी खिलवाड़ कर रहे हैं। तो आएं आज की चर्चा पर नजरें डालने से पहले पानी बचाने का एक संकल्प लें।
 पांच-छः दिन बाद प्रवास से लौट कर फिर शुभचिंतको के सामने हूँ. होशंगाबाद गया था. वहां पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की पत्रकारिता पर बोलना था. खैर, जो सूझा, वो बोल दिया. यह कोई बड़ी बात नहीं, जो मै बताऊँ. बड़ी 
 
यह किसी फिल्म का नाम भी हो सकता है लेकिन फिलहाल तो इस लेख का शीर्षक है। यह शीर्षक मैंने इसलिए रखा है क्योंकि एक समय था जब मैं बाबू मोशाय मिथुन चक्रवर्ती के कारण बिजली के खंबों, ईंट-गारे की पक्की दीवारों पर..
था वो मंजर कुछ गुलाबी, रंग भी छूटा न था दिल में इक तस्वीर थी और आईना टूटा न था हादसे होते रहे कई बार मेरे दिल के साथ आज से पहले किसी ने यूँ शहर लूटा न था चुभ गए संगीन से वो तेरे अल्फ़ाज़ों के शर सब्...
 
आज, 20 अप्रैल को भारतश्री वाले पवन कुमार अरविन्द तथा महावीर व मंथन वाले महावीर शर्मा का जन्मदिन है। पवन कुमार अरविन्द का ई-मेल पता pawan.arvind@gmail.com है बधाई व शुभकामनाएं वैसे आज एक ब्लॉगर साथी की व...
डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर द्वारा - 7 घंटे पहले पर पोस्ट किया गया
अभी अप्रैल माह पूरी तरह से बीत भी नहीं पाया है कि गरमी ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिये हैं। पारा अभी से 47 से ऊपर जाने लगा है। समाचार-पत्रों के अनुसार मानिकपुर (चित्रकूट) में पारा 49.3 तक जा पहुँचा था। 

पिछली पोस्ट में अपने 'विदाउट रिजर्वेशन ' यात्रा का जिक्र किया था,इस बार सोचा 'विदाउट टिकट' वाली कहानी भी सुना ही दी जाए. वैसे भी यह संस्मरण अपने कॉलेज के दिनों में ही मैंने 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' के 'या...



बोले तो आज अपुन का हैप्पी बर्थडे हैं. हालाँकि अभी अपुन ब्लॉग जगत से ब्रेक पर हैं पर आज अपना मन किया सबसे ख़ुशी बाँटने का, इसके वास्ते अपुन इधर चला आया अभी सब लोग न अपुन को खूब सारा आशीर्वाद देने का, अपुन 
> > *समय के साथ* > > -- मनोज कुमार > > पिताजी ने कहा था – “बेटा जब बड़ा आदमी बन जाना तो अपनी आत्मकथा लिखना।” इस >> पदोन्नति के बाद तो गौरव काफ़ी बड़े पोस्ट पर आ गया है। काफ़ी बड़ा अधिकारी हो >> गया है। 
IIMC के आखिर के कुछ दिन थे, सबकी प्लेसमेंट आ रही थी। अधिकतर लोग दिल्ली में ही कहीं ना कहीं ट्रेनिंग कर रहे थे। ये हमारा आखिरी एक महीना था जेअनयू कैम्पस में और हमारी लाल दीवारों से जुड़े कुछ रिश्ते गहराने लगे ...

 पी.सी.गोदियाल  बता रहे हैं महानगरीय चिड़ियाओं का दर्द !
प्रात: भ्रमण के उपरान्त बरामदे में बैठ बस यूँ ही शून्य को निहार रहा था कि सहसा नजर चिड़ियाओं का कोलाहल सुनकर सामने पार्क के एक छोर पर लड़ रही कुछ चिड़ियाओं पर जा टिकी। उनके व्यवहार से लग रहा था कि वे एक द...
आज हिन्दी ब्लॉगिंग अत्यंत संवेदनात्मक दौर में पहुँच चुकी है ...हम तरह-तरह के उपायों के साथ हिन्दी को आयामित करने की दिशा में अग्रसर हैं , किंतु छल और छद्म हिन्दी के विकास के लिए सर्वथा उपयुक्त नही 
काली झुल्फोंकी घटा ये लागे जैसे सावनके बादल , तेरी झील सी आँखोंमें नीले आकाश को देखते है हम ... परी हो या हो कोई अप्सरा ये तो हम नहीं जानते , जबसे देखते उन्हें हमको दिनमें भी चांदनीकी सफेदी नज़र आये है 
दो चार दिन से ब्‍लाग जगत में सूनापन का अनुभव कर रही हूँ। न जाने कितनी पोस्‍ट पढ़ डाली लेकिन मन है कि भरा ही नहीं। अभी कुछ दिन पहले तक ऐसी स्थिति नहीं थी। दो चार पोस्‍ट तो ऐसी होती ही थी कि दिन भर की तृप्ति ...
(उनके नए संग्रह 'काला सफ़ेद में प्रविष्ट होता है' से साभार) भाई ----- (दिवंगत बड़े भाई के लिए) जहाँ तक छायाचित्र संबंधी समानता का प्रश्न है बड़े भाई लगभग मुक्तिबोध जैसे दिखलायी देते थे चेहरे पर उभरी हड...

कलमबंद में शशांक शुक्ला बता रहे हैं क्या मैने सही किया ?
मीडिया में काम करना काफी थकाऊ होता है। दिन भर की भागदौड़, हर काम को समय से भेजने की तेजी, सभी कुछ। मेरी भी काम की शिफ्ट खत्म हो चुकी थी। थक तो काफी गया था, शाम तीन बजे से रात के 12 बजे तक की शिफ्ट है। काम ...
गर्मी की शुरुवात होते ही घड़ों-सुराहियों की दूकानें दिखनी शुरू हो जाती थीं किन्तु आज इन दूकानों को खोजना पड़ता है। मिट्टी के घड़ों में शीतल किये गये सोंधी-सोंधी मनभावन गंध लिये हुए पानी का स्वाद ही निराला हो...
इंटरनेट के सामयिक युग में डिजिटल अवज्ञा सबसे बड़ा प्रतिवाद है। यह सरकार के खिलाफ प्रतिवाद का गांधीवादी तरीका है। डिजिटल अवज्ञा का नया पहाड़ा चीन की जनता रच रही है। वहां साधारण जनता ने चीनी प्रशासन ...

साधना वैद्य बता रही हैं- नाविक से

ले चल मेरी नौका पार ! भव सागर में बही जा रही, नहीं किनारा कोई पा रही, सुख दुःख की झंझा में पड़ कर डूब रही मंझधार ! ले चल मेरी नौका पार ! नाविक मुझे वही तट भाये, रहें जहाँ जग से ठुकराये, जहाँ बसा हो एक अनो... 
नमस्कार बच्चो , उस दिन हमें अमर अंकल नें बताया कि उन्होंने नन्हामन पर उडन-तश्तरी उतारी है और हम सब उसमें बैठकर आसमान की सैर भी कर आए । अमर अंकल नें इतना तो बताया कि उन्हें इसमें बहुत मेहनत करनी पडी , अब यह समझ में आया कि उस उडन-तश्तरी को उतारने में इतनी  
छत्तीसगढ के दुर्ग जिले के जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ने विधिक साक्षरता शिविर का आयोजन ग्राम खेरधा में किया। मुख्य अतिथि दुर्ग के अतिरिक्त सत्र न्याशधीश पीके एक्का ने कहा कि जैसे अंधेरे में चलने के लिए रौशनी की आवश्यकता होती है, वैसे ही हमारे जीवन मे कानून 
स्वतंत्रता प्रयासी योद्धाओं में हाडौती क्षेत्र के महाराज बलवंत सिंह हाड़ा गोठड़ा का अविस्मर्णीय योगदान रहा है | राजस्थान के हाडौती भू -भाग के दो राज्य कोटा और बूंदी ब्रिटिश प्रभाव की वारुणी का पान कर अभय स्वापन हो चुके थे | अंग्रेज सत्ता का स्वागत कर 
शाम को खाने के बाद कुछ ठंडा मीठा खाने का मन हो तो आप नारियल की खीर भी परोस सकते हैं. 
काश की,विदा तुझको मैं घर से करा जाऊंगा; जान-बुझकर इस खाता को दोहराऊंगा...बाबुल तेरे, हैं बिलखते तुझे चूम कर;  तेरे बचपन के खिलौनों को सोच-सोच कर ... अम्मा, आयीं हैं रोती हुई अब इधर; सारी मर्यादा और ममता को साथ लेकर ... भैया कहते हैं बेहना, संभालना 
हर नयी यात्रा में मेरा प्रयत्न होता है कि कुछ नया पढ़ा जाये जिसे पढ़ने का घर पर आम व्यस्तता में समय नहीं मिलता. इस बार बँगलौर गया तो पढ़ने के लिए श्री राजेश कोच्चड़ की लिखी पुस्तक "वेदिक पीपल", यानि "वेदों के समय के लोग" पढ़ी. चूँकि आईसलैंड के ज्वालामुखी 
हमें बचपन से ही सवाल पूछने की आदत है... जब भी किसी (मुसलमान) से मज़हब से जुड़े सवाल पूछो तो जवाब मिलता है कि इससे 'ईमान' ख़तरे में पड़ जाता है... यानि सवाल इस्लाम के प्रति शक पैदा करते हैं... इससे 'ईमान' डोलने लगता है... और किसी भी 'मुसलमान' को ऐसा नहीं 
यह तो हम सब जानते ही हैं कि कम पका हुआ (undercooked meat) मीट खाने से फूड-प्वाईज़निंग के साथ ही साथ अन्य कईं तरह की बीमारियां होने का भी रिस्क रहता है। लेकिन ज़्यादा पका हुआ मीट भी क्या सेफ़ है! -- इस से मूत्राशय का कैंसर होने का खतरा दोगुना हो जाता है।  
मेरी कुछ पुरस्कृत/प्रकाशित रचनाओं के लिंक्स. आपका पदार्पण अपेक्षित है : हिन्द युग्म पर 1. जनवरी 2010 यूनिकवि प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त : कबूतर तुम कब सुधरोगे? 2. अक्टूबर 2009 यूनिकवि प्रतियोगिता में पाँचवा स्थान : तुम अपनी मुट्ठियाँ हवा में
अब आपसे लेते हैं हम विदा
लेकिन दिलों से नहीं होंगे जुदा

6 टिप्पणियाँ:

इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

Bahut hi bhadiya aur vyavasthit charcha....bahut link mil gae....Dhanyawaad!!

बहुत बढिया .. 50वीं चर्चा की बधाई !!

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