रविवारिय ब्लॉग वार्ता को लेकर मैं संगीता पुरी पन: इस सप्ताह आपके समक्ष प्रस्तुत हूं .. आज सुबह सुबह प्रकाशित की गयी आदेश कुमार पंकज की कविता 'मानवता' से मैं इस ब्लॉग वार्ता की शुरूआत कर रही हूं , जो इस प्रकार है .........
मानवता बदल चुकी जब दानवता में ,तो भले गुलाबों में , क्यों यह ठहरेगी |जब घर - घर में नागफनी , उग आयी हो ,तो सदा मनुजता , काँटों में ही सिहरेगी |
थोडी ही देर बाद उन्होने एक मुक्तक भी पोस्ट की .......
मैंने तो दीप जलाये थे , फिर अंधिआरी कैसे आ छायी |
मैंने तो पुष्प सँजोएँ थे , फिर नागफनी कैसे उग आयी |
रात - रात बेचैन रहा , निद्रा को तजकर ----------
मैंने तो सिन्दूर सजाया था , फिर राखी कैसे ले
आगे योगेन्द्र मौद्गिल जी की दो पंक्तियों के साथ सतीश सक्सेना जी की पोस्ट ने भी बहुत कुछ सोंचने को मजबूर किया ......
योगेन्द्र मौदगिल कहने को तो हास्य कवि हैं मगर जब भी मैंने उन्हें पढ़ा , हर बार एक एक प्रभाव एक छाप रह गयी दिल पर ! गज़ब की धार है उनकी रचनाओं में ! आज उनकी एक सूक्ष्म रचना पढी तो यह दो लाइनें ही हिला गयीं !
" चौराहे की मिटटी को भई जम कर लज्जा आती है
दर्जन भर बेटों की अम्मा , भीख मांगने आती है !"
पेड़ों को
सींचते रहना
पानी से
ताकि बची रहे
हरियाली
धरती की।
चिड़ियों को
डालते रहना दाना
ताकि बचा रहे
संगीत
हवाओं में।
ह्रदय में
उगने देना
छंद करुणा के
ताकि बची रहे
नमी
तुम्हारी आँखों की।
मेरे बारे में अनूप शुक्लका पुराना कथन है कि मैं मात्र विषय प्रवर्तन करता हूं, लोग टिप्पणी से उसकी कीमत बढ़ाते हैं। यह कीमत बढ़ाना का खेला मैने बज़ पर देखा। एक सज्जन ने कहा कि यह सामुहिक चैटिंग सा लग रहा है। परस्पर संवाद। पोस्ट नेपथ्य में चली जाती है, लोगों का योगदान विषय उभारता है। ब्लॉग पर यह उभारने वाला टूल चाहिये।
संजय बेंगानी जी आजकल कार्टूनों पर काम कर रहे हैं ......
कार्टून के नीचे लिखी पंक्ति मेरी है. कार्टून अलग अलग कार्टूनिस्टों से साभार लिये है, मैंने केवल अपनी बात कहने के लिए उन्हे “सम्पादित” किया है.
मातृ-रुंधन
चाहे गुहार समझो मेरी,
या समझ लो इसे दृढ ऐलान,
न दूंगी अब एक भी सपूत अपना
तुम्हें करने को देश पर बलिदान ।
बज पर अविनाश वाचस्पति जी का सबों से अनुरोध है कि इस पर क्लिक करके पूरी जानकारी लें और सिर्फ टिप्पणी देकर खानापूर्ति मत करें। सहमत हों और अपना परिचय, अपनी रचनाएं, अपना चित्र (पराया कुछ नहीं, सब अपना ही) सबके अपने श्री रविन्द्र प्रभात जी की ई मेल ravindra.prabhat@gma il.com पर शीघ्र से भी पहले, मतलब तुरंत भेजने का कष्ट करें। कष्ट सब दूर हो जायेंगे जब इस अनूठे पहले परिकल्पना ब्लॉग उत्सव 2010 से जुड़ जायेंगे और अन्यों को जोड़ने के लिए भी उद्मशील होंगे।
आज जो भी परिस्थियां हैं , जैसा भी सडा गला माहौल बन चुका है , जो भी अनैतिक, अवैध, हो रहा है , जिस भी तरह के अपराध किए जा रहे हैं , और जिस तरह की घटनाएं घट रही हैं उससे सब कह रहे हैं कि , बस अब तो ये सूरत बदलनी ही चाहिए , बहुत हुआ अब सहा नहीं जाता ।इस बारे में जब सोचता हूं तो दो बातें एकदम स्पष्त समझ में आती हैं । पहली ये कि ये सब हम सबका ही किया धरा है । हममें से कोई भी इससे अछूता नहीं है , मेरे कहने का मतलब ये है कि आज यदि हम पुलिस पर उंगली उठाते हैं ,शिक्षकों पर प्रश्न उठाते हैं , कहते हैं कि डाक्टर ,इंजिनीयर ,कोई भी ठीक से अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं । जबकि हमें ये बहुत अच्छी तरह से पता है कि ये पुलिस , अधिकारी , कर्मचारी, डाक्टर , शिक्षक भी तो हमारे आपके बीच रह रहे परिवारों के ही हैं इसी समाज से ही तो हैं ,कहीं किसी दूसरे ग्रह से आए हुए प्राणी थोडी हैं ।
गिरीश बिल्लौरे मुकुल जी कहते हैं कि सानिया से ज्यादा जरूरी है संजय पर बात ......
जबलपुर नगर का युवा पावर लिफ़्टिंग खिलाडी संजय बिल्लोरे का चयन मंगोलिया की राजधानी उलानबटर में दिनांक ०१ मई से ५ मई तक आयोजित एशियन पावर लिफ़्टिंग चैम्पियन शिप २०१० हेतु इंडियन-पावर-लिफ़्टिंग फ़ेडरेशन व्दारा किया गया है. किंतु इस खेल के नान औलौंपिक श्रेणी का होने के कारण न तो राज्य सरकार से और न ही भारत सरकार से खिलाडी को कोई मदद शासकीय तौर पर मिलना कठिन हो गया है.
बी एस पाबला जी भिलाई के नवयुवकों द्वारा बनाए गए विश्व रिकार्ड की रजत जयंती पर विशेष लेखमाला लेकर आए हैं .......
वैसे तो हर क्षेत्र में भिलाई अपने उद्भव के समय से ही विश्व कीर्तिमान बनाते आया है। कईकीर्तिमान टूट गए, कई कीर्तिमान आज भी अपने स्थान पर अटल हैं। इन्हीं कीर्तिमानों में सेएक है भिलाई के दो युवकों द्वारा बनाया गया वह रोमांचकारी विश्व कीर्तिमान, जिसेइस अप्रैल माह में 25 वर्ष होने जा रहे हैं। सिल्वर जुबली मनाने जा रहा, भिलाई को गौरान्वितकरने वाला यह विश्व कीर्तिमान था 'मोटर साइकिल पर विश्व भ्रमण'।
लोग जब अपने बारे में लिखते हैं तो सबसे पहले यह बताते हैं कि वो किस शहर के रहने वाले हैं – मैं किस शहर को अपना शहर कहूँ ? पैदा होने का जुर्म ग्वालियर में किया लेकिन होश सँभाला लखनऊ में, पहली बार होश खोया अलीगढ में, फिर भोपाल में रहकर कुछ होशियार हुआ लेकिन बम्बई आकर काफी दिनों तक होश ठिकाने रहे, तो आइए ऐसा करते हैं कि मैं अपनी जिन्दगी का छोटा सा फ्लैश बैक बना लेता हूँ। इस तरह आपका काम यानी पढना भी आसान हो जाएगा और मेरा काम भी, यानी लिखना।
काव्यशास्त्र के इतिहास में आचार्य वामन के बाद प्रसिद्ध आचार्य रुद्रट का नाम आता है। इनका एक नाम शतानन्द भी है। इस संदर्भ में आचार्य रुद्रट के एक टीकाकार ने इन्हीं का एक श्लोक उद्धृत किया हैः-
शतानन्दपराख्येन भट्टवामुकसूनुना।
साधितं रुद्रटेनेदं समाजा धीनतां हितम्।।
डॉ मनोज मिश्रा जी का प्रश्न , क्या परशुराम क्षत्रिय विरोधी थे ......
बताया जाता है कि हमारे जौनपुर से परशुराम जी का नाता रहा है ,इन्ही के पिता जी ऋषि यमदग्नि केनाम पर ही जौनपुर कभी यमदाग्निपुरम से होते हुए जौनपुर हो गया. आज भी इनकी माता जी कामंदिर यहाँ विराजमान है.जौनपुर के स्थानीय निवासी और सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालयवाराणसी में पुराण -इतिहास विभाग के पूर्व आचार्य डॉ आशुतोष उपाध्याय नें हाल ही में यह पुस्तकलिखी है, जिसमें परशुराम जी से जुड़े विविध पहलुओं पर व्यापक प्रकाश डाला गया है .एक साथपरशुराम जी पर इतनी जानकारी संभवतः ही किसी पुस्तक में एक स्थान पर हो.
नयी जगह मेरा स्वयं का सर्वर
डॉ अरविंद मिश्राजी केरल यात्रा संस्मरण के आठवें भाग में केरल में हुए एक ब्लॉगर महामिलन के बारे में जानकारी दे रहे हैं ......
आज की दुनियां की भाग दौड़ ,आपाधापी में लोगों को खुद अपने लिए ही फुरसत नहीं है तब दूसरों के लिये समय की जुगाड़ करना कितना मुश्किल तलब( मुआमला )होता है इसका मुझे पूरा अहसास है और इसलिए ही दूसरों के वक्त की सीमाओं / पाबंदियों का मुझे ख़याल रहता है -बनारस से केरल के लिए रवाना होने के पहले मैनें सारथी सरीखे सुसम्मानित ब्लॉग के स्वामी आदरणीय डॉ जांसन सी फिलिप 'शास्त्री ' जी(शास्त्री जे सी फिलिप) से फोन पर कोचीन पहुँचने की तिथि और उनसे मिलने का संभावित समय बता दिया था ताकि वे अपने समय का प्रबंध तदनुसार करते हुए मुझे कुछ समय दे सकें .जैसी कि उम्मीद थी शास्त्री जी ने बहुत गर्मजोशी से मेरे आग्रह को स्वीकार कर लिया था और मैंने भी तत्क्षण उनसे अवश्यमेव मिलने का मन बना लिया था
पी सी निगम जी का मानना है कि सच्ची इबादत वही है , जो सबकुछ भुला दे ......
इबादत हो, पूजा हो या कोई अन्य काम। इस कदर मन लगाया जाए कि सिवाए उसके किसी और का जरा भी ख्याल न रहे। उसके सिवा सब कुछ भूल जाए। फिर किसी और चीज के होने का मतलब ही खत्म हो जाए। अर्जुन को जब चिडिय़ा की आंख भेदनी थी, तो उसका सारा ध्यान चिडिय़ा की आंख पर था।
.एक बार बहुत सारे अमीर लोग अपने शहर से बहुत दूर अपने वाहनों के साथ तीर्थ यात्रा पर जा रहे थे. उसी जगह एक बहुत ही निर्धन और अपहिज व्यक्ति भी रहता था, जो उनलोगों के साथ तीर्थ पर तो जाना चाहता था पर एक तो गरीबी और दूसरी मज़बूरी थी अपंगता. वह चुप-चाप उनलोगों को जाते हुए देखता रहा पर कुछ कह नहीं पाया. जब सारे लोग चले गए तो उधर से एक महात्मा गुजरे .
जो व्यक्ति सही अर्थों में धार्मिक है, न तो वह हिंदू हो सकता है, न तो मुसलमान होसकता है , न ईसाई, न बौद्ध, न जैन, न ही किसी प्रचलित धर्म या संप्रदाय का होसकता है..... कोई जैसे ही किसी धर्म या संप्रदाय से जुड़ता है , लोग उसे धार्मिकहोने नहीं देते हैं......
चुनाव करते ही धार्मिक स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है....या फिर कहें कि समाप्त करबादी जाती है.....
फिर चुनाव नहीं मजबूरी रह जाती है.....एक पक्ष में खड़े रहने की.....
जैसे ही आप एक के साथ खड़े हुए कि दूसरा आपके विरोध में खड़ा हो जाता है.....
और आपको भी दुसरे के विरोध में जबरन खड़ा कर दिया जाता है.....
एम एस परिहार जी का मानना है कि मीडिया दिशाहीनता का शिकार हो गयी है .....
मीडिया अथवा पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है। लेकिन वर्त्तमान परिदृश्य में वह अपनी दिशा खोता जा रहा है। पत्रकारिता का मतलब केवल समाचार देना ही नहीं होता अपितु समाज को जाग्रत करना तथा मार्गदर्शन देना भी होता है। देश की मीडिया को इस बात से कोई मतलब नहीं है की महंगाई क्यों बढ़ रही है और कौन इसके लिए जिम्मेदार हैं। महिला आरक्षण के मामले में भी मीडिया एकपक्षीय रवैया अपना रहा है। अभी इंडिया टुडे में प्रकाशित तवलीन सिंह के आलेख में स्पष्ट है कि हमारी राजनीति और मीडिया महिलाओं के प्रति कितनी संवेदनशील है।
फिर मिलते हैं अगले सप्ताह .. तबतक के लिए राम राम .....
7 टिप्पणियाँ:
अच्छी चर्चा। आभार।
बहुत उम्दा ,आपको नये रूप में देख रहा हूँ.
संगीता जी,
बहुत उम्दा चर्चा
आभार
nice
इस सुन्दर चर्चा के लिये धन्यवाद!
चर्चा की बहुद बढ़िया प्रस्तुती संगीता जी, अलग अंदाज, बधाई !
अच्छी चर्चा...धन्यबाद...
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