शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

समीर लाल की कृति "देख लूं तो चलूं" का विमोचन करेंगे ज्ञानरंजन /लोहड़ी विशेष:- सुंदर मुंदरीए को मिले गए दुल्ला भट्टी /स्टार न्यूज़ एजेन्सी पर थोक में लिंक उपलब्ध हैं

चित्र:Happy Lohri.jpg
विकी पीडिआ से साभार
त्यौहारों से भरे इस देश में आज़ लोहड़ी मनाई गई. वार्ता मंडली की ओर से हार्दिक बधाइयां. स्वीकारिये
सुंदर मुंदरीए हो, तेरा कौन बेचारा, ओ दुल्ला भट्टी वाला। यह लोहड़ी का लोकप्रिय गीत तो लोहड़ी के त्योहार के आस पास आम सुनाई पड़ता है, लेकिन पिछले कई दशकों से यह गीत केवल एक औपचारिकता मात्र बना हुआ था, क्‍योंकि सुंदर मुंदरियां तो हर वर्ष पैदा होती रहीं, लेकिन उनकी कदर करने वाला दुल्ला भट्‌टी किसी मां की कोख से नहीं जन्मा। किसी ने सच ही कहा कि आखिर बारह वर्ष बाद तो रूढ़ी की भी सुन ली जाती है, यह तो फिर भी कन्याएं हैं, इनकी तो सुनी जानी जायज थी। दुल्ले भट्टी की मृत्यु के दशकों बाद ही सही, लेकिन इन सुंदर मुंदरियों को दुल्ले भट्टी जैसे महान लोग मिलने शुरू हो गए। (आगे इधर से )
मेरे प्रिय कवि अशोक बाज़पेयी की कविता कई दिनों के बाद सबद पर मिली
विलाप
मैं विलाप करता हूँ:
बना नहीं पाया ऐसा घर
जिसमें रहते दिदिया-काका, अम्मा-दादा, बाबा
ऋभु के साथ,
जिसमें कई सदियाँ न सही, कम से कम एक सदी होती
आँगन की तरह चौड़ी-खुली;
जिस पर लगे कठचन्दन या बकौली के नीचे
सब जमा होते भोजन के लिए;
जिसमें मलाई की बरफ़ और लँगड़े आमों के साथ
कटहल का अचार, दलभजिया, भरे करेले होते
मटर-पनीर, छोले, नान के साथ;
जिसमें परछी में कभी मिरज़ापुर के पण्डितजी
रामचरितमानस पर प्रवचन करते
और कोई लैम्प के नीचे बैठा करता रहता
ज़्बीग्न्येव हर्बेर्त की कविताओं का हिन्दी अनुवाद;
जिसके भारी लकड़ी के दरवाजे़ सुबह पाँच बजे से
रात ग्यारह बजे तक लगातार खुले रहते
और जिसका होता न कोई चौकीदार;
जहाँ एक किनारे बैठकर
मैं आनन्दमोहन दादा से सुनता रह सकता
निराला और रामचन्द्र शुक्ल के संस्मरण।(आगे यहां से )
फ़िर विवेक भाई की बीमा सम्बंधी चिंतन करती इस पोस्ट को देखिये :"क्या ५० वर्ष की उम्र के बाद जीवन बीमा करवाना चाहिये उत्तर भी वहीं दे आईये  बर्फ़ में पाएं सुक़ून  "बर्फ से लकदक बगीचे दे रहे सुकून" दर्शन बावेजा ने सोख्ता गड्ढे के काम काज़ की जानकारी दी है. तो ख्यति प्राप्त चर्चा कार शिवम भैया ने बताया "बुरा भला: इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों पर सरकार रखेगी नजर" ज़रूरी खबर थी पता चला है कि टिप्पणीयां गिनी जा रहीं हैं.. हा हा हा
मेरे अलावा अब जिनने लाइव प्रसारण आरम्भ किया है उनके लाइव प्रसारण को Girish Billore Live पर देखा जा सकता है यदि वे प्रसारण नहीं कर रहे होंगे तब भी उनके द्वारा प्रसारित वेबकास्ट मिलेगा   :-
एक और चर्चा समय चक्र पर देखिये :- "चिट्ठी चर्चा : वाइफ स्वाप" बनाम "माँ एक्सचेंज .... घोड़ा डाक्टर, गायों और भैंसों की लात खाते थे .... और गलियों का महत्त्व ...." महेंद्र मिश्रा जी के सौजन्य से .
स्टार न्यूज़ एजेन्सी पर थोक में लिंक उपलब्ध हैं
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आदत मुकुराने की ब्लाग पर
संजय भास्कर की कविता 

किस बात का गुनाहगार हूँ मैं,
खुशिया भरता हूँ  सबकी जिंदगी में ,
टूटे दिलो को दुआ देता हूँ ,
दुश्मन का भी भला करता हूँ |
क्या इसी बात का गुनाहगार हूँ ,
      बहुत उम्दा लगी.  यह कविता मेरी जिंदगी के हालिया दौर का चित्र बना रही है. 
रश्मि रविजा जी जिस आलेख को लाईं है हैं आज़ वो वाक़ई कुछ नया है ""वाइफ स्वाप" बनाम "माँ एक्सचेंज" 
अन्त में पुन: लोहड़ी की हार्दिक शुभ कामनाएं स्वीकारिये

9 टिप्पणियाँ:

बेहद उम्दा वार्ता लगाई है दादा ... आभार ... अब तबियत कैसी है ?

बहुत ही निष्पक्षरूप से लगाई गई बेहतरीन चर्चा के लिए आभार!

लोहड़ी, मकर संक्रान्ति एवं उत्तरायणी की हार्दिक बधाई एवं मंगल कामनाएँ!
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छत पर जाओ!
पतंग उड़ाओ!

सभी को मकर संक्रांति की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

बढ़िया प्रस्तुति..मकर संक्रांति पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ....

लोहड़ी, मकर संक्रान्ति पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई

लोहड़ी, मकर संक्रान्ति पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई

समीर लाल जी को बधाई!

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